(अम्ल पित्त) एसिडिटी का आयुर्वेदिक और प्राकृतिक उपचार

अम्लपित्त का अर्थ है आमाशय में अत्यधिक अम्ल का बनना। यह रोग पाचन संस्थान के उपरी भाग अर्थात् आमाशय एवं ग्रसनी को प्रभावित करता है।

पाचन संस्थान का स्वस्थ रहना उत्तम स्वास्थ्य के लिए अति आवश्यक है क्योंकि स्वस्थ पाचन संस्थान शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य का आधार स्तंभ माना गया है। जीवन को सुखपूर्वक व्यतित करने के लिए भोजन का सही पाचन एवं अवशोषण आवश्यक है। किसी प्रकार के रस का आस्वादन भी हम इसी संस्थान के माध्यम से करते हैं। यदि इस पाचन सस्थान की गड़बडि़यों का लम्बे समय तक अनदेखी की जाय तथा इसका दुरूपयोग किया जाय तो अनेक प्रकार के पाचन संबंधि रोग उत्पन्न होने लगते हैं जैसे-अग्निमांधता, अजीर्ण, अल्पअम्लता, अति अम्लता, गैस, पेट का भारीपन, अल्सर आदि।

अम्पपित्त आमाशय में अम्ल की अधिकता से संबंधित है। इस रोग में पाचन प्रणाली उत्तेजित होकर अति क्रियाशील हो जाता है जिससे असमय एवं अधिक मात्रा में अम्ल का स्त्राव होने लगता है। यहाॅं तक की पेट खाली होने पर भी जठरभित्ति उत्तेजित हो जाती है तथा अधिक क्रियाशील रहती है। जिससे पेट में ऐंठन, मरोड सी महसूस होती है। यह अवस्था लम्बे समय तक बना रहे तो गम्भीर जठरशोध (गेस्टाªइटिस) तथा पेप्टिक अल्सर में रूपांतरित हो जाता है।

अम्ल पित्त रोग क्या हैं ?

जब पित्त कुपित होकर अर्थात् विदग्ध होकर अम्ल के समान हो जाता है, तो उसे अम्ल पित्त रोग की संज्ञा दी जाती है। पित्त को अग्नि कहा जाता है।

त्रिदोषों में अति महत्वपूर्ण पित्त जब कुपित हो जाता है और अम्ल सा व्यवहार करने लगता है तो उसे अम्ल पित्त कहते है। पित्त का सम्बन्ध जठराग्नि से है। जठराग्नि के क्षीण हो जाने से पाचक रसो की शक्ति भी क्षीण हो जाती है। पाचक रस भोजन को पूर्णत: पचाने में असमर्थ हो जाते है। भोजन पेट में ही पड़ा- पड़ा सड़ने लगता है। आमाशय की पाचन प्रणाली बार- बार क्रियाशील हो भोजन को पचाने का प्रयास करती है। बार- बार पाचक रसो एवं अम्ल को स्त्रावित करती है। जिससे शरीर में अम्ल की अधिकता हो जाती है। अम्ल शरीर में अन्य विभिन्न तकलीफों को उत्पन्न करता है। वही अपचा भोजन पड़े- पडे़ सड़ता है और आँतों द्वारा उसी रूप में रक्त में मिल जाता है। रक्त को दूषित कर सम्पूर्ण शरीर को भी दूषित करता है।

अम्ल पित्त का यदि सम्यक उपचार ना किया जाए तो वह आगे चलकर नये रोगों को जन्म देता है। अम्ल पित्त मात्र एक रोग नहीं है। अपितु शरीर में उपस्थित अन्य रोगों का परिणाम है।

सामान्यत: अम्ल पित्त को पाचन तन्त्र का एक रोग माना जाता है। जिसका कारण खान-पान की अनियमितता माना जाता है, परन्तु अम्ल पित्त का मूल कारण मानसिक द्वन्द है। जो व्यक्ति मानसिक रूप से अत्यधिक परेशान रहते है। अपने प्रियजनों पर भी जिसे विश्वास ना हो, जो हर समय स्वयं को असुरक्षित समझे। वे ही मुख्यत: इस रोग से ग्रस्त माने जाते है। समय के साथ यदि अम्ल पित्त बढ़ जाये तो यह अल्सर में बदल जाता है। अम्ल अधिक बन जाने पर वह पाचन अंगों पर घाव बना देता है।

