पिट्स इंडिया एक्ट कब पारित हुआ? पिट्स इंडिया एक्ट के मुख्य उपबंध

अगस्त, 1784 ई. में पिट का  इंडिया एक्ट पास हुआ। इसने भूतपूर्व अधिनियमों के दोषों को दूर करने का प्रयास किया। इसकी भाषा संयमित थी। इसमें कंपनी के प्रदेशों को भारत में ब्रिटिश अधिकृत क्षेत्र कहा गया था।

पिट्स इंडिया एक्ट पारित होन की घटनाएँ

1772 तथा 1781 में कम्पनी के मामलों की छानबीन करने के लिए दोनों, एक प्रवर समिति और एक गुप्त समिति नियुक्त की गई। प्रवर समिति ने उच्चतम न्यायालय तथा बंगाल परिषद् के आपसी सम्बन्धें के विषय में और गुप्त समिति ने मराठा युद्ध के कारणों की जांच की। भारी भरकम रिपोर्टों का कम्पनी के आलोचकों ने संसद के वादविवाद में खुलकर प्रयोग किया। संसद का कम्पनी के मामलों में हस्तक्षेप करना उस समय और भी आवश्यक हो गया जब मराठा युद्ध के कारण कम्पनी की वित्तीय कठिनाइयाँ बढ़ गईं और उसने 10 लाख पाउण्ड का एक और ऋण मांगा। गुप्त समिति के अध्यक्ष डंडास द्वारा प्रस्तुत विधेयक अस्वीकार कर दिया गया। इस पर फाक्स ने इण्डिया बिल प्रस्तुत किया। वास्तव में यह बिल बर्क और फिलिप फांसिस ने ही तैयार किया था। इसके अनुसार कम्पनी की राजनैतिक तथा सैनिक शक्ति सात आयुक्तों के बोर्ड को सौंप दी जानी थी और व्यापारिक कार्य उनके अधीनस्थ नौ उपनिदेशकों को। यदि यह बिल पारित हो जाता तो कम्पनी एक राजनैतिक शक्ति के रूप में समाप्त हो जाती। यह बिल हाउस आफ कामन्स में पारित हो गया परन्तु हाउस आफ लाड्र्स में बिल पारित नहीं हो सका और लार्ड नार्थ तथा फाक्स की मिलीजुली सरकार को त्याग-पत्रा देना पड़ा। यह पहला और अन्तिम अवसर था जबकि एक अंगे्रजी सरकार भारतीय मामले पर टूट गई।

जनवरी 1784 में पिट प्रधान मंत्री बना। उसने एक नया विध्ेयक प्रस्तुत किया। दूसरा पठन भी हो गया परन्तु शीघ्र ही मन्त्रिामण्डल टूट गया। नई संसद मई 1784 में गठित हुई। वही पुराना जनवरी की संसद वाला विधेयक कामन्स सभा में जुलाई 1784 में और लाड्र्स में अगस्त मास में पारित हुआ। फाक्स का यह कथन था कि उसका बिल अध्कि उत्तम था। पिट ने एक और सावध् ानी प्रयोग की थी कि इस विधेयक के लिए कम्पनी की स्वीकृति पहले ले ली थी। और इस प्रकार विधेयक के विरोध को पहले ही समाप्त कर दिया था। वास्तव में पफाक्स तथा पिट के विध्ेयक लगभग एक ही प्रकार के थे। भिन्नता केवल इस बात में थी कि फाक्स के बिल से कम्पनी संरक्षण को समाप्त कर दिया गया था परन्तु इसमें उसे जारी रखा गया।

