संसद के कितने अंग होते हैं उनके नाम

संसद भवन

संविधान के अनुच्छेद 79 के अंतर्गत भारतीय संसद का गठन किया गया है। भारतीय संसद के अंतर्गत राष्ट्रपति और संसद के दो सदन सम्मिलित है। पहला सदन लोक सभा है जिसे निम्न सदन भी कहा जाता है जबकि दूसरा सदन राज्य सभा है जिसे उच्च सदन कहा जाता है। लोक सभा अस्थायी सदन हैं, जिसे कभी भी भंग किया जा सकता है जबकि राज्य सभा एक स्थायी सदन है जिसे कभी भंग नहीं किया जा सकता है। अनुच्छेद 79 में कहा गया है कि संघ के लिए एक संसद होगी जो राष्ट्रपति और दो सदनों से मिलकर बनेगी जिनके नाम राज्य सभा और लोक सभा होंगे। 

संसद के अंग

संसद के तीन अंग हैं-
  1. राष्ट्रपति,
  2. राज्य सभा और,
  3. लोक सभा।

1. राष्ट्रपति 

भारत के राष्ट्रपति भारतीय संसद के अभिन्न अंग है। भारत के राष्ट्रपति संसद से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। राष्ट्रपति सदन को चलाने का निर्देश दे सकते है एवं उन्हें लोक सभा को भंग करने की शक्ति भी प्राप्त है। राष्ट्रपति की अनुमति के बिना कोई भी विधेयक कानून नहीं बन सकता चाहे वह विधेयक सदन के दोनों सदनों द्वारा ही पारित क्यों न हो गया हो। यदि दोनों सदन की बैठक नहीं हो तब भी राष्ट्रपति अपनी शक्तियों के द्वारा कानूनों को लागू कर सकता है। हालाँकि ये अध्यादेश अस्थायी होते है फिर भी ये अध्यादेश संसद द्वारा पारित अध्यादेशों के समान ही शक्तिशाली होते है।

2. राज्यसभा

संविधान के अनुसार राज्य सभा एक उच्च सदन है। यह राज्यों का प्रतिनिधित्व करती है। राज्य सभा में 250 से अधिक सदस्य नहीं होंगे जिनमें से 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा में विशेष ज्ञान अथवा व्यावहारिक अनुभव के कारण नामनिर्दिष्ट किए जायेंगे और संघ राज्य क्षेत्रों के निर्वाचित प्रतिनिधि होंगे। इनका चुनाव राज्य की जनसंख्या के आधार पर किया जाता है। राज्य सभा के सदस्यों की संख्या एक से लेकर अधिकतम 34 है। यह राज्यवार जनसंख्या पर निर्भर है। 

राज्य सभा एक स्थायी सदन है। इसे कभी भंग नहीं किया जा सकता है। इसके एक तिहार्इ सदस्य दो वर्ष के बाद अवकाश ग्रहण करते है। खाली पदों पर तुरंत चुनाव करवाये जाते है। राज्य सभा के सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है। लेकिन वह समय पूर्व भी अपने पद से इस्तीफा दे सकता है। या उसे किसी कारणवश अयोग्य भी घोषित किया जा सकता है।

3. लोकसभा

लोक सभा संसद का निम्न सदन है। यह जनता का सदन भी कहा जाता है। जनता प्रत्यक्ष रूप से लोक सभा के सदस्यों का चुनाव करती है। लोक सभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या अभी 545 है। इसमें 530 सदस्य राज्यों से चुनकर आते हैं जबकि 20 सदस्य केन्द्र शासित प्रदेशों से चुनकर आते हैं। 2 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किये जाते हैं। सीटों का बंटवारा क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व के सिद्धांत पर आधारित होता है। सभी राज्यों को उनकी जनसंख्या के आधार पर सीटें निधार्रित की जाती है। चुनाव के हिसाब से सभी राज्यों को निर्वाचन क्षेत्र में बांटा जाता है जिसकी जनसंख्या ज्यादातर समान होती है।

