प्रबंधकीय लेखांकन क्या है ? Management Accounting in Hindi

शाब्दिक दृष्टिकोण से ‘ प्रबंधकीय लेखांकन’ शब्द से तात्पर्य है, प्रबन्ध के लिए लेखांकन। जब लेखांकन प्रबन्ध की आवश्यकताओं के लिए सभी सूचनाएं प्रदान करने की कला (Art) बन जाती है तो उसे प्रबन्धकीय लेखांकन कहते हैं।

प्रबंधकीय लेखांकन की परिभाषा 

इन्स्टीट्यूट आफ चार्टर्ड एकाउन्टेन्ट्स, इंग्लैंड - “प्रबन्धकीय लेखा-विधि से आशय लेखांकन के किसी भी ऐसे प्रारूप से है जिससे व्यवसाय को अधिक कुशलतापूर्वक चलाया जा सके।”

आर. एन. एन्थानी - “प्रबन्धकी लेखांकन ऐसी लेखांकन सूचना से सम्बन्धि है जो प्रबन्धकों के लिए उपयोग है।”
निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि प्रबंधकीय लेखांकन का आशय लेखा सम्बन्धी तथ्यों, परिणामों एवं सूचनाओं के निर्वचन, प्रस्तुतीकरण एवं व्याख्या से है जिसका उपयोग प्रबन्ध अपने नीति निर्धारण एवं उसके क्रियान्वयन तथा कुशल निर्देशन हेतु करता है, जो निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक हो।

प्रबंधकीय लेखांकन की प्रकृति अथवा विशेषताएं 

प्रबंधकीय लेखांकन को इन प्रकृति के आधार पर वर्णित किया गया है-

1. लेखांकन सेवाकार्य - प्रबंधकीय लेखांकन प्रबन्ध के प्रति एक लेखांकन सेवा कार्य है जिसमें प्रबन्धकों को संस्था के नीति-निर्धारण एवं विवेक पूर्व निर्णय लेने हेतु वांछित आवश्यक सूचनाएं समय पर उपलब्ध कराई जाती है जिनका उपयोग प्रबन्ध संस्था के निश्चित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए करते हैं। 

2. चुनाव पर आधारित - विभिन्न समान प्रकृति एवं विशेषता वाली योजनाओं का तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है जो योजना सर्वाधिक लाभप्रद एवं श्रेष्ठ होती है, उसका चुनाव किया जाता है। 

3. भविष्य पर जोर - प्रबंधकीय लेखांकन केवल ऐतिहासिक तथ्यों के संकलन तक सीमित नहीं रहता, बल्कि क्या होना चाहिए इस पर प्रकाश डालता है। भविष्य के लिए योजनाएं बनाई जाती हैं तथा जब यह भविष्य वर्तमान के रूप में सामने आता है तो इसका विश्लेषण किया जाता है बजटरी नियंत्रण, प्रमाप लागत एवं विचरण-विश्लेषण ऐसी ही प्रविधियां हैं जो भविष्य पर प्रकाश डालती हैं। 

4. लागत तत्वों की प्रकृति पर जोर -  प्रबंधकीय लेखांकन में लागत तत्वों की प्रकृति का विशेष ध्यान रखा जाता है। इसमें लागतों को परिवर्तनशील, स्थिर एवं अर्द्ध-परिवर्तनशील वर्गों में विभाजित किया जाता है। ऐसा करने से प्रबन्धकीय निर्णय करने में सहायता मिलती है। प्रबंधकीय लेखांकन में इस वर्गीकरण पर आधारित सीमान्त लागत विश्लेषण, प्रत्यक्ष लागत विश्लेषण, लागत-लाभ मात्रा विश्लेषण आदि प्रविधियों का प्रयोग किया जाता है। प्रबन्ध लेखांकन की इस विशेषता के आधार पर कहा जाता है कि “प्रबन्ध लेखांकन लागत लेखांकन के प्रबन्धकीय पहलू का ही विस्तार है। 

