युवा तुर्क आंदोलन के कारण

युवा तुर्क आंदोलन की पृष्ठभूमि- 

बीसवीं शताब्दी में ‘यूरोप के मरीज’ तुर्की को एक नया जीवन प्रदान करने के लिए ओटोमन साम्राज्य में एक आंदोलन चला, जिसके फलस्वरूप सुलतान अब्दुल हमीद की निरंकुशता का अन्त हो गया। इस आंदोलन को चलाने वाला तुर्को का युवावर्ग था, इसलिए इसे ‘युवा तुर्क’ आंदोलन कहते हैं। ‘युवा तुर्क’ आंदोलन अब्दुल हमीद के निरंकुश शासन के विरूद्ध एक प्रतिक्रिया के रूप में प्रकट हुआ। सर्वविदित है कि 1887 ई. से 1908 ई. तक के काल में तुर्की-साम्राज्य पर अब्दुल हमीद ने अपना निरंकुश शासन कायम रखा। लेकिन, तुर्की के इतिहास में अब्दुल हमीद के इस निरंकुश शासन का भी महत्व है।

अत्याचार, निरंकुशता और भ्रष्टाचार के वातावरण से एक लाभ अवश्य हुआ। इसके विरूद्ध जो प्रतिक्रिया हुई, उसने तुर्की में उदारवादी आंदोलन की उत्पत्ति में सहायता पहुँचाई। सच तो यह है कि अब्दुल हमीद के निरंकुश शासन के कारण तुर्की में राष्ट्रीयता का प्रबल वगे आया और विभिन्न प्रकार के सुधार-कार्य सम्पादित किए गए। इस दृष्टिकोण से यह कहा जा सकता है कि युवा तुर्क आंदोलन का प्रधान कारण अब्दुल हमीद का निरंकुश शासन था।

जिस समय अब्दुल हमीद ने पार्लियामेण्ट को भंग कर अपना निरंकुश शासन स्थापित किया, उस समय उसका सबसे प्रबल आघात तुर्की के उदार राष्ट्रवादियों पर हुआ, जो तुर्की में वैधानिक प्रगति देखने के लिए वर्षों से प्रयास करते आ रहे थे। अब्दुल हमीद ने इन लोगों के साथ बड़ा कड़ा बरताव किया। सारे उदारवादी पकड़ लिए गए और उनमें से बहुतों को देश से निकाल दिया गया। कुछ लागे तो डरकर स्वयं देश छोड़कर भाग खड़े हुए।

तुर्की के निर्वासित उदारवादी भागकर जेनेवा आए और वहीं से सुलतान के खिलाफ एक संगठन करने लगे। उनका उद्देश्य तुर्की से राजतंत्र का अंत कर गणतंत्र की स्थापना करना था। उदारवादियों ने जेनेवा में एक ‘एकता और प्रगति समिति’ का निर्माण किया और वहीं से सुलतान के निरंकुश शासन का अंत करने का प्रयास करने लगे।

एकता और प्रगति समिति का संगठन

इस परिस्थिति में विदेशों में निर्वासित तुर्की देश भक्त साम्राज्य से बाहर अपने आपको संगठित करने लगे। तुर्की की उéति और सुलतान के निरंकुश शासन का अंत करने का यही एकमात्र उपाय था। इस तरह का पहला संगठन 1889 ई. में इस्ताम्बूल में हुआ। इस्तम्बूल के इम्पीरियल मिलिटरी कॉलेज में इब्राहिम तेमो नामक एक अल्बेि नयन के नेतृत्व में छात्रों के इस दल ने गुप्त समिति का संगठन किया। उस संगठन का नाम ‘एकता और प्रगति समिति’ रखा गया। थोडे ही दिनों में अन्य सैनिक विद्यालयों के छात्र इसके सदस्य हो गए। इस समिति का संगठन इटली की कारबोनरी सोसाइटी के आधार पर हुआ था, उसी की तरह यह राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत थी और इसका मुख्य उद्देश्य तुर्की के मरने से बचाना था।

