अनुक्रम
दिनचर्या शब्द दिन चर्या दो शब्दों से मिलकर बना है। दिन का अर्थ है दिवस तथा चर्या का अर्थ है। चरण अथवा आचरण से हैं। अर्थात् प्रतिदिन की चर्या को दिनचर्या कहते हैं। दिनचर्या एक आदर्श समय सारणी है जो प्रकृति की क्रमबद्धता को अपनाती है, तथा उसी का अनुसरण करने का निर्देश देती है। आयुर्वेद शास्त्र में वर्णन मिलता है कि - हमें पूर्ण रूप से स्वस्थ रहने के लिए प्राकृतिक क्रम के अनुसार अपने शारीरिक कार्यो के क्रम को व्यवस्थित करना चाहिए। जिससे अन्य सभी क्रम स्वत: ही व्यवस्थित हो जाएंगे। दिनचर्या के अन्तर्गत हितकर आहार व चेश्टा को रखा गया है। आयुर्वेद के ग्रन्थों में दिनचर्या का प्रतिपादन मुख्य रूप से स्वास्थ्य रक्षण हेतु किया गया है।
दिनचर्या की परिभाषा
दिनचर्या नित्य कर्मो की एक क्रमबद्ध श्रंखला है। जिसका हर एक अंग अत्यन्त महत्वपूर्ण है और क्रमवार किया जाता है। दिनचर्या के अनेक बिन्दु नितिशास्त्र एवं धर्मशास्त्र के ग्रन्थों से लिए जाते हैं। परन्तु मुख्यत: आयुर्वेदोक्त हैं। आयुर्वेद के ग्रन्थों व नीतिशास्त्रों में दिनचर्या को इस प्रकार परिभाषित किया गया है।
‘‘प्रतिदिनं कर्त्तव्या चर्या दिनचर्या’’ (इन्दू)
अर्थात् प्रतिदिन करने योग्य चर्या को दिनचर्या कहा जाता है।
‘‘दिनेदिने चर्या दिनस्य वा चर्या दिनचर्या। (चरणचर्या)
अर्थात् प्रतिदिन की चर्या को दिनचर्या कहते है।
उभयलोकहितंमाहारचेष्टितं प्रतिदिने यत्कर्त्तव्ये।। (अरूण दत्त)
अर्थात् इहलोक तथा परलोक में हितकर आहार एवं चेष्टा को दिनचर्या में रखा जाता है। दिनचर्या का मुख्य रूप से प्रतिपादन आयुर्वेद के ग्रन्थों में स्वास्थ्य रक्षण हेतु किया गया है। दिनचर्या को प्रधान विशय मानकर उसी के आधार पर अध्यायों का नामकरण किया है। आचार्य सुश्रुत ने दिनचर्या का वर्णन अनागत बाधा प्रतिशेध अध्याय में किया गया है।
‘‘अनागत ईशदागत:, नञ् अत्र ईशदेर्थे: अबाधा दुखं
व्याधिरित्यर्थ: य तस्य प्रतितेधश्चिकित्सतम्। (सु0 डल्हण टीका)
अर्थात् नहीं आए हुए और सम्भावित दुखों और रोगों को रोकने के लिए जो चिकित्सा विधि है। वह दिनचर्या है।
दिनचर्या की आवश्यकता एवं महत्व
आयुर्वेद शब्द का अर्थ होता है जीवन का विज्ञान। साधारण शब्दों में जीवन जीने की कला ही आयुर्वेद है। क्योंकि यह विज्ञान जीवन जीने के लिए आवश्यक सभी प्रकार के ज्ञान की प्राप्ति कराता है। तथा साथ ही साथ रोगों तथा उनकी चिकित्सा का निराकरण भी कराता है। इस प्रकार आयुर्वेद एक इस प्रकार की चिकित्सा प्रणाली है, जो स्वास्थ्य और रोग दोनों के लिए क्रमश: ज्ञान प्रदान करता है। आयुर्वेद का मुख्य उद्देश्य स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य का रक्षण करना तथा रोगी व्यक्ति के विकारों का प्रशमन करना है। जैसा कि कहा गया है -
‘‘दोष धातु मल मूलं हि शरीरम्।’’ (सु0 सू0 15/3)
अर्थात् शरीर में दोष, धातु, मल की स्थिति पर ही स्वास्थ्य का बनना और बिगड़ना निर्भर करता है। शरीर में दोषों का दूषित होना हमारे आहार - विहार पर निर्भर करता है।दोष मनुष्य के गलत आहार - विहार के कारण दूषित होते है, जब ये दूषित होते है तो धातुओं को दूषित करते है। इस प्रकार किसी एक दोष की वृद्धि या क्षय की स्थिति उत्पन्न होती है। जिससे रोग उत्पन्न होते है। इन दोषों की साम्यावस्था बनाये रखने के लिए आयुर्वेद में दिनचर्या और रात्रिचर्या तथा ऋतुचर्या के अनुसार आहार - विहार का वर्णन किया गया है। जिसे आयुर्वेद में स्वस्थवृत्त कहा गया है।
