मानसिक मंदता के कौन से कारण अथवा कारक जिम्मेदार हैं

मानसिक मंदता का संबंध वर्तमान क्रियाव्यवहार में पर्याप्त कमी से होती हैं इसमें सार्थक रूप से निम्न औसत बौद्धिक क्रिया होती है तथा निम्नांकित उपयुक्त समायोजी कौशल क्षेत्रों में दो या दो से अधिक में संबंधित कमियॉं साथ-साथ होती हैं - संचार, स्वयं की देखभाल, घरेलू जीवन, सामाजिक कुशलता, सामुदायिक उपयोगिता, दिषा-बोध, स्वास्थ्य, सुरक्षा, कार्यात्मक शिक्षा, अवकाश एवं कार्य। 

मानसिक दुर्बलता 18 साल की आयु के पहले ही अभिलक्षित होती है। ’मानसिक मंदता एक ऐसी विकृति है जिसे ऐसी बौद्धिक कार्यक्षमता एंव अनुकूलित व्यवहार से चिह्नित किया जाता है जो कि औसत से काफी निचले दर्जे का होता है।’  
  1. मानसिक दुर्बलता/मंदता से ग्रस्त व्यक्ति की बुद्धिलब्धि अवश्य ही 70 से नीचे होती है। 
  2. मानसिक मदता से ग्रस्त व्यक्ति सामान्य व्यक्तियों की तुलना में बौद्धिक दृष्टि से काफी निचले स्तर पर होता है जिसके परिणामस्वरूप वह अपने दैनिक कार्यों जैसे कि खुद की देखभाल, सुरक्षा, स्वास्थ्य, रोजमर्रा के कायोर्ं का भी निष्पादन ठीक प्रकार से नहीं कर पाता है। 
  3. इस विकृति से ग्रस्त व्यक्ति अपने सामाजिक दायित्वों का पालन करने में अक्षम होते हैं एवं इनमें परिस्थितियों से तालमेल बैठाने में अपंग साबित होते हैं। 
  4. इस तरह की मानसिक मंदता की शुरूआत 18 साल की उम्र से पूर्व ही हो जाती है।
मानसिक मंदता से ग्रस्त बच्चों को पहचानना अत्यंत ही आसान होता है क्योंकि इनमें कुछ खास विशेषताओं पायी जाती हैं। यदि हम इन विशेषताओं को जान लें तो इनके आधार पर मानसिक रूप से दुर्बल बच्चों को पहचाना जा सकता है। आइये इन विशेषताओं के बारे में जानें-
  1. ऐसे व्यक्तियों की बौद्धिक क्षमता सामान्य व्यक्तियों की तुलना में काफी निम्नस्तरीय होती है। इसमें व्यक्ति का बुद्धि स्तर उम्र के अनुसार भी सामान्य से नीचे होता हैं यही कारण है कि यह कहा जाता है कि मानसिक दुर्बलता में एक अधो-सामान्य मानसिक अवस्था की अवस्था होती है। 
  2. मानसिक दुर्बलता से ग्रस्त व्यक्तियों की समायोजन क्षमता सीमित होती है। ऐसे व्यक्तियों को दिन प्रतिदिन की परिस्थितियों में स्वयं को समायोजित करने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है क्योंकि निम्न बौद्धिक क्षमता होने के कारण ये परिस्थितियों को समझने में देर लगाते हैं। फलत: शिक्षण प्रशिक्षण द्वारा सीखने की इनकी गति भी काफी धीमी होती है। 
  3. ऐसे व्यक्तियों में समाज में स्वयं को एक सम्मानित व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत करने हेतु आवश्यक कौशलों का अभाव होता हैं। ये नैतिक मर्यादाओं मानदण्डों को भली प्रकार समझ नहीं पाते हैं फलत: नैतिक मर्यादाओं एवं सामाजिक नियमों का उल्लंघन इनसे स्वत: ही हो जाता है। 
  4. इन व्यक्तियों की संज्ञानात्मक क्षमता सीमित होती है। जिसके परिणामस्वरूप इनकी सीखने की गति धीमी होती है, समस्याओं को समझने एवं हल ढॅूंढ़ना इनके लिए अत्यंत कठिन होता है। इनकी स्मृति, अवधान, चिन्तन एवं प्रत्यक्षण साधारण लोगों की तुलना में अविकसित स्तर का होता है। फलत: इससे ग्रसित व्यक्ति की संज्ञानात्मक प्रक्रियायें मंद गति से संचालित होती हैं एवं पूर्णता तक पहुॅंच ही नहीं पाती हैं। 
  5. मानसिक मंदता से ग्रस्त व्यक्तियों की सांवेगिक बुद्धि भी सीमित होती है। ये स्वयं के साथ साथ दूसरों के संवेगों को पहचान पाने में देर लगाते हैं एवं प्राय: उपस्थित सामाजिक परिस्थिति के अनुरूप संवेग अभिव्यक्त कर पाने में असमर्थ रहते हैं।
  6. इन व्यक्तियों में सामाजिक अभिप्रेरणा की कमी पायी जाती है। ये संबंधों के बनाये रखने के प्रति उत्सक नहीं दिखलाई पड़ते हैं दूसरे शब्दों में ये संबधों को बनाये रखने के लिए जरूरी प्रेरणा को इनमें अभाव होती है। परिणामस्वरूप सामाजिक कार्यों में इनकी भागीदारी नहीं के बराबर होती है। 
  7. मानसिक दुर्बलता से ग्रस्त व्यक्तियों की बौद्धिक क्षमता न्यून होने तथा संज्ञानात्मक प्रक्रियायें धीमी होने के कारण उनकी उम्र के व्यक्तियों की तुलना में उन्हें शिक्षित करना या प्रशिक्षण प्रदान करना अत्यंत कठिन होता है फलत: ये इन चीजों में काफी पिछड़ जाते हैं एवं इन्हें रोजगार मिलने में भी कठिनाई होती है।

