ध्वनि प्रदूषण - परिभाषा, प्रकार, कारण, निवारण


मानव के आधुनिक जीवन ने एक नये प्रकार के प्रदूषण को उत्पन्न किया है जो कि ध्वनि प्रदूषण कहलाता है। भीड़-भाड़ वाले शहर, गाँव, यान्त्रिकी प्रकार का परिवहन, मनोरंजन के नये साधन, उनके निरंतर शोर के द्वारा वातावरण (पर्यावरण) प्रदूषित हो रहा है। वास्तव में शोर जीवन की एक सामान्य प्रक्रिया है और यह मनुष्य के भौतिक वातावरण के लिए एक खतरे का संकेत है।

ध्वनि प्रदूषण क्या है 

ध्वनि प्रदूषण मुख्य रूप से तेज़ म्यूजिक, फोन पर बात करने, मशीनों, परिवहन प्रणालियों, वाहनों, ट्रेन और वायुयानों और अनुचित शहरी नियोजन और संरचनाओं के डिजाइन के कारण होता है। यहां तक कि घर में बिजली के उपकरणों से भी भीषण आवाज होती है। जब अधिक ध्वनि के कारण मनुष्यों को कठिनाई तथा बेचैनी हो तब उसे ध्वनि प्रदूषण कहते हैं। 

ध्वनि प्रदूषण की परिभाषा

(Noise) ध्वनि -शब्द लेटिन के शब्द ‘नॉजिला’ (Nausea) से व्युत्पन्न किया गया है जिसका अर्थ होता है मिचली अर्थात् आमाशयिक रोग को उल्टी होने तक महसूस करना। ध्वनि प्रदूषण को अनेक प्रकार से परिभाषित किया है-
  1. शोर बिना किसी परिमाण/उपयोग की ध्वनि है। 
  2. शोर वह ध्वनि है जो ग्राहृाता के द्वारा पसन्द नहीं की जाती है। 
ध्वनि प्रदूषण को भी विभिन्न प्रकार से परिभाषित किया जाता है।
  1. शोर प्रदूषण धूम कोहरे (Smog) समान मृत्यु का एक धीमा कारक है। 
  2. निरर्थक या अनुपयोगी ध्वनि ही शोर प्रदूषण है। 
  3. मेक्सवेल (Maxwell) के अनुसार शोर एक वह ध्वनि है जो कि अवांछनीय है और वायुमण्डलीय प्रदूषण का एक साधारण प्रकार है। 

ध्वनि प्रदूषण के स्रोत

ध्वनि प्रदूषण दो प्रकार से होता है- प्राकृतिक स्रोतों से तथा मानवीय क्रियाओं से।
  1. प्राकृति स्रोतों से - बादलों की बिजली की गर्जन से, अधिक तेज वर्षा, आँधी, ओला, वृष्टि आदि से शोर गुल अधिक होता है।
  2. मानवीय क्रियाओं द्वारा - शहरी क्षेत्रों में स्वचालित वाहनों, कारखानों, मिलों, रेलगाड़ी, वायुयान, लाउडस्पीकार, रेडियों, दूरदर्शन, बैडबाजा, धार्मिक पर्व, विवाह उत्साह, चुनाव अभियान, आन्दोलन कूलर, कुकर आदि से शोर होता है। 
जब ध्वनि का पिच ऊँचा होता है और वह असहनीय होती है तब उसे शोर कहते हैं। वायु प्रदूषण के साथ ध्वनि प्रदूषण भी होता है।

ध्वनि प्रदूषण के कारण

औद्योगिक एवं निर्माण गतिविधियाँ, मशीनरी, कारखानों के उपकरण, जनरेटर, आरी और हवार्इ तथा बिजली के अभ्यासों से भी ध्वनि प्रदूषण होता है। ध्वनि प्रदूषण के कारणों या स्रोतों को दो भागों में विभाजित किया जाता है:

1. प्राकृतिक स्रोत - इसके अंतर्गत बादलों की गड़गड़ाहट, तूफानी हवाएँ, भूकम्प, ऊँचे पहाड़ से गिरते पानी की आवाज, बिजली की कड़क, ज्वालामुखी के फटने (Volcanoes eruptions) से उत्पन्न भीषण शोर, कोलाहल, वन्य जीवों की आवजें, चिड़ियों की चहचहाट की ध्वनि आती है।

