मानसिक स्वास्थ्य क्या है मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति के क्या लक्षण होते हैं?

व्यक्ति के शरीर में मस्तिष्क का महत्त्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि व्यक्ति जो भी कार्य करता है वह अपने मस्तिष्क के संकेत पर या मन के अनुसार करता है। जब तक हमारा मन स्वस्थ नहीं रहता है, तब तक हम किसी भी कार्य को ठीक से नहीं कर सकते। जिन लोगों का मस्तिष्क स्वस्थ नहीं रहता वे जीवन की विभिन्न परिस्थितियों का सामना सफलतापूर्वक नहीं कर पाते, वे सदा एक प्रकार से मानसिक उलझन या परेशानी में रहते हैं। इसका कारण मानसिक दुर्बलता या किसी प्रकार का विकार होता है।

संसार में वे ही व्यक्ति भौतिक और सामाजिक परिस्थितियों में अपने को समायोजित कर पाते हैं जिनका मानसिक स्वास्थ्य अच्छा होता है। 

मानसिक स्वास्थ्य शब्द का जन्म येल विश्वविद्यालय के स्नातक क्लिफोर्ड बीयर्स की निजी जीवन की घटना से जुड़ा है, जब उन्होंने अपने घर की चौथी मंजिल से कूदकर आत्महत्या करने का असफल प्रयास किया। अपने अनुभव से उन्होंने "A Mind that found it Self " नामक पुस्तक लिखी। इस पुस्तक ने विभिन्न मनोवैज्ञानिकों को मानसिक स्वास्थ्य के संबंध में चिंतन करने पर विवश कर दिया।

मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ

मानसिक स्वास्थ्य एक मानसिक स्थिति है, जो व्यक्तित्व की सम्पूर्ण समन्वित क्रिया दर्शाती है। मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ-जब व्यक्ति किसी भी तरह की मानसिक बीमारी से मुक्त होता है तो उसे मानसिक रूप से स्वस्थ समझा जाता है और उसकी इस अवस्था को मानसिक स्वास्थ्य की संज्ञा दी जाती है।

मानसिक स्वास्थ्य की परिभाषा

मानसिक स्वास्थ्य के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों द्वारा अनेक परिभाषायें दी गई हैं। इनमें से कुछ प्रमुख परिभाषाओं को निम्न प्रकार से बतलाया गया है:

1. हैडफील्ड के मतानुसार, ‘‘सम्पूर्ण व्यक्तित्व की पूर्ण एवं सन्तुलित क्रियाशीलता को मानसिक स्वास्थ्य कहते हैं।

2. क्रो व क्रो के शब्दों में, ‘‘मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान वह विज्ञान है जिसका संबंध मानव कल्याण से है और इसी से मानव संबंधों का संपूर्ण क्षेत्र प्रभावित होता है।

3. लैडेल के अनुसार, ‘‘मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ है वास्तविकता के धरातल पर वातावरण से पर्याप्त समायोजन करने की योग्यता’’। 

4. के.ए.मेनिंगर के शब्दों में, ‘‘मानसिक स्वास्थ्य, मनुष्यों का आपस में तथा मानव जगत के साथ समायोजन है’’। 

5. आर.सी.कुल्हन के मतानुसार, ‘‘मानसिक स्वास्थ्य एक उत्तम समायोजन है जो भग्नाशा से उत्पन्न तनाव को कम करता है तथा भग्नाशा को उत्पन्न करने वाली परिस्थितियों में रचनात्मक परिवर्तन करता है’’।

6. कुप्पूस्वामी के शब्दों में, ‘‘मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ दैनिक जीवन में भावनाओं, इच्छाओं, महत्वाकांक्षाओं एवं आदर्शों में संतुलन बनाए रखने की योग्यता है। इसका अर्थ जीवन की वास्तविकताओं का सामना करने तथा उनको स्वीकार करने की योग्यता है’’।

7. ल्यूकेन - ‘‘मानसिक रूप से स्वास्थ्य व्यक्ति वह है जो स्वयं सुखी है, अपने पड़ौस में शांति के साथ रहता है, अपने बालकों को स्वस्थ नागरिक बनाता है तथा इन मूलभूत कर्त्तव्यों को करने के पश्चात भी जिसमें इतनी शक्ति बच जाती है कि वह समाज के हितार्थ कुछ कर सके’’।

8. हेडफील्ड - साधरण शब्दों में हम कह सकते हैं कि मानसिक स्वास्थ्य सम्पूर्ण व्यक्तित्व का पूर्ण सामंजस्य के साथ कार्य करना है। 

9. लैडेल - मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ है-वास्तविकता के धरातल पर वातावरण से पर्याप्त सामंजस्य करने की योग्यता। 

10. कुप्पूस्वामी -मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ है-दैनिक जीवन में भावनाओं, इच्छाओं, महत्वाकांक्षाओं, आदर्शों में सन्तुलन रखने की योग्यता। इसका अर्थ है-जीवन की वास्तविकताओं को सामना करने और उनको स्वीकार करने की योग्यता।

मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति के लक्षण 

मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति के लक्षण होते हैं-
  1. आत्म विश्वास व आत्म सम्मान की भावना।
  2. विचार करने की पूर्ण क्षमता।
  3. बुद्धि व विवेक के द्वारा निर्णय लेने की पूर्ण क्षमता।
  4. धैर्य व उत्साह का बना रहना।
  5. अपनी कमियों का ज्ञान तथा स्वीकृति।
  6. अपनी शक्ति व योग्यता का सही ज्ञान।
  7. दूसरों के प्रति सम्मान और श्रद्धा का भाव।
  8. अनुभव से सीखने की क्षमता।
  9. मन में सदैव प्रसन्नता व प्रफुल्लता का अनुभव करना।
विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्तियों के व्यवहार एवं जीवन के अध्ययन के आधार पर सामान्य रूप में कई विशेषताओं का पता लगाया है। इन विशेषताओं को हम मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति की पहचान हेतु उपयोग कर सकते हैं। ताकि इनके अभाव द्वारा मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति का निदान भी किया जा सकता है।

