विपणन वातावरण का अर्थ, परिभाषा, प्रकृति, आवश्यकता अथवा महत्व

वातावरण से आशय किसी संगठन के आस पास विद्यमान उन घटकों, शक्तियों से हैं जो संगठन को प्रभावित करते है लेकिन संगठन का उन पर किसी भी प्रकार का नियन्त्रण नहीं होता है विपणन वातावरण के अन्तर्गत आती है।

1. कोटलर एवं आर्मस्ट्रांग -”एक संस्था के विपणन वातावरण में बाहर के वे सभी कारक एवं शक्तियां सम्मिलित है जो लक्ष्य ग्राहकों के साथ सफल सम्बन्ध बनाने एवं उन्हें बनाये रखने की विपणन प्रबन्धक की योग्यता को प्रभावित करती है।” 

2. क्रेवेन्स व अन्य के द्वारा -”विपणन वातावरण वह है जो विपणन प्रबन्ध कार्य के बाहर का है, जो सामान्यत: नियन्त्रण योग्य नहीं है, जो विपणन निर्णय के लिए गर्भित रूप से प्रासंगिक है तथा जो परिवर्तनशील अथवा निरोधक है।” 

निष्कर्ष के रूप में यह कहा जा सकता है कि विपणन प्रबन्ध के बाहरी वातावरण में विद्यमान वे शक्तियां या कारक जो विपणन प्रबन्ध की कार्यकुशलता को प्रभावित करती है तथा जिन पर विपणन प्रबन्ध का कोई नियन्त्रण नहीं होता है, विपणन वातावरण के अन्तर्गत आती है।

विपणन प्रबन्ध के वातावरण की प्रकृति

1. दो प्रकार - विपणन प्रबन्ध का वातावरण दो प्रकार का होता है, आन्तरिक वातावरण एवं बाहरी वातावरण। आन्तरिक वातावरण में संगठन के अन्दर विद्यमान वे तत्व होते है, जिन पर विपणन प्रबन्धन नियन्त्रण कर लेता है जबकि बाहरी वातावरण के तत्वों पर विपणन प्रबन्धन का कोई नियन्त्रण नहीं होता है। 

2. गतिशील एवं परिवर्तन घटक - विपणन प्रबन्ध का वातावरण गतिशील घटकों से बना है जो निरन्तर परिवर्तनशील होते है। ये घटक आर्थिक, राजनैतिक, भोगोलिक, धार्मिक एवं तकनीकी प्रकृति के हो सकते हैं। 

3. घटकों की परस्पर निर्भरता - उपरोक्त सभी घटक एक दुसरे को प्रभावित करते हैं एवं एक दूसरे पर निर्भर होते है। जैसाकि आप जानते हैं कि धार्मिक सिरियल जो टी.वी. पर आते है, कभी-कभी टी.वी. की बिक्री को बढ़ा देते है। 

4. सूचनाओं का उपयोग - विपणन प्रबन्ध बाहरी वातावरण से सूचनाएँ प्राप्त करता है तथा उन सूचनाओं को आधार बना कर बाहरी वातावरण की अनिश्चितताओं का सामना करता है। 

5. द्विमार्गीय संचार - विपणन प्रबन्ध को आपने बाहरी वातावरण के निरन्तर सम्पर्क में रहना पड़ता है तथा द्विमार्गीय संचार व्यवस्था कायम करनी पड़ती है। इसी संचार व्यवस्था से सूचनाओं का आदान-प्रदान होता है। 

6. वातावरण के घटकों के अनुरूप परिवर्तन - विपणन प्रबन्धक को वातावरण के घटकों में हो रहे परिवर्तनों का ध्यान रखना चाहिए तथा इन्ही परिवर्तनो के अनुरूप अपनी विपणन नीतियों एवं व्यूह रचनाओ में परिवर्तन करना चाहिए। 

7. संसाधनों की प्राप्ति - विपणन प्रबन्ध अपने संसाधन जैसे श्रम, पूंजी, कच्चा माल, मशीन आदि बाहरी वातावरण से प्राप्त करता है। इन संसाधनों की प्राप्ति के मार्ग मे विभिन्न प्रकार की समस्याएँ आती है। तथा इनकी निरन्तर आपूर्ति के लिए विभिन्न प्रकार के समझौते करने आवश्यक होते हैं। 