5. कारण व प्रभाव पर जोर - प्रबंधकीय लेखांकन में ‘कारण एवं उसके प्रभाव’ का विशेष अध्ययन किया जाता है। उदाहरणार्थ, वित्तीय लेख केवल लाभ की मात्रा बताते हैं जबकि प्रबंधकीय लेखांकन में यह ज्ञात किया जाता है कि यह लाभ किन कारणों से हुआ तथा विभिन्न सम्बन्धित मदों से इसका सम्बन्ध ज्ञात कर उसका विश्लेषण किया जाता है। 

6. एकीकृत पद्धति - प्रबंधकीय लेखांकन में अनेक विषयों, प्रणालियों, पद्धतियों प्रविधियों, प्रारूपों व अन्य सम्बन्धित तथ्यों का एकीकरण किया जाता है। इसमें वित्तीय लेखांकन, लागत लेखांकन, सांख्यिकी, अर्थशास्त्र, व्यवसाय प्रबन्ध, अंकेक्षण, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान आदि विषयों के व्यावहारिक ज्ञान का प्रयोग किया जाता है।

7. नियम सुनिश्चित एवं सर्वव्यापी नहीं - प्रबन्धकीय लेखांकन के नियम कभी भी सुनिश्चित एवं सर्वव्यापी एवं नहीं होते हैं। प्रबन्ध-लेखांकन सूचनाओं का प्रस्तुतीकरण एवं विश्लेषण सामान्य नियमों से हटकर प्रबन्धकीय उद्देश्यों को ध्यान में रखकर अलग-अलग ढंग से कर सकता है। 

8. केवल समंकों की प्रस्तुति - प्रबंधकीय लेखांकन में केवल समंकों के माध्यम से सूचना मिल सकती है जिसका विस्तृत अर्थ में प्रयोग किया जा सकता है, परन्तु इन समंकों के आधार पर उचित निर्णय प्रबन्धकों को लेने पड़ते हैं। प्रबंधकीय लेखांकन तो वस्तुत: निर्णयन के लिए आधार प्रस्तुत करता है।

अत: हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि प्रबन्ध लेखांकन विज्ञान व कला दोनों हैं। प्रबंधकीय लेखांकन की समस्याएं संख्यात्मक रूप पर अधिक निर्भर है तथा कारण व प्रभाव के सम्बद्ध का अध्ययन करता है अत: यह विज्ञान है। लेकिन इसमें मानव तत्व व निर्णय की अहम् भूमिका है जो इस बात निर्णय करती है कि प्रबन्ध को सहायता के लिए किसी प्रकार की सूचनांए प्राप्त की जाएं तथा उन्हें किस प्रकार प्रस्तुत किया जाये ताकि वे अधिक उपयोगी सिद्ध हो सके। यह पूर्णत: मानव की बुद्धिमता, चातुर्य व अनुभव पर निर्भर करता है इसलिए यह कला भी है।

प्रबंधकीय लेखांकन का क्षेत्र 

प्रबंधकीय लेखांकन का क्षेत्र बहुत व्यापक है। इसमें किसी व्यावसायिक संस्था के भूतकालिक एवं वर्तमान के लेखों का अध्ययन करके भावी प्रवृतियों का अनुमान लगाया जाता है। इस प्रकार लेखों का भूतकालिक एवं वर्तमान अध्ययन तथा विश्लेषण तथा भावी प्रवृति का सही पूर्वानुमान प्रबंधकीय लेखांकन के क्षेत्र में ही आता है। सामान्यतया निम्नलिखित विषयों को प्रबंधकीय लेखांकन के क्षेत्र में सम्मिलित किया जाता है-