1. उच्च आत्म-सम्मान -  मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्तियों के आत्म-सम्मान का भाव काफी उच्च होता है। आत्म-सम्मान से तात्पर्य व्यक्ति द्वारा स्वयं को स्वीकार किये जाने की सीमा से होता है। प्रत्येक व्यक्ति का स्वयं को यानि कि स्वयं के कार्यों को मापने का अपना एक पैमाना होता है जिस पर वह अपने गुणों एवं कार्यों, कुशलताओं एवं निर्णयों का स्वयं के बारे में स्वयं द्वारा बनाई गई छवि के आलोक में मूल्यॉकन करता है। 

यदि वह इस पैमाने पर अपने आप को स्वयं के पैमाने पर औसत से ऊपर की श्रेणी में अवलोकित करता है तब उसे गर्व का अनुभव होता है और परिणामस्वरूप उसका आत्म सम्मान बढ़ जाता है। वहीं यदि वह स्वयं को इस पैमाने में औसत से नीचे की श्रेणी में देखता है तो उसका आत्म सम्मान घट जाता है। इस आत्म-सम्मान का व्यक्ति के आत्म विश्वास से सीधा संबंध होता है। 

जो व्यक्ति स्वयं की नजरों में श्रेष्ठ होता है उसका आत्म-विश्वास काफी बढ़ा चढ़ा होता है, एवं जो व्यक्ति किसी कार्य के कारण अपनी नजरों में गिर जाता है उसके आत्म-विश्वास में भी गिरावट आ जाती है। परिणाम स्वरूप उसके आत्म-सम्मान को ठेस पहुँचती है। जब यह आत्म-सम्मान बार बार औसत से नीचे की श्रेणी में आता रहता है अथवा लम्बे समय के लिए औसत से नीचे ही रहता है तब व्यक्ति में दोषभाव जाग्रत हो जाता है तथा उसे मानसिक समस्यायें अथवा मानसिक विकृतियॉं घेर लेती हैं।

2. आत्म-बोध होना - जिन व्यक्तियों को अपने स्व का बोध होता है वे मानसिक रूप से अन्य व्यक्तियों की अपेक्षा ज्यादा स्वस्थ होते हैं। आत्म बोध से तात्पर्य स्वयं के व्यक्तित्व से संबंधित सभी प्रकट एवं अप्रकट पहलुओं एवं तत्वों से परिचित एवं सजग होने से होता है। जब हम यह जानते हैं कि हमारे विचार कैसे हैं? उनका स्तर कैसा है? हमारे भावों को प्रकृति कैसी है? एवं हमारा व्यवहार किस प्रकार का है? तो इससे हम स्वयं के व्यवहार के प्रति अत्यंत ही स्पष्ट होते हैं। हमें अपनी इच्छाओं, अपनी प्रेरणाओं एवं अपनी आकांक्षाओं के बारे में ज्ञान होता है। साथ ही हमें अपनी सामर्थ्य एवं कमियों का भी ज्ञान होता है। ऐसी स्थिति वाले व्यक्ति जीवन में स्वयं एवं स्वयं से जुड़े लोगों के सम्बन्ध में सही निर्णय लेने में सक्षम होते हैं। 

ऐसे व्यक्ति मानसिक उलझनों के शिकार नहीं होते एवं फलत: उनका मानसिक स्वास्थ्य उत्तम स्तर का होता है।

3. स्व-मूल्यॉंकन की प्रवृत्ति -  जिन व्यक्तियों में स्व-मूल्यॉंकन की प्रवृत्ति होती है वे मानसिक रूप से स्वस्थ होते हैं क्योंकि स्वमूल्यॉंकन की प्रवृत्ति उन्हें सदैव आईना दिखलाती रहती है। वे स्वयं के गुणों एवं दोषों से अनवरत परिचित होते रहते हैं एवं किसी भी प्रकार के भ्रम अथवा संभ्रांति कि गुंजाइश भी नहीं रहती है। ऐसे व्यक्ति अपने शक्ति एवं गुणों से परिचित होते हैं एवं जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में अपने गुण एवं दोषों के आलोक में फैसले करते हैं। इनमें तटस्थता को गुण होने पर अपने संबंध में किसी भी प्रकार की गलतफहमी नहीं रहती है तथा उचित फैसले करने में सक्षम होते हैं।

4. सुरक्षित होने का भाव होना - मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्तियों में सुरक्षा का भाव बढ़ा-चढ़ा होता है। उनमें समाज का एक स्वीकृत सदस्य होने की भावना काफी तीव्र होती है। यह भाव उन्हें इस उम्मीद से प्राप्त होता है कि चूकि वे समाज के सदस्य हैं अतएव किसी भी प्रकार की विपरीत स्थिति उत्पन्न होने पर समाज के लोग उनकी सहायता के लिए आगे आयेंगे। समाज उनके विकास में सहायक होगा तथा वे भी समाज की उन्नति में अपना योगदान देंगे। ऐसे लोगों में यह भावना होती है कि लोग उनके भावों एवं विचारों का आदर करते हैं। 

वह दूसरों के साथ निडर होकर व्यवहार करता है तथा खुलकर हंसी-मजाक में भाग लेता है। समूह का दबाव पड़ने के बावजूद भी वह अपनी इच्छाओं को दमित नहीं करने की कोशिश करता है। 