एकता और प्रगति समिति से भयभीत होकर सुल्तान ने समिति के कई नेताओं को गिरफ्तार कर लिया और इन नेते ाओं को तुर्की से निष्कासित कर दिया गया। ऐसे सभी नेता तुर्की से भागकर पेरिस या जेनेवा पहुँच गए। वहाँ जाकर वे विक्षुब्ध ओटोमनों से मिल गए। इनमें अहमद रिजा मुरादबे आदि जैसे व्यक्ति भी थे, जिन्होंने पेरिस या यूरोप के दूसरे मुख्य शहरों में रहकर अखबरों, पत्रिकाओं आदि के द्वारा अपना प्रचार-कार्य जारी रखा। इन लोगों ने जेनेवा में समिति का मुख्य कार्यालय स्थापित किया और मुराबे को उसका सभापति बनाया।

पेरिस में आंदोलन का संगठन

तुर्की के सुल्तान द्वारा किये गये कार्यों से तुर्की के राष्ट्रीवादी देशभक्त निरूत्साहित नहीं हुए। वहाँ से बहुत लागे पेरिस पहुँचे और 1902 ई. में ओटामे न साम्राज्य के उदारवादियों का एक विशाल सम्मेलन पेरिस में हुआ। इसमें अरब, यूनानी, यहूदी, आरसीनियन और तुर्क सभी सम्मिलित हुए थे। सम्मेन में इन सबको मिलाकर एक संघ बनाने का निश्चय किया गया। यह भी प्रस्ताव पास किया गया कि साम्राज्य में 1876 ई. के संविधान को फिर से लागू किया जाए।

युवा तुर्क क्रांति का आरंभ

पेरिस में क्रांति की तैयारी होने लगी। अहमद रिजा को इसका नेता बनाया गया। इसके लिए तुर्क उदारवादियों का एक सम्मेलन हुआ और एकता तथा प्रगति दल की स्थापना हुई। तुर्की में इसी दल के नेतृत्व में क्रांति होने वाली थी। सुल्तान के सैनिक अफसर बहतु असंतुष्ट थे। क्रांति का आरंभ इन्हीं लाूेगों ने किया। 1906 ई. में सैनिकों ने कई व्रिदाहे किए। लेकिन सुल्तन अब्दुल हमीद ने इस और ध्यान नहीं दिया। जनसाधारण में भी भ्रष्टाचारी अफसरों के विरूद्ध आवाज उठने लगी थी। जैसे शहरों में कई पद्रर्शन हुए। 1908 ई. में मैसिडोनिया में कई विद्राहे हुए। इसके बाद विद्राहे की आग बड़े जारे से फैलने लगी। 1908 ई. के जुलाई में सैनिक अफसरों ने यह घोषणा कर दी कि तीसर सेना की टुकड़ी संविधान को फिर से लागू कराने के लिए इस्ताम्बूल पर हमला करेगी। उसी दिन एकता और प्रगति समिति ने संविधान को लागू करने की माँग की।

लेकिन, अब्दुल हमीद अब भी निश्चित होकर बैठा रहा। क्रांतिकारियों ने इससे पूरा लाभ उठाया और 23 जुलाई को क्रांति प्रारभ्ं ा हो गई। सैलाेि नका में क्रांतिकारियों ने एक सरकार का संगठन किया और तुर्की लिए एक संविधान की घोषणा की गई। सुल्तान को अब पता चला कि उसके राज्य में असाधारण घटना घट चुकी है। लेकिन, जब तक विलम्ब हो चुका था। सेना से मदद मिलने की कोई आशा नहीं हर गई थी। इस स्थिति में वह असहाय था। अंतिम समय उसने परिस्थिति संभालने का यत्न किया 24 जुलाई, 1908 को एक सरकारी घोषणा की गई, जिसमें सुल्तन ने संविधान को पुन: लागू करने का वचन दिया। उसमें संसद को बुलाने की बात भी थी। साथ ही प्रेस पर से नियंत्रण हटा लिया गया। अत: अब सुल्तान अब पूरी तरह क्रांतिकारियों के कब्जे में आ गया था। यह युवा तुर्क आंदोलन की सबसे बड़ी सफलता थी।

Bandey

I am full time blogger and social worker from Chitrakoot India.

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