1. सामान्य लेखांकन - इसका आशय वित्तीय लेखांकन से है, जिसमें आय, व्यय, सम्पत्ति, दायित्व एवं रोकड़ के प्राप्ति व भुगतान सहित सभी लेनदेनों को सम्मिलित किया जाता है। खातों के शेषों द्वारा मासिक, त्रैमासिक, अर्द्धमासिक एवं वार्षिक विवरण एवं प्रतिवेदन तैयार कर आय, व्यय, लाभ-हानि आदि की गणना भी इसी के अन्तर्गत आती है। 

2. लागत लेखांकन - लागत लेखांकन के अन्तर्गत विभिन्न प्रक्रियाओं, उपकार्यों तथा उत्पादों की लागतों का उचित लेखा रखा जाता है। प्रबन्धकीय निर्णयों हेतु लागत सूचनाओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। 

3. लागत विश्लेषण एवं नियन्त्रण - विभिन्न लागतों का विश्लेषण कर उन पर नियन्त्रण के लिए लागत लेखों की कई महत्वपूर्ण तकनीकों जैसे सीमान्त लागत लेखांकन, प्रमाप लागत लेखांकन, भेदात्मक लागत आदि का प्रयोग किया जाता है। 

4. बजटरी नियंत्रण एवं पूर्वानुमान - इसके अन्तर्गत व्यावसायिक संस्था के भावी बजट एवं पूर्वानुमान तैयार किये जाते हैं। विभिन्न विभागों एवं क्रियाओं के अलग-अलग बजट तैयार कर नियन्त्रण व्यवस्था को स्थापित किया जाता है। 

5. सांख्यिकीय विधियां -विभिन्न सांख्यिकीय तकनीकों जैसे ग्राफ, चार्ट, रेखाचित्र, सूचकांक आदि सूचनाओं को प्रस्तुति को प्रभावशाली बनाते हैं। अन्य सांख्यिकीय विधियां जैसे काल श्रेणी (Time Series), प्रतिगमन विश्लेषण (Regression Analysis), प्रतिदर्श तकनीक (Sampling) आदि नियोजन एवं पूर्वानुमान के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हुई है। 

6. क्रियात्मक शोध - क्रियात्मक शोध की तकनीकें जैसे लीनियर प्रोग्रामिंग, पंक्ति सिद्धान्त (Line Theory), खेल सिद्धान्त (Game Theory), निर्णयन सिद्धान्त (Decision Theory) आदि अति मुश्किल प्रबन्धकीय समस्याओं के वैज्ञानिक तरीके से समाधान में मदद करती है। 

7. कराधान - इसके अन्तर्गत विभिन्न कर कानूनों एवं नियमों के आधार पर कर की गणना करने के अतिरिक्त कर नियोजन को भी सम्मिलित किया जाता है। 

8. पद्धतियां एवं कार्य-विधियां - इसमें विभिन्न कार्यालय-क्रियाओं एवं कुशलतम पद्धतियां का निर्धारण, उन्हें क्रमबद्ध करना, उनकी लागत कम करना तथा उनको अधिक प्रभावपूर्ण बनाना शामिल है। 

9. प्रतिवेदन - इसमें आन्तरिक प्रबन्ध के लिए व्यावसायिक क्रियाओं एवं प्रबन्धकीय कार्यों के कुशल निष्पादन हेतु मासिक, त्रैमासिक, अर्द्धमासिक, वार्षिक विवरण तथा प्रतिवेदन तैयार करना सम्मिलित है। वार्षिक खाते, रोकड़ प्रवाह विवरण (Cash Flow Statement), कोष प्रवाह विवरण (Fund Flow Statement ) आदि भी इसी के अन्तर्गत आते हैं। 

10. आन्तरिक अंकेक्षण - इसके अन्तर्गत आन्तरिक नियन्त्रण को सफल बनाने के लिए भी कार्यात्मक इकाइयों में आन्तरिक अंकेक्षण प्रणाली लागू करना सम्मिलित है। 

