राष्ट्रवाद का अर्थ, परिभाषा, अनिवार्य तत्व

राष्ट्रवाद का अर्थ

राष्ट्रवाद लोगों में किसी समूह की उस आस्था को कहते हैं, जिनमें इतिहास, भाषा, जातीयता एवं संस्कृति के आधार पर एकजुट हों। इन्हीं बंधनों के कारण वे इस निष्कर्ष पर पहुँचते है कि अपने राजनीतिक समुदाय अर्थात राष्ट्र की स्थापना करने का आधार हो। हालांकि दुनिया में ऐसा कोई राष्ट्र नहीं है जो इन कसौटियों पर पूरी तरह से फिट बैठता हो, इसके बावजूद अगर विश्व का मानचित्र उठा कर देखे तो धरती की एक-एक इंच जमीन राष्ट्रों की सीमाओं के बीच बँटी हुई मिलेगी। 

राष्ट्रवाद की परिभाषा और अर्थ को लेकर व्यापक चर्चाएं होती रही हैं राष्ट्रवाद की सुस्पष्ट और सर्वमान्य परिभाषा करना आसान नहीं है। प्रो. स्नाइडर नो मानते हैं कि राष्ट्रवाद को परिभाषिक करना कठिन है, फिर भी उन्होंने जो परिभाषा दी है वह राष्ट्रवाद को समझने में उपयोगी है- ”इतिहास के विशेष चरण पर राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक व बौद्धिक कारणों का एक उत्पाद-राष्ट्रवाद एवं परिभाषित, भौगोलिक क्षेत्र में निवास करने वाले व्यक्तियों का समूह जो समान भाषा, समान साहित्य, समान परम्परायें रीति-रिवाजों में परिपूर्ण हो।

राष्ट्रवाद का अर्थ 

राष्ट्रवाद का अर्थ है कि राष्ट्र के प्रति निष्ठा, उसकी प्रगति और उसके प्रति सभी नियम आदर्शों को बनाए रखने का सिद्धान्त। राष्ट्रवाद (NATION) राष्ट्र का जन्म लेटिन भाषा शब्द नेशों से हुआ है, जो सामूहिक जन्म अथवा वंश के भाव को व्यक्त करता है, परंतु आधुनिक काल में इसका अर्थ राष्ट्रीयता (NATIONALITY) शब्द का समरूपी होने पर ‘राष्ट्र’ शब्द किसी राष्ट्रीयता की सामान्य राजनीतिक चेतना का घोतक है जो, ए. जिम्मर्न के अनुसार ‘किसी सुनिश्चित स्वदेश के साथ जुड़ी विचित्र तीव्रता, घनिष्ठता तथा सम्मान की भावना का संयुक्त रूप है। 

राष्ट्र (NATION) का अर्थ लोगों के समूह से है - जिनकी एक जाति, एक इतिहास, एक संस्कृति, एक भाषा और एक निश्चित भू-भाग हो, राष्ट्रवाद उस विश्वास को कहते हैं, जिसके द्वारा प्रत्येक राष्ट्र को यह अधिकार है कि, जिस भू-भाग पर वे सदियों से रहते हैं, उस पर वे स्वतंत्र रूप से शासन कर सकें। 

राष्ट्रवाद की परिभाषा

गांधी जी ने इस व्यापक प्रेम को ही, राष्ट्र धर्म माना है, राष्ट्र एवं राष्ट्रवाद की परिकल्पना में गांधी ने ‘धर्म दर्शन’ और अध्यात्म का जैसा सम्मिश्रण किया वैसा बीसवीं शताब्दी के किसी अन्य विचारक ने नहीं किया और कम से कम गांधी से पहले तो मिलता ही नहीं है। भारत सारी दुनिया से सद्विचार लेने को आज भी तैयार रहता है। भारतवासी आज भी नदियों को प्रणाम करते है। 

योगी अरविन्द के विचारानुसार “हम भारतीयों के लिए सनातन धर्म ही राष्ट्रवाद है धर्म के साथ यह राष्ट्र गति करता है।” भारत आस्था का विश्वास का देश है। दुनिया में केवल भारत ही विश्वास और तर्क की परस्पर विरोधी धारणा में जिया है। 

स्वामी विवेकानन्द जी ने भी राष्ट्रवाद सम्बन्धी अवधारणा ही है इन्हीं विचारों के कारण उन्हें एक राजनीतिक चिन्तक की भी संज्ञा दी जा सकती है। उनके राजनीतिक विचार, धार्मिक एवं सामाजिक विचारों के सहगामी है स्वामी विवेकानन्द राष्ट्रवाद का आध्यात्मिकरण करने के पक्षपाती थे। हिन्दू धर्म के महत्त्व के कारण ही उन्हें राष्ट्रवाद के समीप ला खड़ा किया। वे हिन्दू धर्म को सब धर्मों का प्रमुख स्रोत मानते थे। उनके अनुसार ‘धर्म की व्यक्ति और राष्ट्र को शक्ति प्रदान करता है।’ विवेकानन्द हेगल की तरह राष्ट्र की महत्ता के प्रतिपादक थे।  

