कृषि क्रांति और उनके जनक | Krishi Kranti Ke Janak

बारहवीं सदी में कृषि तकनीक के क्षेत्र में काफी परिवर्तन हुए। पुराने हल्के हल का स्थान भारी हल ने ले लिया जो कि गहराई तक जमीन में जुताई कर सकता था। पहले जुए को बैल के सींगों पर बाँधा जाता था, परंतु अब हल के जुए को सींगों के स्थान पर बैल के कंधों पर बाँधा जाने लगा। इससे बैल की क्षमता का पूर्ण उपयोग हुआ उत्पादन में वृद्धि हुई।

इसी समय तीन खेत प्रणाली भी अस्तित्व में आयी। इससे उत्पादन में काफी वृद्धि हुई। पहले तो एक वर्ष में दो फसलों को लेना प्रारंभ हुआ। तीन खेत प्रणाली के तहत कृषि योग्य भूमि को तीन बराबर हिस्सों में बाँट दिया जाता था। राई अथवा गेहूँ सर्दी में पहले खेत में उपजाया जाता था मटर एवं अन्य काइेर् उपयुक्त फसल बसंत ऋतु में दूसरे खेत में ली जाती थी एवं तीसरा खेत खाली छोड़ दिया जा था। अगले वर्ष दूसरे एवं तीसरे खेत का उपयोग कर प्रथम को खाली छोड़ दिया जाता था। इसी क्रम में प्रत्येक वर्ष खेतों का सिलसिला चलता रहता था, इस प्रणाली से उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि हुई। बीज उपज का अनुपात 1:2.5 से बढ़कर 1:4 तक पहुँच गया।

कृषि तकनीक के परिवर्तनों से जहाँ उत्पादन लगभग दूना हुआ, वहीं कृषि कार्य में श्रम की निर्भरता कम हुई। यूरोप के अधिकाधिक जंगलों को साफ कर कृषि योग्य बनाया गया। उत्पादन में वृद्धि के फलस्वरूप श्रम की माँग घटी और अब जमींदारों को कृषि दास की अपेक्षा खेत की बटाई पर उठाना अधिक लाभदायक प्रतीत हअुा। 

बारहवीं शताब्दी के महत्वाकांक्षी किसानों ने कृषि उत्पादन में वृद्धि एवं लाभ को देखते हुए उन क्षेत्रों पर दृष्टि डाली जहाँ खेती नहीं होती थी। इस समय खेती के हिसाब से देखा जाय तो फ्रासं में केवल आधे भू- भाग, जर्मनी में केवल एक-तिहाई ओर इंग्लैण्ड में केवल पाँचवाँ भाग खेती के काम में लाया जाता था। शेष भाग कुछ बंजर था तथा कुछ दलदल एवं कुछ जंगल। कृषि लाभ को देखते हुए कृषकों ने इन क्षेत्र को कृषि योग्य बनाने के लिए कड़ी मेहनत की। दलदलों को सुखा दिया। जंगलों को साफ किया और बाँध बनाकर समुद्र द्वारा भूमि के अतिक्रमण को रोका। इस पक्रर बारहवीं सदी में कृषि संबंधी तकनीकों के विकास से कृषि योग्य भूमि का विस्तार हुआ एवं अत्यधिक उत्पादन हुआ। अत: इसे कृषि क्रांति की संज्ञा दी गयी। कृषि क्रांति के फलस्वरूप सहस्रों एकड़ भूमि, कृषि भूमि में परिवर्तित हो गयी। नये-नये नगरों का विकास हुआ। कृषि दास, दासता से मुक्त हुए।