8. सामाजिक उत्तरदायित्व - विपणन प्रबन्ध अपने बाहरी वातावरण के घटकों के प्रति उत्तरदायी है इन घटकों में नागरीक, कर्मचारी, उपभोक्ता, प्रतिस्र्पद्धी संस्थाए, अंशधारी, सरकार आदि हो सकते हैं जिनके प्रति विपणन प्रबन्ध को अपने सामाजिक दायित्वों की पूर्ति करनी होती है। 

9. कार्यक्षेत्र की सीमा - विपणन प्रबन्ध के कार्यक्षेत्र की एक भौगोलिक सीमा होती है. जो विपणन प्रबन्ध के कार्यों के अनुरूप विस्तृत एवं संकुचित हो सकती है। 

10. विपणन प्रबन्ध का वातावरण पर प्रभाव - विपणन प्रबन्ध स्वयं वातावरण से प्रभावित तो होता है लेकिन कभी-कभी अपनी विशेष स्थिति के कारण कुछ सीमा तक वातावरण को भी प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए जब बहुराष्ट्रीय कम्पनीयों के कुछ उत्पाद एकाधिकार की स्थिति में पहुंच जाते हैं तो उपभोक्ता के पास उन उत्पादों को क्रय करने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं होता है। इस प्रकार कुछ बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनीयाँ वातावरण को प्रभावित करने की स्थिति में आ जाती है तथा कुछ सीमा तक वातावरण को प्रभावित करती है।

विपणन वातावरण की आवश्यकता अथवा महत्व

एक संगठन के लिए विपणन वातावरण का अध्ययन करना अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि विपणन वातावरण के अध्ययन से निष्कर्ष निकाले जाते है और उन्ही निष्कर्षों के अनुरूप विपणन नीतियाँ एवं व्यूह रचनाएँ निर्धारित की जाती है। संक्षेप में, विपणन वातावरण के अध्ययन की आवश्यकता एवं महत्व है :-

1. कार्य योजनाओं के निर्माण हेतु - जब एक संस्था के विपणन वातावरण का ज्ञान कर लिया जाता है तो उसके अनुरूप कार्य योजनाओं का निर्माण आसानी से किया जा सकता है। अत: एक संस्था के लिए विपणन वातावरण का अध्ययन अति आवश्यक हो जाता है। 

2. विपणन वातावरण के घटकों की जानकारी - संस्था के विपणन वातावरण में अनेक घटक विद्यमान होते है। अनेक घटकों के कारण विपणन वातावरण बहुत अधिक जटिल हो गया है। इन जटिलओं की जानकारी के लिए विपणन वातावरण का अध्ययन अति आवश्यक हो गया है। 

3. परिवर्तन की जानकारी - विपणन वातावरण अनेक घटको के संयोजन से बना है तथा इन घटको में निरन्तर परिवर्तन होता रहता है। इन परिवर्तनों के अनुरूप व्यूह रचनाओं के निर्माण के लिए विपणन वातावरण का अध्ययन करना अति आवश्यक हो गया है। 

4. विपणन योजनाओं का मूल्यांकन - जिन विपणन योजनाओं का निर्माण किया गया है उन योजनाओं पर विपणन वातावरण के घटकों का प्रभाव पड़ता है। अत: विपणन वातावरण का अध्ययन कर उन विपणन योजनाओं का मूल्यांकन किया जाता है तथा यह पता लगाने की कोशिश की जाती है कि इन योजनाओं से विपणन उदेश्यों को प्राप्त किया जा सकता है या नहीं। 

5. जोखिम - विपणन प्रबंधकों को अनेक अनिश्चिताओं या जोखिमों का सामना करना पड़ता है। विपणन वातावरण का अध्ययन कर इन अनिश्चिताओं की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। जोखिमों का सही मापन कर संस्था पर पड़ने वाले इनके प्रभावों का अध्ययन किया जा सकता है। 

