हिंसा का अर्थ
सामान्य अर्थ में जिस किसी भी बात से दूसरों को पीड़ा पहुँचे वह हिंसा है। किसी किसी प्राणी पर शासन करना, दास बनाना, किसी भी प्रकार की पीड़ा देना, सताना या अशांत करना हिंसा है।
हिंसा की परिभाषा
हिन्दू धर्म के अनुसार - प्रिय वचन नहीं बोलना, अप्रिय या कड़वे वचन का प्रयोग करना, दूसरे को हिंसा करने की अनुमति देना या प्रोत्साहित करना, दूसरों को डराना धमकाना भी हिंसा ही है।
हिंसा के रूप
हिंसा के दो रूप हो सकते है - स्थूल एवं सूक्ष्म। - स्थूल हिंसा से तात्पर्य ऐसी सभी बातों से है जो प्रत्यक्ष रूप से दूसरों की पीड़ा का कारण बनती है। गाली-गलौच से लेकर मारपीट, हत्या, बलात्कार आदि की घटनाएँ स्थूल हिंसा है।
- सूक्ष्म हिंसा दूसरों पर अपने विचार, मान्यताएँ थोपना, किसी का अनुचित फायदा उठाना आदि सूक्ष्म हिंसा है। इस तरह की चेष्टा दूसरों पर अपनी श्रेष्ठता जताने का ही प्रयास है।
हिंसा के प्रकार
- नस्लीय हिंसा
- लैंगिक हिंसा
- धार्मिक हिंसा
- घरेलू हिंसा
1. नस्लीय हिंसा-
नस्लवाद में मानवता को विभिन्न नस्लों के आधार पर विभाजित कर
कुछ नस्लों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार किया जाता है जो कि अमानवीय
है। प्राचीनकाल से अमेरिका में अश्वेत लोगों को गुलाम बनाने की प्रथा थी।
दक्षिण अफ्रीका में भी रंगभेद की नीति अपनायी जाती थी। हिटलर के
समय में यहूदियों के साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता था। पश्चिमी
देशों में तो आज तक नस्लीय भेदभाव जारी है, जिसका शिकार एशिया,
अफ्रीका और लेटिन अमेरिका के विभिन्न देशों के अप्रवासी लोग है।
2. लैंगिक हिंसा -
विश्व के कई देशों में पितृसत्तात्मक व्यवस्था है। भारत इसका उदाहरण
है जहाँ पुरुषों को अधिक महत्व प्रदान किया जाता है तथा स्त्रियों से यह
अपेक्षा की जाती है कि वे उनके अधीन रहे। यह लैंगिक हिंसा अनेक रूपों
में देखने को मिलती है। जैसे- कन्या भ्रूण हत्या, लड़का-लड़की के
लालन-पालन में भेदभाव, बाल विवाह, उत्पीड़न, दहेज, यौन शोषण,
बलात्कार आदि। भारत में गिरता लिंगानुपात इसका सूचक है। 4. धार्मिक हिंसा -
धर्म के आधार पर होने वाली हिंसा के कारण विश्व में अनगिनत लोगों
को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। कहीं पोप ने अपने हित लाभ के लिये
लाखों निर्दोष अबलाओं को चुड़ैल घोषित कर जिंदा जलवा दिया, कही
हिटलर ने यहूदी धर्म से अपनी कुण्ठा निकालने के लिए लोगों को
यातनाघरों एवं गैस चेम्बरों में तपा-तपा कर मार दिया, भारत-पाकिस्तान
में धर्म के नाम पर दंगों में लाखों लोग मार दिये।
6. घरेलू हिंसा -
घरेलू हिंसा की जड़े हमारे समाज तथा परिवार में गहराई तक जम गई
है। इसे व्यवस्थागत समर्थन भी मिलता है। घरेलू हिंसा के खिलाफ यदि
कोई महिला आवाज मुखर करती है तो इसका तात्पर्य होता है अपने
समाज और परिवार में आमूलचूल परिवर्तन की बात करना। प्राय: देखा जा
रहा है कि घरेलू हिंसा के मामले दिनो-दिन बढ़ते जा रहे है। परिवार तथा
समाज के संबंधों में व्याप्त ईर्ष्या, द्वेष, अहंकार, अपमान तथा विद्रोह घरेलू
हिंसा के मुख्य कारण है। परिवार में हिंसा की शिकार केवल महिलाएँ ही
नहीं बल्कि वृद्ध और बच्चे भी बन जाते है। प्रकृति ने महिला और पुरुष
की शारीरिक संरचनाएँ जिस तरह की है, उनमें महिला हमेशा नाजुक और
कमजोर रही है।
हिंसा की परिभाषा में हिन्दू धर्म के हीं अनुसार क्यों, हिंसा किसी भी धर्म के अनुसार एक हीं होगा।
ReplyDeleteSamaj mein hinsa badhne ke kya karan hain?
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