11. कार्यालय सेवा - इसके अन्तर्गत सेवाओं का संवहन, डाक, प्रतिलिपि, आवश्यक सामान की पूर्ति, छपार्इ आदि सेवाएं प्रमुख हैं। इसमें आधनिक मशीनों के प्रयोग द्वारा कार्यालय कार्य तथा समंक का लेखा किया जाता है। 

12. विधि - विभिन्न प्रबन्धकीय निर्णय विधिक वातावरण में ही लेने होते हैं जिसमें कर्इ कानूनी प्रावधानों एवं नियन्त्रणों को ध्यान में रखना होता है। इसके अन्तर्गत सभी व्यावसायिक कानून, जैसे कम्पनी कानून, विदेशी विनिमय प्रबन्ध कानून, साझेदारी अधिनियम आदि शामिल किये जाते हैं। इस प्रकार उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि प्रबंधकीय लेखांकन का क्षेत्र बड़ा व्यापक है तथा इसमें निरन्तर वृद्धि होती जा रही है।

प्रबंधकीय लेखांकन के कार्य 

प्रबंधकीय लेखांकन के कार्यों को सुविधा की दृष्टि से दो वर्गों में बांट कर अध्ययन करना आवश्यक है-
  1. प्रबन्ध को लेखा सूचना उपलब्ध कराना 
  2. प्रबन्धकीय क्रियाओं के निष्पादन में सहायता देना
1. प्रबन्ध को लेखा सूचना उपलब्ध कराना - जहां तक प्रबन्ध को लेखा सूचना उपलब्ध कराने का प्रश्न है, प्रबंधकीय लेखांकन कार्य करता है-
  1. समंको का अभिलेखन - प्रबंधकीय लेखांकन के अन्तर्गत उत्पादन, विक्रय, वित्त, अनुसंधान, श्रम आदि क्रियाओं से सम्बन्धित वित्तीय, लागत एवं अन्य समंकों का इस प्रकार अभिलेखन किया जाता है ताकि प्रबन्ध को नियोजन, नीति निर्धारिण एवं निर्णय करने के लिए नवीनतम आंकड़ें उचित समय पर उपलब्ध हो सके। 
  2. समंको की सत्यता की जांच अभिलेखन  - प्रबंधकीय लेखांकन द्वारा उपलब्ध समंकों के आधार पर कोर्इ निर्णय लेने से पूर्व इनकी शुद्धता की जांच करना आवश्यक है, पूर्वानुमानित एवं वास्तविक समंकों में कुछ न कुछ अन्तर आ ही जाता है। ऐसे में समंकों को एक निश्चित विश्वास स्तर पर प्रस्तुत किया जाता है। 
  3. समंको का विश्लेषण एवं निर्वचन - प्रबन्धकीय लेखांकन द्वारा वित्तीय एवं लागत लेखों से प्राप्त समंकों का विश्लेषण एवं निर्वचन कर उन्हें प्रबन्ध के लिए निर्णय लेने में सहायक बनाया जाता है। समंकों का विश्लेषण एवं निर्वचन प्रबन्ध का प्रमुख कार्य है।
  4. समंको का समंकों का संवहन - जब तक संकलित, विश्लेषित एवं निर्वचित समंकों को उन व्यक्तियों के पास सम्प्रेषित नहीं किया जायेगा जो उनसे सम्बन्धित है, तब तक कोर्इ भी प्रतिफल प्राप्त नहीं हो सकता। प्रबंधकीय लेखांकन द्वारा समंकों को सही समय पर सही व्यक्ति के पास उचित रूप में पहुंचाने का कार्य किया जाता है।
2. प्रबन्धकीय क्रियाओं के निष्पादन में सहायता देना - प्रबंधकीय लेखांकन का महत्वपूर्ण कार्य प्रबन्ध के विभिन्न कार्यों के प्रभावशाली निष्पादन में सहायता देना ताकि वह अपना दायित्व पूरा कर सके। जैसे -
  1. नियोजन - प्रबंधकीय लेखांकन द्वारा व्यवसास से सम्बन्धित विभिन्न दीर्घकालीन एवं अल्पकालीन योजनाएं बनाने का कार्य किया जाता है।बजट व्यावसायिक नियोजन का प्रमुख उपकरण है जो प्रबंधकीय लेखांकन का एक अंग है। 
  2. संगठन - प्रबंधकीय लेखांकन के अन्तर्गत विभिन्न भौतिक एवं मानवीय संसाधनों को उनकी उपलब्धता के अनुरूप उचित प्रयोग हेतु व्यवसाय की विशिष्टता को ध्यान में रखते हुए दायित्व का विभाजन व अधिकारों का प्रत्यायोजन किया जाता है। 
  3. नियंत्रण  - प्रबंधकीय लेखांकन के अन्तर्गत विविध प्रतिवेदनों एवं विवरणों द्वारा उन सभी बातों की ओर ध्यान आकर्षित किया जाता है, जिन पर समय रहते नियंत्रण की आवश्यकता होती है। 
  4. अभिप्रेरणा  - प्रबंधकीय लेखांकन से प्रबन्धकों को समय-समय पर विविध लेखांकन सूचनाएं प्राप्त होती रहती है, जिसे आधार बनाकर संतोषप्रद कार्य संचालन हेतु कर्मचारियों को प्रोत्साहित करते रहते हैं। 
  5. समन्वय - प्रबंधकीय लेखांकन व्यवसाय के विभिन्न विभागों, व्यक्तियों एवं क्रियाओं में समन्वय का कार्य करता है। प्रबन्धकीय लेखापाल प्रबन्धकों को व्यवसायिक क्रियाओं में समन्वय स्थापित करने के उद्देश्य समय-समय पर विभिन्न प्रतिवेदन एवं सुझाव देता रहता है। 
  6. निर्णयन - प्रबंधकीय लेखांकन का एक महत्वपूर्ण कार्य प्रबन्ध को निर्णय करने में आवश्यक सूचनाएं उपलब्ध कराना है। प्रबंधकीय लेखांकन के अन्तर्गत क्रय, विक्रय, वित्त, उत्पादन आदि से सम्बन्धित विविध योजनाओं के बारे में विचार किया जाता है। प्रबंधकीय लेखांकन द्वारा निर्णय हेतु प्रबन्ध के समक्ष विभिन्न विकल्पों की लाभप्रद विकल्प के चुनाव का आधार तैयार किया जाता है।

