रोगी और निरोगी व्यक्ति के बीच कैसे अन्तर कर सकते है हम किस व्यक्ति को रोगी व्यक्ति कह सकते हैं

रोगी और निरोगी व्यक्ति के बीच कैसे अन्तर कर सकते है अर्थात हम किस व्यक्ति को रोगी व्यक्ति कह सकते हैं और किस व्यक्ति को निरोगी व्यक्ति कह सकते हैं। शारीरिक रोग, मानसिक रोग एवं आध्यात्मिक रोगों के विषय में जानने के उपरान्त अब यह जानना भी अनिवार्य हो जाता है कि इन रोगों से ग्रस्त व्यक्ति के लक्षण क्या क्या होते हैं और किन लक्षणों के आधार पर हम किसी मनुष्य को रोगी और निरोगी सिद्ध कर सकते हैं।

शारीरिक रोगी व्यक्ति के लक्षण

आधुनिक चिकित्सा विज्ञान मानव शरीर को ग्यारह तंत्रों में विभाजित करता है, इन ग्यारह तंत्रों का सुव्यवस्थित रुप में कार्य करना ही शारीरिक स्वास्थ्य है अर्थात इन तंत्रों का भली भांति कार्य करना शारीरिक स्वस्थ व्यक्ति के लक्षण हैं जबकि इन तंत्रों में विकार उत्पन्न होना शारीरिक रोगी व्यक्ति के लक्षण है। मानव शरीर के तंत्रों के आधार पर शारीरिक रोगी व्यक्ति के लक्षण इस प्रकार हैं-

1. पाचन तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण : समय पर ठीक तरह से भूख नहीं लगना, ग्रहण किए गये भोजन का ठीक प्रकार से पाचन नहीं होना तथा मल पदार्थों का शरीर से ठीक प्रकार से निष्कासन नहीं होना पाचन तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण हैं। इसके अन्र्तगत भोजन ग्रहण करने के उपरान्त पेट में भारीपन रहना, खट्टी डकारें आना, गैस बनना आदि लक्षणों का वर्णन भी आता है। 

2. श्वसन तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण : श्वास- प्रश्वास की क्रिया में कठिनाई उत्पन्न होना श्वसन तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण हैं। इसके अन्र्तगत श्वास नलिका में जकडन, कफ की अधिकता, गले में टँासिल्स, खांसी एवं जुकाम आदि लक्षणों का वर्णन आता है। 

3. उत्सर्जन तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण : शरीर की उत्र्सजन क्र्रिया में बाधा होना उत्र्सजन तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण हैं। शरीर से मूत्र के रुप में उत्सर्जी पदार्थो की सही मात्रा निष्कासित नही होने की अवस्था उत्सर्जन तंत्र रोगी व्यक्ति के लक्षण हैं। वक्क में सूजन, जलन, भारीपन व बहुमूत्र आदि लक्षण व्यक्ति को रोगी की श्रेणी में रखते हैं। 

4. अस्थि तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण : शरीर को आकृति एवं ढँाचा प्रदान करने वाली अस्थियों एवं उपास्थियों में विकृति उत्पन्न होना अथवा किसी दुर्घटना आदि के कारण अस्थियों का टूट जाना अस्थि तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण है। शरीर की लम्बाई ठीक नही होना भी अस्थि तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण हैं। 

5. पेषिय तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण : शरीर के जोडों में सूजन, दर्द एवं जकडन पेशिय तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण हैं। कमर दर्द, गर्दन दर्द, हाथों-पैरों में दर्द, चलने में कठिनाई एवं लिगामेंटस में खिचाव व दर्द का सम्बन्ध पेशिय तंत्र के साथ है तथा ये लक्षण पेशिय तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण हैं। 

6. अध्यावरणीय तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण : त्वचा में अधिक लालीपन, खुजली, जलन, दाने, फोडे फुसीं आदि लक्षण अध्यावरणीय तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण हैं। 

7. रक्त परिसंचसण तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण : रक्त में स्थित लाल रक्त कणों, श्वेत रक्त कणों व प्लेटलेट्स की संख्या सामान्य से कम अथवा अधिक होना रक्त परिसंचरण तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण हैं। हृदय का रोगग्रस्त होना एवं रक्तवाहीनियों में रक्त का सामान्य से कम अथवा अधिक दबाव से परिभ्रमण करना रक्त परिसंचसण तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण है। 

8. अन्त:स्रावी तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण : शरीर में स्थित अन्त:स्रावी ग्रन्थियों के स्रावों का अव्यवस्थित रुप से स्रावित होना अन्त:स्रावी तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण है। शरीर की चयापचय दर का असन्तुलित होना, बौनापन, बाँझपन, थायराइड, मधुमेह तथा अनिन्द्रा आदि लक्षणों का सम्बन्ध अन्त:स्रावी तंत्र के साथ है। 