मानसिक मंदता के कारण

इस विकृति के विकसित होने के पीछे कौन से कारण अथवा कारक जिम्मेदार हैं। वैसे तो कारण एवं कारक कई हो सकते हैं परन्तु जो प्रमुख हैं एवं जिनकी आपको जानकारी होनी चाहिए वे महत्वपूर्ण कारक हैं। 
  1. सामाजिक-सांस्कृतिक कारक  - 
  2. सांस्कृतिक पारिवारिक कारक  - 
  3. मस्तिष्कीय क्षति - 
  4. चयापचय, पोशण एवं वर्धन में गड़बडी  - 
  5. संक्रमण होना  - 
  6. क्रोमोजोम्स संयोजन में दोश -
  7. अन्य कारण
1. सामाजिक-सांस्कृतिक कारक - समाज-सांस्कृतिक सिद्धान्त निर्माताओं के अनुसार विभिन्न सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिस्थितियॉं भी मानसिक दुर्बलता के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। कई बार सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिस्थितियों के कारण बच्चे को मिलने वाले भावनात्मक संबल एवं पोषण में कमी आ जाती है जिससे बच्चा कुंठा ग्रस्त हो जाता है एवं इस भावनात्मक वंचन से उसमें मानसिक दुर्बलता विकसित हो जाती है। उदाहरण के लिए जब किसी शिशु को बार -बार लम्बे समय तक अपने माता-पिता के सानिध्य एवं स्नेह से वंचित रहना पड़ता है तो इससे उस शिषु में मानसिक दुर्बलता पनप जाती है। 

इसके कई कारण हो सकते हैं जैसे किए माता-पिता का विवाह विच्छेद, अकाल मृत्यु या विलगाव, निम्न सामाजिक एवं आर्थिक स्तर, एक ही कमरे में घर के सभी सदस्यों का रहना जिससे शिषु को आवश्यक स्वतंत्रता न मिल पाना आदि। ऐसे परिवारों से संबंधित बच्चे जब विद्यालय जाते हैं ता उन्हें उनकी चाल-ढाल, वेश-भूशा एवं बोलने-चालने के ढंग के आधार पर लोग एवं शिक्षक भी मानसिक रूप से दुर्बल समझकर उनके साथ दयापूर्ण व्यवहार करते हैं। परिणामस्वरूप उनकी मानसिक दुर्बलता प्रत्यक्ष हो जाती है एवं और भी तेजी से बढ़ती है।

