एक्यूप्रेशर चिकित्सा क्या है इस चिकित्सा पद्धति के लाभ

एक्यूप्रेशर (Acupressure) वह चिकित्सा पद्धति है। जो अधिक प्रभावशाली व प्राचीन चिकित्सा पद्धति है। इस चिकित्सा पद्धति का सिद्धान्त पूरी तरह प्राकृतिक है। इस पद्धति के एक अन्य विशेषता यह है कि यह चिकित्सा पद्धति बिल्कुल सुरक्षित चिकित्सा पद्धति है। इस में किसी प्रकार की नुकसान की सम्भावना नहीं होती है। इस पद्धति में शरीर के विकृति से सम्बन्धित नाड़ी पर केवल दबाव तथा मालिश के द्वारा उपचार किया जाता है। 

यह चिकित्सा पद्धति स्वस्थ्य व्यक्ति को पूर्ण स्वास्थ्य प्रदान करती है, तथा रोगी व्यक्ति के विकार को प्रतिबिम्ब केन्द्रो पर प्रेशर देकर उन रोगों का उपचार करती है। सभी रोगो में रोग से सम्बन्धित अंगो के प्रतिबिम्ब केन्द्रो पर प्रेशर देकर रोग को दूर किया जा सकता है। एक्यूप्रेशर चिकित्सा कुछ नियमों का पालन कर जैसे भोजन करने के एक घण्टे बाद भोजन देना चाहिए। एक्यूप्रेशर द्वारा हृदय संस्थान, रक्त संचरण संस्थान, पाचन संस्थान, गले व आंखों के रोगो का उपचार सम्भव है। साधारण से साधारण मनुष्य भी थोड़ी बहुत जानकारी रख कर प्रतिबिम्ब केन्द्रो को खोजकर अनेको रोगों का इलाज स्वयं ही कर सकता है, व दूसरों को भी लाभ पहुँचा सकता है।