9. प्रतिरक्षा तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण : जुकाम होना, एलर्जी होनी, बुखार होना, टाँसिल्स बढना व उल्टी-दस्त आदि संक्रामक रोगों का बार-बार होना एवं जल्दी से ठीक नही होना प्रतिरक्षा तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण है। 

10. तंत्रिका तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण : शरीर की नस-नाडियों पर नियंत्रण का अभाव, दुर्बल स्मरण “ाक्ति, हाथों-पैरों में कम्पन्न व शरीर के अंगों में सुन्नपन रहना अथवा चिटियों के रेंगनें जैसी अनुभूति होना तंत्रिका तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण है।

11. प्रजनन तंत्र के रोग : पुरुषों में पुरुषत्व का अभाव एवं नारियों में नारीत्व का अभाव प्रजनन तंत्र के रोगी व्यक्ति के लक्षण है।

मानसिक रोगी व्यक्ति के लक्षण

शारीरिक रोग के अतिरिक्त मानसिक रोग से ग्रस्त व्यक्ति कहीं अधिक कष्टों को प्राप्त होता है। एक मानसिक रोगी व्यक्ति कहीं पर भी सुख एवं चैन प्राप्त नही कर पाता है। मानसिक रोग से ग्रस्त हाने का प्रभाव शरीर पर भी पडता है तथा इसके परिणाम स्वरुप शारीरिक रोग भी जन्म लेने लगते है। एक मानसिक रोगी व्यक्ति के अन्दर लक्षण प्रकट होते हैं-

1. मानसिक ऊर्जा में असामान्य रुप से वृद्धि होने के परिणाम स्वरुप मानसिक तनाव, उद्विग्नता, को्रध, ईष्या एवं बैचेनी आदि लक्षणों का प्रकट होना एक मानसिक रोगी व्यक्ति के लक्षण हैं। कुछ अवस्थओं में इसके शरीर में सुक्ष्म कम्पन्न भी होने लगता है। इस व्यक्ति की नींद बहुत कम हो जाती है तथा वह प्रतिक्षण उत्तेजना से ग्रस्त रहता है। 

2. मानसिक ऊर्जा में असामान्य रुप से कमी होने के परिणाम स्वरुप मानसिक अवसाद, निराशा, शोक, मूढता एवं घबराहट आदि लक्षणों का प्रकट होना एक मानसिक रोगी व्यक्ति के लक्षण हैं। इस व्यक्ति के शरीर में आलस्य, भारीपन, कार्यों में अरुचि एवं अतिनिन्द्रा आदि लक्षण प्रकट होते हैं। 

3. मानसिक स्तर पर सांवेगिक अस्थिरता मानसिक रोगी व्यक्ति के लक्षण हैं। छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करना, दूसरों के साथ झगडा करना, समय पर कार्य नही करना, अनुशासन को नही अपनाना, धैर्य की कमी होना, सही एवं गलत का निर्णय ठीक प्रकार से नही कर पाना अर्थात बु़िद्धमत्ता का अभाव होना तथा गलत दिनचर्या को अपनाते हुए विकृत आहार विहार का सेवन करना मानसिक रोगी व्यक्ति के लक्षण हैं। 

4. अपने आसपास के वातावरण, परिवार एवं समाज के अन्य व्यिक्यों के साथ सामन्जस्य का अभाव होना एक मानसिक रोगी व्यक्ति के लक्षण हैं। ऐसे मानसिक रोगी व्यक्ति का स्वभाव चिडचिढा रहता है तथा वह अन्य व्यक्तियों के साथ अच्छे सम्बन्ध नही बना पाता है।

