इतिहास का अर्थ, परिभाषा, विषय क्षेत्र, अध्ययन का महत्व

इतिहास न केवल भूतकाल से सम्बन्धित है वर्तमान और भविष्य से भी इसका सम्बन्ध है। अतीत (भूतकाल) की घटनाओं से हम वर्तमान में प्रेरणा लेकर भविष्य के लिए मार्ग प्रशस्त करते हैं या भविष्य के प्रति सजग रहते हैं। इतिहास पृथ्वी के धरातल पर घटित सभी घटनाओं का द्योतक है जो चाहे राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक अथवा सांस्कृतिक हो। यह सभी इतिहास की सीमा में आता है। इस प्रकार इतिहास समय सीमा में मानव विकास की प्रक्रिया का आलेख है अर्थात् समय अनुकूल मानव के क्रमिक विकास की कहानी ही इतिहास है।

अन्य विषयों की तरह मानव रूचि को ध्यान में रखते हुए इतिहास भी अपनी विषय वस्तु के प्रति रचनात्मक रहा है। प्रारंभ में इतिहास तत्कालीन समाज के उच्च वर्ग की परम्पराओं एवं राजाओं तथा सेनापतियों की विजय गाथाओं से काफी हद तक प्रभावित रहा। यह संभवतः श्रेष्ठ शक्तियों एवं व्यक्तिओं में तादात्म्य स्थापित हो और वीरतापूर्ण कार्याे की प्रोत्साहन देने हेतु था। इससे तत्कालीन समाज के जीवन में महत्व रखने वाले कुछ ही लोगों की उपलब्धियों और उससे सम्बन्धित बीती घटनाओं का वर्णन ही इतिहास बना। 

इतिहास का अर्थ

इतिहास शब्द की उत्पत्ति ग्रीक शब्द ‘हिस्टोरिया’ (Historia) से हुई है जिसका अर्थ ‘खोजना या जानना’ है। यह शब्द अतीत की घटनाओं की ओर संकेत करता है। ‘History’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग ग्रीक लेखक हेरोडोटस ने किया था। इसीलिए उसे इतिहास का पिता कहा जाता है।  History का हिन्दी शब्द ‘इतिहास’ है। इतिहास शब्द ‘इति+ह+हास’ शब्दों  के मिलने से बनता है जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘ऐसा ही हुआ था’। यहाँ ‘इति’ से आशय है - ‘बीता हुआ युग’। ‘ह’ निश्चय वाचक है और ‘आस’ था को कहते हैं अर्थात् जो निश्चय करके बीत गया है, उसे इतिहास कहते हैं। 

इतिहास की परिभाषा

ई. एच. कार के अनुसार . वस्तुत: इतिहास, इतिहासकार तथा तथ्यों के बीच अंतक्रिया की अविच्छिन्न प्रक्रिया तथा वर्तमान और अतीत के बीच अनवरत परिसंवाद है। 

 डोनल व्ही. गॉरोंस्की के अनुसार . इतिहास विगत मानवीय समाज की मानवतावादी एवं व्याख्यात्मक अध्ययन है जिसका उद्देश्य वर्तमान के सम्बन्ध में अन्तदृष्टि प्राप्त करना तथा अनुकूल भविष्य को प्रभावित करने की आशा जाग्रत करना है। 

 आर. एन. कॉलिंगवुड के अनुसार . इतिहासकार ऐतिहासिक अभिनेता के विचारों की पुनरावृत्ति का अतीत का पुननिर्माण करता है।

इतिहास के विषय क्षेत्र

इतिहास के स्वरूप विचार करने के पश्चात इसके विषय-क्षेत्र चर्चा की जाती है। इतिहास का विषय-क्षेत्र अधिक व्यापक है। हर युग के इतिहासकार ने इतिहास की आवश्यकता का अनुभव किया है। अत:, इतिहासकार अपने युग की आवश्यकता और सामाजिक मूल्यों के अनुसार इतिहास लिखता है। मानव समाज निरन्तर विकास की ओर बढ़ता रहा है। इस विकास के साथ-साथ मनुष्य की आवश्यकता भी बढ़ती गई। इन्हीं को हर युग का इतिहास-लेखक प्रस्तुत करता गया। आदिकाल से ही मनुष्य संघर्ष करता आया है। उसका उत्थान-पतन ही इतिहास है। इतिहास में इतिहाकार किसी घटना का क्रमबद्ध विवरण प्रस्तुत समय तीन बातों को ध्यान में रखता है- 
  1. घटना क्या है? 
  2. वह कैसे घटी? 
  3. क्यो  घटी? 
इसी के विश्लेषण को इतिहास कहते हैं जिसे कि इतिहासकार प्रस्तुत करता है। वैसे इतिहासकार के दो मुख्य कार्य हैं- 
  1. तथ्यों को संकलित करना और 
  2. उनका विश्लेषण करना। प्रथम का स्वरूप विषयनिष्ठ तथा मानवता वादी है और दूसरे का वैज्ञानिक और वस्तुनिष्ठ। 
अत: इतिहास के क्षेत्र में आदमी के साधारण कार्यों  से लेकर उसकी सभी प्रकार की उपलब्धियों  का वर्णन है। 

