इटली में फासीवाद के उदय के चार कारण

जहाँ एकीकरण के पहले इटली एक भौगोलिक अभिव्यक्ति ही मानी जाती थी वही 1870 में एकीकरण के बाद यह एक बड़ी शक्ति बन कर उभरती है। इटली भी बाकि यूरोपीय देशों की तरह उपनिवेशवादी नीति का अनुशरण करता रहा और जब प्रथम विश्व युद्ध होता है तो वह मित्र राष्ट्रों की तरफ से युद्ध में शामिल हो जाता है। इटली युद्ध में मित्र राष्ट्र के साथ युद्ध करता है और विजयी होता है।,पर जिस कारण से इटली प्रथम विश्वयुद्ध में शामिल हुआ वो विजयी राष्ट्र होने के बावजूद भी पूरा नहीं हो सका जो इटली में फासीवादियों के उदय का एक मुख्य कारण बना। इसके अलावा सरकार का निक्कमा पन, साम्यवादियों का डर, पूंजीपतियों एवं सामंतों का सहयोग,आर्थिक मंदी एवं बेरोजगारी आदि भी फासीवादियों के उदय के लिए जिम्मेदार थे।

इटली में फासीवाद के उदय के कारण

इटली में फासीवाद के उदय के क्या कारण थे, इटली में फासीवाद के उदय के चार कारण, इटली में फासीवाद में उत्कर्ष के कारण, इटली में फासीवाद के अभ्युदय के लिए उत्तरदायी घटकों का विश्लेषण -
  1. इटली की जनता में असंतोष
  2. आर्थिक दुर्दशा
  3. समाजवाद का प्रचार
  4. राजनीतिक दलों में एकता का अभाव
  5. सरकार की अयोग्यता एवं अकर्मण्यता
1. इटली की जनता में असंतोष -  प्रथम विश्वयुद्ध प्रारंभ होने के समय इटली की सरकार ने तटस्थ रहने का निश्चय किया था, किन्तु कालान्तर में उसने अपनी नीति में परिवर्तन करके मित्रराष्ट्रों के पक्ष में युद्ध में भाग लिया। युद्ध में सम्मिलित होने से पूर्व सन् 1915 में इटली ने मित्रराष्ट्रों के साथ लंदन की संधि की थी जिसमें मित्रराष्ट्रों ने युद्ध के पश्चात् इटली को टिराले , ट्राइटिनो, डलमेि शया, इस्ट्रिया तथा अल्बानिया का विशाल भाग प्रदान करने का आश्वासन दिया था। इसके अतिरिक्त इटली को आस्ट्रिया, जर्मनी व टर्की के कुछ क्षेत्र प्राप्त होने के लिए भी आश्वस्त कर दिया गया था। इन्हीं आश्वासनों के आधार पर इटली ने प्रथम विश्वयुद्ध में भाग लिया था। किन्तु युद्ध के पश्चात् पेरिस के शांति-सम्मेलन में इटली के प्रतिनिधि ऑरलेण्डो ने मित्रराष्ट्रों के समक्ष अपनी मांगें प्रस्तुत कीं तो अमेरिका के राष्ट्रपति बिल्सन ने लंदन की संधि को मानने तथा इटली की मांगों को स्वीकार करने से स्पष्ट इंकार कर दिया। 

इस प्रकार इटली को पेरिस शांति-सम्मेलन में कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ। इस घटना से इटली की जनता में तीव्र असंतोष व्याप्त हो गया। वे यह अनुभव करने लगे कि मित्रराष्ट्रों ने उनके देश के साथ विश्वासघात किया था। अतएव वहां के युवा मध्यम वर्ग में संगठन व एकता की भावना जाग्रत हुई और उन्होंने इस राष्ट्रीय अपमान व विश्वासघात का प्रतिशोध लेने के उद्देश्य से एक नवीन संगठन स्थापित करने का निश्चय किया।