6. घटकों के आपसी प्रभाव का अध्ययन - विपणन वातावरण के अनेक घटक है इन घटकों का आपस में एक दूसरे पर प्रभाव पड़ता है। एक घटक का दूसरे घटक पर क्या एवं कितना प्रभाव पड़ रहा है इसकी जानकारी के लिए विपणन वातावरण का अध्ययन अतिआवश्यक है।

7. निर्णयन हेतु - संस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए विपणन प्रबन्ध को अनेक प्रकार के निर्णय लेने पड़ते हैं। विपणन वातावरण का अध्ययन किये बिना प्रभावकारी निर्णयन संभव नही है। अत: विपणन वातावरण का अध्ययन परमावश्यक है। 

8. विपणन अवसरों की खोज - संस्था के विकास एवं विस्तार के लिए विपणन वातावरण में अनेक अवसर विद्यमान होते है इन अवसरों की जानकारी विपणन वातावरण का अध्ययन किये बिना संभव नही है पीटर एफ. ड्रकर के अनुसार- ‘‘अधिकाधिक अवसरों की खोज वातावरण के प्रति जागरूकता से ही संभव है।” 

9. नवाचार या नवप्रवर्तन - संस्था की सफलता के लिए नवीन उत्पादों की खोज एवं नये अविष्कार अतिआवश्यक है। नवाचार या नवप्रर्वतन की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि यें विपणन वातावरण के कितने अनुकूल है। अत: विपणन वातावरण का अध्ययन अतिआवश्यक है। 

10. प्रतियोगिता में सफलता के लिए - विपणन वातावरण में विद्यमान प्रतियोगिता की स्थिति का सामना करने के लिए प्रतियोगी संस्था के उत्पादों, लागतो, वितरण माध्यमों, विज्ञापन एवं प्रचार के साधनो की सही जानकारी विपणन प्रबंधक को होनी अतिआवश्यक है इसके बिना प्रतियोगिता में सफलता प्राप्त करना असंभव है। अत: प्रतियोगिता में सफलता प्राप्त करने के लिए विपणन वातावरण का अध्ययन अतिआवश्यक है।

विपणन वातावरण को प्रभावित करने वाले घटक

विपणन वातावरण को प्रभावित करने वाले घटको को मोटे रूप में दो भागों में विभाजित किया जा सकता है :-

1. आन्तरिक घटक - 

आन्तरिक घटकों को नियंत्रण योग्य घटक भी कहते है क्योंकि ये घटक सामान्यतया संस्था के विपणन विभाग के नियंत्रण के अन्तर्गत आते है। जैसा कि आप जानते है कि प्रत्येक संस्था का अपना एक संगठन होता है और संगठन में अनेक विभाग होते है उनमें एक विपणन विभाग भी होता है। विपणन विभाग में जो परिवर्तन होते है उन पर विपणन प्रबंधक नियंत्रण स्थापित कर लेता है। विपणन विभाग को विपणन विभाग के परिवर्तन ही प्रभावित नहीं करते वरन सम्पूर्ण संस्था में होने वाले परिवर्तन भी विपणन विभाग को प्रभावित करते है। 

विपणन विभाग को प्रभावित करने वाले आन्तरिक विपणन वातावरण के प्रमुख घटक है -

1. संस्था के संसाधन - संस्था के संसाधनो में संस्था के कार्मिक एवं श्रम शक्ति, संस्था का प्रबंध, वित्तीय संसाधन, सामग्री एवं कच्चामाल, विचार एवं सूचनाएँ आदि आते है। जो विपणन वातावरण को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं। 

2. विपणन मिश्रण - संस्था का विपणन मिश्रण भी आन्तरिक वातावरण का एक घटक है जो विपणन लक्ष्यों एवं उदेश्यों को प्रभावित करता है। विपणन मिश्रण के चार प्रमुख घटक है जो उत्पाद, मूल्य, स्थान एवं संवर्द्धन नाम से जाने जाते है इन घटकों में किसी प्रकार का परिवर्तन होने पर आन्तरिक विपणन वातावरण प्रभावित होता है।

2. बाहरी घटक - 

बाहरी घटकों को अनियन्त्रिण योग्य घटक भी कहते हैं। इन पर विपणन विभाग का कोई नियन्त्रण नहीं होता है। इनमें वे सभी घटक सम्मिलित हैं जो संस्था के कार्यों को प्रभावित करते हे तथा संस्था की सफलता और असफलता के लिए जिम्मेदार होते हैं। इनमें सभी आर्थिक, तकनीकी, बाजार, सामाजिक एवं राजनैतिक आदि घटक सम्मिलित है। 