2. सांस्कृतिक पारिवारिक कारक - मनोवैज्ञानिकों ने पाया है कि जब परिवार गरीब होता है तो कम-से-कम 57 प्रतिशत बच्चे मानसिक रूप से अवश्य ही दुर्बल हो जाते हैं। अब प्रष्न उठता है कि आखिर ऐसा क्यों होता है? इसका उत्तर यह है कि मानसिक दुर्बलता का सैद्धान्तिक रूप से गरीबी से कोई भी संबंध नहीं है, परन्तु यदि दुर्भाग्यवश किसी गरीबी से अभिशप्त परिवार में कोई बच्चा ऐसा आ जाता है जिसमें बौद्धिक उत्तेजना की कमी होती है, तब उसे आवश्यक देखभाल पर्याप्त स्तर पर प्राप्त नहीं हो पाती है। क्योंकि गरीबी के कारण बच्चे के माता-पिता भी प्राय: अशिक्षित होते हैं एवं पहले तो वे अपने बच्चे की इस बौद्धिक उत्तेजन की कमी को समझ ही नहीं पाते हैं तथा बच्चे की प्रत्येक गलती के लिए उसे डांटते फटकारते हैं इससे बच्चे में भय की भावना पैदा हो जाती है और मानसिक दुर्बलता के विकसित होने की गति बढ़ जाती है। 

दूसरा यह कि यदि वे समझ भी जाते हैं कि उनके बच्चे में यह कमी है तो वे उसे पर्याप्त उपचार उपलब्ध नहीं करा पाते हैं। उन्हें अपने जीवन यापन की जरूरी आवश्यकताओं की पूर्ति में भी परेशानी होती है ऐसे में बच्चे की विशिष्ट उपचार संबंधी जरूरते वे पूरी नहीं कर पाते हैं। ऐसे बच्चों विशिष्ट प्रशिक्षण की आवश्यकता के साथ साथ सामाजिक एवं सांस्कृतिक समर्थन की भी जरूरत होती है। 

प्राय: गरीब परिवार ऐसी सामाजिक परिस्थिति में निवास करते हैं जहॉं सर्वत्र अशिक्षा एवं कुसमायोजन का ही बोलबाला होता है ऐसे में उनके बच्चे की इस मानसिक समस्या को समझने वाले लोगों का होना बहुत मुश्किल होता है एवं लोग भी उनके बच्चे की मानसिक दुर्बलता को समझ नहीं पाते हैं तथा कई बार बच्चे को अपने समुदाय अथवा मोहल्ले में रखने से इंकार भी कर देते हैं। मानसिक दुर्बलता में सांस्कृतिक कारकों का भी अपना महत्वपूर्ण योगदान होता है। विभिन्न संस्कृतियों के पालन पोषण के तरीके, रहन-सहन, खान-पान, अभिव्यक्ति की आजादी आदि का बच्चों के मानसिक दुर्बलता में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। 

उदाहरण के लिए विचारों की खुली अभिव्यक्ति वाले समाज में बच्चे की बीमारी अथवा परेशानी पर विचार-विमर्श आसानी से होता है जिससे आवश्यक जानकारी समय पर मिल जाती है एवं मदद मिलने के भी आसार बढ़ जाते हैं वहीं बंद अभिव्यक्ति वाले समाज में इसका अभाव होने से मानसिक दुर्बलता के बढ़ने की संभावना तीव्र हो जाती है।

