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राष्ट्रवाद का अर्थ है कि राष्ट्र के प्रति निष्ठा, उसकी प्रगति और उसके प्रति सभी नियम आदर्शों को बनाए रखने का सिद्धान्त। डॉ.हेडगेवार ने कहा है कि “किसी एक विशिष्ट भू-भाग में लोग केवल रहते हैं, इसलिए राष्ट्र नहीं बनता। उसके लिए तो उस भू-भाग के अन्दर सदियों से रहते हुए उसके साथ एक रागात्मक, भावात्मक संबंध स्थापित होना पड़ता है। यह भूमि मेरी माँ हैं, मैं इसका पुत्र हूँ और पुत्र होने के नाते हम सब एक है, हमारे पूर्वज एक है, हमारी संस्कृति एक है।” राष्ट्र के प्रति ऐसी भावना रखते हुए उसे ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना से जोड़ देना राष्ट्रवाद है।
राष्ट्रवाद (NATION) राष्ट्र का जन्म लेटिन भाषा शब्द नेशों से हुआ है, जो सामूहिक
जन्म अथवा वंश के भाव को व्यक्त करता है, परंतु आधुनिक काल में इसका अर्थ राष्ट्रीयता
(NATIONALITY) शब्द का समरूपी होने पर ‘राष्ट्र’ शब्द किसी राष्ट्रीयता की सामान्य
राजनीतिक चेतना का घोतक है जो, ए. जिम्मर्न के अनुसार ‘किसी सुनिश्चित स्वदेश के साथ
जुड़ी विचित्र तीव्रता, घनिष्ठता तथा सम्मान की भावना का संयुक्त रूप है’ राष्ट्र (NATION)
का अर्थ लोगों के समूह से है - जिनकी एक जाति, एक तिहास, एक संस्कृति, एक भाषा और
एक निश्चित भू-भाग हो, राष्ट्रवाद उस विश्वास को कहते हैं, जिसके द्वारा प्रत्येक राष्ट्र को
यह अधिकार है कि, जिस भू-भाग पर वे सदियों से रहते हैं, उस पर वे स्वतंत्र रूप से शासन
कर सकें।
राष्ट्रवाद की परिभाषा
राष्ट्रवाद की परिभाषा नीचे दी गई है -
गांधी जी ने इस व्यापक प्रेम को ही, राष्ट्र धर्म माना है, राष्ट्र एवं राष्ट्रवाद की परिकल्पना में गांधी ने ‘धर्म दर्शन’ और अध्यात्म का जैसा सम्मिश्रण किया वैसा बीसवीं शताब्दी के किसी अन्य विचारक ने नहीं किया और कम से कम गांधी से पहले तो मिलता ही नहीं है। भारत सारी दुनिया से सद्विचार लेने को आज भी तैयार रहता है। भारतवासी आज भी नदियों को प्रणाम करते है।
योगी अरविन्द के विचारानुसार “हम भारतीयों के लिए सनातन धर्म ही राष्ट्रवाद है धर्म के साथ यह राष्ट्र गति करता है।” भारत आस्था का विश्वास का देश है। दुनिया में केवल भारत ही विश्वास और तर्क की परस्पर विरोधी धारणा में जिया है।
स्वामी विवेकानन्द जी ने भी राष्ट्रवाद सम्बन्धी अवधारणा ही है इन्हीं विचारों के कारण उन्हें एक राजनीतिक चिन्तक की भी संज्ञा दी जा सकती है। उनके राजनीतिक विचार, धार्मिक एवं सामाजिक विचारों के सहगामी है स्वामी विवेकानन्द राष्ट्रवाद का आध्यात्मिकरण करने के पक्षपाती थे। हिन्दू धर्म के महत्त्व के कारण ही उन्हें राष्ट्रवाद के समीप ला खड़ा किया। वे हिन्दू धर्म को सब धर्मों का प्रमुख स्रोत मानते थे। उनके अनुसार ‘धर्म की व्यक्ति और राष्ट्र को शक्ति प्रदान करता है।’ विवेकानन्द हेगल की तरह राष्ट्र की महत्ता के प्रतिपादक थे।
