प्राकृतिक आपदा के प्रकार, प्राकृतिक संकट और प्राकृतिक आपदा में क्या अंतर है?

मानव पर दुष्प्रभाव डालने वाले प्राकृतिक परिवर्तनों को प्राकृतिक आपदाएं है। 

प्राकृतिक आपदा के प्रकार

1. भूकम्प - भूकंप आकस्मिक पर्यावरणीय अपदा है, जिसके सामने मानव की समस्त शक्तियाँ व्यर्थ हैं। भूकंप पृथ्वी की आन्तरिक चट्टानों में तनाव के कारण प्रकट होता है जिसका अनुमान लगाना आज भी सम्भव नहीं है। भूकंप के झटके कुछ ही क्षणों में हजारों लोगों को काल-कवलित कर देते हैं।

2. सुनामी - भूकंप के प्रभाव से महासागरों में उत्पन्न होने वाली ऊँची-ऊँची विशाल लहरों को सुनामी कहा जाता हैं। ये लहरें समुद्र की सतह के नीचे किसी भूकंप या ज्वालामुखी विस्फोट या समुद्री नितल की चट्टानों के खिसकने जैसे भूगर्भिक उथल-पुथल के कारण भी उत्पन्न होती हैं। इन लहरों के साथ जल की गति गहराई तक होती है जिससे ये बहुत प्रबल एवं विनाशकारी होती हैं। जब ये लहरें छिछले सागरीय जलीय भाग, सँकरे सागरीय जल या खाड़ी में तथा तटों के समीप ऊँचाई में वृद्धि हो जाती है, इसलिए अपने पहुँचने के स्थान पर भारी तबाही मचा देती है।

3. ज्वालामुखी - ज्वालामुखी एक विनाशकारी प्राकृतिक आपदा है। भूकम्प के समान ही ज्वालामुखी की घटना इतनी शीघ्र एवं आकस्मिक रूप से घटती है कि धरातल पर इसका विनाशकारी प्रभाव तत्काल दिखाई देता है। ज्वालामुखी में बहुत ऊँचे तापमान पर आग की लपटों की भाँति दहकते ठोस व गैसीय पदार्थ तेजी से धरातल की ओर फेंक दिए जाते हैं। इसी कारण यह दूर से आग फेंकने वाली घटना जैसी दिखाई देती है। ज्वालामुखी से निकले पदार्थों में पिघला हुआ लावा, ठोस शिलाखण्ड, अनेक प्रकार की जलती हुई गैसें, धूल, राख एवं भारी मात्रा मंे जलवाष्प होते हैं। यह तेजी से प्रायः ऊँचे दबाव पर या कम दबाव पर बाहर आती हैं और कुछ ही घण्टों में प्रलय का सादृश्य उपस्थित कर देती हैं।
4. भूस्खलन - जब चट्टानें प्राकृतिक या मानवीय कारणों से चटक जाती हैं तो गुरूत्व बल से धराशायी हो जाती हैं जिसे भू.स्खलन कहते हैं। ऐसी घटना अधिकतर पहाड़ी क्षेत्रों में घटित होती हैं। भू.स्खलन के मलबे से गाँव और शहर उजड़ जाते हैं, सड़कें और बाँध टूट जाते हैं तथा विस्तृत क्षेत्र में पारिस्थितिक व्यवधान उत्पन्न हो जाते हैं।

5. सूखा - वर्षा न होने से सूखा की स्थिति प्रकट होती है जिससे वनस्पतियाँ सूख जाती है। और प्राणियों के लिए पेयजल की कमी हो जाती है। यह स्थिति भीषण अकाल का कारण बन जाती है। भारत में प्रति वर्ष किसी न किसी क्षेत्र में सूखा या अनावृष्टि पड़ता रहता हैं। जिस प्रकार जुलाई 2009 मानसून की अल्पदृष्टि के कारण बहुत बड़े भाग में सूखा पड़ गया हैं।

6. बाढ़ - बाढ़ प्राकृतिक आपदाओं में सबसे अधिक विश्वव्यापी हैं जब वर्षा जल अपने प्रवाह मार्ग (नदी-नाला) से स्खलित न होकर आस-पास के क्षेत्रों पर फैल जाता है तो उसे बाढ़ कहा जाता है।

7. चक्रवात - चक्रवात अत्यंत निम्नवायुदाब का लगभग वृत्ताकार केंद्र हैं। जिसमें चक्कर दार पवन प्रचंड वेग से चलती हैं तथा मूसलाधार वर्षा करती हैं। एक अनुमान के अनुसार एक पूर्ण विकसित चक्रवात मात्र एक घंटे में 3 अरब 50 करोड़ टन कोष्ण आर्द्र वायु को निम्न अक्षांशों में स्थानान्तरित कर देता हैं। 

8. भूमि क्षरण - भूमि क्षरण या मृदा क्षरण एक ऐसी प्राकृतिक आपदा है जो उपजाऊ भूमि को बाँझ बना देती है। जब धरातल की मिट्टी किसी भी साधन से स्थानान्तरित कर दी जाती है तो उसे भूमि क्षरण कहा जाता है।

9. तूफान और चक्रवात - प्राकृतिक आपदाओं में तूफान और चक्रवात भी बड़े पैमाने पर जान-माल का नुकसान करते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका का टोरनेडो, पश्चिमी द्वीप समूह का हरिकेन और द.पू. एशिया का टाइफून क्षण में विनाश का ताण्डव उपस्थित करते हैं। भारत में चक्रवातों प्रभाव से उत्पन्न समुद्री तूफान तटवर्ती प्रदेशों में प्रलय का दृश्य उपस्थित कर देता है। 1964 में मिदिनापुर चक्रवात के कारण 80 हजार और मछलीपट्टम चक्रवात के कारण 40 हजार लोग काल-कवलित हुए। 

10.  बीमारियाँ और महामारियाँ - प्राकृतिक आपदाओं में पर्यावरणीय कारणों से उत्पन्न बीमारियाँ और महामारियाँ कभी-कभी भयावह रूप ले लेती है। मनुष्य सहित अन्य प्राणी और वनस्पतियाँ पर्यावरण के व्यतिक्रम से ऐसी बीमारियों के चपेट में आ जाती हैं जिससे उनके शरीर की प्रतिरोधक शक्ति ;।दजप.इवकलद्ध नियन्त्रित नहीं कर पाती।

प्राकृतिक आपदा तथा संकट में अन्तर 

प्राकृतिक आपदाओं तथा संकटों में बहुत कम अन्तर है। इनका एक-दूसरे के साथ गहरा सम्बन्ध है । फिर भी इनमें अन्तर स्पष्ट करना अनिवार्य है। प्राकृतिक संकट, पर्यावरण में हालात के वे तत्व है जिनसे जन-धन को नुकसान पहुँचाने की सम्भावना होती है। जबकि आपदाएं बड़े पैमाने पर जन-धन की हानि तथा सामाजिक व आर्थिक व्यवस्था ठप्प हो जाती है।

Post a Comment

Previous Post Next Post