मुसोलिनी की नीति (गृह नीति, शिक्षा संबंधी नीति, विदेश नीति)

बेनिटो मुसोलिनी
बेनिटो मुसोलिनी

मुसोलिनी का जन्म रोमाग्ना में 1883 ई. में हुआ। उसकी माँ एक शिक्षिका एवं पिता क्रांतिकारी व समाजवादी विचारधारा के थे। माँ की तरह मुसोलिनी भी पहले अध्यापक बना। बाद में वह समाजवादी विचारधारा से प्रभावित हुआ। बाद में हिटलर की भांति वह फौज में भर्ती हुआ। प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात मुसोलिनी फासीवादी बन गया।

फासी दल का गठन

युद्ध-काल में इटली की जनता रूस की बोल्शेविक क्रांति से प्रभावित हुई थी। इटली के कम्यूनिस्टों ने भी अपने देश में रूस जैसी क्रांति करने की योजना बनायी। मुसोलिनी साम्यवादियों तथा बोल्शेविकों से घृणा करता था। अत: उसने बोल्शेविकों के विरूद्ध संघर्ष करने तथा सामाजिक अधिकारों को पुन: स्थापित करने के लिए नवीन दल का गठन करने का निश्चय किया। इसी निश्चय के आधार पर मार्च 1919 ई. में फासिस्ट दल की स्थापना की गयी। 

मुसोलिनी के नेतृत्व में इस दल ने अत्यधिक लाके प्रियता प्राप्त की तथा सेवानिवृत्त सैनिकों, समाजवादियों, विद्यार्थियों, किसानो, मजदूरों, पूजींपतियों तथा मध्यम वर्ग के व्यक्तियों ने बड़े उत्साह के साथ फासिस्ट दल की सदस्यता को स्वीकार किया। मुसोलिनी ने अपनी योग्यता व कुशलता के द्वारा दल के सभी सदस्यों को एकता व संगठन के सूत्र में बांधने में सफलता प्राप्त की। फासिस्ट दल के सदस्य काली कमीज पहनते थे तथा हथियारों से सुसज्जित रहते थे। मुसोलिनी अपने दल का चीफ कमाण्डर था। वह एक महान वक्ता था। फासिस्ट दल का अपना निजी ध्वज होता था।

फासिस्ट दल का प्रथम अधिवेशन मिलान नामक नगर में आयोजित किया गया था। इस अधिवेशन में दल के कार्यक्रम की घोषणा के साथ-साथ एक मांग-पत्र भी तैयार किया गया। इसमें अग्रलिखित मांगों को प्रमुखता दी गयी थी :
  1. युद्ध-सामग्री को बनाने वाले कारखानों का राष्ट्रीयकरण किया जाय। 
  2. युद्ध-काल में पूजीपतियों द्वारा कमाये गये धन के 85 प्रतिशत भाग को जब्त किया जाय। 
  3. कुछ उद्योगों पर श्रमिकों का नियंत्रण स्थापित किया जाय। 
  4. सार्वजनिक मताधिकार को लागू किया जाय।
  5. इटली को राष्ट्र-संघ की सदस्यता प्रदान की जाय। 
  6. चर्च की सम्पत्ति को जब्त किया जाय। 
  7. श्रमिकों को अधिकतम आठ घण्टे प्रतिदिन कार्य करने की सुविधान प्रदान की जाय। 
  8. पूजींवादी भावना का विरोध किया जाय। 
  9. देश के नवीन संविधान का निर्माण करने हेतु एक असेम्बली का गठन किया जाय।