फलत: मानसिक अस्वस्थता से सदैव दूर रहता है।

5. संतुष्टि प्रदायक संबंध बनाने की क्षमता - मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्तियों में परिवार एवं समाज के अन्य व्यक्तियों के साथ ऐसे संबंध विनिर्मित करने की क्षमता पायी जाती है जो कि उन्हें जीवन में संतुष्टि प्रदान करती है, उन्हें जीवन में सार्थकता का अहसास होता है एवं वे प्रसन्न रहते हैं। संबंध उन्हें बोझ प्रतीत नहीं होते बल्कि अपने जीवन का आवश्यक एवं सहायक अंग प्रतीत होते हैं। वे दूसरों के सम्मुख कभी भी अवास्तविक मॉंग पेश नहीं करते हैं। परिणामस्वरूप उनका संबंध दूसरों के साथ सदैव संतोषजनक बना रहता है।

6. दैहिक इच्छाओं की संतुष्टि - मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्तियों में अपनी शारीरिक इच्छाओं के संबंध में संतुष्टि का भाव पाया जाता है। उन्हें सदैव यह लगता है कि उनके शरीर अथवा शरीर के विभिन्न अंगों की जो भी आवश्यकतायें हैं वे पूरी हो रही हैं। प्राय: ऐसे व्यक्ति शारीरिक रूप से स्वस्थ होते हैं परिणाम स्वरूप वे सोचते हैं कि उनके हृदय लीवर, किडनी, पेट आदि अंग अपना अपना कार्य सुचारू रूप से कर रहे हैं। 

दूसरे रूप में जब व्यक्ति के शरीर को आनन्द देने वाली आवश्कतायें जैसे कि तन ढकने के लिए वस्त्र, जिहवा के स्वाद पूर्ति के लिए व्यंजन, सुनने के लिए मधुर संगीत आदि उपलब्ध होते रहते हैं तो वे आनन्दित होते रहते हैं। साधन नहीं मिलने पर भी वे इनकी पूर्ति दूसरे माध्यमों से करने में भी सक्षम होते हैं। परिणामस्वरूप मानसिक रूप से स्वस्थ होते हैं। 

सरल शब्दों में कहें तो वे शारीरिक इच्छाओं के प्रति अनासक्त रहते हैं सुविधा साधन मिलने पर प्रचुर मात्रा में उपभोग करते हैं नहीं मिलने पर बिल्कुल भी विचलित नहीं होते एवं प्रसन्न रहते हैं।

7. प्रसन्न रहने एवं उत्पादकता की क्षमता -  मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्तियों में प्रसन्न रहने की आदत पायी जाती है। साथ ही ऐसे व्यक्ति अपने कार्यों में काफी उत्पादक होते हैं। उत्पादक होने से तात्पर्य इनके किसी भी कार्य के उद्देश्यविहीन नहीं होने से एवं किसी भी कार्य के धनात्मक परिणामविहीन नहीं होने से होता है। ये अपना जो भी समय, श्रम एवं धन जिस किसी भी कार्य में लगाते हैं उसमें कुछ न कुछ सृजन ही करते हैं। इनका कोई भी कार्य निरर्थक नहीं होता है। 

सार्थक कार्यों को करते रहने से उन्हें प्रसन्नता के अवसर मिलते रहते हैं एवं प्रवृत्ति हो जाने पर वे खुशमिजाज हो जाते हैं। उनके संपर्क में आने पर दूसरे व्यक्तियों में भी प्रसन्नता का भाव उत्पन्न होता है।

8. बढ़िया शारीरिक स्वास्थ्य - मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्तियों का शारीरिक स्वास्थ्य भी उत्तम कोटि का होता है। कहा भी गया है कि स्वच्छ शरीर में ही स्वच्छ मन निवास करता है। शरीर की डोर मन के साथ बंधी हुई होती है। मन को शरीर के साथ बांधने वाली यह डोर प्राण तत्व से विनिर्मित होती है। यह प्राण शरीर में चयापचय एवं श्वास-प्रश्वास की प्रक्रिया के माध्यम से विस्तार पाता रहता है जिससे मन को अपने कार्यों केा सम्पादित करने के लिए पर्याप्त मात्रा में ऊर्जा उपलब्ध होती रहती है। फलत: मन प्रसन्न रहता है।

9. तनाव एवं अतिसंवेदनशीलता का अभाव - मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्तियों में तनाव एवं अतिसंवेदनशीलता का अभाव पाया जाता है। या यॅूं कहा जा सकता है कि इनके अभाव के कारण ये व्यक्ति मानसिक रूप से स्वस्थ होते हैं। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक लेजारस के अनुसार तनाव एक मानसिक स्थिति की नाम है। यह मानसिक स्थिति व्यक्ति के सम्मुख समाज एवं वातावरण द्वारा पेश की गयी चुनौतियों के संदर्भ में इन चुनौतियों से निपटने हेतु उसकी तैयारियों के आलोक में तनावपूर्ण अथवा तनावरहित के रूप में निर्धारित होती है। 

दूसरें शब्दों में जब व्यक्ति को चुनौती से निबटने के संसाधन एवं अपनी क्षमता में कोई कमी महसूस होती है तब उस कमी की मात्रा के अनुसार उसे कम या ज्यादा तनाव का अनुभव होता है। वहीं जब उसे अपनी क्षमता, अपने संसाधन एवं सपोर्ट सिस्टम पर भरोसा होता है तब उसे तनाव का अनुभव नहीं होता है।

मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्तियों को तनाव नही होने के पीछे उनकी जीवन की चुनौतियों को सबक के रूप में लेने की प्रवृत्ति होती है। ऐसे व्यक्ति जीवन में घटने वाली घटनाओं जैसे कि प्रशंसा या निन्दा से विचलित नहीं होते बल्कि वे इनका प्रति असंवेदनशील रहते हुए अपने ऊपर इनका अधिक प्रभाव पड़ने नहीं देते हैं।