अम्ल पित्त रोग के लक्षण 

अपच, थकान, जी मिचलाना, तीखी खट्टी डकार आना, छाती व गले में जलन होना, मुॅंह का स्वाद बदल जाना आदि अम्लपित्त के प्रमुख लक्षण हैं।

पेट तथा सिने में जलन -इस प्रकार के दर्द का अनुभव छाती के बीच वाली हड्डी के पीछे होता है। इसका एहसास भोजन के तुरन्त बाद होता है। आरंभ में इस दर्द से हृदयशूल होने का भ्रम होता है, क्योंकि इसका दौरा भी भोजन के पश्चात् ही होता है। इसका कारण है अतिअम्लता। अम्ल की अधिकता से ग्रसन नलिका के पिछले भाग में जलन होने लगती है।
  1. अपचन एवं कब्ज का सदैव बना रहना इस रोग का एक प्रमुख लक्षण है। 
  2. इस रोग के रोगी की आँखें निस्तेज हो जाती है। 
  3. जीभ पर सदैव हल्की सफेद- मैली परत जमी रहती है। 
  4. त्वचा मटमैली एवं खुरदुरी हो जाती है। 
  5. भोजन ठीक से नहीं पचता और कभी-कभी उल्टी भी होती है। 
  6. यदि उल्टी के साथ हरे-पीले रंग का पित्त भी निकले तो यह अम्ल पित्त का प्रमुख लक्षण समझना चाहिए। 
  7. अम्ल पित्त के रोगी को कड़वी और खट्टी ड़कारे आती है। 
  8. गले और सीने में तीव्र जलन होती है। 
  9. जी का मचलना, मुँह में कसौलापन एवं उबकाईयाँ आती है। 
  10. ऐसा व्यक्ति सदैव बेचैन और घबराया हुआ रहता है। 
  11. उदर में भारीपन रहता है।  
  12. अम्ल पित्त के रोगियों का मल निष्कासन के समय गर्म रहता है। 
  13. कभी-कभी पतले दस्त भी होते है। 
  14. मूत्र का रंग लाल-पीलापन लिये हुए होता है। 
  15. रोग की तीव्र अवस्था में शरीर में छोटी- छोटी फुन्सियाँ हो जाती है जिन पर खुजली भी होती है। 
  16. कई बार व्यक्ति आँखों के आगे अन्धेरा छा जाने की भी शिकायत करता है। 
  17. सिर में भारीपन एवं दर्द बना रहता है। 
  18. शरीर में सुस्ती एवं थकान बनी रहती है। ऐसा व्यक्ति सदैव विचित्र एवं अनजाने भय से ग्रसित रहता है। 
  19. कई बार व्यक्ति के सम्पूर्ण शरीर में जलन होती है। रोगी हाथों, पैरों, आँखों और सिर पर जलन की शिकायत करता है। 
  20. अम्ल पित्त के कई रोगियों में रक्तस्त्राव भी हो जाता हैंं। 
  21. अम्ल पित्त रोग यदि लम्बे समय तक बना रहे तो बाल झड़ने और सफेद होने लगते है। 
  22. अम्ल पित्त रोग जीर्ण हो जाने पर गैस्ट्रिक एवं ड्यूडिनम अल्सर में बदल जाता है।