2. अप्राकृतिक स्रोत - यह मनुष्य के द्वारा निर्मित शोर प्रदूषण होता है इसके अन्तर्गत उद्योग धन्धे, मशीनें, स्थल, वायु, परिवहन के साधन-मोटर, ट्रक, हवाई जहाज, स्कूटर्स, बसें, एम्बुलेंस आदि।

ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव

ध्वनि प्रदूषण से न केवल चिड़चिड़ापन और क्रोध अपितु सुनने में कमी, हृदय गति में वृद्धि, रक्त चाप तथा अन्य शारीरिक प्रभाव आदि उत्पन्न होते हैं। अवांछित ध्वनि परेशानी तथा तनाव का स्रोत है। सब प्रकार के प्रदूषकों में से यह अत्यधिक रूप से घातक प्रदूषक है।
  1. ध्वनि प्रदूषक मनुष्य के स्वास्थ्य, आराम एवं कुशलता को प्रभावित करता है। इसके कारण रक्त धमनियों के संकुचन से शरीर पीला पड़ जाता है, रक्त प्रवाह में अत्यधिक मात्रा में एड्रीशन हार्मोन्स का होता है।
  2. ध्वनि पेशियों के संकुचन का कारण होता है जिससे तन्त्रिकीय क्षति, विसंगति, तनाव एवं पागलपन विकसित होता है। 
  3. शोर के कारण हृदय, मस्तिष्क, किडनी एवं यकृत को क्षति होती है और भावनात्मक विसंगतियाँ उत्पन्न होती हैं। 
  4. ध्वनि प्रदूषण मानसिक एवं शारीरिक दृष्टि से रोगी बनाकर, कार्यक्षमता को भी कम करता है तथा निरन्तर 100 dB से अधिक शोर आन्तरिक काम को क्षतिग्रस्त करता है। 
  5. ध्वनि प्रदूषण का प्रचण्ड प्रभाव सुनने की शक्ति में कमी, जो कि कान के किसी भी श्रवण तंत्र के भाग को क्षति पहुँचाता है। 
  6. अत्यधिक शोर को निरन्तर सुनने से मनोवैज्ञानिक (Psychological) एवं रोगात्मक (Pathological) विकृति उत्पन्न होती है। 
  7. शोर के निरन्तर सम्पर्क एवं सुनने से कार्यकीय विकृतियाँ-विक्षिप्ति, मनस्ताप, नींद का नहीं आना, अत्यधिक तनाव अत्यधिक रूप से पानी आना यकृतीय रोग पेप्टिक अल्सर्स, अवांछनीय जठर-आन्त्रीय परिवर्तन एवं व्यावहारिक एवं भावनात्मक तनाव, उत्पन्न होता है। 
  8. गर्भवती स्त्री का अधिक शोर में रहना, शिशु में जन्मजात बहरापन हो सकता है क्योंकि कान गर्भ में पूर्णरूप से विकसित होने वाला प्रथम अंग होता है। 
  9. पराश्रव्यकी (Ultrasonic Sound) ध्वनि पाचन, श्वसन, हृदयी संवहनी तंत्र एवं आन्तरिक कान को अर्धवृत्ताकार नलिकाओं को प्रभावित करती है। शोर के कारण ºदय की धड़कन में तीव्रता या कमी आ जाती है। 
  10. शोर के कारण ईओसिनोफीलिया, हायपरग्लाइसेमिया, हायपोकेलेमिया, हायपोग्लाइसेमिया रोग रक्त एवं अन्य शारीरिक द्रव्यों में परिवर्तन के कारण उत्पन्न होते हैं। 
  11. शोर स्वत: तंत्रिका तंत्र (Autonomic Nervous System) को प्रभावित करता है। 
  12. शोर का घातक प्रभाव वन्यजीवों एवं निर्जीव पदार्थों पर भी होता है। 
  13. लम्बे समय तक चलने वाले शोर के कारण दृष्टि एवं श्रवण क्षमता कम हो जाती है। 
  14. यकायक अत्यधिक तीव्र शोर-ध्वनिक धमाका/ध्वनि गरज (Sonic boom) मस्तिष्क की विकृतियाँ उत्पन्न करता है।