10. वास्तविक प्रत्यक्षण की क्षमता - मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति किसी वस्तु, घटना या चीज का प्रत्यक्षण पक्षपात रहित होकर वस्तुनिष्ठ तरीके से करते हैं। वे इन चीजों को प्रति वही नजरिया या धारणा विनिर्मित करते हैं जो कि वास्तविकता होती है। वे धारणायें बनाते समय कल्पनाओं को, अपने पूर्वाग्रहों को भावसंवेगों को अपने ऊपर हावी होने नहीं देते हैं। इससे उन्हें सदैव वास्तविकता का बोध रहता है परिणामस्वरूप मानसिक उलझनों में वे नहीं पड़ते तथा मानसिक रूप से स्वस्थ रहते हैं।

11. जीवन दर्शन स्पष्टता होना - मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्तियों में जीवन दर्शन की स्पष्टता होती है। उनके जीवन का सिद्धान्त स्पष्ट होता है। उन्हें पता होता है कि उन्हें अपने जीवन में किस तरह से आगे बढ़ना है? क्यों बढ़ना है? कैसे बढ़ना है? उनका यह जीवन दर्शन धर्म आधारित भी हो सकता है एवं धर्म से परे भी हो सकता है। इनमें द्वन्द्वों का अभाव होता है। इनके जीवन में विरोधाभास की स्थितियॉं कम ही देखने को मिलती हैं।

12. स्पष्ट जीवन लक्ष्य होना - वे लोग जिनका जीवन लक्ष्य स्पष्ट होता है वे मानसिक रूप से स्वस्थ होते हैं। मनोवैज्ञानिक इसका कारण जीवन लक्ष्य एवं जीवन शैली में सामंजस्य को मानते हैं। उनके अनुसार जिस व्यक्ति के सम्मुख उसका जीवन लक्ष्य स्पष्ट होता है था तथा जीवन लक्ष्य को पूरा करने की त्वरित अभिलाषा होती है वह अपना समय निरर्थक कार्यों में बर्बाद नहीं करता है वह जीवन लक्ष्य को पूरा करने हेतु तदनुरूप जीवन शैली विनिर्मित करता है। इसे जीवन लक्ष्य को पूरा करने हेतु आवश्यक तैयारियों के रूप में देखा जा सकता है। 

जीवन लक्ष्य एवं जीवनशैली के बीच जितना सामंजस्य एवं सन्निकटता होती है जीवन लक्ष्य की पूर्ति उतनी ही सहज एवं सरल हो जाती है। परिणामस्वरूप ऐसे व्यक्तियों को जीवन लक्ष्य की प्राप्ति अवश्य होती है। इससे उन्हें जीवन में सार्थकता का अहसास सदैव से ही रहता है तथा वे प्रसन्न रहते हैं एवं मानसिक रूप से स्वस्थ रहते हैं।

13. सकारात्मक चिंतन - जीवन के प्रति तथा दुनिया में स्वयं के होने के प्रति सकारात्मक नजरिया रखने वाले, तथा जीवन में स्वयं के साथ घटने वाली हर वैचारिक, भावनात्मक तथा व्यवहारिक घटना के प्रति जो सकारात्मक नजरिया रखते हैं उसके धनात्मक पक्षों पर प्रमुखता से जोर देते हैं। ऐसे व्यक्ति निराशा, अवसाद का शिकार नहीं होते हैं। उनमें नाउम्मीदी एवं निस्सहायता भी उत्पन्न नहीं होती है परिणामस्वरूप मानसिक रूप से स्वस्थ रहते हैं।

14. ईश्वर विश्वास - जिन व्यक्तियों में ईश्वर विश्वास कूट कूट कर भरा होता है ऐसे व्यक्ति भी मानसिक रूप से स्वस्थ होते हैं। मनोवैज्ञानिक इसका कारण उन्हें मिलने वाले भावनात्मक संबंल एवं सपोर्ट को मानते हैं। उनके अनुसार ईश्वर विश्वासी कभी भी स्वयं को अकेला एवं असहाय महसूस नहीं करता हैं। 

परिणाम स्वरूप जीवन की विषम से विषम परिस्थिति में भी अपने आत्म-विश्वास को बनाये रखता है। उसकी आशा का दीपक कभी बुझता नहीं है। अतएव वह मानसिक रूप से स्वस्थ रहता है।

15. दूसरों से अपेक्षाओं का अभाव - ऐसे व्यक्ति जो अपने कर्तव्य कर्मों को केवल किये जाने वाला कार्य समझ कर सम्पादित करते हैं एवं उस कार्य से होने वाले परिणामों से स्वयं को असम्बद्ध रखते हैं। दूसरों से प्रत्युत्तर में किसी प्रकार की अपेक्षा अथवा आशा नहीं करते हैं वे सदैव प्रसन्न रहते हैं।मनोवैज्ञानिक इसका कारण उनके मानसिक प्रसन्नता के परआश्रित नहीं होने की स्थिति को ठहराते हैं। ये व्यक्ति दूसरों के द्वारा उनके साथ किये गये व्यवहार से अपनी प्रसन्नता को जोड़कर नहीं रखते हैं बल्कि वे दोनों चीजों को अलग-अलग रखकर चलते हैं। 

परिणामस्वरूप भावनात्मक द्वन्द्वों में नहीं फंसते हैं एवं मानसिक रूप से स्वस्थ होते हैं।