डॉ0 झारखण्ड चौबे ने ठीक ही लीखा है - जैसे प्रत्येक कवि अपने युग का कवि होता है, उसी प्रकार प्रत्येक इतिहासकार अपने युग का इतिहासकार होता है। कवि की ही भॉति इतिहासकार की वाणी अपने युग की वाणी होती है।

समाज के सभी पक्षों का चित्रण करता है- बीते समय के समाज का पूरा चित्रण इतिहास में किया गया है। उस समाज का सम्पूर्ण चित्रण, जैसे - भौगोलिक वातावरण, आर्थिक व्यवस्था, राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, प्रशासनिक, संवैधानिक, कानून, न्याय-व्यवस्था आदि, प्रस्तुत करना इतिहास का कार्य है। 

इतिहासकार का परम कर्तव्य है कि वह अतीत के उपरोक्त सभी पक्षों को समाज के सामने प्रस्तुत करें।

इतिहास का वर्गीकरण

इतिहास के विषय-क्षेत्र का स्वरूप सामाजिक आवश्यकताओं के अनुसार सदैव विकसित होता रहता है। अतीतकालिक समाज का पूर्ण चित्रण ही इतिहास का प्रमुख उद्देश्य होता है। किसी भी समाज में संबंधित भौगोलिक दशा, वातावरण, आर्थिक व्यवस्था, राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, प्रशासनिक, संवैधानिक, कानून, न्याय-व्यवस्था, आदि का विवरण आवश्यक होता है। इतिहास अविभाज्य है परन्तु अध्यापन की सुविधा के लिए इसे स्थानीय इतिहास, प्रांतीय इतिहास, राष्ट्रीय तथा विश्व इतिहास में बाँटा गया है या इसे राजनैतिक इतिहास, आर्थिक इतिहास, एवं सामाजिक इतिहास के अंतर्गत बाँटा गया है। 

1. संवैधानिक इतिहास 

 संवैधानिक इतिहास का राजनैतिक इतिहास से गहरा संबंध है। इसके अध्ययन का स्वरूप वस्तुनिष्ठ है जबकि राजनैतिक इतिहास विषयनिष्ठ होता है। सामाजिक जीवन में इसका स्थान महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह सामाजिक जीवन का आधार है। संवैधानिक इतिहास एक प्रकार से राज्य में स्वामित्व के लिए संघर्ष का प्रतीक है, इसकी मुख्य रुचि संस्थाओं में रहती है। यदि इतिहासकार सही एवं संतोषजनक कहानी समाज में प्रस्तुत करना 63 चाहता है तो उसे अपनी घटनाओं, तर्कों, एवं रुचि के लिए राजनैतिक इतिहास से परे जाना चाहिए।

2. आर्थिक इतिहास 

 समाज के प्रारंभ के साथ ही आर्थिक इतिहास का उदय होता है। समाज में अपनी आाजीविका के साधनों को किस प्रकार उत्पन्न किया, इसका ज्ञान आर्थिक इतिहास प्रदान करता है। आर्थिक इतिहास के क्षेत्र में मनुष्य कायोर्ं को प्रभावित करने वाले विचार, समाज का उद्देश्य, विभिन्न सामाजिक वगोर्ं का पारस्परिक संबंध तथा व्यवहार का अध्ययन, आदि विषय होते हैं। इतिहासकारों का प्रयास यह देखना है कि आर्थिक परिस्थितियों के परिणामस्वरूप किस प्रकार सामाजिक संबंधों, मानवीय व्यवहारों, तथा कार्यों के परिवेश में सामाजिक परिवर्तन है।

3. सामाजिक इतिहास 

सामाजिक इतिहास के अंतर्गत लोगों के विचार एवं कार्य, दैनिक जीवन, विश्वास, आवश्यकता, आदत, पूर्वज, आदि के बारे में अध्ययन किया जाता है। सामाजिक इतिहास की अपनी समस्याएँ है। इसका अध्ययन रोचक है, किंतु इसकी निरंतरता, मंदगति, तथा परिवर्तन का अध्ययन अत्यंत जटिल है। इतिहास का विकास व्यक्तियों तथा राष्ट्रों से नहीं बल्कि विभिन्न युगीन समाजों से हुआ है। अत: इतिहास की आधारशिला समाज है। अत: सामाजिक इतिहास का स्थान अत्यधिक महत्वपूर्ण है।