संक्षेप में, विपणन वातावरण के बाहरी घटकों का अध्ययन इन बिन्दुओं के आधार पर किया जा सकता है :-

1. जन सांख्यिकी वातावरण एवं उसके घटक - विपणन प्रबन्धक के लिए जन सांख्यिकी वातावरण एवं उनके घटको का अध्ययन अतिमहत्वपूर्ण है। यह भावी उपभोक्ताओं एवं बाजार संभावनाओं के बारे में जानकारी प्रदान करने में विपणन प्रबन्धकों के लिए मददगार है। इस जानकारी के आधार पर बाजार विभक्तीकरण करने एवं विपणन मिश्रण की व्यूह रचनाओं का निर्माण करने में विपणन प्रबन्धन को आसानी होगी। जन सांख्यिकी वातावरण में जनसंख्या का आकार, घनत्व, जनसंख्या का आयु आधार पर वर्गीकरण, आय, शैक्षिक स्तर, जाति एवं धर्म, रोजगार तथा घरेलु इकाई का आकार आदि बातों को सम्मिलित किया जा सकता है।

2. आर्थिक वातावरण - आर्थिक वातावरण से तात्पर्य उन सभी घटको से हैं जो संस्था की कार्यकुशलता को आर्थिक रूप से प्रभावित करते हैं। आर्थिक वातावरण में मुख्य रूप से देश की अर्थ व्यवस्था के विकास की दिशा अर्थात अर्थ व्यवस्था विकसित, अविकसित या विकासशील में से किस दिशा में है। देश में तेजी-मन्दी की स्थिति, राष्ट्रीय आय का स्वरूप एवं श्रोत, आय का वितरण, पूंजी निर्माण की दर, देश का कर ढ़ाँचा, विदेशी मुद्रा भण्डार की स्थिति आदि को सम्मिलित किया जाता है। विपणन प्रबन्धक को इन घटको की स्थिति एवं इनमें होने वाले परिवर्तनों का निरन्तर अध्ययन करते रहना चाहिए। अध्ययन के निष्कर्षों का उपयोग विपणन निर्णयों में करके संस्था को सफलता के मार्ग पर अग्रसर किया जा सकता है। 

3. सामाजिक एवं सांस्कृतिक वातावरण - सामाजिक एवं सांस्कृतिक वातावरण में समाज की जीवन शैली, जीवन-स्तर, परिवर्तनों के प्रति समाज का दृष्टिकोण, सामाजिक एवं सांस्कृतिक मूल्य, सामाजिक रीति-रिवाज एवं परम्पराएँ आदि घटकों को सम्मिलित किया जाता है। इन घटको में निरन्तर परिवर्तन होते रहते हैं। इन सभी परिवर्तनों को समझकर उपभोक्ताओं की रूचि, पसन्द एवं फैशन आदि का पता लगाया जा सकता है तथा उसी के अनुरूप विपणन निर्णय लिये जा सकते हैं। 

4. प्राकृतिक वातावरण एवं उसके घटक - प्राकृतिक वातावरण एवं उसके घटको में प्राकृतिक संसाधनों की स्थिति, देश की जलवायु, प्राकृतिक वातावरण के प्रति जन समुदाय की जागरूकता तथा प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा हेतु बनाये गये सरकारी नियम एवं नीतियाँ आदि को सम्मिलित किया जा सकता है। प्राकृतिक वातावरण का संरक्षण आज सरकार एवं प्रबन्धकों के सामने चुनौति पूर्ण कार्य है तथा प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा प्रबन्धकों का दायित्व है। किसी भी संस्था के विपणन कार्यक्रम एवं निर्णयों को प्राकृतिक वातावरण एवं उसके घटक सदैव प्रभावित करते रहते है। अत: विपणन प्रबन्धक को प्राकृतिक वातावरण एवं उनके घटकों की ओर सदैव ध्यान देते रहना चाहिए।

