एडोल्फ हिटलर |
हिटलर का जन्म 20 अप्रैल, 1889 ई. को आस्ट्रीया के ब्रोनो नामक ग्राम में हुआ था। यह ग्राम आस्ट्रीया एवं ववेरिया की सीमा पर इन नदी के किनारे स्थित था। उसके पिता लोहार थे एवं यह एक मध्यमवर्गीय परिवार था। प्रथम विश्व युद्ध के समय हिटलर मकानों में रंग का कार्य करता था। कालान्तर में वह ववेरिया की सेना में भर्ती हो गया। बहादुरी के कारण उसे ‘आयरन क्रास’ प्राप्त हुआ।
पाँच वर्ष हिटलर म्युनिख में रहा और वहाँ वह जर्मन मजदूर संघ का सदस्य बन गया। 1920 में इस दल का नाम ‘नेशनल सोशलिस्ट जर्मन लेवर पार्टी’ रखा गया। सेना की नौकरी छोड़कर हिटलर दल के संगठन में जुट गया। यही पार्टी नाजीवादी पार्टी कहलाई। इसे नात्सी पार्टी भी कहा जाता है। इस पार्टी ने अपना 25 सूत्रीय कार्यक्रम बनाया। लोग इस कार्यक्रम से आकर्षित हुये और दल के सदस्यों की संख्या बढ़ने लगी। दल का चिन्ह ‘स्वास्तिक’ को बनाया।
हिटलर का भाषण अत्यन्त प्रभावी होता था। जब वह मंच से कहता था - ‘हमें बर्साय संधि का अन्त करना है, सारी जर्मन जाति को एकता के सूत्र में बांध कर एक विशाल जर्मन राष्ट्र का निर्माण करना है’ यह शब्द सुनते ही वातावरण ताली की गढ़गढ़ाहट से गूँज उठता था। जर्मन जनता ने हिटलर को पलकों पर बिठा लिया था।
पाँच वर्ष हिटलर म्युनिख में रहा और वहाँ वह जर्मन मजदूर संघ का सदस्य बन गया। 1920 में इस दल का नाम ‘नेशनल सोशलिस्ट जर्मन लेवर पार्टी’ रखा गया। सेना की नौकरी छोड़कर हिटलर दल के संगठन में जुट गया। यही पार्टी नाजीवादी पार्टी कहलाई। इसे नात्सी पार्टी भी कहा जाता है। इस पार्टी ने अपना 25 सूत्रीय कार्यक्रम बनाया। लोग इस कार्यक्रम से आकर्षित हुये और दल के सदस्यों की संख्या बढ़ने लगी। दल का चिन्ह ‘स्वास्तिक’ को बनाया।
हिटलर का भाषण अत्यन्त प्रभावी होता था। जब वह मंच से कहता था - ‘हमें बर्साय संधि का अन्त करना है, सारी जर्मन जाति को एकता के सूत्र में बांध कर एक विशाल जर्मन राष्ट्र का निर्माण करना है’ यह शब्द सुनते ही वातावरण ताली की गढ़गढ़ाहट से गूँज उठता था। जर्मन जनता ने हिटलर को पलकों पर बिठा लिया था।
1932 ई. में राष्ट्रपति के पद के लिए चुनाव हुआ। हिटलर स्वयं भी इस पद का
एक अभ्यथीर् था, किन्तु हिण्डेनबगर् के मुकाबले में वह कुछेक मतों से पराजित हो गया। इसी वर्ष
पार्लियामेंट के लिए आम चुनाव भी हुए जिसमें नाजी दल को 230 सीटें प्राप्त हुई।
परिणामत: नाजी
दल पार्लियामेण्ट का सबसे बड़ा दल बन गया। संविधान में यह प्रावधान था कि सबसे बड़े दल के नेता
को चान्सलर के पद पर नियुक्त किया जायेगा। इसके अनुसार राष्ट्रपति ने हिटलर को चान्सलर के
रूप में कार्य करने व अपना मंित्रमण्डल बनाने के लिए निमंत्रित किया।
जनवरी 1933 ई. में हिटलर ने
चान्सलर के पद को स्वीकार कर लिया और नेशनलिस्ट दल के सहयोग से अपने मंत्रिमण्डल का गठन