पिट्स इंडिया एक्ट के मुख्य उपबंध

1. गृह सरकार के संबंध में उपबंध

भारतीय मामलों की देखरेख के लिए नियंत्रण मंडली की स्थापना की गयी। इसके 6 सदस्य थे। राज्य सचिव तथा वित्तमंत्री पदेन सदस्य तथा चार प्रिवी परिषद के मनोनीत सदस्य थे। तीन सदस्यों की उपस्थिति गणपूर्ति के लिए आवश्यक थी। कमिश्नर अवैतनिक होते थे जो अन्य किसी पद पर भी रह सकते थे। कंपनी के कर्मचारियों की नियुक्ति का अधिकार नियंत्रण मडं ल को नहीं दिया गया था। बाडेर् को भारतीय प्रशासन के संबंध में निरीक्षण, निर्देशन तथा नियंत्रण के अधिकार दिये गये।

2. भारत में केन्द्रीय सरकार से संबंधित उपबंध

 गवर्नर जनरल की कौंसिल सदस्य संख्या को चार से घटाकर तीन कर दी गयी। एक सदस्य का समर्थन प्राप्त होने पर भी गवर्नर जनरल की इच्छा के अनुकूल निर्णय हो सकता था। अब केवल कंपनी के स्थायी कर्मचारी ही कौंसिल के सदस्य हो सकते थे। सपरिषद गवर्नर जनरल को विभिन्न प्रांतीय शासनों पर अधीक्षण, निर्देशन तथा नियंत्रण का पूर्ण अधिकार दिया गया। युद्ध, शांति राजस्व, सैन्य शक्ति, देशी रियासतों से लेन-देन आदि सभी विषय इसके क्षेत्राधिकार के अंतर्गत आ गये।

3. प्रांतीय सरकारों से संबंधित उपबंध

प्रांतीय गवर्नरों की कौसिलों की सदस्य संख्या भी चार से घटाकर तीन कर दी गयी। इनमें से एक प्रांत का कमाण्डर इन चीफ भी था। केवल कंपनी के स्थायी कर्मचारी ही कौंसिल के सदस्य हो सकते थे। युद्ध, शांति या देशी रियासतों से आदान-प्रदान के बारे में अन्य प्रांतीय सरकारों को बंगाल सरकार के अधीन रखा गया था। बंगाल सरकार, उसकी आज्ञाओं की अवहलेना करने पर अधीनस्थ सरकार के पार्षदों को बर्खास्त कर सकती थी।

पिट्स इंडिया एक्ट के सामान्य उपबंध

कंपनी के कर्मचारियों के विरूद्ध अभियोग की जाँच के लिए इंग्लैण्ड में एक न्यायालय का संगठन किया गया। इसमें 4 लार्डसभा के और 6 लोकसभा के सदस्य होगे। भारत में उपनिवेश के विस्तार को राष्ट्र की प्रतिष्ठा और नीति के विरूद्ध बतलाया गया। लेकिन यह पवित्र इच्छा सिद्ध हुई क्याेिं क ब्रिटिश उपनिवेश का विस्तार होता ही गया। कंपनी के कर्मचारियों को देशी रियासतों से अधिक संबंध स्थापित करने में रोक लगा दी गई।

पिट्स इंडिया एक्ट का अधिनियम का संवैधानिक महत्व

पिट्स इंडिया एक्ट भारतीय संविधानिक विकास के इतिहास में एक महत्वपूर्ण कदम था। यह 1858 ई. तक भारतीय संविधान का आधार रहा। इसने ईस्ट इंडिया कंपनी पर ब्रिटिश संसद के नियंत्रण लिए एक स्थायी माध्यम की रचना की। इसके लिए एक नियंत्रण मंडल की स्थापना की गयी जिस पर कंपनी के प्रशासन का पूर्ण उत्तरदायित्व सौंपा गया। 

इलबर्ट के शब्दों में, पिट ने शशकंपनी को ब्रिटिश सरकार को प्रतिनिधिक संस्था के प्रत्यक्ष तथा स्थायी नियंत्रण में रखने के सिद्धांत को अपनाया। 

श्रीराम शर्मा के विचारानुसार शशपिट्स इंडिया एक्ट ने इंग्लैण्ड में भारतीय मामलों के निर्देशन के मौलिक सिद्धांत ही बदल दिया, कंपनी मंडल शक्तिहीन हो गया तथा संचालक मंडल ब्रिटिश सरकार के अधीन हो गया।

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