16वीं से 18वीं सदी में कृषि का विकास

यद्यपि 15वीं सदी तक मध्य युग की तुलना में कृषि का विस्तार हुआ था, किंतु अभी भी कृषि तकनीक में कुछ मूलभतू कमियाँ थी। उत्पादन में वृद्धि के बावजूद भी यह गुजर-बसर करने वाली ही कृषि थी जो कि मात्र स्थानीय आवश्यकता को पूर्ण करती थी। प्रत्येक वर्ष तीन खेत प्रणाली के तहत भूमि का 1/3 भाग परती छोड़ दिया जाता था, ताकि वह खोई हुई उर्वरा शक्ति पुन: प्राप्त कर सके। कृषि जोतें भी छोटी-छोटी एवं दूर-दूर थीं। इससे समय व शक्ति दोनों का अनावश्यक व्यय होता था। तीस वर्षीय युद्ध के पश्चात अनाज की काफी माँग बढ़ी। 16वी शताब्दी में पशुधन की बढ़ती हुई आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए चक्रानुवर्ती फसलें उगाने का परीक्षण किया गया। इसके तहत 1/3 भाग परती को छोड़ने के स्थान पर हर वर्ष फसल को चक्रानुवर्ती क्रम में बाये ा गया। इसके बहुत अच्छे परिणाम निकले। 

17वीं शताब्दी के मध्य तक अनाजों की अंतरार्ष्ट्रीय माँग को देखते हुए एल्ब नदी से सोवियत रूस तक फैले हुए विशाल क्षेत्र में अनाज की खेती के लिए अधिक भूमि का उपयोग किया गया। मध्य पश्चिमी इंग्लैण्ड एवं उत्तरी फ्रांस मे भी अत्यधिक कृषि विस्तार हुआ। इन सबका प्रेरणा स्रोत नीदरलैण्ड द्वारा अपनायी गयी कृषि तकनीकें थी।

इस समय फ्लेमिश क्षेत्र एवं अन्य निचले देशाे में कृषि के विस्तार हेतु कई परीक्षण एवं प्रयागे किये गये जिनमें उन्हें सफलता भी मिली। 1565 ई. में फ्लेमिश में आने वाले लोगों ने इंग्लैण्ड में शलजम की फसल उगायी। 16वीं शताब्दी तक पशुधन की आवश्यकताओं के मद्देनजर तिपतिया घास तथा मीमा धान्य जैसी चारा फसलें उगायी गयी। चक्रनुवर्ती फसल लेने से भी उत्पादन में वृद्धि हुई। 

इस प्रकार 16वीं से 18वीं सदी के मध्य एक बार पुन: कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए।

कृषि क्रांति के शिल्पकार

1. राबर्ट वेस्टर्न

तीन खेत प्रणाली के घाटों से उबारने में राबर्ट वेस्टर्न ने अहम भूमिका निभाई। इसने (1645 ई.) अपनी पुस्तक ‘डिस्कोर्स ऑन हसबैण्ड्री’ में यह बतलाया कि 1/3 भूमि को परती छोड़े बिना भी जमीन की खोई हुई शक्ति प्राप्त की जा सकती है। इस हेतु उसने शलजम आदि जड़ों वाली फसलों को बोने पर विशषेा जोर दिया। राबर्ट ने फ्लैडर्स में रहकर कृषि का ज्ञान प्राप्त किया था। इसके द्वारा प्रतिपादित सिद्धातों से अब पूरा का पूरा खते हर वर्ष काम में लाया जाने लगा।

2. जेथरी टुल

यह बर्कशायर का एक किसान था जिसने कृषि उत्पादन में वृद्धि हेतु कई सिद्धांत प्रतिपादित किये। 1701 ई. में उसने बीज बोने के लिए ड्रिल यंत्र का आविष्कार कर प्रयोग किया। इस यंत्र से खेत में बीजों के बीच दूरी रखी गयी। इससे पौधों को फैलने में एवं गुड़ाई करने में मदद मिली। इसके द्वारा अच्छे बीज के प्रयोग, खाद की आवश्यकता एवं समुचित सिंचाई व्यवस्था पर विशेष बल दिया गया। टुल ने अपने कृषि में विकास संबंधी अनुभवों को 1733 ई. में ‘हार्स होइंग इण्डस्ट्री’ नामक पुस्तक द्वारा लागे ों तक पहुँचाया। इसके अनुभवों से लाभ उठाकर कृषि के क्षत्रे में काफी लागे लाभांवित हुए।