मानसिक स्वास्थ्य का महत्व 

मानसिक स्वास्थ्य मन से जुड़ी हुई गतिविधियों संबंधित है। मनुष्य एवं अन्य प्राणियों में विचार करने की योग्यता का फर्क है। मनुष्य विचार कर सकता है, चिंतन कर सकता है, घटनाओं का विश्लेषण कर सकता है। वहीं अन्य प्राणी ऐसा उसके समान नहीं कर सकते। उपयुक्त चिंतन, विचार एवं विश्लेषण के बल पर मनुष्य शोध अनुसंधान की योजनायें बना सकता है अपने जीवने को बेहतर बनाने सुविधापूर्ण बनाने की व्यवस्थायें जुटा सकता है। आधुनिक जीवन में जो सुख एवं आराम के संरजाम मनुष्य ने जुटायें हैं वे सभी उसकी विचार, चिंतन एवं विश्लेषण की क्षमता का ही परिणाम हैं। परन्तु यह तीनों प्रकार की क्षमतायें व्यक्ति की मानसिक प्रक्रियाओं से जुड़ी हुई हैं। अवधान, प्रत्यक्षण, अधिगम, स्मृति, अभिप्रेरण, बुद्धि आदि मानसिक क्रियायें हैं एवं इन क्रियायों का सुचारू रूप से जारी रहना एवं उन्नत होना न केवल व्यक्ति के शारीरिक विकास एवं स्वास्थ्य से संबंधित है अपितु उसका शारीरिक विकास एवं उन्नत स्वास्थ्य होने के बावजूद मानसिक स्वास्थ्य की उन्नति से कहीं अधिक सीधा एवं घनिष्ठ संबंध है।

मानसिक स्वास्थ्य चिंतन, भाव एवं व्यवहार के तीन आयामों को अपने में समेटे हुए है। इन तीनों आयाम व्यक्तित्व के भी तीन आयाम हैं। व्यक्ति का व्यक्तित्व जिस रूप में परिलक्षित होता है वह इन तीनों आयामों के समुचित विकास, उन्नति एवं सामंजस्य पर निर्भर करता है। व्यक्ति की सोच उसमें भावनाओं को तरंगित करती है एवं ये भावनात्मक तरंगे उसे तदनुरूप क्रिया-व्यवहार करने के लिए प्रेरित करती हैं। इन तीनों के बीच कोई सीधा स्पष्ट संबंध नहीं है वरन ये तीनों परस्पर एक दूसरे को प्रभावित करते एवं एक दूसरे से प्रभावित होते हैं। इन तीनों का प्रभाव व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। इस मानसिक स्वास्थ्य को बनाये रखने अथवा उत्तरोत्तर इसका उन्नत होना क्यों आवश्यक है इसका क्या महत्व है ।

1. कार्यकुशलता के लिए आवश्यक - सभी प्रकार के कार्यों में कुशलता के लिए मानसिक प्रक्रियाओं, भावनात्मक दशा का ठीक होना आवश्यक है। ऐसे से बहुत से कार्य होते हैं जिन्में मन एवं शारीरिक अंगों के संचालन के बीच बेहतर तालमेल की आवश्यकता होती है। मानसिक दशा ठीक नहीं होने पर यह तालमेल प्रभावित होता है। किसी भी कार्य में कुशलता मन एवं इन्द्रियों के बीच परस्पर सामंजस्य पर निर्भर करती है। इन्द्रियॉं मन के उपकरण के रूप मे कार्य करती है। जब इन्द्रियों द्वारा सम्पादित किये जा रहे कार्य में मन पूर्ण रूप से लगा हुआ होता है तो उस कार्य में कुशलता बन पड़ती है। परन्तु ऐसा न होने पर कार्य ठीक से सम्पन्न नहीं हो पाता है। 

2. मानसिक स्वास्थ्य का सफलता के साथ संबंध - मानसिक स्वास्थ्य का जीवन में किसी भी कार्य अथवा उद्देश्य में सफलता की प्राप्ति में एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह भूमिका एक मजबूत तैयारी के रूप में होती हैं। व्यक्ति की सफलता उसकी मानसिक तैयारियों पर भी निर्भर करती हैं। जब व्यक्ति मानसिक रूप से स्वस्थ होता है तब उसकी इंद्रियॉं सम्यक् रूप से कार्य करती हैं परिणामस्वरूप व्यक्ति किसी भी कार्य में अपना पूर्ण योगदान देने के लिए तैयार होता है। मजबूत मन मजबूत इरादे ही व्यक्ति को सफलता दिलाते हैं। वहीं मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति स्वयं अपनी ही उलझनों में फंसे रहते हैं परिणामस्वरूप किसी भी कार्य का समय पर पूरा कर पाना उनके लिए असंभव समान होता है। 

3. पारिवारिक सामंजस्य में भूमिका - मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति अपने परिवार के सभी सदस्यों के विचारों का सटीक विश्लेषण करने में समर्थ हो पाता है तथा साथ ही उसकी अवधान, प्रत्यक्षण एवं बुद्धि आदि की मानसिक क्रियायें सुचारू रूप से चलने की वजह से वह उनके भावनाओं एवं आवश्यकताओं एवं शाब्दिक, अशाब्दिक संकेतों को भी सही से समझ पाता है। इससे वह परिवार के प्रत्येक सदस्य के साथ समुचित आदर एवं सम्मान के साथ व्यवहार एवं संचार कर पाने में समर्थ होता है परिणामस्वरूप उसका पारिवारिक समायोजन बहुत बेहतर होता है। साथ ही परिवार में मानसिक समस्याओं के पनपने की संभावनाये भी बहुत हद तक क्षीण रहती है। 

यदि परिवार के प्रत्येक सदस्य का मानसिक स्वास्थ्य उत्तम कोटि का होता है तो परिवार एक इकाई के रूप में सर्वतोमुखी प्रगति करता है। परिवार के किसी एक सदस्य के मानसिक स्वास्थ्य के ठीक न होने की स्थिति में परिवार के अन्य सदस्य उसके व्यवहार से दुखी एवं भविष्य को लेकर चिंतित रहते है, एवं लम्बे समय तक इस प्रकार की स्थिति बने रहने पर परिवार के अन्य सदस्यों में भी मानसिक रोग का शिकार होने की संभावनायें प्रबल हो जायेंगी। 