2. आर्थिक दुर्दशा - युद्ध की अवधि में इटली की सरकार ने सेना तथा युद्ध-सामग्री पर अपनी वित्तीय क्षमता से बहुत अधिक धन व्यय किया था, जिसके कारण युद्धोत्तरकाल में इटली की आर्थिक स्थिति शोचनीय हो गयी। राष्ट्रीय ऋण का भार बढ़ गया। मुद्रा का मूल्य दिन-प्रतिदिन गिरने से व्यापार, उद्योग तथा सार्वजनिक जीवन के क्षेत्र में अभूतपूर्व अव्यवस्था उत्पन्न हो गयी। बेरोजगारी बढ़ने से लोग भूखों मरने लगे। उनके पास न धन था, न व्यवसाय, न रोजगार और न भविष्य के लिए कोई योजना थी। इस देशव्यापी असंतोष व आर्थिक दुर्दशा के कारण लोगों ने तत्कालीन सरकार की नीतियों की कटु आलोचना की, तथा उन्होंने देश के राजनीतिक क्षेत्र में आमूल परिवर्तन करने का निश्चय किया। फ्रासिस्ट दल का उदय भी इसी असंतोष का परिणाम था।

3. समाजवाद का प्रचार - इटली की शोचनीय आर्थिक स्थिति तथा देशव्यापी असंतोष का लाभ उठाकर कुछ विरोधी दलों ने जनता में अपने कायर्क्रम व सिद्धांतों का प्रचार करना प्रारंभ कर दिया। उनमें से सर्वाधिक प्रसिद्ध व लोकप्रिय समाजवादी प्रजातांत्रिक दल था जिसके सदस्य माक्र्सवाद के समर्थक थे। वे समस्याओं के समाधान के लिए संवैधानिक उपायों की अपेक्षा सीधी कार्रवाई में अधिक विश्वास रखते थे। इस दल के कार्यकर्ताओं में अधिकतर बेरोजगार श्रमिक, कृषक तथा निम्न मध्यम वर्ग के लोग थे जो रूस की बोल्शेविक पार्टी की विचारधारा से अत्यधिक प्रभावित हुए। सन् 1919 में इटली में सम्पन्न हुए संसदीय चुनावों में समाजवादी दल को महान विफलता मिली और 574 स्थानों में से 156 स्थानों पर इस दल के उम्मीदवार विजयी हुए। फासिस्ट दल भी राष्ट्रीयता के सिद्धांत से प्रेरित था। अस्तु, समाजवादी दल तथा उसके समर्थकों ने फासिस्ट दल को पूर्ण समर्थन प्रदान किया।

3. राजनीतिक दलों में एकता का अभाव - उस समय इटली में विभिन्न राजनीतिक दल थे किन्तु उनमें परस्पर एकता नहीं थी। इस मतभदे के कारण संसद में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं हो पाता था। फासिस्ट दल ने अन्य दलों की पारस्परिक फूट का लाभ उठाया और अपने सिद्धांत का जनता में खूब प्रचार किया।

4. सरकार की अयोग्यता एवं अकर्मण्यता - इस प्रकार युद्धोत्तरकाल में इटली की आंतरिक स्थिति शोचनीय थी। पेरिस शांति-सम्मेलन के निर्णयों के प्रति सम्पूर्ण इटली में असंतोष व्याप्त था। देश का आर्थिक ढांचा अव्यवस्थित हो गया था। किन्तु इटली की तत्कालीन सरकार ने जनता की समस्याओं को हल करने तथा अव्यवस्था, अराजकता और असंतोष को दूर करने के लिए कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया। सरकार की अकर्मण्यता के विरोध में 1920 ई. में समाजवादी दल के सहयोग से देश के श्रमिकों व कृषकों ने विद्रोह कर दिया और उन्होंने लगभग एक सौ कारखानों पर अधिकार कर लिया। इतना ही नहीं, उन्हें चैम्बर ऑफ डेपुटीज की कुल सीटों के एक-तिहाई भाग पर अधिकार करने में भी सफलता प्राप्त हो गयी। किन्तु सरकार ने समाजवादियों की बढ़ती हुई  शक्ति का दमन करने का कोई प्रयासस नहीं किया। फासिस्टवादियों ने इटली की अयोग्य व अकर्मण्य सरकार की अनुचित, जन-विरोधी व उदासीन नीतियों का पूरा लाभ उठाया। जनता के मध्य मुसोलिनी की शक्ति व लोकप्रियता निरंतर बढ़ती गयी और शीघ्र ही उसने इटली की सत्ता पर अधिकार कर लिया।

1 Comments

Previous Post Next Post