बाल गंगाधर तिलक संकीर्ण राष्ट्रवादी भावना का विरोध करते थे। उन्होंने वेदान्त की मानव एकता की धारणा को राष्ट्रवाद के माध्यम से प्राप्त कर विश्वबन्धुत्व की स्थापना की। वे अन्तर्राष्ट्रवाद को ही राष्ट्रवाद का उन्नत रूप मानते है।

एनी बेसेंट ने भी फिक्टे, हेगेल और अरविन्द की भांति राष्ट्रवाद के आध्यात्मिक पक्ष का प्रतिपादन किया। उनके अनुसार राष्ट्र एक आध्यात्मिक सत्ता है और ईश्वर की एक अद्भुत अभिव्यक्ति है। वे राष्ट्र को एक गंभीर आंतरिक जीवन से स्पन्दित आध्यात्मिक सत्ता मानती है। उन्होंने भारतीय राष्ट्रवाद की जड़े भारत के प्राचीन साहित्य और उस साहित्य में साकार हुए अतीत में ढूँढ निकाली थी। 

उनके अनुसार ‘राष्ट्रवाद एक आध्यात्मिक तत्त्व है। वह जनता की अन्तरात्मा की अभिव्यक्ति है। राष्ट्र ईश्वर का साक्षात् रूप है किन्तु राष्ट्रवाद केवल एक प्रक्रिया है सामाजिक विकास की अवस्था है न कि उसकी परिणति है। वह पूर्णत्व को तभी प्राप्त होगा जब विश्वबन्धुत्व का आदर्श पूरा होगा।

रेनन के अनुसार राष्ट्रवाद की विशेषत: आध्यात्मिक रूप में है। आध्यात्मिक राष्ट्रवाद के जनक मैजिनी है उनके अनुसार ‘भगवान से प्रदत्त राष्ट्र हमारे घर जैसा है।’

लाला लाजपत राय की राष्ट्रवाद सम्बन्धी धारणा उन्नीसवीं शताब्दी के इटली के राष्ट्रवादियों की धारणा से मिलती जुलती थी। उनका मत था ‘हर राष्ट्र को अपने आदर्शो के निश्चित और कार्यान्वित करने का मूल अधिकार है। इसमे किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप करना अस्वाभाविक है। इसलिए उन्होंने भारत को शक्तिशाली स्वतंत्र जीवन का निर्माण करके अपने आप को सबल बनाना चाहिए।

विपिन चन्द्र पाल ने भी आध्यात्मिक राष्ट्रवाद का समर्थन करते हुए कहा है “जो राष्ट्रवाद धर्म की जड़ों से पोषण प्राप्त करता है वही स्थायीत्व प्राप्त करता है।”

पण्डित दीनदयाल उपाध्याय ‘राष्ट्र को राजनीतिक नहीं अपितु सांस्कृतिक इकाई मानते हैं।’ लेकिन राजनीतिक रूप से अखण्ड के वे प्रबलतम समर्थक है। उपाध्याय जी पश्चिम के राष्ट्रवाद को अवधारणा को विश्व शान्ति के प्रतिकूल मानते हैं। 

सभी विचारकों द्वारा दी गई परिभाषाओं के आधार पर राष्ट्रवाद के संबंध में यही कहा जा सकता है कि राष्ट्रवाद विश्व बन्धुत्व मानव मैत्री पर आधारित होना चाहिए। कुछ विचारकों ने राष्ट्रवाद के आध्यात्मिक पक्ष पर अधिक बल दिया। उनका मानना है कि इससे राष्ट्रवाद की जड़ें अधिक गहरी होगी। हम भी यही मानते है कि राष्ट्रवाद का सीधा संबंध राष्ट्र के जनता के कल्याण से जुड़ा हुआ है। 

राष्ट्रवाद का इतिहास

राष्ट्रवाद और आधुनिक राज्य के इतिहास के बीच एक संरचनागत संबंध है। 16वीं एवं 17वीं शताब्दी के आसपास यूरोप में आधुनिक राज्य का उदय हुआ, जिसने राष्ट्रवाद के रूप में सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके विपरीत मध्ययुगीन यूरोप में राजसत्ता किसी एक शासक या सरकार के पास बँटी हुई थी। राष्ट्रवाद के सिद्धान्त  को समझने के लिए उस घटनाक्रम को समझना आवश्यक है, जिसने आधुनिक राजसत्ता के जन्म के हालात बनें।