3. लार्ड टाउनशैण्ड

इसके अनुसार कृषि क्रांति में सबसे प्रमुख तीन फसल पद्धति के स्थान पर चार फसल पद्धति अपनाना था। इसने क्रमश: गेहूँ, शलजम, जौ एवं अंत में लौंग बोने की परंपरा प्रारंभ की। इससे कम समय एवं कम स्थान में अत्यधिक उत्पादन प्राप्त हुआ।

इस दिशा में नारकोक के जमींदार कोक ऑफ होल्खाम ने हड्डी की खाद का प्रयोग कर उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि की। जार्ज तृतीय द्वारा कृषि कार्यों में अत्यधिक रूचि लेने के कारण उसे कृषक जार्ज भी कहा जाता है। सर आर्थर यंग ने कृषि सुधार हेतु 1784 ई. से ‘एनाल्स ऑफ एग्रीकल्चर’ शीर्षक पत्रिका का प्रकाशन आरंभ किया। राबर्ट बैकवेल ने पशुओं की दशा सुधारने में अभतू पूर्व योगदान दिया। इससे दुग्ध उत्पादन में वृद्धि हुई। इस प्रकार राबर्ट वेस्टन, टुल, टाउनशैण्ड एवं कोक आूफ होल्खाम द्वारा कृषि क्षेत्र में प्रतिपादित नवीनतम तकनीकों एवं विचारों ने कृषि क्रांति में उल्लेखनीय योगदान दिया। 

कृषि क्रांति यूरोप के इतिहास की एक दूरगामी प्रभाव वाली घटना सिद्ध हुई। इनकी पद्धतियों ने विकास को बढ़ाया।

4. आर्थर यंग

इंग्लैण्ड के एक धनवान कृषक आर्थर यंग (1742-1820 ई.) ने इंग्लैण्ड, आयरलैण्ड एवं फ्रांस आदि देशों े में घूम-घमू कर तत्कालीन कृषि उत्पादन की पद्धतियों का सूक्ष्म अध्ययन किया। अपने अनुभवों के आधार पर उसने एक नवीन प्रकार से खेती की पद्धति का प्रचार किया। उसने बताया कि छोटे-छोटे क्षत्रे ों पर खते ी करने से अधिक लाभकारी बड़े कृषि फामोर् पर खेती करना है। अत: उसने छोटे-छोटे खेतों को मिलाकर बड़े- बड़े कृषि फार्मों के निर्माण पर बल दिया। चूँकि विभिन्न कृषि संबंधी उपकरणों का आविष्कार हो चुका था और ये यंत्र बड़े खेतों के लिए अत्यधिक उपयुक्त थे। उसने अपने विचारों को जन-जन तक पहुँचाने की दृष्टि से ‘एनल्स ऑफ एग्रीकल्चर’ नामक पत्रिका भी निकाली। 

आर्थर यंग के प्रयास अंतत: फलीभूत हुए इंग्लैण्ड में धीरे-धीरे खेतों को मिलाकर एक बड़ा कृषि फार्म बनाने एवं उसके चारों ओर एक बाड़ लगाने का कार्य संपé किया जाने लगा। 

इंग्लैण्ड में 1792 ई. से 1815 ई. के मध्य 956 बाड़बंदी अधिनियम बनाये गये। इस प्रकार इंग्लैण्ड में कई लाख एकड़ भूमि की बाड़बदी की गई। इस बाड़बंदी द्वारा कृषि उत्पादन में अभतू पूर्व वृद्धि हुई मगर छोटे-छोटे खेतों की समाप्ति से कई कृषकों को अपनी भूमि से बदे खल होना पड़ा और वे भूमहीन मज़दूर बन गये। अब ये कृषक से बने मजदूर विभिé कारखानों में मजदूर बने गये और उन कारखानों के उत्पादन में वृद्धि की। इस प्रकार एक ओर कृषि उत्पादन बढ़ा तो दूसरी ओर औद्योगिक उत्पादन भी बढ़ा और औद्योगिक क्रांति का मार्ग प्रशस्त्र हुआ।

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