एक्यूप्रेशर चिकित्सा के सिद्धांत

एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति का मुख्य सिद्धान्त यह है कि शरीर के विभिन्न भागो में अवरूद चेतना का संचार करना प्राण व रक्त के प्रवाह में गति लाना, दाब बिन्दुओं में प्रेशर देकर रोगी को रोगमुक्त करना। इस चिकित्सा पद्धति के कई लाभ है।
  1. एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति किसी भी तरह से बहुत कठिन य बहुत जटिल प्रकिया नहीं है इसको कोई भी सामान्य ज्ञान व बुद्धि वाला व्यक्ति अपने आप कर सकता है।
  2. इस उपचार पद्धति द्वारा छोटी-मोटी घरेलू बीमारियों का स्वउपचार किया जा सकता है। 
  3. दूर-दराज ग्रामीण क्षेत्र में, जहॉं पर किसी भी प्रकार की स्वास्थ्य सुविधा नही है। वहा पर अन्य उपचार के अभाव में यह चिकित्सा पद्धति रोगियों के लिए उत्तम साधन है।
  4. जब कहीं जा रहे हो, यात्रा कर रहें हो या ऑफिस स्कूल आदि में हो, अचानक कोई पीड़ा या परेशानी हो तो ऐसे में यह एक्यूप्रेशर चिकित्सा उपचार दिया या लिया जा सकता है। 
  5. इस उपचार पद्धति का काई भी प्रतिप्रभाव नही होता है।
  6. यह सभी जानते है कि पूरे शरीर में प्राणिक ऊर्जा विघुत की तरह फैली हुई है इस पद्धति की सहायता से शरीर के अव्यवस्थित ऊर्जा प्रवाह को व्यवस्थित किया जा सकता है।
  7. यह पद्धति अत्यन्त सरल, प्राकृतिक व प्रभावशाली, रोग निवारक चिकित्सा पद्धति है।
  8. इसकी सहायता से मनुष्य शरीर में अदृश्य व सुशुप्त कई शक्तियों को जागृत किया जा सकता है।
1. एक्यूप्रेशर चिकित्सा के शारीरिक सिद्धांत - वैज्ञानिक आधार पर स्नापुसंस्थान व रक्तवाहिकाओं की छोटी-छोटी नाड़ियो के आखिरी हिस्से हाथो तथा पैरो में होते है, अर्थात हाथ-पैर की नाड़ियो का शरीर के सारे अंगो से सम्बन्ध है इसलिए विशेष रूप से हाथ व पैरों में ही प्रेशर देकर रोगी का इलाज किया जाता है। कुशल एक्यूप्रेशर चिकित्सकों के अनुसार प्रेशर देने से शरीर में कुछ प्रमुख प्रभाव पड़ते है। जो है-
  1. एक्यूप्रेशर प्रणाली से त्वचा से त्वचा में स्फूर्ति उत्पन्न होती है। 
  2. शरीर की मांस पेशीयॉं जो पूरे शरीर को ढके हुए है। यह एक्यूप्रेशर उसमें लचक पैदा करता है।
  3. यह शरीर के आवश्यक तत्वों की वृद्धि करता है।
  4. यह स्नायु संस्थान को स्वस्थ्य बनाता है तथा आस्थियों की विकृति भी इससे दूर होती है।
  5. शरीर में स्थित समस्त अन्त: स्रावी ग्रथिंयों का कार्य नियमित हो जाता है।
  6.  जहॉं तक हो सके प्रेशर ऐसे स्थान पर बैठकर देना चाहिये जो स्थान हवादार हो।
  7. चिकित्सा लेते समय रोगी को अपना शरीर ठीला छोड़ देना चाहियें। 
  8. रोगी को गहरे व लम्बे-लम्बे श्वास-प्रश्वास करने चाहियें।
  9. एक्यूप्रेशर केवल रोगो को दूर करने की ही पद्धति नही है। बल्कि इससे रोगो को दूर भी रखा जा सकता है इसलिए हर स्वास्थ व्यक्ति को प्रतिदिन हाथ-पैर व सभी प्रतिबिम्ब केन्द्रों पर प्रेशर देना चाहियें। इससे एक अच्छे स्वास्थ्य को लम्बे समय तक बचाये रखा जा सकता है।
  10. यह एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति न केवल शारीरिक रोगो को बल्कि मानसिक रोग की स्थिति में भी लाभदायी होता है।
2. एक्यूप्रेशर चिकित्सा के मानसिक सिद्धांत - तनाव, अवसाद, या अन्य किसी भी प्रकार की मानसिक परेशानी का सम्बन्ध भी किसी न किसी ग्रंथि (अन्त: सावी ग्रंथि) से तथा किसी विशेष अंग अवयव से होता हैै। कुशल चिकित्सक उस विशेष स्थान पर प्रेशर देकर रोगी को मानसिक लाभ पहुचाते है।

एक्यूप्रेशर चिकित्सा के नियम

  1. प्रेशर देने के लिए अधिकतम दर्द संवेदना वाले स्थान को ढूडना चाहिये। 
  2. नये रोगो में सामान्यत: 2 मिनट व अधिकतम 6-8 मिनट तक दबाव देना चाहिये।
  3. दबाव की मात्रा, रोगी की आयु, अवस्था, तथा सहनशक्ति के अनुसार कम, मध्यम अथवा तेज दी जा सकती है।

एक्यूप्रेशर के अनुसार रोग के कारण

एक्यूप्रेशर चिकित्सा अनुभव के आधार पर रोग के अनेक कारण है। कुछ कारणो का वर्णन इस प्रकार से है -

1. मनुष्य रोगी तब होता है, जब किसी अंग से सम्बन्धित स्नायु संस्थान ठीक से काम नहीं करता है। तथा किसी अंग में रक्त का प्रवाह ठीक से नहीं हो पाता हैं। रक्त वाहिनियो में विकृति के कारण शरीर का वह अंग या तो ठंड हो जाता है या गरम हो जाते है। इन दोनों ही अवस्थाओं में शरीर में रोग उत्पन्न होते है।