मुसोलिनी की सफलता

फासिस्ट दल का कार्यक्रम और मांगपत्र इटली की जनता में शीघ्र ही लोकप्रिय हो गया और इस दल की सदस्य-संख्या तीव्र गति से बढ़ने लगी। सन् 1919 में फासिस्ट दल की सदस्य-संख्या सत्रह हजार थी, किन्तु यह संख्या सन् 1920 में बढ़कर तीस हजार तथा सन् 1922 में तीन लाख हो गयी। इस उल्लेखनीय लोकप्रियता को प्राप्त करने के बाद फासिस्टवादियों ने इटली में समाजवादियों एवं साम्यवादियों के कार्यालयों पर कब्जा करना प्रारंभ कर दिया। किन्तु तत्कालीन सरकार फासिस्टवादियों की आक्रामक व आतंकवादी नीति पर काबू पाने में सफल नहीं हो सकी। इसी मध्य अक्टूबर 1922 ई. में फासिस्ट दल का अधिवेशन नेपिल्स में आयोजित किया गया। इस अधिवेशन में लगभग पचास हजार कायर्क र्ताओं ने भाग लिया। उन्होनें सर्वसम्मति से एक मांगपत्र पारित किया जिसमें मागें थीं :
  1. फासी दल के कम से कम पांच सदस्यों को मंत्रिमंडल में स्थान दिया जाय। 
  2. नवीन चुनावों की घोषणा की जाय। 
  3. सरकार प्रभावी विदेश-नीति का पालन करे।
इस अधिवेशन में लिये गये निर्णय के अनुसार फासिस्ट दल ने सरकार को उपर्युक्त मांगें स्वीकार करने के लिए 27 अक्टूबर तक का समय दिया तथा यह चेतावनी दे दी कि उक्त तिथि तक मांगें स्वीकार न होने की स्थिति में फासिस्ट दल के स्वयंसवे क इटली की राजधानी रोम पर आक्रमण कर देगें । सरकार द्वारा उपर्युक्त मांगों को स्वीकार करने से इन्कार करने के फलस्वरूप फासिस्टवादियों ने मुसोलिनी के नेतृत्व में रामे की तरफ बढ़ना प्रारभ कर दिया। उन्होंने रेलवे स्टेशनो, डाकघरों व सरकारी कार्यालयों पर अधिकार कर लिया। 

सम्राट विक्टर इमेजयुअल तृतीय ने भयभीत होकर मुसोलिनी के समक्ष देश का प्रधानमंत्री पद संभालने का प्रस्ताव रख दिया। 30 अक्टूबर को मुसोलिनी ने अपने दल के पचास हजार स्वयंसेवकों सहित रोम में प्रवेश किया और वह देश का प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया। इटली के इतिहास में यह एक रक्तहीन क्रांति थी।

मुसोलिनी-इटली का तानाशाह

मुसोलिनी जनतंत्र और बहुमत के सिद्धांतों से घृणा करता था। राज्य की सर्वोच्चता में उसे अगाध विश्वास था। राज्य के सम्मुख उसने व्यक्तिगत अधिकारों को कभी स्वीकार नहीं किया। अपनी स्थिति को अधिक सुदृढ़ करने के लिए मुसोलिनी ने प्रशासनिक क्षेत्र में तीन अंगों का गठन किया- (1) मंत्रि-परिषद, (2) फासिस्ट दल की वृहद परिषद, (3) संसद।

मंत्रि-परिषद के सभी सदस्य मुसोलिनी के कट्टर समर्थक थे। वृहद् परिषद फासिस्ट दल की प्रबंध समिति थी जिसका नेता मुसोलिनी था। इसकी सदस्य संख्या 25 थी। संसद के दो सदस्य बनाये गये-सीनेट तथा चेम्बर ऑफ डेपुटीज। सीनेट के सदस्यों को स्वयं मुसोलिनी मनोनीत करता था, जबकि चेम्बर ऑफ डेपुटीज के सदस्यों को मंत्रि-परिषद एवं वृहद् परिषद द्वारा नियुक्त किया जाता था। इस प्रकार नवीन व्यवस्था के द्वारा मुसोलिनी ने शासन की सम्पूर्ण शक्ति पर पूरा अधिकार कर लिया। देश की जनता ने मुसोलिनी के इन कार्यों का भी भरपूर समर्थन किया क्योंकि मुसोलिनी ने गणतंत्रीय सरकार के अधूरे कार्यों को पूरा करने का आश्वासन जनता को दिया था। इस प्रकार मुसोलिनी अन्तत: इटली का वास्तविक स्वामी बन गया तथा उसने देश में अपनी तानाशाही को स्थापित करने में सफलता प्राप्त की।

