शैक्षिक निदान का अर्थ, परिभाषा और महत्व

प्राय: प्रत्येक स्कूल में कुछ विद्यार्थी पढ़ाई में कमजोर होते है। वह मंद गति से अध्ययन करते है। उन्हें शिक्षक की बात को समझने में समय लगता है। उन्हें अध्ययन करते समय अनके कठिनाई होती है और ऐसी परिस्थिति में प्राय: कुछ विद्यार्थी कक्षा में अनुतीर्ण हो जाते हैं। और कुछ स्कूल ही छोड़ देते हैं। जिस कारण स्कूल के समक्ष अनेक समस्याएं खडी़ हो जाती हैं। इस कारण इन समस्याओं के निदान के लिए विद्यार्थियों में उपचारात्मक या निदानात्मक शिक्षण विधि को अपनाया जाता है। 

दूसरे शब्दों में शैक्षिक निदान के अंतर्गत मापन और व्याख्या से जुड़े हुये सभी कार्य सम्मिलित होते हैं, जो कि विद्यार्थी की अधिगम संबंधी कठिनाइयों को पहचानने में मदद करते हैं। मुख्यत: शैक्षिक निदान के लिए नैदानिक परिक्षण का उपयोग किया जाता है।

जैसे किए कक्षा के कुछ विद्यार्थी भाषा संबंधी अशुद्धियाँ करते हैं ये अशुद्धि वर्ण, अक्षर, मात्रा, छंद, वर्णक्रम और बनावट इन में से किसी भी प्रकार की हो सकती है। इसके कारणों में सुनने, पढ़ने, लिखने समझने की समस्या या दुरभ्यास हाथों पर अनियंत्रण, चिन्ता और तनाव जैसे विविध कारणों में से कोई एक या अनेक कारण हो सकते है, उनका अनुमान और वर्गीकरण नहीं किया जा सकता है। जैसा की हम जानते है, कि प्रत्येक विद्यार्थी अलग होता है इस कारण उनकी समस्याएं भी अलग होती हैं। इस कारण सभी विद्यार्थियों पर एक प्रकार की विधि का प्रयोग नहीं हो सकता है। इसलिए शिक्षक विद्यार्थियों को समूह में बांटकर उनकी समस्या का समाधान करते हैं। 

शैक्षिक निदान की परिभाषा

विभिन्न विद्वानों ने शैक्षिक निदान को निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया है -

कार्टर गुड के शब्दों में - निदान का अर्थ है अधिगम संबंधी कठिनाइयाँ और कमियों के स्वरूप का निर्धारण।
 
मरसेल के शब्दों में - जिस शिक्षण में (विद्यार्थियों) की विशिष्ट त्रुटियों का निदान करने का विशेष प्रयास किया जाता है उसको बहुधा शैक्षिक निदान कहा जाता है।
 
योकम व सिम्पसन के शब्दों में - निदान किसी कठिनाई का उसके चिन्हों या लक्षणों से ज्ञान प्राप्त करने की कला या कार्य है यह तथ्यों के परीक्षण पर आधारित कठिनाई का स्पष्टीकरण है।
 
गुड व ब्राफी के शब्दों में निदानात्मक शिक्षण अधिगम में छात्रों की कठिनाई के विशिष्ट स्वरूप का निदान करने के लिए उनके उत्तरों की सावधानी से जाँच करने की प्रक्रिया का उल्लेख करता है।
उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं, कि निदान का अर्थ है शिक्षक के द्वारा विद्यार्थियों की अधिगम संबंधी कमियों और कठिनाइयों की जानकारी प्राप्त कर लेना।

शैक्षिक निदान का महत्व

शैक्षिक निदान आधुनिक शिक्षण प्रक्रिया का अभिन्न अंग है, स्कूल चाहे शहरी हो या ग्रामीण, प्राथमिक हो या माध्यमिक, निजी हो या शासकीय; शैक्षिक निदान की महत्वता सदा अनुभव की जाती है।शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में कठिनाई होना कोई नई बात नहीं है। विषय वस्तु, शिक्षण-प्रक्रिया और विद्याथ्री की अभिरुचिगत भिन्नता के चलते अधिगम मूल्यांकन के परिणाम अनापेक्षित हो सकते हैं।

इन कारणों को जानने और सामाधान के प्रयासों का अध्ययन ही शैक्षिक निदान का क्षेत्र है। जैसा कि हम जानते है कि शैक्षिक निदान शिक्षण साथ-साथ चलने वाली प्रक्रिया है। विद्यार्थियों में सामान्य प्रकार की कठिनाईयों का सामन्य सर्वेक्षण परीक्षणों के माध्यम से पता किया जा सकता है। लेकिन विशेष प्रकार की कमियों और उनके कारणों का पता नैदानिक परीक्षणों से लगता है। विद्यार्थियों की कमजोरियों, कठिनाईयों एंव समस्याओं का समय पर निदान आवश्यक है। निदान के अभाव में विद्यार्थियों को अपनी कमजोरियों का पता नहीं लग पाता हैं, जिससे विद्याथ्री अपने दोषों को दूर नहीं कर पाते हैं और उनका प्रदर्शन दिन-प्रतिदिन गिरता जाता है। विद्यार्थियों की कठिनाईयों का समय के रहते शैक्षिक निदान कर दिया जाये तो विद्याथ्री शैक्षिक उपलब्धी प्राप्त कर सकेगे। अत: आज शैक्षिक निदान उपचारात्मक तथा निवारण दोनों के आधार के रुप में महत्वपूर्ण हो गया है।

Bandey

I am full time blogger and social worker from Chitrakoot India.

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