आध्यात्मिक रोगी व्यक्ति के लक्षण

शरीर एवं मन का संचालन आत्मा से होता है, इस आत्मा में ऊर्जा (आध्यात्मिक ऊर्जा) के असन्तुलन की अवस्था में आध्यात्मिक रोग उत्पन्न होते हैं। एक आध्यात्मिक रोगी व्यक्ति के लक्षण होते हैं-
  1. ईश्वर के प्रति नास्तिकता के भाव रखते हुए स्वंम को पूजा-पाठ, हवन, यज्ञ, प्रार्थना आदि कर्मकाण्डों एवं सत्कार्यों से दूर कर लेना एवं स्वंम को बुरे रास्ते पर बुराईयों के साथ जोडकर अपना जीवन यापन करना एक आध्यात्मिक रोगी व्यक्ति के लक्षण हैं। 
  2. शारीरिक एवं मानसिक कार्यो पर नियंत्रण का अभाव होना एक आध्यात्मिक रोगी व्यक्ति का सबसे प्रमुख लक्षण है। इस व्यक्ति को अपने द्वारा किए जाने वाले कार्यों का भलि भांति ज्ञान अथवा अनुभूति नही होती है। ऐसा व्यक्ति स्वंम में ही खोया-खोया सा रहता है एवं दूसरों के साथ अपने दुख, पीड़ा अथवा कष्टों को नही बांटता हैं। 
  3. किसी भी छोटे-बडे दुख अथवा समस्या के आने स्वमं को दुख एवं पीडा में डूबा अनुभव करना तथा हीनता के भावों से ग्रस्त होकर जीवन के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण को अपना लेना आध्यात्मिक रोगी व्यक्ति के लक्षण हैं। 
  4. जीवन में प्रेम, विनम्रता, परिश्रम, ईमानदारी, उत्साह, उमंग, हर्ष, उल्लास एवं सकारात्मक भावों के स्थान पर घृणा, द्वेष, शोक, निराशा, हताशा, चिन्ता एवं नकारात्मक भावों को अपनाते हुए नीरस रुप में जीवनयापन करना आध्यात्मिक रोगी व्यक्ति के लक्षण हैं। 
  5. कभी भी दूसरों के काम नही आना तथा दूसरों के जीवन व कार्यों में व्यवधान उत्पन्न करना एक आध्यात्मिक रोगी व्यक्ति के लक्षण हैं।

निरोगी व्यक्ति के लक्षण

आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के अनुसार मानव शरीर के सभी तंत्रों का सुव्यवस्थित रुप में अपने कार्यों को करना एक शारीरिक निरोगी व्यक्ति के लक्षण है अर्थात वह व्यक्ति जिसके शरीर के सभी तंत्र अपने कार्यों को भलि भांति सम्पादित कर रहे हैं, एक शारीरिक निरोगी व्यक्ति है। 

इसके साथ- साथ कुछ लक्षणों को भी शारीरिक निरोगी व्यक्ति के लक्षणों के रुप में देखा जाता है-
  1. सही समय पर अच्छी प्रकार से भूख लगनी चाहिए। 
  2. ग्रहण किए भोजन का भलि प्रकार पाचन होना चाहिए। 
  3. समय पर पेट साफ (शौच) होना चाहिए। 
  4. मुख से दुर्गन्ध नही आनी चाहिए तथा शुद्ध डकार आनी चाहिए। 
  5. अपान वायु शब्द एवं दुर्गन्ध रहित होनी चाहिए।

1. मानसिक निरोगी व्यक्ति के लक्षण

मन में सकारात्मक ऊर्जा की पूर्णता एक मानसिक निरोगी व्यक्ति की पहचान है। इस ऊर्जा की प्रबलता के परिणामस्वरुप वह व्यक्ति सुव्यवस्थित दिनचर्या का पालन करता है। इस व्यक्ति में मानसिक स्थिरता पायी जाती है। इस मानसिक स्थिरता के कारण उसके शारीरिक एवं मानसिक कार्यों में समता पायी जाती है, ऐसा व्यक्ति सुख-दुख, लाभ-हानि, मान-अपमान, जय-पराजय आदि द्वन्दों एवं जीवन की विषम परिस्थितियों को सम भाव से सहन करता हुआ इनका सामना सहजता एवं सरलता के साथ करता है। एक मानसिक निरोगी व्यक्ति अपने जीवन में नकारात्मकता को स्थान नही देता है अपितु वह सकारात्मक दृष्टिकोण को अपनाता है। 

कुछ निम्न लिखित लक्षणों के आधार पर हम किसी व्यक्ति को मानसिक निरोगी व्यक्ति का श्रेणी में रख सकते हैं-
  1. मन में सकारात्मकता एवं प्रसन्नता के भावों का होना मानसिक निरोगी व्यक्ति के लक्षण हैं। ऐसे व्यक्ति में सन्मार्ग एवं कुमार्ग में अन्तर करने ही क्षमता विकसित रुप में पायी जाती है तथा यह व्यक्ति सदैव सन्मार्ग का चयन करता हुआ अपने जीवन में सत्कार्यों को हर्षोंल्लास के साथ करता है।
  2. स्वंम पर नियंत्रण रखते हुए मानसिक स्तर पर सांवेगिक स्थिरता के भाव मानसिक निरोगी व्यक्ति के लक्षण हैं। अपने समस्त कार्यों को बुद्धिपूर्ण ढगं से करने के साथ साथ अनुशासन को अपनाना तथा प्रात: काल से लेकर रात्रिकाल तक सुनिश्चित दिनचर्या का पालन करना एक मानसिक निरोगी व्यक्ति के लक्षण हैं। निश्चित समय पर जागरण एवं निश्चित समय पर शयन के साथ साथ शुद्ध सात्विक आहार विहार करना एक मानसिक निरोगी व्यक्ति के लक्षण हैं।
  3. जीवन की कठिन तथा प्रतिकूल परिस्थितियों में दूसरों पर गुस्सा करने के स्थान पर धैर्य के साथ अर्थात स्थिर मनोभाव के साथ उस कठिन उवं प्रतिकूल परिस्थिति का सामना करना मानसिक निरोगी व्यक्ति के लक्षण हैं। 
  4. मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है तथा मनुष्य का अपने आसपास के वातावरण, परिवार एवं समाज के अन्य व्यिक्यों के साथ अच्छा आपसी तालमेल होना एक मानसिक निरोगी व्यक्ति का लक्षण हैं। एक मानसिक निरोगी व्यक्ति अत्यन्त संवेदनशीलता के साथ व्यवहार करता हुआ दूसरों के सुख-दुख को बाटंता है। वह अन्य व्यक्तियों के साथ श्रेष्ठता, शालीनता, सभ्यता एवं शिष्टाचार का व्यवहार करता है इस कारण उसकी आस पास के लोगों से घनिष्टता पायी जाती है अर्थात व्यवहार में सामाजिकता, शालीनता, सभ्यता व श्रेष्ठता आदि गुणों का होना एक मानसिक निरोगी व्यक्ति के लक्षण हैं।