मुसोलिनी की गृह नीति

1. सुदृढ़ केन्द्रीय सरकार की स्थापना - मुसोलिनी अत्यंत महत्वाकांक्षी व्यक्ति था। प्रधानमंत्री पद ग्रहण करने के पश्चात् उसने धीरे-धीरे अपनी शक्ति में वृद्धि करना प्रारंभ कर दिया था। इस संबंध में उसने दोहरी नीति को अपनाया। उसका विचार था कि केन्द्र में मजबूत सरकार के अभाव में देश उन्नति कर सकता। इस दृष्टि से मुसोलिनी ने निम्नलिखित कदम उठाये :
  1. प्रधानमंत्री बनने के पश्चात् उसने संसद-सदस्य को डरा-धमकाकर संसदीय अधिकारों को एक वर्ष के लिए अपने हाथों में ले लिया। 
  2. सन् 1923 में एक कानून बनाकर यह व्यवस्था कर दी गयी कि चुनावों में स्पष्ट बहुमत अथवा सर्वाधिक स्थानों पर विजय प्राप्त करने वाले दल को संसद में दो- तिहाई बहुमत प्राप्त करने का अधिकार होगा। इस व्यवस्था के अनुसार सन् 1924 में फासिस्ट दल को संसद में दा-े तिहाई बहुमत प्राप्त करने में सफलता मिल गयी। 
  3. सन् 1926 में सभी विरोधी दलों को अवैध घोषित कर दिया गया। प्रमुख विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार करके अनिश्चित काल के लिए जेल में बंद कर दिया गया। 
  4. सरकार की आलोचना करना राजनीतिक अपराध घोषित कर दिया गया। 
  5. प्रेस पर कठोर सरकारी नियंत्रण स्थापित किया गया। समाचार-पत्रों की संख्या कम कर दी गयी। 
  6. जनता की स्वतंत्रता को समाप्त करने के लिए विभिन्न कदम उठाये गय।े राजनीतिक अपराधियों के मामलों को निपटाने के लिए विशेष अदालतों का गठन किया गया। स्थानीय निकायों को समाप्त कर दिया गया। 
  7. सन् 1928 में चुनाव प्रणाली में पुन: परिवर्तन किया गया। मतदाता सूची को फासिस्ट दल द्वारा तैयार किया गया। जिसके फलस्वरूप संसद पर फासिस्ट दल का एकाधिकार स्थापित हो गया। 
इस प्रकार मुसोलिनी ने सुदृढ़ केन्द्रीय सरकार की स्थापना की जिसमें कोई विपक्ष नहीं था, कोई प्रजातांत्रिक संस्था नहीं थी, कोई स्थानीय स्वशासी संस्था नहीं थी, कोई जनमत नहीं था तथा बहुमत का कोई प्रश्न ही नहीं था।