2. रोग की अवस्था में कुछ क्रिस्टल में बहुत सुक्ष्म रसायनिक पदार्थ अथवा कण हाथे तथा पैरो में रक्त वाहिनियो के आखिरी हिस्सो में जमा हो जाते हैं। जिस कारण अनेको अंगो में रक्त प्रवाह सही नही रहता है। इन क्रिस्टलो को अपने स्थान पर बने रहने के कारण ही रक्त आपूर्ति में बाधा होती है, जिस कारण रोग उत्पन्न होते है।

3 सभी अंगो को रक्त की नियमित आपूर्ति बहुत जरूरी है। क्योंकि रक्त के माध्यम से शरीर को सभी पौष्टिक तत्वों को आपूर्ति होती है। तथा पौष्टिक तत्व  शक्ति प्रदान करती है। शरीर के कई अंगो से रक्त की अवांछित पदार्थ गुर्दो तक पहुँचाता है, तथा गुर्दे रक्त को छान कर आवांछनीय पदार्थ को शरीर से बाहर निकाल देते है। यदि रक्त की सुचारु रूप से प्रवाहित ना हो तो अनेक अवांछनीय अनावश्यक पदार्थ शरीर में ही एकत्र होने लगेंगे जिस कारण शरीर रोग ग्रस्त हो जाता है। 

एक्यूप्रेशर चिकित्सा के फायदे

एक्यूप्रेशर चिकित्सा पूर्णतया प्राकृतिक नियमों पर आधारित चिकित्सा पद्धति है व विश्वसनीय चिकित्सा पद्धति है। इस चिकित्सा पद्धति के फायदे है - 
  1. एक्यूप्रेशर द्वारा सभी प्रकार के रोगों की चिकित्सा सम्भव है। 
  2. यह बिना औषधि (दवाई) की चिकित्सा है। 
  3. यह चिकित्सा पूर्णतया प्राकृतिक चिकित्सा है। 
  4. एक्यूप्रेशर चिकित्सा सरल व सहज चिकित्सा है। 
  5. सभी प्रकार के रोगो की चिकित्सा एक्यूप्रेशर में सम्भव है। 
  6. बच्चे भी इसे सीख सकते है। 
  7. पीड़ा रहित एवं सुरक्षित चिकित्सा पद्धति है। 
  8. शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बड़ती है। 
  9. शारीर में आवश्यक तत्वों की आपूर्ति कर मांसपेशियों के तन्तुओ में स्फुर्ति आती है।
  10. एक्यूप्रेशर चिकित्सा से शरीर के सम्पूर्ण तन्त्र सुचारु रूप से कार्य करने लगते है। 
  11. एक्यूप्रेशर चिकित्सा में धन व समय की बचत होती है। 
  12. एक्यूप्रेशर द्वारा व्यक्ति स्वयं की चिकित्सा कर सकता है। 
  13. एक्यूप्रेशर चिकित्सा द्वारा लाभ तुरन्त ही मिल जाता है। 
  14. एक्यूप्रेशर चिकित्सा द्वारा चिकित्सालय ले जाने तक प्राथमिक चिकित्सा के रूप मे उपचार किया जा सकता है, जिससे की रोगी को तुरन्त लाभ मिल सके।