बाल गंगाधर तिलक संकीर्ण राष्ट्रवादी भावना का विरोध करते थे। उन्होंने वेदान्त की मानव एकता की धारणा को राष्ट्रवाद के माध्यम से प्राप्त कर विश्वबन्धुत्व की स्थापना की। वे अन्तर्राष्ट्रवाद को ही राष्ट्रवाद का उन्नत रूप मानते है।
एनी बेसेंट ने भी फिक्टे, हेगेल और अरविन्द की भांति राष्ट्रवाद के आध्यात्मिक पक्ष का प्रतिपादन किया। उनके अनुसार राष्ट्र एक आध्यात्मिक सत्ता है और ईश्वर की एक अद्भुत अभिव्यक्ति है। वे राष्ट्र को एक गंभीर आंतरिक जीवन से स्पन्दित आध्यात्मिक सत्ता मानती है। उन्होंने भारतीय राष्ट्रवाद की जड़े भारत के प्राचीन साहित्य और उस साहित्य में साकार हुए अतीत में ढूँढ निकाली थी। उनके अनुसार ‘राष्ट्रवाद एक आध्यात्मिक तत्त्व है। वह जनता की अन्तरात्मा की अभिव्यक्ति है। राष्ट्र ईश्वर का साक्षात् रूप है किन्तु राष्ट्रवाद केवल एक प्रक्रिया है सामाजिक विकास की अवस्था है न कि उसकी परिणति है। वह पूर्णत्व को तभी प्राप्त होगा जब विश्वबन्धुत्व का आदर्श पूरा होगा।
रेनन के अनुसार राष्ट्रवाद की विशेषत: आध्यात्मिक रूप में है। आध्यात्मिक राष्ट्रवाद के जनक मैजिनी है उनके अनुसार ‘भगवान से प्रदत्त राष्ट्र हमारे घर जैसा है।’
लाला लाजपत राय की राष्ट्रवाद सम्बन्धी धारणा उन्नीसवीं शताब्दी के इटली के राष्ट्रवादियों की धारणा से मिलती जुलती थी। उनका मत था ‘हर राष्ट्र को अपने आदर्शो के निश्चित और कार्यान्वित करने का मूल अधिकार है। इसमे किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप करना अस्वाभाविक है। इसलिए उन्होंने भारत को शक्तिशाली स्वतंत्र जीवन का निर्माण करके अपने आप को सबल बनाना चाहिए।
विपिन चन्द्र पाल ने भी आध्यात्मिक राष्ट्रवाद का समर्थन करते हुए कहा है “जो राष्ट्रवाद धर्म की जड़ों से पोषण प्राप्त करता है वही स्थायीत्व प्राप्त करता है।”
पण्डित दीनदयाल उपाध्याय ‘राष्ट्र को राजनीतिक नहीं अपितु सांस्कृतिक इकाई मानते हैं।’ लेकिन राजनीतिक रूप से अखण्ड के वे प्रबलतम समर्थक है। उपाध्याय जी पश्चिम के राष्ट्रवाद को अवधारणा को विश्व शान्ति के प्रतिकूल मानते हैं।
सभी विचारकों द्वारा दी गई परिभाषाओं के आधार पर राष्ट्रवाद के संबंध में यही कहा जा सकता है कि राष्ट्रवाद विश्व बन्धुत्व मानव मैत्री पर आधारित होना चाहिए। कुछ विचारकों ने राष्ट्रवाद के आध्यात्मिक पक्ष पर अधिक बल दिया। उनका मानना है कि इससे राष्ट्रवाद की जड़ें अधिक गहरी होगी। हम भी यही मानते है कि राष्ट्रवाद का सीधा संबंध राष्ट्र के जनता के कल्याण से जुड़ा हुआ है।
राष्ट्रवाद के अनिवार्य तत्व
राष्ट्रवाद के अनिवार्य तत्व है -
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