2. इटली का आर्थिक विकास इटली के आर्थिक ढांचे में फासिस्ट दल के सिद्धांतों व कार्यक्रमों ने क्रांतिकारी परिवर्तन कर दिया। देश के आर्थिक विकास की दृष्टि से निम्नलिखित कदम उठाये गये :
  1. जिस समय मुसोलिनी ने सत्ता संभाली, उस समय जनता की आर्थिक दशा शोचनीय थी। राष्ट्रीय बजट पिछले कई वर्षों से घाटे में चल रहा था। मुद्रा का मूल्य दिन-प्रतिदिन गिर रहा था। जबकि वस्तुओं की कीमतों में निरंतर वृद्धि हो रही थी। इस समस्या को हल करने के लिए मुसोलिनी ने राज्य के व्यय को कम किया तथा धनवानों पर अधिक कर लगाय।े इस व्यवस्था के फलस्वरूप सन् 1925 में मुसोलिनी ने देश के बजट को संतुलित कर दिया। बजट का घाटा पूरा हो गया तथा वस्तुओं की बढ़ती हुई कीमतों पर भी काबू पा लिया गया।
  2. प्रथम विश्वयुद्ध के बाद इटली में बेरोजगार व्यक्तियों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई थी। मुसोलिनी ने इस समस्या को अत्यंत गंभीर मानकर इसका समाधान करने के उद्देश्य से सार्वजनिक निर्माण कार्यों तथा स्कूल-कॉलेजों के भवनों के निर्माण को प्रोत्साहित किया। देश में विभिन्न सड़कों, पुलों व विश्रामघरों का निर्माण कराया गया। पुरानी इमारतों की मरम्मत करायी गयी। कुछ बंदरगाहों का भी निर्माण हुआ। इस निर्माण कार्य के फलस्वरूप हजारों बेरोजगारों को रोजगार प्राप्त हुआ। 
  3. उस समय देश की रेल व्यवस्था भी निरंतर पतन की ओर अग्रसर हो रही थी। इसका बजट भी घाटे में चल रहा था। मुसोलिनी ने रेलवे की आर्थिक स्थिति को सुधारने की ओर अपना पूरा ध्यान लगा दिया। उसके प्रयत्नों से रेलवे बजट के घाटे को शीघ्र ही पूरा कर दिया गया। 
  4. खजिन पदार्थ एवं कच्चे माल की दृष्टि से इटली एक गरीब देश था। इटली का लगभग दा-े तिहाई भाग पहाड़ियों से घिरा हुआ था। कोयला, लोहा तांबा, तेल आदि के अभाव के कारण देश के औद्योगिक विकास एवं आर्थिक उत्थान में बहुत बड़ी बाधा उत्पन्न हो गयी थी। किन्तु मुसोलिनी अपने देश को साधन-सम्पन्न एवं स्वावलम्बी बनाने के लिए कृत-संकल्प था। उसने देश में कच्चे माल एवं खनिज पदार्थों के संसाधनों का पता लगाने के लिए योग्य वैज्ञानिकों एवं इंजीनियरों से परामर्श किया तथा इस दिशा में उसे काफी सीमा तक सफलता भी प्राप्त हो गयी किन्तु कच्चे माल एवं खनिज पदार्थो के क्षेत्र में इटली को स्वावलम्बी बनाने का मुसोलिनी का स्वप्न पूरा नहीं हो सका।
  5. मुसोलिनी की गृह-नीति का मुख्य उद्देश्य उत्पादन में वृद्धि करना था। उस समय कृषि की दशा चिन्ताजनक थी। अत: मुसोलिनी ने कृषि की स्थिति को सुधारने की ओर पूरा ध्यान लगाया। बंजर भूमि को कृषि-योग्य बनाया गया। कृषकों को सरकार की ओर से पुरस्कार देने की व्यवस्था की गयी ताकि उनमें अधिकतम उत्पादन करने की प्रतियोगी भावना उत्पन्न हो सके। किसानों को कृषि करने के नवीन और वैज्ञानिक तरीकों की शिक्षा दी गयी। मुसोलिनी के इन कार्यों के फलस्वरूप कृषि-क्षेत्र में उत्पादन पहले की अपेक्षा बहुत अधिक बढ़ गया।

मुसोलिनी की शिक्षा संबंधी नीति

अपने दल को सुदृढ़ बनाने के उद्देश्य से मुसोलिनी ने इटली की शिक्षा-प्रणाली में कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन किये। देश के युवा वगर् को फासिस्ट दल के सिद्धांतों से होने वाले लाभों की शिक्षा देने के लिए एक ‘फासिस्ट युवा फेडरेशन’ का गठन किया गया। प्राइमरी तथा माध्यमिक स्तर तक फासिज्म के सिद्धांतों की शिक्षा को अनिवार्य कर दिया गया। नवीन शिक्षा-नीति के अंतर्गत शिक्षण-संस्थाओं को विद्यार्थियों की आयु के आधार पर पांच विभिन्न वर्गों में विभाजित किया गया। सभी शिक्षण-संस्थाओं को फासिज्म के सिद्धांतों के साथ सम्बद्ध कर दिया गया। इसके अतिरिक्त लड़कियों को फासिज्म की शिक्षा देने की भी पृथक व्यवस्था की गयी।

1. पोप के साथ समझौता- मुसोलिनी के प्रयासों से 11 फरवरी, 1929 को एक समझौता सम्पन्न हुआ। इसके अन्तर्गत निम्नलिखित निर्णय लिये गये :
  1. पोप ने रोम से अपना अधिकार त्याग दिया और रोम को इटली की राजनीतिक के रूप में स्वीकार कर लिया। 
  2. मुसोलिनी ने पोप को कैथोलिक जगत का सार्वभौमिक स्वामी स्वीकार किया। 
  3. पापे को विदेशों के साथ संबंध स्थापित करने, विदेशों में अपने राजदतू नियुक्त करने तथा विदेशी राजदूतों का स्वागत करने का अधिकार दे दिया गया। वह अपनी निजी डाक टिकट एवं मुद्रा जारी कर सकता था। 
  4. सरकार ने पोप को प्रति वर्ष दस करोड़ डालर की धनराशि देने का वचन दिया।
  5. रोमन कैथोलिक धर्म को इटली का राजधर्म घोषित किया गया।
  6. रोमन कैथोलिकों द्वारा संचालित शिक्षण-संस्थाओं को मुसोलिनी ने फासिस्ट दल के विद्यालयों में विलीन कर दिया। चौदह वर्ष से अधिक आयु के प्रत्येक रोमन कैथोलिक को फासिस्ट दल के नेता के प्रति स्वामिभक्त रहने की घोषणा करना अनिवार्य कर दिया गया। मुसोलिनी ने धीरे-धीरे शिक्षा के क्षेत्र में चर्च के प्रभाव को बिल्कुल समाप्त कर दिया।