5. राजनीतिक वातावरण एवं उसके घटक - किसी भी देश का राजनीतिक वातावरण व्यावसायिक संस्था के कार्यों को प्रभावित करता है। राजनीतिक वातावरण में देश में राजनीतिक स्थिरता, सरकारी विचारधारा, राष्ट्रीय सुरक्षा एवं रक्षा नीति, विदेशनीति, भष्ट्राचार की स्थिति, देश की अन्तराष्ट्रीय प्रतिष्ठा आदि घटकों को सम्मिलित किया जा सकता है। देश की आर्थिक नीतीयाँ देश के राजनीतिक वातावरण के अनुरूप ही बनती है। अत: विपणन प्रबन्धक को सदैव राजनीतिक वातावरण एवं उसके घटको का अध्ययन करते रहना चाहिए।

6. तकनीकी वातावरण एवं उसके घटक - तकनीकी वातावरण से आशय वातावरण के उन घटकों से है जो किसी व्यावसायिक संस्था के तकनीकी संसाधनों की उपलब्धता को प्रभावित करते है। तकनीकी वातावरण में देश में उपलब्ध तकनीक की स्थिति एवं उसकी लागत, तकनीकों के सम्बंध में सरकारी नीति, तकनीकों के परिवर्तन की गति, तकनीकों के आयात-निर्यात की नीति आदि घटकों को सम्मिलित किया जा सकता है। आज तकनीक में तीव्र परिवर्तन हो रहे है अत: विपणन प्रबंधकों को तकनीकी परिवर्तनों की जानकारी रखनी होगी ताकि परिवर्तनों के अनुरूप शीघ्र विपणन निर्णय लिये जा सके। 

7. बाजार मांग- विपणन प्रबन्धको को उत्पाद की बाजार मांग का ध्यान पूर्वक परीक्षण करते रहना चाहिए। बाजार मांग में मांग का आकार, मांग में हो रहे परिवर्तन, उत्पाद के स्थानापन्न उत्पादों की उपलब्धता, उत्पाद की भावी मांग आदि बातो को सम्मिलित किया जाता है। विपणन प्रबंधक को इन सब घटकों को ध्यान में रखते हुए विपणन कार्यक्रम बनाने चाहिए एवं विपणन व्यूह रचना तैयार करनी चाहिए। 

8. उपभोक्ता - उपभोक्ता अनेक प्रकार के हो सकते है जैसे घरेलू उपभोक्ता, औद्योगिक उपभोक्ता, विदेशी उपभोक्ता आदि। विपणन प्रबंधक को अपने ग्राहक/ उपभोक्ता के सम्बंधों में सभी सूचनाएं एकत्र करनी चाहिए। ग्राहकों की रूचि, आवश्यकता, फैशन, आयु, आय वर्ग आदि की जानकारी करनी चाहिए। 

9. प्रतियोगी - प्रतियोगी संस्थाओं के बारे में सम्पूर्ण जानकारी रखना विपणन प्रबंधकों के लिए अतिआवश्यक है। प्रतियोगी संस्था के उत्पाद, मूल्यनीति, वितरण एवं मध्यस्थों से सम्बंधित नीति आदि बातों पर ध्यान देकर अपनी संस्था की विपणन व्यूहरचना बनानी चाहिए।

10. जनसमूह - जनसमूह से तात्पर्य जनता के ऐसे समूहों से है जो किसी संस्था को विभिन्न प्रकार से प्रभावित करने की स्थिति में होते है। जन समूह इन प्रकार के हो सकते है :- 
  1. किसी संस्था में अंशधारी, ऋणदाता, ऋणपत्रधारी, बैंक एवं निवेशक आदि। 
  2. सरकारी संस्थाएं एवं सरकारी अधिकारी 
  3. उपभोक्ता संरक्षण मंच, पर्यावरण संरक्षण मंच 
  4. किसी संस्था के कर्मचारी, प्रबंधक एवं संचालकों के समूह
  5. संचार माध्यमों में टी.वी, समाचार पत्र, रेडियो आदि 
ये जनसमूह किसी संस्था की ख्याति बनाने एवं बिगाड़ने की क्षमता रखते है। अत: इनसे सम्पर्क बनाये रखना किसी संस्था के लिए लाभप्रद होता है।

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