किया। इस प्रकार हिटलर वीमर गणतंत्र की शक्ति पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने में सफल रहा।
हिटलर की यहूदी विरोधी नीति
जर्मनी में यहूदी अल्प-संख्या में निवास करते थे किन्तु वे अत्यंत धनवान और खुशहाल थे। वे अत्यंत शिक्षित थे। उनका प्रेस और कारखानों पर पूर्ण नियंत्रण था। उनमें से अधिकांश उच्च पदों पर नियुक्त थे। यहूदियों की सम्पन्न आर्थिक दशा के कारण जर्मन उनसे घृणा करते थे।हिटलर ने जर्मन जनता की यहूदी-विरोधी भावनाओं का पूरा लाभ उठाया। उसने यह प्रचार
किया कि यहूदी जर्मन राष्ट्र के शत्रु थे और उनके कारण ही प्रथम महायुद्ध में जर्मनी की पराजय हुई
थी। उसने जर्मन जनता को यह आश्वासन प्रदान किया कि सत्ता ग्रहण करने के बाद वह यहूदियों को
देश से निष्कासित कर देगा।
हिटलर की यहूदी- विरोधी नीति के कारण उसे जन-सहयोग प्राप्त हुआ।
वह उसके तथा नाजी दल के उदय में अत्यतं सहायक सिद्ध हुआ।
हिटलर की गृह नीति
30 जनवरी, 1933 में हिटलर वीमर गणतंत्र का चान्सलर नियुक्त हुआ। वह अपने इस पद से संतुष्ट नहीं था और शासन की समस्त शक्ति को अपने हाथ में केन्द्रित करना चाहता था, परन्तु राष्ट्रपति उससे सहमत नहीं हुआ और वह शासन की बागडोर को अपने हाथों में नहीं ले सका। इसलिए उसने पार्लियामेण्ट को भंग करके नये चुनाव कराये जाने का आदेश दिया जो 5 मार्च, 1933 को हुए।2 अगस्त, 1934 को राष्ट्रपति हिण्डेनबगर् की मृत्यु के बाद हिटलर ने राष्ट्रपति की शक्तियों को
भी चान्सलर की शक्तियों के साथ संयोजित कर दिया। इस प्रकार वह जर्मनी का वास्तविक तानाशाह
बन गया।
शक्ति ग्रहण करने के बाद हिटलर ने अपनी उच्च महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए अनेक प्रयास किये। गृह-क्षेत्र में उसने अपने विरोधियों पर अनेक प्रतिबंध लगाये, जनसाधारण को अनेक सुविधाएं प्रदान कीं और जर्मनी के आर्थिक, शैक्षिक, सामाजिक औद्योगिक एवं धार्मिक विकास के लिए अनेक महत्वपूर्ण कदम उठाये। गृह-क्षेत्र में उसकी उपलब्धियां निम्न प्रकार थीं :
शक्ति ग्रहण करने के बाद हिटलर ने अपनी उच्च महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए अनेक प्रयास किये। गृह-क्षेत्र में उसने अपने विरोधियों पर अनेक प्रतिबंध लगाये, जनसाधारण को अनेक सुविधाएं प्रदान कीं और जर्मनी के आर्थिक, शैक्षिक, सामाजिक औद्योगिक एवं धार्मिक विकास के लिए अनेक महत्वपूर्ण कदम उठाये। गृह-क्षेत्र में उसकी उपलब्धियां निम्न प्रकार थीं :
1. सशक्त एकतंत्रात्मक सरकार की स्थापना - हिटलर को गणतंत्र में कोई विश्वास नहीं था उसका उद्देश्य जर्मनी में एकतंत्र की स्थापना करना था। उसकी मान्यता थी कि कोई भी देश प्रजातंत्रात्मक सरकार के अंतर्गत संगठित और शक्तिशाली नहीं हो सकता। देश के चहुँमुखी विकास और उन्नति के लिए वहां एक व्यक्ति और एक दल का शासन होना चाहिए। जब पार्लियामेण्ट ने उसे चार वर्ष के लिए राज्य की समस्त शक्तियां प्रदान कर दीं, तब उसने सर्वप्रथम अपने समस्त विरोधियों को जड़ से उखाड़ फेंकने का प्रयास किया। हिटलर के आदेश पर उसके समस्त विरोधियों को गोली मार दी गयी। इतना ही नहीं उसने नाजी दल के कुछ संदेहपूर्ण चरित्र के लागे ों को भी मौत के घाट उतार दिया।