4. सामाजिक स्वास्थ्य में भूमिका - मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति समाज के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है। किसी भी समाज की प्रगति एवं विकास उस समाज में रहने वाले व्यक्तियों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य तथा नैतिक विकास पर निर्भर करता है। इनमें से किसी भी आयाम में कमजोरी होने पर समाज की प्रगति एवं उन्नति बाधित होती है। एक स्वस्थ व्यक्ति न केवल अपनी उन्नति में सफल होता है बल्कि वह अपने परिवार एवं समाज को सफलता की नई ऊॅंचाइयों तक ले जाने में सार्थक योगदान दे सकता है। वहीं परिवार एवं समाज का कोई मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति उनकी प्रगति यात्रा को बाधित कर सकता है। 

5. व्यक्तित्व विघटन से बचाव - जिन व्यक्तियों का मानसिक स्वास्थ्य ठीक होता है उनमें व्यक्तित्व विकार अथवा विघटन की घटना नहीं घटती है ऐसे व्यक्ति किसी भी प्रकार के मनोरोग का शिकार नहीं होते हैं। बल्कि ऐसे व्यक्ति अपने जीवन में प्रसन्नता, उल्लास एवं उमंग से भरे रहते हैं। इनके भावों में सामंजस्य एवं परिपक्वता होने के कारण ये मनोदशा विकृति आदि मानसिक विकृतियों से बचे रहते हैं। 

6. मानसिक स्वास्थ्य एवं समस्या समाधान क्षमता - मनोवैज्ञानिकों द्वारा किये गये अनुसंधानों के अनुसार मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्तियों की समस्या समाधान क्षमता बढ़ी-चढ़ी होती है। इसका कारण मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति द्वारा समस्या को ठीक से समझ पाने हेतु ध्यान दे पाने की समर्थता से होता है। मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति समस्या के सभी पहलुओं पर सभी संभावित कोणों से विचार कर पाता है। परिणामस्वरूप वह उनका हल भी जल्द ही ढूंढ लेता है। 

7. मानसिक स्वास्थ्य एवं सृजनात्मकता - हालॉंकि मानसिक स्वास्थ्य का सृजनात्मकता के साथ किसी सीधे संबंध के प्रमाण मनोवैज्ञानिकों द्वारा किये गये शोध एवं अनुसंधानों में प्राप्त नहीं हुए हैं। फिर भी तुलनात्मक शोध मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्तियों एवं अस्वस्थ व्यक्तियों के सृजनात्मक कार्यों की बारंबारता में स्पष्ट अंतर प्राप्त हुए हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि जो व्यक्ति मानसिक रूप से स्वस्थ होते हैं उनका मन एवं मस्तिष्क सृजनात्मक कार्यों अथवा गतिविधि के लिए अन्यों की अपेक्षा अधिक तत्पर होता है। परिणामस्वरूप ऐसे व्यकितयों के सृजनात्मक कार्यों की बारम्बारता बढ़ी-चढ़ी होती है।

8. मानसिक स्वास्थ्य एवं व्यवहारकुशलता - व्यवहार कुशलता पर किये गये अनुसंधानों के अनुसार जो व्यक्ति अपने दैनिक व्यवहार एवं सामाजिक व्यवहार या जॉब आधारित व्यवहार में कुशल होते हैं वे मानसिक रूप से अवश्य ही अन्यों की अपेक्षा कहीं अधिक स्वस्थ होते हैं। या इसे दूसरे रूप में कहा जा सकता है कि जिन लोगों का मानसिक स्वास्थ्य उत्तम होता है वे जीवन में अधिक व्यवहारकुशल होते हैं। 

9. मानसिक स्वास्थ्य एवं नैतिकता - समाजशास्त्रियों ने मानसिक स्वास्थ्य को नैतिकता से भी संबंधित पाया है। उनके अनुसार नैतिकता का संबंध परिवार एवं समाज द्वारा परिवार एवं समाज की बेहतर व्यवस्था वह प्रगति हेतु बनाये गये नियमों, मानदण्डों के अनुपालन से होता है जो व्यक्ति स्वयं को जितना अधिक परिवार एवं समाज का अभिन्न अंग समझते हैं वे उतना ही इन नियमों के अनुपालन में रूचि प्रदर्शित करते हैं। जो व्यक्ति इन मानदण्डों का पालन करते हैं उन पर किये गये अध्ययनों के परिणाम प्रदर्शित करते हैं कि वे व्यक्ति अन्यों की तुलना में मानसिक रूप से कहीं अधिक स्वस्थ थे। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक बैरोन के अनुसार ऐसे व्यक्तियों में दोषभाव उत्पन्न नहीं होता है अतएव ये लोग अवसाद जैसी मानसिक विकृतियों से बचे रहते हैं। 

10. आत्म बोध के लिए आवश्यक - आत्म बोध से तात्पर्य अपने व्यक्तित्व के समस्त पहलुओं से परिचित होने से होता है। प्रत्येक व्यक्ति अपने अंदर छिपी असीम संभावनाओं का परिचय पाना चाहता है तथा अपनी प्रतिभा को बाह्य अभिव्यक्ति देना चाहता है। परन्तु इसके संभव होने के लिए स्वयं के आत्मन के विभिन्न हिस्सों की जानकारी आवश्यक है, और अनुसंधानों से स्पष्ट हुआ है कि जिन व्यक्तियों का मानसिक स्वास्थ्य उत्तम होता है वे मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्तियों की अपेक्षा अपने आत्म् की विशेषताओं से ज्यादा परिचित होते हैं। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक अब्राहम मैस्लो ने भी इसी तथ्य को अपने मानवतावादी व्यक्तित्व सिद्धान्त में उल्लेखित किया है। 