उन्नीसवीं सदी के आखिर तक राष्ट्रवाद पूंजीपति वर्ग के लिए और साथ में आम जनता के लिए भी राजनीतिक अधिकारों हेतु गोलबंदी का बहुत बड़ा कारक बन गया। राष्ट्रवादी विचार जैसे-जैसे यूरोपीय जमीन से आगे बढ़कर एषिया अफ्रीका और लातीनी अमेरिकी में पहुँचा, उसकी यूरोप से भिन्न किस्में विकसित होने लगी। इन क्षेत्रों में उपनिवेषवाद विरोधी मुक्ति संघर्षों को राष्ट्रवादी भावनाओं ने जीत के मुकाम तक पहुँचाया। परिणामस्वरूप उपनिवेषीकरण और राष्ट्रवाद का संचय बना।

एक तरफ आज का समय असहिष्णुता एवं सहिष्णुता चर्चा का पर्याय बना हुआ है वही दूसरी ओर लोग अपने राष्ट्र के प्रति निहित कर्तव्यों एवं उत्तरदायित्व को पीछे छोड़ चुके हैं। राष्ट्र और राज्य में काफी अंतर है, इसे उस प्रकार से समझ सकते हैं कि यदि शरीर को राज्य एवं शरीर में बसी आत्मा को राष्ट्र समझे, तो राष्ट्र एवं राज्य एक दूसरे के पूरक हैं। अर्थात एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। राज्य की अपनी भौगोलिक सीमाएं हैं भारत के परिपेक्ष्य में बात करें तो यह सीमा उत्तर में कश्मीर से दक्षिण में कन्याकुमारी एवं पूरब में असम से पश्चिम में गुजरात तक है। इन भौगोलिक सीमाओं की सुरक्षा हमारे सैन्य बल कर रहे हैं। और करते रहेंगे।

भौगोलिक सीमाओं में होता है, तो राष्ट्र का निर्माण विचारों से होता है। जो राष्ट्र के समग्र विकास का पर्याय है। राष्ट्र किसी से प्रदाय विशेष या वर्ग विशेष का ना होकर सम्पूर्ण राष्ट्र की भावना संस्कृति से ओतप्रोत होना है।

अगर कोई राष्ट्र मृत हो जाता है तो राज्य और भौगोलिक सीमाओं का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा। अतः समग्र रूप से सभी राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों के प्रति उत्तरदायी होना चाहिये।

भारत राज्यों का एक संघ है संविधान में उल्लेख है कि यह दष्े ा भारत है, यदि भारत के संविधान को किसी भी भाषा में अनुवाद किया जाये जो भारत को भारत ही लिखा जायेगा। परंतु अंग्रेजी भाषा में अंग्रेजी भाषा के वैकल्पिक शब्द इंडिया का उपयोग किया जाना है देश व राष्ट्र में अंतर हो देश एक राजनीतिक सीमा क्षेत्र है जबकि राष्ट्र किसी भी देश के मूल लोगों से राष्ट्र का निर्माण होना है।

राष्ट्रवाद के अनिवार्य तत्व

राष्ट्रवाद के अनिवार्य तत्व है -
  1. सामान्य जाति का रक्त संबंध 
  2. सामान्य धर्म 
  3. सामान्य भाषा 
  4. सामान्य इतिहास तथा संस्कृति 
  5. समान राजनैतिक आकांक्षाएं 
  6. भौगोलिक निकटता 
1. सामान्य जाति का रक्त संबंध - सामान्य जाति, नस्ल या रक्त संबंध के घटक से लोग सरलतापूर्वक आपस में बंध जाते हैं। 1930 के दशक में हिटलर ने जर्मन राष्ट्र को अपनी रगों में ‘आर्यो का रक्त’ रखने वाले नोर्दिकों के राज्य के रूप में महिमामंण्डित करने हेतु इस तत्व का आव्हान किया। 

यहूदियों एवं अन्य नस्लों को ‘घटिया रक्त वाले’ लोग कहकर, उन्हें तुच्छ समझकर, उनकी निन्दा करने तथा जर्मन जाति को विशुद्ध ‘आर्य रक्त’ वाले लोग बतलाकर उनका गौरवीकरण करने के संबंध में, जर्मन नाजीवाद द्वारा अन्य नस्लों को तबाह करने की कार्यवाहियों की, संपूर्ण विश्व में निंदा की गयी।

2. सामान्य धर्म - समान धर्म ने भी लोगों को एकबद्ध करने में अहम भूमिका निभाई है। आज भी, मुख्य रूप में, विश्व के मुस्लिम राष्ट्रों में समान धर्म एक प्रबल शक्ति है। यहूदी अपने धर्म की शक्ति से ही एकजुट हैं। लेकिन अब अधिकांश राष्ट्र धर्मनिर्पेक्षता के सिद्धांत पर आधारित हैं, अत: इस तत्व का महत्व पहले से कम हो गया है। भारत इसका सबसे अच्छा उदाहरण है। 