हिटलर
ने राष्ट्रीय एकता की स्थापना के लिए इस साहसिक कदम को उठाया था। वास्तव में वह एक ऐसी
सशक्त एकतंत्रवादी सरकार की स्थापना करना चाहता था जिसके अंतर्गत उसका कोई विरोधी न हो।
2. विरोधी तत्वों का उन्मूलन - हिटलर जर्मनी में अपने विरोधियों को समूल नष्ट करना चाहता था। जून 1934 ई. के अंतिम
शनिवार को हिटलर ने अपने समस्त विरोधियों को कत्ल करने का आदेश दिया। इस दिन को इतिहास
में ‘खूनी शनिवार’ के नाम से जाना जाता है। नाजी दल के अतिरिक्त उसने सभी राजनीतिक दलों पर
प्रतिबंध लगा दिया था उसने विरोधी दल के लागे ों के नागरिक अधिकारों को छीन लिया।
हिटलर अपने
विरोध में कोई भाषण, वाद-विवाद अथवा सार्वजनिक आरोप को सहन करने के लिए तैयार नहीं था,
इसलिए उसने संसदीय वाद-विवाद, भाषण और प्रेस आदि पर प्रतिबंध लगा दिया था। नाजी दल के
अंदर भी हिटलर के कुछ विरोधी विद्यमान थे जो उसके अन्तरंग मित्र तथा नाजी दल के सक्रिय सदस्य
थे।
हिटलर उनका विरोध सहन करने के लिए तैयार नहीं था, इसलिए उसने उनके वध का आदेश
दिया। अपने विरोधियों का देश में सफाया करने के लिए उसने यह महत्वपूर्ण व जोखिमपूर्ण कदम
उठाया था।
यद्यपि जर्मनी में यहूदियों की संख्या अत्यंत कम थी, किन्तु वे पढ़-े लिखे, सम्भ्रान्त और सुसंस्कृत थे। देश के व्यापार और उद्योग-धंधों पर उनका एकाधिकार था। राज्य के बड़े और महत्वपूर्ण पदों पर केवल यहूदियों को ही नियुक्त किया जाता था। इसके कारण नाजी दल के सदस्य उनसे घृणा करते थे। जर्मनी की यहूदियों के प्रति परम्परागत घृणा की भावना का लाभ उठाते हुए हिटलर ने प्रचार किया कि प्रथम महायुद्ध में जर्मनी की पराजय के लिए यहूदी पूरी तरह से उत्तरदायी थे। यद्यपि यहूदियों ने युद्ध के दौरान राष्ट्र की अनेक महत्वपूर्ण सेवाएँ की थीं किन्तु नाजी दल के लागे उन्हें तथा उनकी सेवाओं को कोई महत्व नहीं देते थे।
जब हिटलर शक्ति में आया तो उसने यहूदियों को कुचलने
के अनेक प्रयास किये तथा यहूदी विरोधी अनेक नियम बनाये। इन नियमों के अनुसार यहूदियों को
मतदान के अधिकार एवं जर्मन नागरिकता से वंचित कर दिया गया था। अब वे कोई व्यक्तिगत
धंधा नहीं कर सकते थे। उन्हें सरकारी सेवाओं से भी वंचित कर दिया गया था। उन्हें अपनी समस्त
सम्पत्ति का पूर्ण विवरण सरकार को देना पड़ता था। उनके बच्चों को जर्मनी के किसी स्कूल में शिक्षा
प्राप्त करने का अधिकार नहीं था। वे मार्गों की मुख्य सड़कों में नहीं चल सकते थे।
इस प्रकार हिटलर
ने यहूदियों के आर्थिक एवं सांस्कृतिक बहिष्कार के लिए अनेक दमनात्मक कदम उठाये थे।