11. व्यक्तित्व विकास के लिए आवश्यक - व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के लिए शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य का उन्नत होना बहुत ही जरूरी है क्योंकि व्यक्तित्व शरीर, मन एवं इंद्रियों के सम्मिलन से विनिर्मित होता है जिसकी प्रकट अभिव्यक्ति व्यवहार के रूप में परिलक्षित होती है। व्यक्तित्व का विकास चिंतन, भाव एवं व्यवहार के तीनों आयामों के बीच अंत:क्रिया पर निर्भर करता है। एवं इन तीनों ही आयामों का मानसिक स्वास्थ्य के साथ सीधा संबंध है। बिना मानसिक क्षमताओं के बढ़ाए व्यक्तित्व विकास नहीं किया जा सकता है और मानसिक क्षमताओं की उन्नति के लिए मानसिक स्वास्थ्य का उन्नत होना अत्यंत ही आवश्यक है। 

12. देश की उन्नति में भूमिका - समग्र रूप से यदि मानसिक स्वास्थ्य को देश की उन्नति से जोड़कर देखा जाये तो हम पाते हैं कि किसी देश के समुचित विकास के लिए उस देश के नागरिकों का स्वस्थ होना आवश्यक है। नागरिकों की स्वस्थता में शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य की महत्वपूर्ण हिस्सेदारी होती है। जिस देश के नागरिक जितना ही अधिक मानसिक रूप से मजबूत एवं क्षमतावान होते हैं उस देश का विकास उतना ही अधिक तीव्रता से होता है। क्योंकि मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति मिलकर एक स्वस्थ समाज का निर्माण करते हैं एवं स्वस्थ समाज देश के विकास में धनात्मक योगदान करता है। 

13. अपराध दर में घटोत्तरी से संबंध - मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्तियों में आपराधिक प्रवृत्ति मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्तियों की तुलना में काफी कम होती है। मनोवैज्ञानिक इसका कारण सांवेगिक एवं वैचारिक परिपक्वता एवं स्थितरता को ठहराते हैं। सांवेगिक परिपक्वता एवं स्थिरता मानसिक स्वास्थ्य की सुदृढ़ स्थिति का परिचय प्रदान करती है। अतएव जो व्यक्ति सांवेगिक या भावनात्मक रूप से परिपक्व हेाते हैं वे अपने संवेगों एवं दूसरों के हृदय के भावों को भलीभॉंति समझते हैं एवं इसके कारण उनमें आपराधिक प्रवृत्ति नहीं के बराबर होती है। 

14. मनोरोग से संबंध - सार रूप में कहें तो मानसिक स्वस्थता का मनोरोग से नकारात्मक संबंध है अर्थात् जैसे जैसे मानसिक स्वास्थ्य उन्नत होता है वैसे वैस मनोरोगों के स्तर में कमी आती है। जिन व्यक्तियों का मानसिक स्वास्थ्य उन्नत होता है वे मनोरोगों का शिकार नहीं होते हैं। वहीं जिन व्यक्तियों का मानसिक स्वास्थ्य स्थिर नहीं रहता है उनमें मनोरोगों की रोकथाम की क्षमता कम होती है।

मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारक

1. शारीरिक स्वास्थ्य 

व्यक्ति की शारीरिक स्थिति क उसके मानसिक स्वास्थ्य के साथ सीधा संबंध होता है। दूसरें शब्दों में शारीरिक स्वास्थ्य व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला एक प्रमुख कारक है। हम सभी जानते हैं कि जब हम शारीरिक रूप से स्वस्थ होते हैं तब हम प्राय: सभी समय एक आनन्द के भाव का अनुभव करते रहते हैं एवं हमारी ऊर्जा का स्तर हमेशा ऊॅंचे स्तर का बना रहता है। जब कभी हम बीमार पड़ते हैं या शारीरिक रूप से अस्वस्थ हो जाते हैं उसका प्रभाव हमारी मानसिक प्रसन्नता पर भी पड़ता है हम पूर्व के समान आनंदित नहीं रहते तथा हमारी ऊर्जा का स्तर भी निम्न हो जाता है। 

कहने का अभिप्राय यह है कि हमारे शरीर एवं मन के बीच, हमारी शारीरिक स्वस्थता एवं मानसिक स्वस्थता के बीच परस्पर अन्योनाश्रित संबंध हैं। एक की स्थिति में बदलाव होने पर दूसरे में स्वत: ही परिवर्तन हो जाता हैं उदाहरण के लिए कैंसर के रोगियों में निराशा, चिंता एवं अवसाद सामान्य रूप में पाये जाते हैं। वहीं चिंता एवं अवसाद से ग्रस्त रोगियों को कई प्रकार की शारीरिक बीमारियॉं हो जाती हैं।

2. प्राथमिक आवश्यकताओं की संतुष्टि

 आवश्यकताओं की संपुष्टि भी मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला एक प्रमुख कारक है। आवश्यकतायें कई प्रकार की होती हैं जैसे कि शारीरिक आवश्यकता, सांवेगिक आवश्यकता, मानसिक आवश्यकता आदि। इन सभी प्रकार की आवश्यकताओं में प्राथमिक आवश्कताओं की संतुष्टि का स्तर मानसिक स्वास्थ्य को सर्वाधिक प्रभावित करता है। प्राथमिक आवश्यकताओं में भूख, प्यास, नींद, यौन आदि आते हैं। इसके अलावा शारीरिक सुरक्षा के लिए घर आदि की जरूरत को भी प्राथमिक आवश्यकताओं में ही गिना जाता है। 