मुसोलिनी की विदेश नीति

इटली यद्यपि विश्वयुद्ध में विजयी हुआ था किंतु मित्रराष्ट्रों ने उससे जो भी वायदे किये थे, पूरने नहीं किये थे। मुसोलिनी का विचार था कि यह इटली का अपमान है। वह चाहता था कि इस अपमान का बदला मित्र राष्ट्रों पर भरोसे की नीति छोड़ कर साम्राज्यवादिता की नीति अपनाकर लिया जा सकता है। उसका मानना था कि मित्र राष्ट्रों द्वारा बनाई गई अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ किसी देश के निवासियों की भावुकता एवं सिद्धांतों से धराशायी हो जाती है। इनका अस्तित्व देशवासियों की भावनाओं तक ही सीमित है।

1. डोडिकानीज तथा रोड्स द्वीपों का सैन्यीकरण 1920 ई. में हुई सेव संधि के अनुसार डोडिकानीज और रोड्स इन दोनों द्वीपों पर यूनाने ने अधिकार लिया जबकि ये पूर्व में इटली के अधीन थे। इटली की निगाह अभी भी इन दोनों द्वीपों पर लगी थी। टर्की के सुल्तान कलामपाशा द्वारा यूनान को पराजित करने के उपरांत स्रेत की संधि तोड़े जाने से इटली को अप्रत्याशित लाभ हो गया। 24 जुलाई, 1923 ई .को हुई लोजान की संधि में सेव्र को संशांधित किया और ये दोनों द्वीप इटली को प्राप्त हो गये। वास्तव में मुसोलिनी भूमध्य सागर को इटैलियन झील बनाना चाहता था। अत: उसने पूर्वी भमू ध्य सागर में स्थित इन दोनों द्वीपों का सैन्यीकरण शुरू कर दिया। इस उसकी विदेशी नीति का प्रथम अभियान था।

2. टाइरोल के प्रति नीति - पेरिस की संधि के अनुसार ठाअरोल का टे्रण्टिनो नामक क्षेत्र इटली को सौंप दिया गया था। टाइरोल का यह भाग जो कि जर्मन बहुल था, इटली के क्षेत्र में आ गया। इटली ने अपने इस वायदे को कि उनके साथ समानता का व्यवहार करेगा, भुलाकर कोई परवाह नहीं की। मुसोलिनी ने गैर इटैलियन को इटैलियन प्रभाव में लाना शुरू कर दिया। उसने यह भी स्पष्टतया घोषित किया कि वह इटली के मालों में कोई विदेशी हस्तक्षेप स्वीकार नहीं कर सकता है। इस प्रकार मुसोलिनी के हौसले बढ़ते चले गये।

3. करफू पर बम - बर्षा यूनान तथा अल्बानिया के सीमा विवाद को सुलझाने के लिए ‘डीलिमिटेशन कमीशन’ कार्य कर रहा था कि यूनान में अगस्त 1923 ई. की कुछ इटैलियन अधिकारियों की हत्या कर दी गई। मुसोलिनी ने जो यूनान को चते ावनी दी कि 5 दिन के भीतर यूनान मामले की जाँच कराकर आपराधियों को दण्ड दे तथा इटली को 5 करोड़ थोरा युद्ध का हर्जाना दे। यूनान ने इस बात को राष्ट्र संघ के सम्मुख रखा मुसोलिनी ने यूनान के करफू टापू पर बम वर्षा की और उस पर अधिकार कर लिया किंतु इंग्लैण्ड के दबाव के कारण उसे टापू खाली करना पड़ा परंतु उसने क्षतिपूर्ति की रकम वसूल कर ही ली, यह मुसोनिली एक महत्वपूर्ण सफलता थी। इससे राष्ट्र संघ की निर्बलता सिद्ध हुई और मुसोलिनी को अग्रिम कार्यवाही हेतु प्रोत्साहन मिला।