5. हिटलर की आर्थिक नीति - हिटलर तथा नाजी पार्टी के आदेशों के अनुसार मनुष्य की तुलना में राज्य को अधिक महत्व
प्रदान किया गया था। हिटलर की मान्यता थी कि ‘मनुष्य कुछ भी नहीं है जबकि राज्य सब कुछ है।’
यह नाजी दल का मूल सिद्धांत था। उस समय जर्मनी के सर्वसाधारण की आर्थिक दशा अत्यंत दयनीय
थी। बरे ाजे गारी और कृषि व उद्योगो की पिछड़ी हुई स्थिति हिटलर के सम्मुख प्रमुख समस्याएं थी।
उसने जनता को उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार करने का आश्वासन दिया था अत: उसने इस दिशा में
निम्नलिखित महत्वपूर्ण कार्य किये :
जब हिटलर सत्तारूढ़ हुआ, लगभग 6 करोड़ व्यक्ति बेरोजगार थे। हिटलर ने उन्हें रोजगार
प्रदान करने के अनेक प्रयास किये। उनमें से कुछ निम्न प्रकार थे :
- स्त्रियों का कारखानो, मिलों व दफ्तरों में कार्य करना वर्जित घोषित किया गया। हिटलर नहीं चाहता था कि महिलाए पुरूष्ज्ञों के समान कार्य करे। उसके अनुसार जर्मनी की महिलाओं का प्रमुख स्थान घर था अत: उनके कार्यक्षेत्र को घर की सीमाओं के अंदर सीमित कर दिया गया।
- यहूदियों को सरकारी सेवाओं से मुक्त कर दिया गया तथा रिक्त स्थानों पर बेरोजगारों व्यक्तियों को नियुक्त किया गया।
- कार्यशील व्यक्तियों को अधिक से अधिक एक सप्ताह में 40 घण्टे कार्य करना पड़ता था।
- जर्मनी में स्वयंसवे क दल का गठन किया गया था। जो लागे इस दल के अंतर्गत कार्य करना चाहते थे उन्हें नाममात्र का वते न दिया जाता था, परन्तु उनके लिए भोजन व आवास की मुफ्त व्यवस्था की जाती थी।
- उत्पादन के मुख्य केन्द्रों पर सरकार का पूर्ण नियंत्रण था। देश को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए अनेक नवीन कारखानों की स्थापना की गयी थी। देश के निर्यात को प्रोत्साहन प्रदान किया गया था, जबकि आयात को निरूत्साहित करने के लिए माल पर भारी कर लगाया गया था।
- अनेक नयी इमारतों व किलों के निर्माण-कार्य को प्रारंभ किया गया था। युद्धपोत और जहाजों का निर्माण किया गया। इससे बेरोजगारी की समस्या बहुत सीमा तक हल हो गयी तथा इन बेरोजगार लागे ों की सहानुभूति हिटलर व उसके दल को प्राप्त हुई।
8. सैनिक संगठन - हिटलर ने राष्ट्रीयता के आधार पर अपनी सैनिक शक्ति का गठन किया। उसकी यह मान्यता
थी कि नेपाेि लयन प्रथम की यूरोप में पराजय का एकमात्र कारण यह था कि उसकी सेना में
भिन्न-भिन्न राष्ट्रों के सैनिक थे। इसलिए उसने कवे ल जमर्न लोगों को ही सने ा में स्थान दिया। विशाल
सेना के गठन के लिए उसने जनसंख्या की वृद्धि पर विशेष बल दिया।
हिटलर की विदेशी नीति
हिटलर ने अपनी विदेशी नीति के संदर्भ विस्तृत विवेचना अपनी पुस्तक ‘मेरा संघर्ष’ में की है। हिटलर ने अपना नारा ‘वार्साय की संधि का नाश हो’ दिया था, स्पष्ट है कि हिटलर वार्साय की संधि की संपूर्ण व्यवस्था को कुचलना चाहता था। वहा जर्मनी को एकासत्तात्मक राष्ट्र बनाना चाहता था। वह चाहता था कि जर्मनी विश्व की महान शक्ति बने। इसका मानना था कि जर्मनी की धुरी शक्ति बनाने के कार्य के पीछे ईश्वरीय प्रेरणा है। और इस कार्य को वही कर सकता है।1. नि:शस्रीकरण सम्मेलन तथा राष्ट्र संघ को छोड़ना - 1932 ई. में जेनेवा में राष्ट्र सघ ने निशस्रीकरण सम्मेलन का आयोजन किया। इसमें 10 राष्ट्रों