प्रबंधकीय लेखांकन के उपकरण व तकनीकें अथवा पद्धतियाँ

प्रबंधकीय लेखांकन में ये विभिन्न तकनीकें एवं उपकरण हैं-
  1. वित्तीय नियेाजन 
  2. वित्तीय लेखांकन एवं विश्लेषण 
  3. कोष प्रवाह विश्लेषण
  4. रोकड़ प्रवाह विवरण 
  5. ऐतिहासिक लागत लेखांकन 
  6. सीमान्त लागत लेखांकन 
  7. बजट एवं बजटरी नियंत्रण 
  8. निर्णयन लेखांकन 
  9. पूँजी विनियोगों पर प्रतिदान 
  10. नियन्त्रण लेखांकन 
  11. सांख्यिकीय चार्ट तथा ग्राफ टेकनीक
  12. पुनर्मूल्यांकन लेखांकन 
  13. प्रमाप लागत लेखांकन
  14. प्रबन्धकीय सूचना प्रणाली 
1. वित्तीय नियोजन - वित्तीय नियोजन व्यवसाय के मूलभूत लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु एक आवश्यक आधारशिला है। व्यवसाय के लिए आवश्यक दीर्घकालीन एवं अल्पकालीन वित्तीय आवश्यकताओं का पूर्वानुमान कर वांछित पूँजी के प्रबन्ध हेतु भावी वित्तीय कठिनाइयों से बचा जा सकता है। साथ ही व्यवसाय की सभी गतिविधियाँ बिना किसी बांध के निरतर संचालित होती रहती है। 