4. यूगोस्लाविया से संधि 27 जनवरी 1924 इटली - और यूगोस्लाविया के संबंध बहुत अच्छे नहीं थे। इटली वार्साय की संधि में परिवर्तन का इच्छुक था जबकि यूगोस्लाविया वार्साय की संधि को यथावत् रखना चाहता था। एड्रियाटिक सागर में दोनों के हित आपस में टकराते थे। किंतु मुसोलिनी फ्यूम पर अधिकार कर भूमध्य सागर में अपनी स्थिति को दृढ़ करना चाहता था। अत: उसने यूगोस्लाविया से 27 जनवरी, 1924 ई. की संधि की। इस संधि से जारा का बंदरगाह और डालमेशिया का समुद्र तट यूगोस्लाविया को दिया गया। इटली का फ्यूम पर अधिकार हो गया। परंतु फ्यूम का बंदरगाह यूगोस्लाविया के पास ही रहा। फ्यूम का नगर प्राप्त करना मुसोलिनी की विदेशी नीति के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण  सफलता थी।

5. रूस से 1924 ई. की संधि - मुसोलिनी यूरोप की राजनीति में किसी शक्तिशाली मित्र का साथ ढूँढ रहा था। उसने देखा कि रूस वासार्य संधि का विरोधी है और परिवर्तन का इच्छुक है। अत: मुसोलिनी ने फरवरी 1924 ई. में रूस के साथ व्यापारिक संधि की और साथ ही रूसी सरकार को मान्रूता प्रदान की। इस संधि से हालांकि इटली को कुछ प्राप्त नहीं हुआ किंतु उसने यूरोपीय राजनीति में रूस सा मित्र बना लिया जिससे राजनैतिक मंच पर इटली का सम्मान बढ़ गया।

6. रोम पैक्ट 1935 इटली - के साथ फ्रांस के व्यापारिक संबंध अच्छे नहीं थे। जहाँ ट्यूनिस, कार्सिका और सेवाय पर मुसोलिनी अधिकार करना चाहता था, वहीं इन पर फ्रांस का अधिकार था। भूमध्यसागर में भी दोनों के हित टकराते थे। परंतु हिटलर के उत्कर्ष में दोनों को करीब लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हिटलर एवं मुसोलिनी दोनों आस्ट्रिया संबंधी विचारों ने रोम पैक्ट को जन्म दे दिया। इसके अनुसार -
  1. फ्रांस के 44500 वर्ग मील अफ्रीकी क्षेत्र इटली को प्राप्त हो गये। 
  2. दोनों देशों में प्रतिद्विन्द्वता समाप्त हो गई। 
  3. आस्ट्रिया पर संकट आने पर दोनों देश परस्पर विचार-विमर्श करेगेंं 
  4. यूरोप की स्थिति यथावत् रहेगी। 
7. स्ट्रेसा की संधि - यह संधि भी हिटलर के भय से 1935 ई. में स्ट्रेसा नामक स्थान पर इंग्लैण्ड से की गई। इसका महत्व इस बात से है कि इंग्लैण्ड इटली और फ्रांस के गठबंधन ने हिटलर के विरोध में एक मोर्चे का कार्य किया।

8. अन्य देशों से संधियाँ - मुसोलिनी ने अपनी स्थिति दृढ़ करने के लिए 1926 ई. में रूमानिया और स्पेन से, 1927 ई. में हंगरी से, 1928 ई. में यूनान व टर्की से 1932 ई. में रूस से संधियाँ कीं। इन संधियों से यूरोपीय जगत में इटली ने अपना सम्मानित स्थान बना लिया। वेन्स महोदय ने तो यहाँ तक कहा है कि 1930 ई. तक मुसोलिनी व्यावसायिक एवं कूटनीतिक प्रभाव बढ़ाने में सफल रहा।

9. राष्ट्र संघ का परित्याग - इसके तुरंब बाद इटली ने राष्ट्र संघ की सदस्यता से हाथ खींच लिये।