के 200 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस सम्मेलन में हिटलर ने प्रस्ताव रखा कि अन्य देश्ज्ञों
की तहर उसे भी शस्रीकरण का समान अधिकार दिया जाय अथवा सभी राष्ट्रों को जर्मनी के समान ही
समान रूप से ‘‘नि:शस्रीकरण का पालन करना चाहिए। फ्रांस ने इस प्रस्ताव का विरोध किया।
अत:
हिटलर ने 14 अक्टूबर, 1933 ई. को नि:शस्रीकरण सम्मेलन एवं राष्ट्र संघ से अलग होने का नोटिस दे
दिया। नवम्बर 1933 में हुए जनमत संग्रह ने भी हिटलर के राष्ट्र संघ को छाडे ने का समर्थन किया।’’
2. पोलैण्ड-जर्मन समझौता (23 जनवरी, 1934 ई.) - पोलैण्ड और जर्मनी के पारस्परिक संबधं कुछ अच्छे नहीं थे किंतु दोनों की परिस्थितियों ने दोनों
को समझौते के लिए प्रेरित किया। पोलैण्ड की स्थिति रूस एवं जर्मनी के मध्य थी। यदि रूस व जर्मनी
में संघर्ष होता तो पोलैण्ड बीच में होने से पिस सकता था। दूसरा पोलैण्ड का मित्र फ्रांस उससे काफी
दूर था। अत: पोलैण्ड अपनी सुरक्षा के लिए कुछ परेशान था। इधर जर्मनी पोलैण्ड से समझौता कर
यूरोप में राष्ट्रों को दिखाना चाहता था कि वह शांति का समर्थक है। यदि पोलैण्ड से मित्रता हो जाये
तो वह अन्य शत्रुओं को सामना आसानी से कर सकता था। अत: हिटलर ने 23 जनवरी, 1934 ई. को पोलैण्ड के साथ 10 वर्ष के लिए अनाक्रमण समझौता किया। इस समझौते की शर्तें इस प्रकार थी-
- जर्मनी ने यह आश्वासन दिया कि वह 10 वर्ष तक अपनी पूर्वी सीमाओं में परिवर्तन की बात न उठायेगा जिसमें पोलिश गलियारा भी था।
- दोनों देश एक दूसरे पर आक्रमण नहीं करेंगे
4. सार की प्राप्ति - सार का क्षेत्र जो कि वार्साय की संधि के अनुसार 15 वर्षों के लिए राष्ट्र संघ के संरक्षण में था,
जनपद संग्रह के पश्चात् जर्मनी को दिया गया। मतदान में कुल 500000 मत पड़ े जिसमें वे 90 प्रतिशत
जर्मनी के पक्ष में थे। एक मार्च 1935 को यह क्षेत्र जर्मनी को दे दिया गया। इस घटना के विषय में
अत: उसने वार्साय की संधि पर आक्रमण शुरू कर दिया, जिसका पहला प्रहार सैन्यीकरण पर था।
5. जर्मनी में अनिवार्य सैनिक सेवा लागू करना- वार्साय संधि की धाराओं को ताडे ़ते हुए हिटलर ने 16 मार्च, 1935 को जर्मनी में अनिवार्य सैन्य
सेवा की घोषणा की। 16 मार्च, 1935 को उसने घोषणा की कि जर्मनी अब अपने को वार्साय की सैन्य
धाराओं से मुक्त मानता है। जर्मनी की शांतिकालीन सैनिक संख्या 550000 होगी और जर्मनी में अनिवार्य
सैनिक सेवा लागू की जायेगी।
6. इंग्लैण्ड-जर्मन नौसेना समझौता (जून 1935) -हिटलर ने बड़ी सूझ-बूझ से इंग्लैण्ड से नौसेना संबंधी समझौता जून 1935 को किया। इसके अनुसार -