3. मस्तिष्कीय क्षति - मस्तिष्क के आन्तरिक अंगों में क्षति अथवा विकृति को भी वैज्ञानिकों द्वारा मानसिक दुर्बलता का एक प्रमुख कारण माना गया है। मस्तिष्कीय अंगों में यह क्षति प्रसूति पूर्व अथवा प्रसूति पश्चात दोनों ही अवस्थाओं में हो सकती है। प्रसूति से पूर्व गर्भवती महिला को जिन परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है, यदि उसमें ऐसी अवस्थायें सम्मिलित हों जिनमें बच्चे के मस्तिष्क पर आघात लग सकता है तो इससे भी मस्तिष्कीय अंगों में क्षति के कारण मानसिक दुर्बलता उत्पन्न हो सकती है। वैज्ञानिकों के अनुसार कभी-कभी महिलाओं को प्रसूति के पूर्व किसी रोग के कारण एक्सरे परीक्षण करवाना पड़ जाता है, इस एक्सरे परीक्षण में निकलने वाली एक्स किरणें अजन्मे बच्चे के मस्तिष्क के विकसित हो रहे अंगों में क्षति उत्पन्न करने में सक्षम होती है। 

इसके अलावा महिला के पेट पर बाह्य आघात लगने से भी बच्चे के मस्तिष्क को छति पहुॅंचने की काफी संभावना होती है। प्रसूति के पश्चात भी बच्चे के मस्तिष्क पर चोट लगने से उसके अंग प्रभावित हो सकते हैं फलत: बच्चे में मानसिक मंदता अथवा बच्चा मानसिक रूप से दुर्बल हो सकता है। इसके अलावा बच्चे के मस्तिष्क में ट्यूमर हो जाने अथवा जन्म के समय सिर को पकड़ कर खींचने से भी मस्तिष्कीय अंगों पर अनावश्यक दबाव पड़ने से भी मानसिक मंदता उत्पन्न हो सकती है।

4. चयापचय, पोशण एवं वर्धन में गड़बडी - वैज्ञानिक शरीर की चयापचय, पोशण एवं वर्धन की प्रक्रिया में गड़बड़ी को भी बच्चों में मानसिक दुर्बलता विकसित होने का प्रमुख कारण मानते हैं। जब बच्चों को उनके शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए जरूरी तत्व, जैसे प्रोटीन,, आदि उचित मात्रा में प्राप्त नहीं होते तथा उनका चयापचय ठीक प्रकार से नहीं होता है तो कई प्रकार की मानसिक दुर्बलतायें उत्पन्न हो जाती हैं। जैसे कि PKU जैसी मानसिक दुर्बलता का कारण प्रोटीन चयापचय में गड़बड़ी होती है, तथा टे-सैक (Tay-Sach's) जैसी मानसिक दुर्बलता का कारण वसा चयापचय (fat metabolism) ठीक से नहीं हो पाना होता है। इसके अलावा थाइराइड ग्रंथि के स्राव में कमी से हाइपोथाइरोइडिज्म जैसी मानसिक दुर्बलता उत्पन्न होती है। 

इन प्रमाणों के प्रकाश में कहा जा सकता है कि मानसिक मंदता का एक प्रमुख कारण चयापचय, वर्द्धन एवं आहार की अनुपयुक्तता भी है।

5. संक्रमण होना - संक्रमण को भी मानसिक दुर्बलता के उत्पन्न होने के पीछे एक प्रमुख कारक माना गया है। जब बच्चा जन्म के तुरंत पश्चात किसी प्रकार के संक्रमण का शिकार हो जाता है तो उससे बालक के तीव्र गति से विकसित हो रहे मस्तिष्क का वर्धन प्रभावित होता है एवं उसका विकास अवरूद्ध हो जाता हैै। इसी प्रकार जन्म से पूर्व मॉं के गर्भ में ही यदि किसी प्रकार का गंभीर संक्रमण बच्चे को हो जाता है तो उससे भी गर्भ के अन्दर ही बच्चे के मस्तिष्क का विकास प्रभावित होता है। परिणामत: बच्चे के मस्तिष्क की विकास दर मंद पड़ जाती है। 

मनोवैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में पाया है कि जिन गर्भवती माताओं को गर्भ धारण करने से प्रथम तीन महीनों में रूबेला (rubella) या खसरा (measels) जैसा संक्रामक रोग हो जाता है, उनके शिशुओं में जन्म के बाद मानसिक दुर्बलता के लक्षण दिखलाई पड़ते हैं (अरूण कुमार सिंह, 2005)। 