अम्ल पित्त रोग के कारण 

अम्ल पित्त रोग मुख्य रूप से मानसिक उलझनों और खान-पान की अनियमितता के कारण उत्पन्न रोग है जिसके प्रमुख लक्षण है-
  1. भोजन सम्बन्धी आदतें अम्ल पित्त रोग का एक प्रमुख कारण है। कुछ व्यक्तियों में अयुक्ताहार-विहार से यह रोग हो जाता है। जैसे- मछली और दूध को एक साथ मिलाकर खाने से यह रोग हो जाता है।
  2. इसके अतिरिक्त बासी और पित्त बढ़ाने वाले भोजन का सेवन करने से भी अम्ल पित्त रोग होता है। डिब्बाबंद भोजन का अत्यधिक सेवन करना भी अम्ल पित्त रोग को दावत देता है।
  3. भोजन कर तुरन्त सो जाना या भोजन के तुरन्त बाद स्नान करने से भी यह रोग हो जाता है। 
  4. अम्ल पित्त रोग भोजन के बाद अत्यधिक पानी पीने से भी होता है। ठूस-ठूस कर खाने से भी ये रोग हो जाता है। 
  5. यकृत की क्रियाशीलता में कमी होना भी इस रोग का प्रमुख कारण है। 
  6. यदि दूषित एवं खट्टे-मीठे पदार्थो का अधिक सेवन किया जाए तो भी यह रोग हो जाता है। 
  7. मल-मूत्र के वेग को रोककर रखना भी इस रोग की उत्पत्ति का कारण है। 
  8. नशीली वस्तअुों का अत्यधिक सेवन करना भी इस रोग का एक कारण है। 
  9. इस रोग का एक कारण उदर की गर्मी को बढ़ाने वाले पदार्थो का अधिक सेवन करना है। 
  10. अत्यधिक अम्लीय पदार्थो का बार- बार सेवन करने से भी यह रोग हो जाता है। 
  11. कई व्यक्ति अत्यधिक भोजन कर दिन में सो जाने की आदत होती है जिससे यह रोग हो जाता है। 
  12. दाँतों के रोगों के कारण भी अम्लपित्त रोग होने की सम्भावना रहती है। 
  13. भोजन के तुरन्त बाद खूब पानी पीना भी इस रोग की प्रमुख वजह है। 
  14. अम्ल पित्त रोग का ऋतु परिवर्तन और स्थान परिवर्तन से अति गहरा सम्बन्ध है। 
  15. अम्लता उत्पन्न करने वाली औषधियों के निरन्तर सेवन से भी यह रोग हाता है।

अम्ल पित्त रोग के प्रकार 

अम्ल पित्त रोग के दो प्रकार है-

1. उध्र्वग अम्ल पित्त- जिस अम्ल पित्त में खट्टा, हरा, नीला, हल्का लाल, काला, चिपचिपा कड़वा वमन, ड़कार होता है तथा हृदय, गले तथा पेट में जलन और हाथ- पैरों में जलन होती है, उध्र्वग अम्ल पित्त कहलाता है।

2.अधोग अम्ल पित्त-जिस अम्ल पित्त में गुदा से हरा, पीला, काला, माँस के धोवन के समान रक्तवर्ण अम्ल पित्त निकलता है तथा प्यास और जलन बनी रहती है, अधोग अम्ल पित्त कहलाता है। प्रत्येक रोग के समान ही अम्ल पित्त रोग को भी उसकी अवस्था के आधार पर प्रारम्भिक अम्ल पित्त, मध्यम अम्ल पित्त और तीव्र अम्ल पित्त में भी बाँटा जा सकता है।