2. आध्यात्मिक निरोगी व्यक्ति के लक्षण

जिस प्रकार पौष्टिक भोजन शरीर को पोषण प्रदान करता है, सद्विचार मन को ऊर्जा प्रदान करते हैं, ठीक इसी प्रकार सत्कार्य आत्मा को बल (आत्मबल) प्रदान करते है। अपने जीवन में सत्कार्य करने वाला व्यक्ति उच्च आत्मबल को प्राप्त करता हुआ आध्यात्मिक स्तर पर निरोगी जीवन यापन करता है। एक आध्यात्मिक निरोगी व्यक्ति के लक्षण होते हैं-
  1. एक आध्यात्मिक निरोगी व्यक्ति ईश्वर में पूर्ण निष्ठा रखते हुए स्वंम को निमित्त मात्र मानकर अपने समस्त कार्यों को ईश्वर को समर्र्पित करते हुए करता है अर्थात वह अपने जीवन को ईश्वर समर्पण के भावों से युक्त होकर जीता है। 
  2. एक आध्यात्मिक निरोगी व्यक्ति हवन, सन्धा, पूजा-पाठ, दान-दक्षिणा आदि कार्यों को पूर्ण निष्ठा के साथ करता है। वह जीवन में सत्कार्यों एवं परोपकार को स्थान देता हुआ दूसरो के दुखों, कष्टों व पीडाओं को दूर करने के लिए प्रयासरत रहता है। 
  3. एक आध्यात्मिक निरोगी व्यक्ति सुख, शान्ति एवं आनन्द के साथ सुव्यवस्थित रुप में अपना जीवन यापन करता है। वह अपने प्रत्येक कार्य शुभ संकल्प से प्ररित होकर सुव्यवस्थित रुप से करता है। 
  4. एक आध्यात्मिक निरोगी व्यक्ति की समस्त शारीरिक एवं मानसिक क्रियाएं सुव्यवस्थित होती हैं। इसका अपने शरीर एवं मन पर पूर्ण नियंत्रण रहता है। 
  5. एक आध्यात्मिक निरोगी व्यक्ति अहिंसा, सत्य, आदि योगांगों का पालन करता हुआ स्थिर मनोभाव से ब्रम में लीन रहता है, वह स्वर्ण तथा लौह में समान दृष्टि (समभाव) रखता है। 
  6. ऐसा व्यक्ति उच्च आत्मबल एवं बहुमखी व्यक्तित्व का धनी होता है। इसके कार्यों में दिव्यता पायी जाती है। वह स्वार्थ एवं संर्कीणता की भावना से उपर उठकर अपने जीवन को आर्दश रुप में जीते हुए समाज में प्रेरणा का स्रोत बनता है।
एक रोगी व्यक्ति शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक स्तर पर अपने सामान्य कार्यों को भली- भांति नही कर पाता है अर्थात उस व्यक्ति के शारीरिक कार्य जैसे भोजन का पाचन, श्वसन, उत्र्सजन व रक्त परिभ्रमण आदि कार्य अव्यवस्थित हो जाते हैं। मानसिक स्तर पर उसे निरसता, उदासी, तनाव, क्रोध, ईष्या, घबराहट एवं बैचेनी आदि उद्वेगों की अनुभूति होने लगती है। आध्यात्मिक स्तर पर भी ऊर्जा की कमी होने पर रोगी व्यक्ति के अन्दर आत्महीनता के भाव उत्पन्न हो जाते है। 

इस प्रकार शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक कार्यों का अव्यवस्थित होना क्रमश: शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक रोगी व्यक्ति के लक्षण हैं।

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