जलवायु का क्या अर्थ है और इसको निर्धारित करने वाले तत्व कौन से हैं?

जलवायु शब्द की उत्पत्ति जल तथा वायु शब्दों के मेल से बना है । जिसे अंग्रेजी में Climate कहते है, जिसकी उत्पत्ति ग्रीक भाषा के ‘क्लाइमा’ (Klima) से हुई है, जिसका अर्थ होता है ‘झुकाव’ (Inclination) अथवा सूर्य की किरणों का तिरछापन । वास्तव में जलवायु किसी वृहत् क्षेत्र अथवा प्रदेश के वायुमण्डल की लम्बी अवधि की सामान्य दशाओं को कहते हैं । हमारी पृथ्वी पर ताप की मात्रा अलग-अलग अक्षांशों में भिन्न होने के कारण, उनके जलवायुविक स्थिति में स्पष्ट अंतर देखा जा सकता है । इन अंतरों के अनुसार ही हम पृथ्वी का जलवायुयिक विभाजन (Climatology) करते हैं ।
 
ट्रिवार्था के अनुसार कुछ समय के लिए किसी स्थान की वायुमण्डल की अवस्थाओं (तापमान, वायुदाब, आर्द्रता एवं हवाओं) के कुल योग को मौसम (Weather) कहा जाता है । मौसम निरंतर परिवर्तनशील रहता है । मौसम की इन बदलती हुई अवस्थाओं को ही जलवायु कहते हैं । किसी प्रदेश के वर्षभर के अलग-अलग मौसमों की अवस्थाओं के मिश्रण की ही जलवायु कहते हैं ।

जलवायु को निर्धारित करने वाले तत्व

जलवायु को निर्धारित करने वाले तत्व हैं:-

1. अक्षांश - पृथ्वी पर सूर्यातप की मात्रा किरणों के कोण पर निर्भर करती है । सूर्यातप की मात्रा किरणों के कोण के अनुसार बदलती रहती है । 

2. समुद्रतल से उँचाई - किसी स्थान की समुद्रतल से उँचाई, उस स्थान के जलवायु को प्रभावित करती है । समुद्रतल की उँचाई के साथ-साथ तापमान घटता जाता है क्योंकि उँचाई के साथ-साथ वायु हल्की होती जाती है जबकि नीचे की वायु, उपर दाब के कारण घनी होती है । अतः धरातल के निकट की वायु का ताप उपर की वायु के ताप से अधिक रहता है । अतः जो स्थान समुद्रतल से जितना अधिक उँचा होगा, उतना ही शीतल होगा । इसी कारण अधिक उँचाईं के पर्वतीय भागों में सदा हिम जमी रहती हैं ।

3. समुद्री प्रभाव - समुद्र की निकटता एवं दूरी भी जलवायु को प्रभावित करती है । समुद्र के निकट शीतोष्ण जलवायु पाई जाती है, जबकि दूर के भाग पर जलवायु अलग पाई जाती हैं ।

4. पवनों की दिशा - पवनों की दिशा भी जलवायु को प्रभावित करती है, ठण्डे स्थानों से आने वाली हवाएँ जलवायु को ठण्डी तथा उष्ण प्रदेशों से आने वाली हवाएँ जलवायु को उष्ण बनाती हैं ।

5. वायु, वायुदाब एवं आर्द्रता - वायु जीव-जगत् के जीवन का आधार है, हमारा वायुमण्ड मिश्रित गैसों का मिश्रण है । पृथ्वी की सतह चारों ओर से वायु के आवरण से ढँकी है, जिसे हम वायुमण्डल कहते हैं । वैसे तो वायुमण्डल अनेक गैसों के मिश्रण से बना है, जिसमें दो प्रधान हैं- नाइट्रोजन एवं आक्सीजन ।
 