11. रूस से समझौता - हिटलर ने यूरापीय परिस्थितियों का अवलोकन कर अगस्त 1939 को रूस से अनाक्रमण समझौता किया जिसके अनुसार -
- जर्मनी को इंग्लैण्ड की अपेक्ष 35 प्रतिशत नौसेना रखने का अधिकार प्राप्त हो गया।
- जर्मनी अपने पड़ोसियों के बराबर वायुसेना रख सकेगा। इस प्रकार इस समझौते से वार्साय की संधि टूट गई और जर्मनी को बल मिला। स्ट्रेसा सम्मेलन बेकार सिद्ध हुआ।
7 मार्च, 1936 ई. को हिटलर ने राइन क्षेत्र में अपनी सेनाएँ भेज दीं और राइनलैण्ड पर
अधिकार कर लिया। हिटलर के इस कार्य के दूरगामी परिणाम निकले। प्रथम तो फ्रांस की कमजोरी
प्रदशिर्त हो गई। फ्रांस के मित्रों ने उसका साथ छोड़ दिया।
उदाहरण के लिए बेिल्जयम तटस्थ हो
गया। द्वितीय, राष्ट्र संघ एवं वार्साय और लाके ार्नों संधियों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया।
8. रोम-बर्लिन-टोक्यो धुरी की स्थापना - अबीसीनिया पर किये गये मुसोलिनी के आक्रमण की हिटलर द्वारा सराहना ही नहीं की गई
बल्कि हिटलन ने इटली को आर्थिक सहायता भी प्रदान की थी। उसके इस कार्य ने मुसोलिनी को
हिटलर के नजदीक ला दिया। 21 अक्टूबर, 1936 ई. को दोनों देशों के विदेश मंत्रियों ने एक समझातै ा
किया। इसके अनुसार -
- जर्मनी ने स्वीकार किया कि अबीसीनिया पर इटली अधिकार न्यायोचित है।
- इटली ने स्वीकार किया कि जर्मनी आस्ट्रिया पर अधिकार कर सकता है।
डॉ. बुस्निमा ने इस विषय में
कहा था, ‘‘हमे जबरदस्ती के आगे समर्पण करना पड़ रहा है ईश्वर ही आस्ट्रिया की रक्षा कर सकता
है। इस प्रकार आस्ट्रिया को जर्मनी में मिलाने से हिटलर ब्रेनर दर्रे से इटली, यूगोस्लाविया एवं हंगरी के
साथ संबंध स्थापित बेरोक-टोक कर सका। इसीलिए हिटलर ने कहा था कि जर्मनी विजय की घड़ी से
गुजर रहा है।
10. चैकोस्लोवाकिया को हस्तगत करना - आस्ट्रिया पर विजय प्राप्त कर लेने से हिटलर चैकोस्लोवाकिया को आसानी से हस्गत कर
सकता था। अवसर का लाभ उठाकर हिटलर ने चैकोस्लोवाकिया में रनहे वाले जर्मनों को विद्रोह के
लिए भड़काया। स्वेडटन जर्मन संघ पूर्ण स्वराज्य की माँग करने लगा। इधर हिटलर स्वेडटन जर्मन संघ
की मदद करने लगा। चैकोस्लोवाकिया और जर्मनी के बीच युद्ध का वातावरण पैदा हो गया। परंतु
इंग्लैण्ड ने हस्तक्षेप करके एक समझौता कराया जो कि म्यूनिख समझौता कहलाता है। इसके अनुसार
1. स्युडेटन्लैण्ड पर जर्मनी का अधिकार हो गया।
2. इंग्लैण्ड व फ्रांस ने चैकोस्लोवाकिया की नई सीमाओं की रक्षा का आश्वासन दिया।
3. हिटलर ने वचन दिया कि स्रूुडेंटनलैण्ड यूरोप में उसका अंतिम सीमा विस्तार है।
11. रूस से समझौता - हिटलर ने यूरापीय परिस्थितियों का अवलोकन कर अगस्त 1939 को रूस से अनाक्रमण समझौता किया जिसके अनुसार -
- दोनों एक दूसरे के मित्र रहेंगे।
- पोलैण्ड को जर्मनी एवं रूस में बाँटा जायगे ा।
- रूस जर्मनी को युद्ध, सामग्री एवं खाद्य सामग्री देगा।