एक्यूप्रेशर चिकित्सा में सावधानियां

एक्यूप्रेशर चिकित्सा में कुछ सावधानियां अवश्य रखनी चाहिए जिससे कि चिकित्सा का पूर्ण लाभ लिया जा सके, - 
  1. एक्यूप्रेशर चिकित्सा देने के लिए स्थान साफ, हवादार,शाान्त व अनुकूल होना चाहिए। 
  2. चिकित्सक का व्यवहारशाान्त, सात्विक, सुविचार से युक्त व चिकित्सक को रोग मुक्त होना चाहिए। 
  3. चिकित्सा देते समय रोगी व चिकित्सक दोनों आरामदायक स्थिति में हो तथा रागी को तनाव रहित करें। 
  4. एक्यूप्रेशर पद्धति में प्रेशर के साथ-साथ पौष्टिक भोजन व हल्का व्यायाम का भी ध्यान रखना चाहिए। 
  5. प्रेशर देने से पहले चिकित्सक को यह देख लेना चाहिए कि कही नाखून तो बड़े हुए नहीं है। 
  6. रोगी के हाथो पैरो तथा विभिन्न प्रतिबिम्ब केन्द्रो पर प्रेशर देने से पहले रोगी के शरीर पर पाउडर या कोई तरल पदार्थ लगा लेना चाहिए, जिससे त्वचा पर कोई छाला न पड़े। 
  7. एक्यूप्रेशर चिकित्सा में किसी भी रोग की चिकित्सा करने पर मस्तिष्क तथा स्नायु संस्थान से सम्बन्धित प्रतिबिम्ब केन्द्रो पर प्रेशर अवश्य देना चाहिए, 
  8. गर्भावस्था में प्रेशर नहीं देना चाहिए। 
  9. हड्डी के टूटे भाग पर भी प्रेशर नहीं देना चाहिए। 
  10. एक्यूप्रेशर केवलशाारीरिक रोगो में ही उपयोगी नही है। 
  11. यह चिकित्सा चिन्ता व मानसिक तनाव को भी कम करती है। 
  12. कैंसर व मधुमेह के गम्भीर रोगियो के लिए तथा बहुत कमजोर व्यक्तियो के लिए भी एक्यूप्रेशर पद्धति का प्रयोग उचित नही है। 
  13. एक्यूप्रेशर चिकित्सा भोजन करने के एक घण्टे बाद ही देनी चाहिए, या एक्यूप्रेशर चिकित्सा देने के एक घण्टे बाद भोजन लेना चाहिए। यदि पेय लेना हो तो वह ठण्डा नही होना चाहिए। 
  14. चिकित्सा काल में यदि रोगी ठण्डी वस्तुये जैसे कोल्डड्रिक, आइसक्रीम, जूस, लस्सी आदि पदार्थ और खट्टे पदार्थ जैसे अचार, नीबू आदि खट्टे फल का सेवन ना करे तो रोगी कोशाीघ्र लाभ मिलता है। 
  15. रोगी को आरामदायक स्थिति में लिटाकर या बिठाकर दबाव देना चाहिए।
  16. प्रेशर देने का समय एक बार में 10 से 15 सेकेण्ड से डेढ़ मिनट तक होना चाहिए। उदर तथा मूत्राशय पर 3 सेकेण्ड से अधिक दबाव देना चाहिए। 
  17. एक दिन में दो बार प्रातः सायः ही प्रेशर देना चाहिए। 
  18. प्रेशर देते समय रोगी को टांगे तथा भुजाएं क्रास ना करने दें।
  19. रोगी को चिकित्सा के प्रति यह विश्वास दिलाये कि वहशाीघ्र स्वस्थ हो जायेगा, सेवाभाव प्रेम पूर्वक दी गयी चिकित्सा अवश्य फलवती होती है। 
  20. प्रेशर देने के लिए जिम्मी का प्रयोग, हाथो की हथेली, पैरो के तलवे व माॅसल स्थान पर ही करना चाहिए, उदर पर हड्डियो वाले स्थान पर जिम्मी से प्रेशर नही देना चाहिए।
  21. चिकित्सक को प्रेशर देने के लिए अंगुली, अंगूठे, हथेली, जिम्मी, रोलर व अन्य उपकरणो का प्रयोग आवश्यकता के अनुसार करना चाहिए। 

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