लोक सभा का कार्यकाल पांच वर्ष का होता है लेकिन यह समय पूर्व भी राष्ट्रपति के द्वारा भंग की जा सकती है। लोक सभा का सदस्य होने के लिये किसी भी व्यक्ति को भारत का नागरिक होना चाहिये तथा उसकी उम्र 25 वर्ष हो। कोई भी प्रत्याशी भारत के किसी भी राज्य के निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ सकता है। संविधान मे संसद के सदस्य होने के लिए कुछ अनिवार्य शर्त निर्धारित है तथा सदस्य को अयोग्य घोषित करने की भी शर्तें हैं कोई भी व्यक्ति संसद के दोनों सदनों का  एक साथ सदस्य नहीं हो सकता है। कोई भी व्यक्ति एक से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ सकता है। लेकिन वह किसी एक सीट का ही अपने पास रख सकता है यदि वह एक से
अधिक सीटों पर चुनाव जीत कर आता है। वह सीट अपनी इच्छानुसार रख सकता है।

यदि कोई व्यक्ति राज्य विधानसभा और संसद दोनों का सदस्य चुना जाता है और वह निर्धारित समय पर राज्य विधान सभा से इस्तीफा नहीं देता है, ऐसी स्थिति में वह अपनी संसद की सदस्यता गंवा बैठेगा। कोई भी व्यक्ति लाभ के पद पर ना हो तथा उसे किसी न्यायालय द्वारा पागल या अस्वस्थ घोषित नहीं किया गया हो। कोई भी सदस्य यदि संसद के सत्र से 60 दिन से अधिक अनुपस्थित रहता है तो उसे अयोग्य घोषित किया जा सकता है। यदि कोई सदस्य किसी अन्य दूसरे देश की नागरिकता ग्रहण कर लेता है तब भी वह अयोग्य माना जायेगा।

संसद के सदनों की अवधि

लोक सभा का सामान्य जीवन काल 5 वर्ष हैं राष्ट्रपति उसे इसके पूर्व विघटित कर सकता है। पाँच वर्ष की अवधि की समाप्ति का परिणाम लोक सभा का विघटन होगा। इस सम्बन्ध में अनुच्छेद 83 (2) में उपबंध इस प्रकार किया गया है- ‘‘लोक सभा, यदि पहले विघटित नहीं कर दी जाती है तो, अपने प्रथम अधिवेशन के लिए नियत तारीख से पाँच वर्ष तक बनी रहेगी, इसके अधिक नहीं और पाँच वर्ष की उक्त अवधि की समाप्ति का परिणाम लोक सभा का विघटन होगा।’’

परन्तु उक्त अवधि को, जब आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में है, तब, संसद विधि द्वारा, ऐसी अवधि के लिए बढ़ा सकेगी, जो एक बार में एक वर्ष से अधिक नहीं होगी और उद्घोषणा के प्रवर्तन में न रह जाने के पश्चात् उसका विस्तार किसी भी दशा में छह मास की अवधि से अधिक नहीं होगा। इस प्रकार संविधान ने आपात् की अवधि के दौरान संसद द्वारा अपनी अवधि को बढ़ाने की शक्ति को परिसीमित किया है। यह विस्तार एक बार में एक वर्ष से अधिक अवधि के लिए नहीं किया जा सकता। इसका अर्थ यह है संसद के एक ही अधिनियम द्वारा यह अवधि बढ़ाई जा सकती है और किसी भी दशा में आपत् की उद्घोषणा के प्रवृत्त न रहने के पश्चात् यह अवधि छह मास के आगे विस्तारित नहीं की जा सकती। यदि आपात स्थिति एक वर्ष से आगे बनी रहती है तो संसद का जीवन काल फिर से एक अन्य अधिनियम द्वारा एक वर्ष और आगे बढ़ाया जा सकता है।

संसद के सदस्य की योग्यता

कोई व्यक्ति संसद के किसी स्थान को भरने के लिये चुने जाने के लिये योग्य तभी होगा जब-
  1. वह भारत का नागरिक हो
  2. वह राज्य सभा में स्थान के लिए उम्र कम से कम तीस वर्ष हो और लोक सभा में स्थान के लिए उम्र कम से कम पच्चीस वर्ष हो।
  3. जब वह भारत में किसी संसदीय निर्वाचन क्षेत्र में मतदाता है।

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