दिनचर्या दिन में सेवन करने योग्य आहार - विहार का क्रम है। दिनचर्या के पालनीय नियमों को अपनाने से उसके अनुसार आचरण करने से स्वास्थ्य की रक्षा होती है, और रोगों के आक्रमण से भी बचा जा सकता है। अत: रोगों से रक्षा तथा पूर्ण स्वास्थ्य की प्राप्ति हेतु ही दिनचर्या की आवश्यकता है। दिनचर्या का महत्व इस प्रकार से है - दिनचर्या का आचरण अनागत दुखों एवं रोगों से रक्षा करना है। आयुर्वेद के आचार्यो ने जिन अध्यायों में दिनचर्या का वर्णन किया है, उन्हीं अध्यायों में रात्रीचर्या का वर्णन किया है। अर्थात् रात्रीचर्या को भी उन्होंने दिनचर्या के अन्तर्गत माना है और दिनचर्या को प्रधान विषय मानकार उसी के आधार पर अध्यायों का नामकरण किया है। आचार्य सुश्रुत ने दिनचर्या का वर्णन अनागत बाधा प्रतिशेध अध्याय में किया है -
‘‘अनागत ईशदागत: नञ् अत्र ईशदर्थे: अबाधा दुखं
व्याधित्यर्थ: तस्य प्रतिशेधश्चकित्सितम्।।’’ (सु डल्हण टीका)
अर्थात् नहीं आए हुए और सम्भावित दुखों और रोगों को रोकने की चिकित्सा विधि। इस प्रकार सभी आर्श संहिताओं के आधार पर दिनचर्या के प्रमुख लाभ आचार्यो द्वारा कहे गये है। जो कि दिनचर्या के महत्व का वर्णन करते है -व्याधित्यर्थ: तस्य प्रतिशेधश्चकित्सितम्।।’’ (सु डल्हण टीका)
- इहलोक तथा परलोक में हितकारी - दिनचर्या का पालन करने से इहलोक तथा परलोक में हितकारी है। क्योंकि दिनचर्या का पालन करने वाला व्यक्ति स्वस्थ रहता है, और समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्व को पूर्ण कर अपने परम् लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है।
- सम्भावित रोगों से पूर्व सुरक्षा - दिनचर्या के पालन से सम्भावित रोगों को होने से पूर्व ही रोका जा सकता है। क्योंकि दिनचर्या के पालनीय नियमों से जीवनी शक्ति प्रबल रहती है। अत: रोग होने की संभावना कम हो जाती है।
- दिनचर्या द्वारा समग्र स्वास्थ्य की प्राप्ति - दिनचर्या के नियमित पालन से शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, पारिवारिक स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। क्योंकि रोग का प्रभाव केवल व्यक्तिगत नहीं होता है। रोग का प्रभाव सामाजिक व पारिवारिक स्थितियों पर पड़ता है। अत: दिनचर्या के पालन से स्वस्थ समाज का निर्माण होता है तथा शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक, पारिवारिक समग्र स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
- दिनचर्या द्वारा व्यक्तित्व परिश्कार - दिनचर्या के पालनीय नियमों में नित्य कर्मो की एक क्रमबद्ध श्रृखला है। जिसका हर एक अंग महत्वपूर्ण है। जिसके पालन से मन, शरीर, इन्द्रियों पर नियंत्रण स्थापित होता है। जिससे कि व्यक्तित्व परिश्कृृत होता है।
- प्राचीन परम्परा का संरक्षण - आयुर्वेद में स्वस्थ वृत्त के अन्तर्गत दिनचर्या का वर्णन किया गया है। दिनचर्या के पालनीय नियमों से प्राचीन परम्परा हमारे ऋषि - मुनियों द्वारा बनायी गयी परम्परा का संरक्षण होता है। मानवीय मूल्यों का संरक्षण होता है। इन नियमों का पालन कर हमारी वर्षो पुरानी संस्कृति का संरक्षण होता है।
TQ
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