इसके अलावा गर्भावस्था में कभी-कभी अन्य संक्रामक रोग जैसे साइटोमेगालिक रोग से माताए प्रभावित हो जाती हैं? जिससे रोग के वायरस भ्रूण को प्रभावित कर देते हैं और उससे ऐसे शिशुओं में बाद में मानसिक मंदता विकसित हो जाती है।

6. क्रोमोजोम्स संयोजन में दोष - प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक अरूण कुमार सिंह अपनी पुस्तक आधुनिक असामान्य मनोविज्ञान में लिखते हैां कि सामान्यत: एक सामान्य व्यक्ति में क्रोमोजोम्स की संख्या 46 अर्थात् 23 युग्म होते हैं। मानसिक दुर्बलता के कुछ नैदानिक प्रकारों से जो प्रमाण मिले हैं उनसे यह स्पष्ट हुआ है कि ऐसे प्रकारों में स कुछ में क्रोमोजोम्स की संख्या 46 से अधिक होती है तथा कुछ में इसकी संख्या 46 से कम होती है। जैसे - डाउन संलक्षण में क्रोमोजोम्स की संख्या 47 होती है। उसी तरह से क्लाइनेफिल्टर संलक्षण में क्रोमोजेम्स की संख्या 47 ही होती है परन्तु टर्नर संलक्षण में क्रोमोजोम्स की संख्या 45 ही होती हैं इन सब तथ्यों से स्पष्ट होता है कि मानसिक दुर्बलता का कारण क्रोमोजोम्स में रचना संबंधी दोष होते हैं।

7. अन्य कारण - उपरोक्त कारणों के अलावा कुछ अन्य कारणों के संबंध में भी अनुसंधानकर्ताओं को प्रमाण मिले हैं। अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार जब मातायें अपनी गर्भावस्था के दिनों में कुछ विशेष दवाइयों को सेवन करती हैं इससे गर्भ में पल रहे बच्चे की मानसिक दशा प्रभावित होती है और उसमें मानसिक मंदता उत्पन्न हो जाती है। इसके अलावा गर्भावस्था के दौरान जो मॉंएं शराब, कोकेन, तम्बाकू, मारीजुआना, कुनैन, लेड, आर्सेनिक, कार्बन मोनोऑक्साइड के संपर्क में आती हैं या सेवन करती हैं उससे उत्पन्न नशे से प्राय: शिशुओं में मानसिक दुर्बलता उत्पन्न हो जाती है। वैसे द्रव्य जो प्लेसेन्टा को पार करके गर्भस्थ शिशु को क्षति पहुॅंचाते हैं को टेराटोजेन्स कहा जाता है। 

फ्रासिया एवं उनके सहयोगियों के अनुसार कोकेन, तम्बाकू तथा मारिजुआना तीन महत्वपूर्ण टीरैटोजेन्स हैं जो मानसिक रूप से गर्भस्थ शिशु को कमजोर करते हैं। जन्म के बाद भी जब बच्चे किसी तरह से सालिसाइलेट, लेड तथा अन्य कीटनाशक पदार्थ को किसी न किसी रूप में ग्रहण कर लेता है तो इससे भी ऐसे बालकों में मानसिक मंदता के लक्षण दिखलाई पड़ने लगते हैं।

मानसिक मंदता के प्रकार

मानसिक मंदता की कसौटियों में तीन प्रकार की कसौटियॉं प्रमुख हैं।
  1. बुद्धि लब्धि की कसौटी के आधार पर
  2. अनुकूलन क्षमता के आधार पर 
  3. नैदानिक कसौटी के आधार पर।