 प्रबंधकीय लेखांकन में वित्तीय नियोजन तकनीक के अन्तर्गत निम्न मुख्य कार्य सम्मिलित किये जाते हैं-
  1. व्यवसाय के लिए आवश्यक कुल पूंजी का अनुमान करना। 
  2. स्थायी एवं कार्यशील पूंजी की गणना करना।
  3. पूंजी प्राप्ति के स्रोतों का निर्धारण करना। 
  4. पूंजी प्राप्ति के विभिनन स्रोतों द्वारा प्राप्त की जाने वाली पूँजी लागत की संगना करना। 
  5. पूँजी प्राप्ति में विभन्न स्रोतों में से तुलनात्मक रूप से मितव्ययी स्रोतों का पता लगाना। 
  6. प्राप्त पूँजी का स्थायी एवं चल सम्पत्तियों में विनियोजन की अनुकूलतम मात्रा का निर्धारण करना।
  7. आधिक्य (Surplus) की दशा में सुविधाजनक एवं लाभदायक विनियोजन का पता लगाना। स्पष्ट है, वित्तीय नियोजन प्रबंधकीय लेखांकन की एक महत्वपूर्ण तकनीक है जिसका प्रयोग कर उक्त सभी कार्य कुशलतापूर्वक सम्पादित किये जा सकते हैं।
2. वित्तीय लेखांकन एवं विश्लेषण - वित्तीय लेखांकन एवं उसका विश्लेश्ज्ञण प्रबंधकीय लेखांकन का एक महत्वूपर्ण उपकरण है। वित्तीय लेखे व्यवसाय की भाषा है जिसके माध्यम से व्यवसाय की गतिविधियों के सम्बन्ध में विभिन्न सूचनाओं का संवहन सम्बन्धित पक्षकारों को किया जाता है।

वित्तीय लेखों के अन्तर्गत व्यवसाय के प्रत्येक व्यवहार का अंकन किया जाता है तथा इसी आधार पर लाभ-हानि लेखा (P & L a/c) तथा स्थिति विवरण (Balance Sheet) का निर्माण किया जाता है। वित्तीय लेखांकन द्वारा प्राप्त सूचना के आधार पर ही वित्तीय विवरणों (Financial Statements) का विश्लेषण, तुलनात्मक अध्ययन, अनुपात विश्लेषण, प्रवृत्ति विश्लेषण आदि तकनीकों को अपनाया जा सकता है तथा व्यवसाय की प्रवृत्ति मानी जा सकती है। वित्तीय विश्लेषण द्वारा प्रेषित सूचनाएं प्रबन्धकों, प्रशासकों तथा ऋणदाताओं को किसी निश्चित निर्णय पर पहुँचने में सहायक तो होती ही है इससे भावी आय अर्जन, ऋण पर ब्याज दे सकने की उपक्रम की क्षमता तथा उचित लाभांश नीति की सम्भावना आदि के बारे में भी जानकारी प्राप्त होती है। साथ साथ गत वर्षों के अन्तिम खातों से प्राप्त समंकों के आधार पर, व्यवसाय की प्रवृत्ति का पता लगाया जा सकता है। जिसके आधार पर प्रबन्धक व्यवसाय की भावी योजनाओं का निर्माण कर सकते हैं।

3. कोष प्रवाह विश्लेषण - दो विभिन्न तिथियों के बीच वित्तीय स्थिति के परिवर्तन का अध्ययन करने की दृष्टि से कोष प्रवाह विश्लेषण एक महत्वपूर्ण प्रबन्धकीय उपकरण है। इसके विश्लेषण से यह जाना जा सकता है कि अतिरिक्त कोष की प्राप्ति किन-किन स्रोतों से हुर्इ है तथा उनका कहाँ-कहाँ प्रयोग हुआ है। वित्तीय विश्लेषण, तुलनात्मक अध्ययन एवं भाव नियंत्रण के लिए यह विधि आवश्यक पथ-प्रदर्शन करती है।