10. रोम-बर्लिन धुरी की स्थापना -  हिटलर इस बात कसे पूर्णतया भिज्ञ था कि मुसोलिनी को अपनी और करके ही आस्ट्रिया पर अधिकार पाया जा सकता है। अबीसीनिया के प्रति इटली के रवैये ने फ्रांस, इंग्लैण्ड एवं रूस को चौकन्ना कर दिया था। फ्रांस, इंग्लैण्ड एवं रूस के व्यवहार से भी इटली खिन्न था कष्ट के समय हिटलर ने इटली की पर्याप्त मदद की। मुसोलिनी समझ गया था कि हिटलर सच्चा मित्र है। अत: इटली व जर्मनी के बीच 26 अक्टूबर, 1936 ई. को एक समझौता हुआ जो इतिहास में रोम-बर्लिन धुरी के नाम से प्रख्यात है, इस समझौते की शर्ते इस प्रकार थी -
  1. दोनों देश समाजवादी व्यवस्था का विरोध करेगेंं 
  2. स्पने की रक्षा की जायगे ी। 
  3. दोनों देश समय-समय पर वार्ता करेगें। 
  4. जर्मनी का आस्ट्रिया तथा चेकस्लोवाकिया पर मौन अधिकार स्वीकार कर लिया गया। शीघ्र ही इस संधि में जापान को शामिल कर लिया गया और रोम-बर्लिन टोक्यो धुरी का निर्माण हो गया।
11. अल्बानिया पर अधिकार - इटली का अल्बानिया के लिए विशेष महत्व था। अल्बानिया आर्थिक दृष्टि से अत्यंत पिछड़ा था। अत: 27 नवम्बर, 1926 ई. को अल्बानिया ने इटली की संधि की। इस संधि की धाराएँ निम्नवत थीं -

  1. अल्बानिया के सैनिकों को इटलीके सैनिक पदाधिकारी प्रशिक्षित करेगेंं
  2. अल्बानिया इटली के अहित में किसी अन्य देश से संधि नहीं करेगा। 
  3. दोनों देश बाह्य आक्रमणकारी का सामना मिलकर करेगेंं यह शर्त 20 वर्ष तक रहगे ी। तत्पश्चात मुसोलिनी ने अल्बानिया में उसकी सहायता के बहाने अपनी सेनाएँ भेज दीं और 1936 ई. में आक्रमण कर इटली में मिला लिया। 
12. इटली व जर्मनी का समझौता 22 मई, 1939 ई. - 22 मई, 1939 ई. को इटली ने जर्मनी के साथ राजनैतिक समझौता किया। इस समझौते को फौलादी समझौते भी कहा जाता है। इसके अनुसार दोनों एक-दूसरे की सैन्य सहायता करेगेंं

13. द्वितीय विश्वयुद्ध व इटली - हिटलर ने 1 सितम्बर, 1939 ई. को पोलैण्ड पर आक्रमण करके द्वितीय विश्वयुद्ध को जन्म दे दिया। स्अील पैक्ट के अनुसार इस समय मुसोलिनी को हिटलर का साथ देना चाहिए था। किंतु जैसा कि हेजन ने लिखा है, ‘‘एक कारण इटली अशक्त था, जर्मनी के हित में उसका तटस्थ रहना ठीक था। स्पने के गृहयुद्ध में वह पूर्णतया थक चुका था - वह युद्ध का विचार भी नहीं कर सकता था। कुछ भी हो अंतत: 11 जून, 1940 ई. की मुसोलिनी ने हिटलर की ओर से मित्र राष्ट्रों के विरोध में युद्ध की घोषणा कर दी। प्रारंभ में उन्हें विजय मिली किंतु बाद में उसे असफलता मिली और एक दिन ऐसा भी आया जब 25 जुलाई, 1943 ई. को उसे बंदी बना लिया गया और 18 अपै्रल, 1945 ई. को देश की जनता ने उसे उसकी प्रेयसी के साथ मृत्यु-दण्ड दे दिया गया।

इस प्रकार अंतत: कहा जा सकता है मुसोलिनी ने इटली को चरम उत्कर्ष तक तो उठाया किंतु उसके फासीवाद की संवर्धन की महत्वकांक्षा उसके वध का कारण बनी।

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