इतिहास साक्षी है कि, धर्म ने एक स्वस्थ राष्ट्र के निर्माण में नकारात्मक एवं विनाशकारी भूमिका निभाई है। अत: हमें धार्मिक सहिष्णुता का आभारी होना चाहिए कि, आधुनिक युग में धर्म राष्ट्रीयता के निर्धारण में अनिवार्य तत्व नहीं रहा है।

3. सामान्य भाषा - भाषा लोगों के बीच आपसी संपर्क का माध्यम है। किसी राष्ट्र के लोग अपने विचारों व संस्कृति को सांझे साहित्य, देशभक्ति के गानों के रूप में अभिव्यक्त करते हैं। भाषा का प्रत्येक शब्द उन संबंधों का घोतक है, जो भावनाओं का स्पर्श करते हैं तथा विचारों को प्रेरित करते हैं। 

विश्व के अधिकांश राष्ट्र भाषा के आधार पर गठित है। प्रत्येक राष्ट्र अपनी भाषा पर गर्व करता है। फ्रांस और इग्लैण्ड की भाषा उनकी राष्ट्रीय एकजुटता का सबसे अच्छा उदाहरण है।

4. सामान्य इतिहास तथा संस्कृति - समान मनोवैज्ञानिक चिन्तन शैली, साथ-साथ सोचने, काम करने, राष्ट्र पर आए कष्ट को एक साथ सहने एवं समृद्धि को एक साथ बांटने के तथ्य से भी प्रभावित होती है। राष्ट्र के लिए बलिदान देने वालों के लिए स्मारक बनाने में गर्व का अनुभव करते हैं, अपने इतिहास की परंपराओं को अमर बनाने के लिए वे उत्सवों और त्यौहारों का आयोजन करते हैं। 

उदाहरण के लिए हिन्दु दीवाली, होली साथ मनाकर एवं ईसाई क्रिसमस मनाकर अपने एक होने का एहसास महसूस करते हैं।

5. समान राजनैतिक आकांक्षाएं - जब किसी राष्ट्र के लोग विदेशी नियंत्रण में रहते हैं तो वे सब एकजुट, उसके विरूद्ध संघर्ष कर उससे मुक्ति चाहते हैं और एक स्वतंत्र राष्ट्र की स्थापना करते हैं। उन्नीसवीं सदी के शुरू में नेपोलियन ने कई राष्ट्रों को अपने अधीन कर लिया, इसने इन राष्ट्रों में तीव्र जनविरोध को जन्म दिया। जर्मनी, आस्ट्रिया, हंगरी, इटली, पोलैण्ड, रूस और स्पेन में राजनेताओं, कवियों तथा अन्य वक्ताओं ने राष्ट्रवाद का आव्हान किया। उन्नीसवीं सदी में हुई यूरोप की क्रांतियों का कारण राष्ट्रीय एकता तथा स्वतंत्रता था। 

बाल्कन प्रदेशों ने इसी आधार पर तुर्कों से स्वतंत्रता हासिल की । बेल्जियम, हालैण्ड से अलग हुआ, इटली तथा जर्मनी राष्ट्र के रूप में एकीकृत हुए। वींसवीं सदी के दो विश्व युद्धों ने यूरोप के मानचित्र को पुन: स्पष्ट राष्ट्रीय आकांक्षाओं के अनुसार रेखांकित करने का प्रयास किया। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद उपनिवेशों में स्वाधीनता आंदोलन तीव्र हुए और एक के बाद एक नए राष्ट्रों का जन्म हुआ।

6. भौगोलिक निकटता - राष्ट्र कहलाने के लिए भौगोलिक निकटता होना आवश्यक है। एक राष्ट्र यदि एक दूसरे से दूर टुकड़ों में बंटा हो तो राष्ट्रीय एकता की प्रक्रिया में बाधा पड़ती है। 1971 में पाकिस्तान के विखंण्डन का यह भी एक कारण था। दोनों भाग एक दूसरे से बहुत दूर थे तथा इसी कारण बंगाली राष्ट्रवाद के जागृत होने के कारण, पूर्वी पाकिस्तान-बांग्लादेश बन गया। यूरोप में भी ऐसे अनेकों उदाहरण दिए जा सकते हैं।

संदर्भ -
  1. Unit-01 India as an Evolving Nation State. Block IV India, Economy and Democracy
  2. Jamespaul, (1996), Nation Formation Who Words a Theory of the Abstrake Community London Seg Publications.

7 Comments

  1. I AM A POLICE OFFICER हूँ

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  2. I AM A POLICE OFFICER हूँ

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    1. Sir ye hu q lagaya aap ne I am police officer toh likha tha toh for humm ka kiya matlab

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  3. I am poor please connect me in any jorb

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