1. बुद्धि लब्धि की कसौटी के आधार पर 

अमेरिकन साइकियेट्रिक एसोशियेसन ने बुद्धि लब्धि के आधार पर मानसिक दुर्बलता के चार प्रकार निर्धारित किए हैं- 
  1. माइल्ड मानसिक दुर्बलता 
  2. मॉडरेट मानसिक दुर्बलता 
  3. सीवियर मानसिक दुर्बलता
  4. प्रोफाउण्ड मानसिक दुर्बलता ।
1. माइल्ड मानसिक दुर्बलता (mild mental retardation)- इस प्रकार के अन्तर्गत आने वाले व्यक्तियों का बुद्धि लब्धि स्तर 52 से 67 के बीच होता है। तथा इस बुद्धि लब्धि में वयस्कावस्था में भी कोई बदलाव नहीं आता है। यदि इनकी सामान्य लोगों से तुलना करें तो इनकी बुद्धि लब्धि 9 से 11 वर्श के बालकों की बुद्धि लब्धि के समान होती है। बुद्धि लब्धि में कमी के अलावा इनमें किसी प्रकार की मस्तिश्कीय विकृति नहीं पायी जाती है एवं न ही किसी प्रकार की दैहिक विसंगति ही इनमें होती है। इनकी समायोजन क्षमता किषोरों की समायोजन क्षमता के समतुल्य होती है जिसे कि माता-पिता अथवा शिक्षकों के सहयोग विषेश प्रशिक्षण प्रदान कर बढ़ाया जा सकता है। इन्हें जीविका चलाने हेतु कुछ व्यावसायिक कौशल भी सिखाये जा सकते हैंं। 

2. मॉडरेट मानसिक दुर्बलता (moderate mental retardation)-इस प्रकार के व्यक्तियों में बुद्धि लब्धि का स्तर 35 से 51 के बीच होता है। माइल्ड मानसिक दुर्बलता के रोगियों से इनकी स्थिति कहीं ज्यादा चिंतनीय होती है। यदि इनकी सामान्य लोगों से तुलना करें तो इनकी बुद्धि लब्धि 4 से 7 वर्श के बालकों के समान होती है। माइल्ड मानसिक दुर्बलता के व्यक्तियों के तुलना में इन्हें कुछ ही कौशल जैसे अक्षरज्ञान आदि ही बहुत विषेश प्रशिक्षण के आधार पर ही सिखाया जा सकता है। इनकी “ाारीरिक बनावट में भी बेडौलपन एवं कुरूपता पायी जाती है जिसकी वजह से उनके अंगों के बीच संचालन समन्वय सम्बंधी दोश पाये जाते हैं। इनमें आक्रामकता का स्तर भी बढ़ा चढ़ा होता है। 

3. सीवियर मानसिक दुर्बलता (severe mental retardation)- इस प्रकार के व्यक्तियों में बुद्धि लब्धि का स्तर 20 से 35 के बीच होता है। मॉडरेट मानसिक दुर्बलता के रोगियों से इनकी स्थिति कहीं ज्यादा चिंतनीय एवं गंभीर होती है। इन्हें आश्रित दुर्बल भी कहा जाता है क्योंकि ये स्वयं की देखभाल ठीक से नहीं कर पाते एवं दूसरों पर निर्भर रहते हैं। इनके अंगों के बीच संचालन समन्वय संबंधी दोश पाये जाने की साथ ही भाशा विकास की समस्या भी पायी जाती है। ये ठीक से बातचीत भी नहीं कर पाते हैं। इनमें इन्द्रियों की संवेदनषीलता से संबंधित कमियॉं भी पायी जाती हैं। मॉडरेट मानसिक दुर्बलता के व्यक्तियों के तुलना में इनसे कुछ करवाने के लिए विषेश रूप से प्रशिक्षिति सुपरवाइजर की उपस्थिति की अनिवार्यता होती है। 

4. प्रोफाउण्ड मानसिक दुर्बलता (profound mental retardation)-इस प्रकार के व्यक्तियों में बुद्धि लब्धि का स्तर 20 से नीचे होता है। सीवियर मानसिक दुर्बलता के रोगियों से इनकी स्थिति और भी ज्यादा चिंतनीय होती है। एक प्रकार से यह मानसिक दुर्बलता का सबसे गंभीर प्रकार है। इनकी शारीरिक बनावट में भी बेडौलपन एवं कुरूपता पायी जाती है जिसकी वजह से उनके अंगों के बीच संचालन समन्वय सम्बंधी दोश पाये जाते हैं। इन लोगों में केंद्रीय तंत्रिका तंत्र संबंधी दोश भी होते हैं। इन्हें कुछ भी सिखाया नहीं जा सकता है। ये न तो स्वयं भोजन कर पाते हैं एवं न ही वस्त्र पहन पाते हैं और न ही बाहरी खतरों से स्वयं को बचा ही सकते हैं। इन लोगों में गूगापन एवं बहरापन भी बहुतायत में पाया जाता है। इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम होती है। 