6. वायुदाब - वायुमण्डलीय दाब को संक्षेप में वायुदाब कहा जाता है । यह वायु के पदार्थ होने एवं उसकी भौतिक दशा की स्थिति है । पृथ्वी की सतह पर वायुमण्डल का भार या दबाव पड़ता है । किसी स्थान पर यह दबाव, उसके
उपर की वायु की मात्रा पर निर्भर करता है । अर्थात् समुद्र की सतह पर वह दबाव अधिक होगा और उँचा
पहाड़ों पर कम हवा के उफपरी परतों का भार निचली परतों पर पड़ता है । इसलिए उपर की हवा हल्की तथा
फैली होती है और नीचे की हवा भारी तथा अपेक्षाकृत घनी होती हैं । 

वायुदाब को बैरोमीटर नामक यंत्र से मापा जाता है । बैरोमीटर से हम वायुभार को इंच अथवा मिलीबार में पढ़तें हैं । समुद्र की सतह पर औसत वायुभार 29.9 इंच अथवा 1012 मिलीवार है, जो लगभग 14.7 पौंड प्रति वर्ग इंच के
बराबर है । पृथ्वी की धरातल पर वायु भार प्रायः 1,000 मिलीबार अर्थात् 29.53 इंच से कभी कम या कुछ
अधिक रहता हैं ।

वायुदाब अलग-अलग स्थानों पर भिन्न-भिन्न रहती है । इसके निरंतर बदलती दशा को प्रभावित
करने के लिए प्रभावी कारक हैः (i) तापमान, (ii)  आर्द्रता, (iii) उँचाई, एवं पृथ्वी की दैनिक गतियाँ ।

7. आर्द्रता - जल का गैसीय रूप (वाष्प) जो वायु में विद्यमान रहता है अर्थात् जलवाष्प को वायुमण्ड की आर्द्रता कहते हैं । वायुमण्डल में यह जलवाष्प की मात्रा पृथ्वी से वाष्पीकरण के अलग-अलग रूपों में पहुँचती हैं । हवा में जलवाष्प ग्रहण की शक्ति, उसके तापमान से संबंधित है । हवा जितनी ज्यादा गर्म होगी, उसमें उतनी अधिक जलवाष्प ग्रहण करने की शक्ति होगी । तापमान के अधिक रहने पर वाष्पीकरण सबसे अधिक होता है । इसलिए वायुमण्डल में सबसे अधिक वाष्प हम विषुवत रेखा के निकट महासागरों के उपर पाते हैं और सबसे कम जलवाष्प शीतकाल में एशिया के विशाल स्थल-खण्ड के उपर-पूर्वी सर्द भाग में एक घनपुफट वायु में एक निश्चित सीमा तक वाष्प रह सकता हैं । परन्तु यह सीमा पूर्णतः हवा के ताप पर निर्भर करती है । जब वायु अपने अधिकतम सीमा तक जलवाष्प ग्रहण करलेती है, तो वैसी हवा के संतृप्त वायु
कहते हैं ।

8. निरपेक्ष आर्द्रता एवं सापेक्ष आर्द्रता - किसी निश्चित आयतन वाली वायु में, किसी निश्चित तापमान पर पाई जाने वाली नमी की मात्रा को उस वायु का वास्तविक या निरपेक्ष आर्द्रता कहते हैं । 

उदाहरणार्थ, 30° थ् ताप पर जलवाष्प 2.21 ग्रेन प्रत्येक घनफुट में होता है । यह 2.21 ग्रेन प्रति इकाई उसकी वास्तविक या निरपेक्ष आर्द्रता कहलायेगी । यदि हवा में आर्द्रता की मात्रा बढ़ जाती है, यह अतिरिक्त नमी प्राप्त करने के कारण या अधिक तापवृद्धि  के पश्चात बढ़ जाती है, जैसे-2.21 ग्रेन के स्थान पर 3.09 ग्रेन हो जाती है, तो बदली हुई स्थिति में वायु की निरपेक्ष आर्द्रता बदल जाती है । 

वायु में आर्द्रता की मात्रा स्थिर नहीं रहती हैं । किसी निश्चित समय का उल्लेख करते हुए, इसका माप अंकित किया जाता है

भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक

1. स्थिति एवं अक्षांशीय विस्तार - भारत मोटे तौर पर 60 उ. से 30o उत्तर अक्षांशों के बीच स्थित है। कर्क वृत्त देश के बीच से होकर जाता है। विषुवत् वृत्त के पास होने के कारण दक्षिणी भागों में वर्ष भर उच्च तापमान पाये जाते हैं। दूसरी ओर उत्तरी भाग गर्म शीतोष्ण पेटी में स्थित है। यहां खासकर शीतकाल में निम्न तापमान पाये जाते हैं।

2. समुद्र से दूरी - प्रायद्वीपीय भारत अरब सागर, हिन्द महासागर तथा बंगाल की खाड़ी से घिरा हुआ है। अत: भारत के तटीय प्रदेशों की जलवायु सम या अनुसमुद्री है। इसके विपरीत जो प्रदेश देश के आंतरिक भागों में स्थित हैं, वे समुद्री प्रभाव से अछूते हैं। फलस्वरूप उन प्रदेशों की जलवायु अति विषम या महाद्वीपीय है।

3. उत्तर पर्वतीय श्रेणियाँ - हिमालय व उसके साथ की श्रेणियाँ जो उत्तर-पश्चिम में कश्मीर से लेकर उत्तर-पूर्व में अरुणाचल प्रदेश तक फैली हुई हैं, भारत को शेष एशिया से अलग करती हैं। ये श्रेणियाँ शीतकाल में मध्य एशिया से आने वाली अत्यधिक ठन्डी व शुष्क पवनों से भारत की रक्षा करती हैं। साथ ही वर्षादायिनी दक्षिण पश्चिमी मानसून पवनों के सामने एक प्रभावी अवरोध बनती हैं, ताकि वे भारत की उत्तरी सीमाओं को पार न कर सकें। इस प्रकार, ये श्रेणियाँ भारतीय उपमहाद्वीप तथा मध्य एशिया के बीच एक जलवायु विभाजक का कार्य करती हैं।

4. स्थलाकृति - देश के कई भागों में स्थलाकृतिक लक्षण वहां के तापमान, वायुमण्डलीय दाब, पवनों की दिशा तथा वर्षा की मात्रा को प्रभावित करते हैं। 

5. मानसून पवनें - भारत में पवनों की दिशा के पूर्णतया उलटने से, ऋतुओं में अचानक परिवर्तन हो जाता है और कठोर ग्रीष्मकाल अचानक उत्सुकता से प्रतीक्षित वर्षा ऋतु में बदल जाता है। इस प्रकार दिशा बदलने वाली पवनों को मानसून पवनें कहते हैं। 
6. ऊपरी वायु परिसंचरण - भारत में मानूसन के अचानक आगमन का एक अन्य कारण भारतीय भू-भाग के ऊपर वायु परिसंचरण में होने वाला परिवर्तन भी है। 
7. पश्चिमी विक्षोभ तथा उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात - पश्चिमी विक्षोभ भारतीय उपमहाद्वीप में पश्चिमी जेट प्रवाह के साथ भूमध्य सागरीय प्रदेश से आते हैं। यह देश के उत्तरी मैदानी भागों व पश्चिमी हिमालय प्रदेश की शीतकालीन मौसमी दशाओं को प्रभावित करते हैं। ये शीतकाल में थोड़ी वर्षा लाते है। यह थोड़ी सी वर्षा भी उत्तरी मैदान में गेहूं की खेती के लिए बहुत ही लाभकारी होती है।

उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात बंगाल की खाड़ी में पैदा होते हैं। इन चक्रवातों की तीव्रता तथा दिशा पूर्वी तटीय भागों की मौसमी दशाओं को अक्टूबर, नवम्बर और दिसम्बर में प्रभावित करते हैं।

1 Comments

  1. Bhayi apka blog accha hai par aap catagory post ki jarurat tag me daala kare. Isse catagory par click karke ek sath sabhi post dekh skte hai

    ReplyDelete
Previous Post Next Post