4. रोकड़ प्रवाह विवरण -  ‘कोष प्रवाह विवरण’ (Fund Flow Statement) के अन्तर्गत शुद्ध क्रियाशील पूँजी की विभिन्न मदों तथा उनमें होने वाले परिवर्तनों को सम्मिलित किया जाता है। शुद्ध क्रियाशील पूँजी  (Net Working Capital) के अन्तर्गत रोकड़ (Cash) की मद के साथ-साथ अन्य अनेक मदों को भी सम्मिलित किया जाता है। वर्तमान में व्यवसाय में प्रबन्धकों के लिए यह जानकारी अत्यन्त आवश्यक होती है कि एक निश्चित अवधि में व्यवसाय में रोकड़ (Cash) की कितनी प्राप्ति हुर्इ है तथा कितना भुगतान किया गया है। 

दूसरे शब्दों में रोकड़ की प्राप्ति (Receipts) को रोकड़ का स्रोत (Sources of Cash) तथा भुगतान (Payments) को रोकड़ का प्रयोग (Application of Cash) कहा जा सकता है। रोकड़ प्रवाह विवरण जिसे रोकड़ में परिवर्तनों के कारणों का विवरण (Statement accounting for variations in Cash) भी कहा जाता है, प्रबन्धकों को रोकड़ की प्राप्ति (या स्रेात) तथा रोकड़ के भुगतान (या प्रयोग) से सम्बन्धित जानकारी प्रदान करता है अर्थात् यह स्पष्ट हो जाता है कि किस-किस स्रोत से कितना-कितना रोकड़ प्राप्त हुआ है और इसी प्रकार किस-किस मद पर कितने रोकड़ का भुगतान किया गया है। यह विवरण दो अवधियों के बीच व्यवसाय के रोकड़ शेष में हुए परिवर्तनों के कारणों की व्याख्या भी करता है जिससे प्रबन्धकों को निर्णय लेने तथा भावी नीति निर्धारण में सहायता मिलती है।

5. ऐतिहासिक लागत लेखांकन -  ऐतिहासिक लागत लेखांकन का अर्थ लागतों को उनके उदित होने की तिथि पर या इस तिथि से तुरन्त बाद अंकन करने से है।

6. सीमान्त लागत लेखांकन - इस तकनीक के अन्तर्गत उत्पादन की लागत को स्थिर या स्थायी लागत  एवं परिवर्तनीय या अस्थिर लागत (Variable Cost) में विभाजित किया जाता है।

7. बजट एवं बजटरी नियंत्रण -  आधुनिक व्यावसायिक जीवन अपेक्षाकृत अधिक अस्थिर तथा हानिमय से पूर्ण है। एक और गहन प्रतिस्पर्धा, सरकारी नीति, विभिन्न प्रकार के कानून, प्रतिबन्ध आदि व्यावसायिक जगत में अनेकानेक कठिनाइयां तथा बाधाएं उत्पन्न करते है। वहीं दूसरी ओर नवीन यन्त्र, उपकरण तथा उत्पादन विधि की नर्इ-नर्इ प्रणाली, बदलता हुआ फैशन तथा बाजार की परिवर्तनशील प्रकृति व्यवसाय को अस्थिर तथा हानिमयपूर्ण बना देती हे। आज के युग में सफल व्यवसायी वही हो सकता है जो इस भयपूर्ण स्थिति पर काबू पा सके। इन कठिनार्इयों और अस्थिरताओं पर नियंत्रण का सबसे उत्तम उपाय यही है कि उद्योग की समस्त गतिविधियों की भूतजकालीन परिस्थितियों का अध्ययन किया जाये तथा वर्तमान परिस्थितियों का समायोजन करके भावी परिस्थितियों के लिए दूरदर्शिता से कार्य किया जाये।