ध्वनि प्रदूषण रोकने के उपाय

यह संभव नहीं है कि शोर पर पूर्णतया नियंत्रण किया जा सके। शोर प्रदूषण को इन  उपायों से कम किया जा सकता है :
  1. शोर के स्त्रोत से ही नियंत्रण (Control of noise at source): कानून की सहायता से शोर करने वाले वाहन, मोटर, ट्रक, आदि पर रोक लगाकर शोर कम किया जा सकता है। 
  2. वायुयान, ट्रक, मोटरसायकिल, स्कूटर, औद्योगिक मशीनों एवं इंजनों को शोर नियंत्रण कवच से ढँकना चाहिए जिससे इन उपकरणों से कम से कम शोर उत्पन्न हो सके। 
  3. उद्योगों, कल-कारखानों में शोर उत्पन्न करने वाली मशीनों वाले उद्योगों में कार्य करने वाले श्रमिकों के द्वारा कर्ण फोन (Ear-phone) (आकर्णक) एवं कर्ण कुण्डल (Ear plug) का उपयोग करना चाहिए।
  4. मकानों, भवनों में कमरों के दरवाजों एवं खिड़कियों को उपयुक्त रूपरेखा या डिजाइन का बनाकर बहुत कुछ शोर को कम किया जा सकता है। 
  5. मशीनों में शोर कम करने के लिए स्तब्धक (Silencer) का उपयोग करना चाहिए। 
  6. लम्बे एवं घने वृक्ष, झाड़ियाँ शोर ध्वनि को शोषित करते हैं। इस कारण नीम, नारियल, इमली, आम, पीपल आदि के लंबे घने वृक्ष स्कूल, अस्पताल, सार्वजनिक कार्यालयों, लायब्रेरीज के आसपास, रेल की पटरियों के किनारे, सड़क के दोनों ओर लगाना चाहिए 
  7. घरों में पुताई हल्के हरे या नीले रंग के द्वारा करने से यह रंग ध्वनि प्रदूषण को रोकने में सहायक होते हैं। 
  8. धार्मिक, सामाजिक, चुनाव, शादी कार्यक्रमों, धार्मिक उत्सवों, मेलों आदि में ध्वनि विस्तारक यंत्रों (Loudspeakers) का उपयोग आवश्यक होने पर करना चाहिए और वह भी कम ध्वनि के साथ। 
  9. घरेलू शोर को कम करने के लिए टी.वी. रेडियो, ट्रांजिस्टर, टेपरिकार्डर, ग्रामोफोन्स आदि को धीमी गति से चलाना चाहिए। 
  10. शोर प्रदूषण को रोकने के लिए दीवारों, फर्श आदि पर ध्वनि शोषकों, जैसे कि-रोमीय नमदा (hair felt), ध्वनि शोषणीय टाइल्स, छिद्रित प्लायवुड, आदि ध्वनि निरोधी (Sound proof) पदार्थों को दीवारों एवं छत के सहारे लगाकर शोर के स्तर को कम किया जा सकता है। 
  11. रबड़, न्योप्रेन (Neoprene) कार्क या प्लास्टिक आदि कम्पन रोधक का उपयोग कर कम्पनीय मशीनों से होने वाली कम्पनीय ध्वनि को कम किया जा सकता है। 
  12. प्रचार-प्रसार के सभी साधनों-समाचार पत्र, टी.वी., रेडियो, आदि के द्वारा शोर प्रदूषण के घातक परिणामों से जनसाधारण को अवगत कराना चाहिए जिससे जनसाधारण जागरूक होकर शोर प्रदूषण को कम करने में सहायक हो एवं वन मंत्रालय ने शोर प्रदूषण नियम-2000 की अधिसूचना जारी कर जनसाधारण को शोर प्रदूषण के मानक स्वास्थ्य पर बुरे प्रभावों, मनोवैज्ञानिक प्रभावों, को नियन्त्रित करने के उपायों से अवगत कराया। इन नियमों एवं कानूनों का कठोरता से पालन होना चाहिए।
उपरोक्त उपाय वास्तव में अधिक मात्रा में शोर प्रदूषण को कम कर सकते है और शोर प्रदूषण से होने वाली विसंगतियों से बचाव कर सकते हैं।

6 Comments

  1. कक्कमीततततकडाकपकूतत

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  2. aacha hai

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  3. Bhai apaki blogig se kitani earning hoyi hai

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