4. राजनैतिक इतिहास 

राजनैतिक इतिहास इतिहास की केंद्रीय स्थिति है, क्योंकि व्यक्ति सार्वजनिक संस्थाओं में ही घटनाओं को नियंत्रित करने की इच्छा अभिव्यक्त करता है। राजनैतिक इतिहास के अंतर्गत राष्ट्रों के पारस्परिक संबंधों का वर्णन रहता है। इसमें समस्या-संबंधी आंतरिक तथा वाह्य परिस्थितियों का उल्लेख नहीं रहता। इसके अंतर्गत समस्याओं के समाधान के लिए विभिन्न राष्ट्रों का प्रयास तथा आदान-प्रदान के पत्रों का विवरण रहता है।

5. सांस्कृतिक इतिहास 

सांस्कृतिक इतिहास सामाजिक इतिहास का अभिन्न अंग है। इसके अंतर्गत रीति-रिवाज, संस्कार, शिक्षा, साहित्य, वास्तुकला, चित्रकला, संगीत, तथा आमोद-प्रमोद के साधनों का विवरण रहता है। सांस्कृतिक इतिहास के अध्ययन को सरल तथा सुबोध बनाने के लिए इतिहासकारों ने इतिहास-क्षेत्र को तीन भागों में वर्गीकृत किया है:-

1. प्राचीनकालीन इतिहास -  प्राचीनकाल मानव के प्रारंभ से लेकर 1000 ई. तक माना गया है। प्राचीनकालीन इतिहास के अंतर्गत प्रारम्भ से 1000 ई. तक की सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, दार्शनिक, तथा सांस्कृतिक दशाओं का अध्ययन किया जाता है। 

2. मध्यकालीन इतिहास -  1000 ई. से लेकर 1818 ई. तक के काल को मध्यकाल माना गया है।मध्यकालीन इतिहास के अंतर्गत 1000 ई. से लेकर 1818 ई. तक की सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, दार्शनिक, तथा सांस्कृतिक दशाओं का अध्ययन किया जाता है। 

3. आधुनिक इतिहास - 1818 ई. से वर्तमान काल तक का युग आधुनिक युग कहा गया है। आधुनिक इतिहास के अंतर्गत 1818 ई. से लेकर वर्तमान तक की सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, दार्शनिक, तथा सांस्कृतिक दशाओं का अध्ययन किया जाता है। 

    6. कानूनी इतिहास 

    प्रजा एवं कानून के मध्य एक उपयोगितावादी संबंध होता है, विभिन्न देशों के न्यायालयों में अभिसमय महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कानून के इतिहास में व्यवस्थापिका द्वारा समय-समय पर बनाए गए कानून तथा उनके विकास की कहानी को शामिल किया जाता है। 

    इतिहास के अध्ययन का महत्व 

    इतिहास के विषय-क्षेत्र का निर्धारण कर लेने के पश्चात् हम इतिहास के अध्ययन के महत्व की चर्चा करेंगे। इतिहास का अध्ययन हमारे वर्तमान की तो सुसम्पन्न बनाता ही है साथ ही वह सुखमय भविष्य का भी निर्धारण करता है। इसके महत्व को देखते हुए ही भारत में हमारे महर्षियों ने इसे पंचमवेद माना है। मानव समाज के लिये इसकी उपयोगिता तभी संभव है जब यह सही ढ़ंग से दुराग्रह को छोड़कर निष्पक्ष होकर लिखा जाय। एसे े इतिहास की उपेक्षा नहीं की जा सकती। क्योंकि इतिहास की अपेक्षा करने वाले राष्ट्र का कोई भविष्य नहीं होता है। इसलिए किसी राष्ट्र के सुन्दर भविष्य के लिए इसका विशेष उपयोग है। 

    1. इतिहास मानव समाज का ज्ञान देता है- समाज का प्रारंभ, उद्भव तथा विकास कैसे हुआ? समाज में मनुष्य जीवन के प्रारंभ और उसके बाद का समय कैसे बीता आदि प्रश्नों के उत्तर हमको इतिहास में ही मिलते हैं। 

    2. व्यावसायिक दृष्टि से इतिहास का महत्व - व्यावसायिक दृष्टि से भी इतिहास का महत्व कम नहीं है। इतिहास के विद्यार्थी प्रशासनिक सेवाओं  से लेकर समाज का नेतृत्व करने वाले कार्याें मे अधिक सफल और लोक कल्याण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं। स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त इतिहास का ज्ञाता युवक पुस्तकालीय संग्रहालय तथा पुरातत्व विभाग में उच्च पदों पर सेवाये  करने का अवसर पाता है। पत्रकारिता के लिए तो इतिहास और भी महत्वपूर्ण विषय है।

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