    2. अनुकूलन क्षमता के आधार पर 

    अनुकूलन क्षमता से तात्पर्य प्रशिक्षण, शिक्षा, सीखने की योग्यता आदि की मात्रा के आधार पर मानसिक दुर्बलता निर्धारण है। जिसमें सीखने, शिक्षित होने अथवा प्रशिक्षित होने की जितनी योग्यता होती है विभिन्न परिस्थितियों के अनुरूप व्यवहार करने की योग्यता भी उन्हीं में आनुपातिक रूप में होती है। इस आधार पर मानसिक दुर्बलता के तीन प्रकार बतलाये गये हैं - 
    1. प्रशिक्षित होने के अयोग्य, 
    2. प्रशिक्षित होने योग्य 
    3. शिक्षा ग्रहण करने योग्य।
    1. प्रशिक्षित होने के अयोग्य (Untrainable)- मानसिक रूप से दुर्बल व्यक्तियों की कुल संख्या के 5 प्रतिशत व्यक्ति प्रशिक्षित होने के अयोग्य होते हैं। ये अपने रोजमर्रा के कार्य जैसे भोजन करना कपड़े पहनना आदि भी स्वयं नहीं कर पाते एवं इनके लिए भी दूसरों पर निर्भर होते हैं परिणामस्वरूप इन्हें प्रशिक्षण प्रदान करने पर भी कुछ सीख नहीं पाते अतएवं इन्हें किसी भी प्रकार के प्रशिक्षण से कोई भी फायदा नहीं होता है। 

    2. प्रशिक्षित होने के योग्य (Trainable)- इस प्रकार के व्यक्तियों विषेश रूप से तैयार प्रशिक्षण कोर्स करवाकर कुछ कौशल सिखलाये जा सकते हैं ये प्रशिक्षण के योग्य होते हैं। मानसिक दुर्बल व्यक्तियों की कुल जनसंख्या का 18 से 20 प्रतिशत व्यक्ति इस श्रेणी में आते हैं। 

    3. शिक्षा ग्रहण करने योग्य (Educable)- मानसिक रूप से दुर्बल व्यक्तियों की संख्या का लगभग 75 से 80 प्रतिशत हिस्सा शिक्षा ग्रहण करने योग्य व्यक्तियों का होता है। इन्हें व्यावसायिक कौशलों के अलावा कुछ शिक्षा आदि भी प्रदान की जा सकती है। इन लोगों की विषेशता यह है कि यदि इनकी शिक्षा हेतु विषेश प्रबंध किया जाये तो ऐसे लोग सार्थक रूप से प्रषंसनीय स्तर पर शैक्षिक उपलब्धि प्राप्त कर सकने में सफल हो सकते हैं। शिक्षा के माध्यम से इनके समायोजन स्तर को भी ऊॅंचा उठाया जा सकता है। 

      3. नैदानिक कसौटी के आधार पर

      नैदानिक कसौटी से तात्पर्य होता है कि वे कसौटियॉं जिनसे मानसिक दुर्बलता का एक समस्या के रूप में विषेश रूप से निश्चित होना निर्धारित होता है। इस कसौटी पर आधारित प्रकारों में दैहिक अथवा आनुवांशिक विकृतियॉं प्रमुख रूप से बतलायी गयी हैं।

      1. डाउन्स संलक्षण (Down’s Syndrome) - इस संलक्षण का वर्णन सबसे पहले ब्रिटेन के मनोचिकित्सक लैंगडान डाउन ने उन्नीसवीं शताब्दी के नौवें दशक में किया था। इस संलक्षण से ग्रस्त व्यक्तियों की बुद्धि लब्धि 25 से 50 के मध्य होती है। इनकी मानसिक आयु 5 से 7 वर्श के बालकों के बराबर होती है। ऐसे व्यक्तियों के चेहरे की बनावट मंगोलियन जाति के लोगों से मिलता जुलता है अतएवं इनकी विकृति को मंगोलिज्म भी कहा जाता है। इनका चेहरा गोल, छोटी एवं चपटी नाक, छोटी हथेलियॉं एवं धंसी हुइ ऑंखें होती हैं। ये लोग सामाजिक समायोजन सीखने लायक होते हैं। परन्तु उच्चस्तरीय संज्ञानात्मक कौशलों को सीखना इनके लिए असंभव होता है। ये संप्रत्यों के निर्माण को समझ नहीं पाते हैं तथा समस्या समाधान की योग्यता भी इनमें कम होती है। भाशा की अभिव्यक्ति एवं इस्तेमाल में ये कमजोर होते हैं।

