किशोरावस्था की विशेष समस्याऐं है, निम्न समस्याऐं आमतौर पर किशोरों में देखने को मिलती है

किशोरावस्था बालक या बालिकाओं की अवस्था 12 से 18 वर्ष के बीच होती है, विकास एवं वृद्धि की विभिन्न अवस्थाओं में किशोरावस्था अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है। किशोरावस्था मनुष्य के विकास की तीसरी अवस्था है यह बाल्यावस्था के बाद शुरू होकर प्रौढ़ावस्था शुरू होने तक चलती रहती है, परंन्तु जलवायु एवं व्यक्तिगत भेदों के कारण किशोरावस्था की अवधि में कुछ अंतर आता है। यह वह अवस्था है, जिसका तात्कालीन प्रभाव व दीर्घकालीक प्रभाव दोनों ही देखने को मिलता है इस अवधि में शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक प्रभाव दोनों ही सबसे अधिक दिखाई देते है।

इस अवधि में अचानक एवं अलग प्रकार से शारीरिक वृद्धि होने लगती है, इसी अवधि में यौन विकास भी तेजी से होता है। इस समय बालक- बालिकाऐं अपने सहपाठियों के साथ रहना अधिक पसंद करते है। इस अवस्था के पहुँचने तक बालक आत्मनिर्भर हो जाता है अर्थात अपना काम स्वयं करने लगता है एवं जिम्मेदारी वहन कर सकता है, इस अवस्था में यौन अंगों का विकास जारी रहता है। इस उम्र में संवेगात्मक प्रभाव के साथ सांस्कृतिक बदलाव भी दिखाई देता है।
 
स्वयं की पहचान बनाना इस उम्र के युवाओं की विशेषताएं है, युवा समाज में अपना स्थान बनाने की कोषिष करते है, इस समय तक इनके यौन-गौण लक्षण पूर्ण विकसित हो चुके होते है, इस समय आर्थिक रूप से किशोर अपने माता-पिता पर पूरी तरह निर्भर होते है।

किशोरावस्था के लक्षण

किशोरावस्था बालक- बालिकाओं की पहचान उनकी शारीरिक वृद्धि से होती है, सोचने, समझने, बनने- सँवरने की भूमिका में बदलाव नजर आता है। अलग- अलग प्रकार के कपडे़ पहनना, घंटों काँच के सामने बैठना, तर्कवितर्क करना, भविष्य के सपनों की उड़ान भरना, एवं सामाजिक कार्यो में रूचि लेना मुख्य है, किशोरावस्था में यौन परिवर्तन मुख्य पहचान के लक्षण है। किशोरावस्था बालक की दाढ़ी- मूँछ आना, आवाज में भारीपन एवं बालिकाओं में मासिक धर्म की शुरूआत होती है। भारत चूँकि गरम देषों की श्रेणी में आता है अतः यहाँ बालकों एवं बालिकाओं में परिपक्वता की उम्र पाश्चात्य देशों की तुलना में जल्दी आ जाती है। अलग-अलग देशों में किशोरावस्था की उम्र जलवायु एवं वातावरण पर निर्भर करती है।

किशोरावस्था की प्रमुख समस्याएं

किशोरावस्था की विशेष समस्याऐं है, निम्न समस्याऐं आमतौर पर किशोरों में देखने को मिलती है -

1. यौन व्यवहार संबंधी समस्याएं - किशोरावस्था में यौन संबंधी कई समस्याऐं होती है, शारीरिक परिपक्वता के कारण उनके यौन अंगों का विकास तो पूरा हो जाता है, परन्तु उनमें मनोवैज्ञानिक परिपक्वता की कमी के कारण कई प्रकार की यौन समस्याऐं उत्पन्न हो जाती है। विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण के कारण काम भावना, पराकाष्टा की सीमा पार कर जाती है, इस समस्या को सुलझाने के लिए किशोरों को यौन शिक्षा देना अनिवार्यतः होना चाहिए।

2. परिवार एवं समाज के साथ ऐडजस्टमेंट संबंधीं -  किशोर एवं किशोरियों की गंभीर समस्या परिवार से शुरू होती है। देखा जाता है कि किसी भी सामाजिक कार्यक्रम में स्वतंत्र रूप से भाग लेने की अनुमति नहीं मिल पाने से तनाव बढ़ जाता है और परिवार में संघर्ष की शुरूआत हो जाती है अतंतः किशोर घर छोडने को मजबूर हो जाते है, और व्यावसायिक कार्यो में मानसिकता से उचित दिषा-निर्देष न मिलने से समस्या जटिल हो जाती है।

3. नैतिक व्यवहार से संबंधित समस्या - कुछ किशोर-किशोरियोंको सही व गलत की जानकारी न होने से वे अवास्तविक उच्च मानक निर्धारित कर लेते है, एवं उनके पूरा न होने की स्थिति में लडने झगडने लगते है और पूरा न होने की स्थिति में अनैतिक व्यवहार करने लगते है, और सामाजिक समायोजन भी नहीं कर पाते है।

4. वित्तीय समस्या -  किशोर-किशोरियों को वित्तीय समस्या का भी सामना करना पडता है। किषोरावस्था में बाल अपने भविष्य की भी प्लानिंग कर लेता है। अधिक से अधिक पैसा खर्च कर अपने साथी को भी खुष रखने के कारण कई बार वित्तीय समस्या का भी सामना करना पडता है अधिक गंभीर समस्या में आत्महत्या जैसी प्रवृत्ति को अपनाने से भी नहीं चूकते और कुंठा से ग्रसित हो जाते है।

5. मादक पदार्थों का सेवन - प्रायः किशोरवय बालक-बालिकाओं में मादक पदार्थो का सेवन आज एक बढ़ी समस्या एवं अभिशाप बन चुका है, भोलेपन एवं नासमझी के कारण गांजा, चरस, कोकीन, एवं अन्य नशीले पदार्थो का सेवन प्रारंम्भ कर देते है, एक बार लत लगने के बाद इससे उबरने में काफी समय लग जाता है। मनोवैज्ञानिक अध्ययनों से साबित हो चुका है, कि मादक पदार्थो के सेवन से इनमें सामाजिक, आर्थिक, नैतिक एवं शैक्षिक पतन होता चला जाता है।

6. बालश्रम - 13 से 19 वर्ष की आयु के किषोर मजदूरी करते पाये जाते है, इसके सामाजिक एवं आर्थिक परिणाम काफी गहरे है। बचपन में काम पर लगना सामाजिक बुराई तो है ही शारीरिक वृद्धि एवं विकास पर भी बुरा असर पडता है, बच्चे शिक्षा से वंचित होने के साथ-साथ इसका प्रभाव नागरिकता से जुडी जिम्मेदारी एवं कर्तव्यों पर पड़ता है बाल-श्रम के कारण ही जनसंख्या विस्फोट, पारिवारिक आमदनी का गिरता स्तर, निरक्षरता आदि प्रभावित होते है।

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