इन आवश्यकताओं की पूर्ति करने का लक्ष्य सदैव मनुष्य के सम्मुख उसके लिए अस्तित्वपरक चुनौति खड़ी करता रहा है। जब तक इन आवश्यकताओं की पूर्ति सहज रूप में होती रहती है तब तक व्यक्ति मानसिक रूप से उद्विग्न नहीं होता है परंतु जब इन आवश्यकताओं की पूर्ति में जब बाधा उत्पन्न होती है तब व्यक्ति में तनाव उत्पन्न हो जाता है। जिसके विभिन्न संज्ञानात्मक, सांवेगिक, अभिप्रेरणात्मक, व्यवहारात्मक आदि परिणाम होते हैं। इन परिणामों के फलस्वरूप व्यक्ति में चिंता, अवसाद आदि विभिन्न प्रकार की मनोविकृतियॉं जन्म ले लेती हैं।

3. मनोवृत्ति 

मनोवैज्ञानिकों ने मनोवृत्ति को भी मानसिक स्वास्थ्य के उन्नति या अवनति में परिवर्तन करने वाला एक महत्वपूर्ण कारक माना है। व्यक्ति की मनोवृत्ति उसके मानसिक रूप से प्रसन्न रहने अथवा न रहने का निर्धारण करती है। यह मनोवृत्ति मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है। पहली धनात्मक मनोवृत्ति एवं दूसरी नकारात्मक मनोवृत्ति। धनात्मक मनोवृत्ति को सकारात्मक मनोवृत्ति भी कहा जाता है। सकारात्मक मनोवृत्ति का संबंध जीवन की वास्तविकताओं से होने के कारण इसे वास्तविक मनोवृत्ति की संज्ञा भी दी जाती है। 

यदि व्यक्ति में किसी कारण से वास्तविकता से हटकर काल्पनिक दुनिया में विचरण करने की आदत बन जाती है तो ऐसे व्यक्तियों में घटनाओं, वस्तुओं एवं व्यक्तियों के प्रति एक तरह का अवास्तविक मनोवृत्ति विकसित हो जाती है। अवास्तविक मनोवृत्ति के विकसित हो जाने से उनमें आवेगशीलता, सांवेगिक अनियंत्रण, चिड़चिड़ापन आदि के लक्षण विकसित हो जाते हैं और उनका मानसिक स्वास्थ्य धीरे धीरे खराब हो जाता है।

4. सामाजिक वातावरण 

सामाजिक वातावरण को भी मनोवैज्ञानिकों ने मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला एक मजबूत कारण माना है। व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी है। वह समाज में रहता है। फलत: समाज में होने वाली अच्छी बुरी घटनाओं से वह प्रभावित होता रहता है। जब व्यक्ति समाज में एक ऐसे वातावरण में वास करता है जो कि अपने घटकों को उन्नति एवं विकास में सहायक होता है तथा समूह के सदस्यों को भी समाज अपनी उन्नति एवं विकास में योगदान देने का समुचित अवसर प्रदान करता है तो वह व्यक्ति स्वयं को गौरवान्वित महसूस करता है परिणामस्वरूप ऐसे व्यक्ति को कभी भी अकेलापन महसूस नहीं होता है। वह अपने आप को समाज का एक स्वीकृत सदस्य के रूप में देखता है जिसके अन्य सदस्य उसके भावों का आदर करते हैं। वह स्वयं भी समाज के अन्य सदस्यों के भावों का आदर करता है। 

ऐसे सामाजिक वातावरण में निवास करने वाले व्यक्ति मानसिक रूप से अत्यंत स्वस्थ रहते हैं। तथा इनकी सामाजिक प्रसन्नता अनुभूति काफी बढ़ी चढ़ी रहती है। वहीं दूसरी ओर जब व्यक्ति इसके विपरीत प्रकार के समाज में निवास करता है जो कि उसकी उन्नति एवं विकास में सहायक हेाने के बजाय उसके उन्नति एवं विकास के मार्ग को अवरूद्ध ही कर देता है तो व्यक्ति की अपने अंदर छिपी असीम संभावनाओं को विकसित एवं अभिव्यक्त करने की आवश्यकता की पूर्ति नहीं हो पाती है। परिणामस्वरूप ऐसा व्यक्ति को अपनी इच्छाओं का दमन करना पड़ता है एवं कालान्तर में ऐसे व्यक्ति मानसिक रूग्णता का शिकार हो जाते हैं।

5. मनोरंजन की सुविधा

मनोवैज्ञानिकों ने मनोरंजन की उपलब्धता को भी मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले एक प्रमुख कारक के रूप में मान्यता प्रदान की है। उनके अनुसार जिस व्यक्ति को जीवन में मनोरंजन करने के साधन या सुविधायें उपलब्ध होती हैं उस प्रकार के व्यक्ति अपने जीवन में मानसिक रूप से स्वस्थ रहते हैं। उनके अनुसार मनोरंजन के साघन अपने प्रभाव से व्यक्ति के मन को प्रसन्नता, एवं आह्लाद से भर देते हैं फलत: उसमें एक प्रकार की नवीन प्रफुल्लता जन्म लेती है जो कि उसके मस्तिष्क एवं मन को नवीन ऊर्जा से ओतप्रोत कर देती है। तंत्रिका मनोवैज्ञानिकों के अनुसार इससे स्नायुसंस्थान को सकारात्मक स्फुरणा प्राप्त होती है फलत: उसकी सक्रियता बढ़ जाती है। स्मृति आदि विभिन्न मानसिक प्रक्रियायें सुचारू रूप से कार्य करती हैं फलत: व्यक्ति मानसिक रूप से स्वस्थ रहता हैं। परन्तु यदि किसी कारण से किसी व्यक्ति को उसकी इच्छानुसार पर्याप्त मनोरंजन नहीं मिल पाता है तो उससे इनमें मानसिक घुटन उत्पन्न हो जाती है जो धीरे-धीरे उनके मानसिक स्वास्थ्य को कमजोर करती जाती है।
      उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट होता है कि मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले बहुत से कारक हैं। इन कारकों को नियंत्रित करके मानसिक स्वास्थ्य को उन्नत बनाया जा सकता है।

      Post a Comment

      Previous Post Next Post