      2. बौनापन (Cretinism)- बौनेपन को हाईपोथाइरोडिज्म भी कहा जाता है। यह दुर्बलता थायरायड हारमोन की अत्यधिक कमी अथवा अभाव से उत्पन्न होती है। ऐसे व्यक्ति की शारीरिक लम्बाई छोटी होती है एवं ये बौने समान दीखते हैं। इनका सिर बड़ा, गर्दन मोटी, पर कंधे से सटी हुई होती है। ऑंखों की पलकें मोटी होती हैं। इनके लैंगिक विकास, संवेगात्मक विकास एवं क्रियात्मक विकास सीमित स्तर तक ही हो पाता है। इनका मांसपेषीय विकास भी धीरे-धीरे होता है। लगभग चार वर्श की आयु से पहले ऐसे बच्चे उठने, बैठने एवं चलने में असमर्थ होते हैं। इनकी बुद्धि लब्धि 25 से 75 के बीच होती है। ये प्राय: “ाांत प्रकृति के होते है, दूसरों से कम बात करते हैं तथा अन्यों के संग खेल में जिद्दीपना दिखलाते हैं। 

      3. टर्नर संलक्षण (Turner’s Syndrome)- ये संलक्षण केवल बालिकाओं में पाया जाता है। इन बालिकाओं की बुद्धि लब्धि 30 से 40 के मध्य होती है। ये दुर्बलता सेक्स क्रोमोजोम्स में गड़बड़ी की वजह से उत्पन्न होती है। ऐसी बालिकाओं में सिर्फ एक ही एक्स क्रोमोजोम पाया जाता है। क्रोमोजोन जनित गड़बड़ी की वजह से इन बालिकाओं का दैहिक आकृति भी प्रभावित होती है इनकी गर्दन छोटी एवं झुकी हुई होती है। इनका लैंगिक विकास भी अपरिपक्व ही होता है। 

      4. फेनिलकेटोन्यूरिया (Phenylketonuria or PKU)- यह विकृति प्रोटीन चयापचय में होने वाली गड़बड़ी से होती है। यह एक ऐसी मानसिक दुर्बलता है जिसमें जन्म के समय बालक सामान्य दिखाई पड़ता है। छ: से बारह महीने के दौरान उसमें मानसिक दुर्बलता के लक्षण दिखलाई पड़ने लगते हैं। प्रोटीन चयापचय की गड़बड़ी से फिनाइलालानाइन (phenylalanine) अधिक मात्रा में देह में जमा होने लगता है जिससे मष्तिष्क की कोशिकायें जर्जर हो जाती हैं और बच्चों में मानसिक मंदता पनप जाती है। 

      हाइड्रोसिफैलि (Hydrocephaly)- इस प्रकार की मानसिक दुर्बलता मस्तिष्क में सेरिब्रोस्पाइनल द्रव के अत्यधिक मात्रा में जमा हो जाने की वजह से उत्पन्न होती है। इससे मस्तिष्क का आकार सामान्य से कहीं अधिक बड़े आकार का हो जाता है। गंभीरता बढ़ने पर बच्चे के शरीर में कम्पन एवं पैरालिसिस के लक्षण भी उत्पन्न हो जाते हैं। मस्तिष्क की कोशिकायें काफी पतली हो जाती हैं फलत: मानसिक दुर्बलता या मंदता विकसित हो जाती है। वैसे तो यह जन्मजात होता है परन्तु कभी कभी कुछ वर्ष सामान्य रूप में बीतने के बाद भी यह विकसित हो सकता है।

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