8. निर्णयन लेखांकन - किसी व्यवसाय की स्थापना से लेकर उसकी गतिविधियों के संसुचालन तथा उसके विकास को गति देने के समय प्रबन्धकों के समक्ष अनेक समस्याएं होती हैं। उन समस्याओं को हल करने के लिए प्रबन्धकों के पास अनेक विकल्प होते हैं। इन विकल्पों में से वे सर्वोत्तत लाभप्रद विकल्प या तरीकों का चुनाव, जिससे सभी कार्य न्यूनतम लागत तथा कम समय में सुविधापूर्वक सम्पन्न हो जाया करते हैं यह निर्णयन कहलाता है।

9. पूंजी विनियोगों पर प्रतिदान - व्यावसायिक उपक्रम में नियोजित की गर्इ पूँजी की लाभ दायकता के निर्धारण के लिए इस तकनीक का प्रयोग किया जाता है। विभिन्न परियोजनाओं (Projects) पर किये जाने वाले पूँजी व्ययों को आर्थिक सुदृढ़ता के निर्धारण के लिए भी इसका प्रयोग होता है।

10. नियन्त्रण लेखांकन नियन्त्रण लेखांकन भी कोर्इ अलग से लेखांकन की पद्धति नही ं ह।ै इसके अन्तर्गत प्रबन्ध लेखापाल अपने बुद्धि कौशल, कल्पना एवं प्रतिभा से प्रबन्धकों को कुछ उपयोगी सूचना दे सकते हैं।

11. सांख्यिकीय चार्ट तथा ग्राफ टेकनीक - प्रबंधकीय लेखांकन के अन्तर्गत् अनेक सांख्यिकीय चार्ट तथा ग्राफों का भी प्रयोग किया जाता है। इनके प्रयोगों से एक दृष्टि में मोटे तौर पर समस्याओं का अध्ययन किया जा सकता है। विक्रय लाभ चार्ट, विनियोग चार्ट, प्रतीपगमन रेखाएं (Regresssion lines), रेखीय कार्यक्रम (Linear Programming), सांख्यिकीय किस्म नियन्त्रण (Statistical Quality Control) इसी प्रकार की तकनीकें हैं।

12. पुनर्मूल्यांकन लेखांकन - इस विधि को प्रतिस्थापन मूल्य भी कहा जाता है। प्रतिस्थापन मूल्य का अर्थ यह विश्वास दिलाना होता है कि संस्था की पूंजी पूर्णत: सुरक्षित है। व्यवसाय के लाभ की गणना इसी तथ्य को ध्यान में रखकर की जाती है।

13. प्रमाप लागत लेखांकन - लागत पर नियंत्रण रखने के लिए यह तकनीक अपनायी जाती है। इस विधि के अन्तर्गत किसी उपकार्य (Job) या प्रक्रिया (Process) के लिए औसत कार्य-कुशलता के आधार पर पहले ही कुछ प्रमाप निश्चित कर दिये जाते हैं। बाद में कार्य सम्पादन पर पूर्व-निर्धारित प्रमापों के साथ वास्तविक लागत की तुलना का अन्तर की राशि एवं इसके कारणों को जानने का प्रयत्न किया जाता है ताकि लागत पूर्व-निर्धारित प्रमापों के यथासम्भव करीब है।

14. प्रबन्धकीय सूचना प्रणाली - प्रबन्धकीय सूचना प्रणाली या प्रतिवेदन (Reporting) प्रबंधकीय लेखांकन का एक आवश्यक अंग है। जैसे-जैसे किसी व्यवसाय का आकार बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे उसके क्रिया कलापों पर नियंत्रण (Control) की समस्या में वृद्धि हेाती जाती है। बड़े आकार की व्यवस्था में नियंत्रण व्यवस्था के सुचारू रूप से क्रियान्वयन के अधिकार एवं उत्तरदायित्व का विभाजन (Delegation of Authority and responsibility) भी किया जाता है।

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