अम्ल पित्त रोग की उपचार

  1. सौंठ एवं गिलोय का समभाग चूर्ण शहद के साथ सेवन करना उपयोगी है। 
  2. मिश्री को त्रिफला एवं कुटकी के समभाग चूर्ण के साथ मिलाकर सेवन करना उपयोगी है। 
  3. हरड़, गुड़ और छोटी पीपल को समान मात्रा में मिलाकर उसकी गोली बना लें तथा सेवन करें। 
  4. भृंगराज एवं हरीतकी का समभाग चूर्ण गुड़ के साथ मिलाकर सेवन करना उपयोगी है। 
  5. प्र्रतिदिन नाश्ते में एक पका केले को खाये, तत्पश्चात् दूध पी लें। इससे यह रोग दूर हो जाता है।
  6. 50 ग्राम मुनक्का और 25 ग्राम सौंफ को रात में पानी में भिगाकर रख दें। सुबह इसे मसलकर छान ले। इसमें 10 ग्राम मिश्री मिलाकर इसे पी ले। 
  7. करेले के पत्तों या फूल को घी में भूनकर उसका चूर्ण बना ले। इस चूर्ण को दिन में 2-3 बार एक से दो ग्राम की मात्रा में खायें। 
  8. 20 ग्राम आँवला स्वरस में, 1 ग्राम जीरा चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम पीयें। 
  9. नीमपत्र रस और अडूसा पत्र रस को 20-20 ग्राम एकत्र कर इसमें थोड़ा शहद मिलाकर दिन में 2 बार खायें। 
  10. बच के चूर्ण को 2-4 रती की मात्रा में मधु के साथ सेवन करे। 
  11. शक्कर में श्वेत जीरे के साथ धनिये का चूर्ण समान मात्रा में मिलाकर खाये। 
  12. जौ अथवा गेहूँ अथवा चावल के सत्तू को मिश्री में मिलाकर खाना चाहिए। 
  13. नीम की छाल, गिलोय व पटोल का काढ़ा बनाकर उसमें शहद डालकर पीने से लाभ मिलता है। 
  14. सूखे आँवले को रात भर भिगोकर रख दें। सुबह उसमें जीरा और सौंठ मिलाकर बारीक पीस ले। इस मिश्रण को दूध में घोलकर पीयें।
  15. भोजन के पश्चात् दूध के साथ इसबगोल लेते रहने से अम्ल पित्त रोग कभी नहीं होता है।
  16. छोटी या बड़ी हरड़ का 3 ग्राम चूर्ण और 6 ग्राम गुड़ को मिलाकर दिन में 3 बार खायें।
  17. मिश्री को कच्चे नारियल के पानी में मिलाकर सेवन करे।
  18. भोजन के 1 घण्टे बाद आँवले का 5 ग्राम चूर्ण लेना चाहिए।
  19. अनार के रस में जीरा मिलाकर खाने से अम्ल पित्त रोग दूर हो जाता है। 
  20. भुने हुए जीरे व सेंधा नमक को संतरे के रस में डालकर पीये। इससे अम्ल पित्त रोग का शमन हो जाता है। 
  21.  50 ग्राम प्याज को महीन-महीन काट ले। इससे गाय के ताजे दही में मिलाकर खायें। 
  22. अदरक और अनार के 6-6 ग्राम रस को मिलाकर पी लेने से यह रोग दूर हो जाता है। 
  23. मूली के स्वरस में कालीमिर्च का चूर्ण और नमक मिलाकर खाने से अम्ल पित्त रोग में लाभ मिलता है। 
  24. प्रत्येक भोजन के बाद एक लौंग खा लेनी चाहिए। 
  25. ठण्डा दूध पीने से अम्ल पित्त रोग में लाभ मिलता है।

आहार

  1. आहार चिकित्सा में पूर्ण प्राकृतिक एवं ताजे भोज्य पदार्थो को शामिल करे। अत्यधिक तले-भुने, गरिष्ठ और मिर्च-मसाले युक्त आहार कदापि ना ले। 
  2. रोगी को फलों में ताजे फल जैसे- नारंगी, आम, केला, पपीता देना चाहिए। कुछ समय के पश्चात् खूबानी, खरबूज, चीकू, तरबूज, सेब भी दे सकते है। 
  3. सूखे मेवे में अखरोट, खजूर, मुनक्का, किशमिश देना चाहिए। कुछ दिनों तक रोगी की सामथ्र्यानुसार सेब का पानी, नारियल का पानी, खीरा और सफेद पेठे आदि का रस देना चाहिए। 
  4. तोराई, टिण्डा, लौकी, परवल आदि की सब्जियाँ रोगी को खाने को दें। रोग के कम हो जाने पर मेथी, चौलाई, बथुआ आदि सब्जियाँ दी जा सकती है। यदि रोगी की आलू खाने की इच्छा हो तो रोगी को आलू उबालकर खाने को दें। ध्यान रखे यदि रोगी आलू ग्रहण कर रहा है तो आलू के साथ अन्य पदार्थ कदापि ना ले। 
  5. अम्ल पित्त रोग में कच्चे नारियल का दूध और गूदा का उपयोग करना चाहिए। 
  6. आँवले और अनार का रस भी अम्ल पित्त रोग में उपयोगी है।

Bandey

I am full time blogger and social worker from Chitrakoot India.

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