ई-कॉमर्स क्या है? | ई-कॉमर्स के प्रकार || What is an E-commerce in hindi

ई-कॉमर्स (E-commerce)

क्या कभी आपने इंटरनेट के माध्यम से कुछ सामान खरीदा है? या कुछ बेचा हो? अगर हाँ तो इसका मतलब आपने ई-कामर्स क्या इलेक्ट्रानिक वाणिज्य में भाग लिया है। ई-कामर्स एक ऐसी कार्यप्रणाली है जिसके द्वारा इंटरनेट का प्रयोग करते हुए सामान खरीदते तथा बेचते हैं। वाणिज्य का प्रयोग सदियों से वस्तुओं एवं सेवाओं की खरीददारी के लिए जाना जाता है परन्तु आज के युग में इसका स्वरूप पूर्णतया बदल चुका है। इसे अब आन लाइन सुविधा के साथ अच्छी तरह से किया जा रहा है। इस तरह के ऑनलाइन वाणिज्य को ई-काॅमर्स या ‘‘इलेक्ट्रानिक कामर्स’’ कहा जाता है। इसके द्वारा हम घर बैठे ही राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय वस्तुओं का आसानी से खरीद और बेच कर सकते हैं। आज यह सभी देशों के बाजारों का महत्वपूर्ण अंग है। 

ई-कामर्स का प्रारम्भ 1990 का दशक माना जाता है और आज इसका प्रयोग तेजी से बढ़ रहा है। इस समय लगभग हर कम्पनी की अपनी अलग ऑनलाइन उपस्थिति हैं तथा वह अपनी दमदार पहचान बनाने में जुटी है, देखा जाए तो ई-कामर्स एक आवश्यकता भी बन गई है। आज घरेलू सामान से लेकर, कपड़ा, किताबें, फर्नीचर, बिल्स, फोन चार्ज यात्रा टिकट मनोरंजन, सब कुछ ऑनलाइन है। आज बड़ी-बड़ी कम्पनियां जैसे पेटीएम अमेजाॅन, फ्लिपकार्ट  इस प्रकार की सुविधाएं दे कर रही है। जिसमें आप जहां चाहे वहां सामान मंगवा सकते हैं। इस तरह से ई-कामर्स के जरिये धन का आदान प्रदान भी किया जा सकता है। 

ई-कॉमर्स क्या है

इलेक्ट्रानिक कामर्स एक प्रकार की बिक्री-खरीददारी का माडल है जिसमें इंटरनेट का उपयोग किया जाता है। इसके दो आधारभूत प्रकार है: व्यवसाय से व्यवसाय (B.2.B) और व्यवसाय से उपभोक्ता (B.2.C), B.2.B में कम्पनियाँ अपने आपूर्तिकर्ताओं, वितरकों एवं दूसरे सहयोगियों के साथ इलैक्ट्रानिक नेटवर्क के माध्यम से व्यापार करती है एवं B.2. में कम्पनियाँ अपने उत्पादों एवं सेवाओं को अपने उपभोक्ताओं को इलेक्ट्रानिक नेटवर्क के माध्यम से उपलब्ध कराती है या बेचती है। हालांकि इसके बाद कई दूसरे तरह के ई-कामर्स माॅडल भी चर्चा में है जैसे कि C.2. C (उपभोक्ता-से-उपभोक्ता), C.2.B (उपभोक्ता-से-व्यवसाय), सी .2.A (बिजनेस-टू-एडमिनिस्ट्रेशन) एवं C.2.A (उपभोक्ता-से-एडमिनिस्ट्रेशन) आदि। 

ई-कामर्स की अवधारणा का आशय इंटरनेट अर्थव्यवस्था एवं डिजिटल अर्थव्यवस्था से है। इंटरनेट अर्थव्यवस्था का आशय ऐसी अर्थव्यवस्था से है जिसमें राजस्व उत्पन्न करने के लिए इंटरनेट का उपयोग किया जाता है। जबकि डिजिटल अर्थव्यवस्था कम्प्यूटर, साफ्टवेयर और डिजिटल नेटवर्क जैसी डिजिटल तकनीकों पर आधारित है। ई-कामर्स का विकास इलेक्ट्रानिक डाटा इंटरचेज के बाद हुआ। पहले कंपनियां इसका उपयोग व्यावसायिक दस्तावेजों के आदान-प्रदान के लिए करती थी। धीरे-धीरे इसका प्रारूप बदला और कम्पनियों में इसका उपयोग सामान खरीदने एवं बेचने के लिए करना आरम्भ कर दिया। अब यह हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन गया।

ई-कॉमर्स के प्रकार

जब हम ई-कामर्स की बात करते हैं, तो हमारे मन में जो छवि उभरती है वह उत्पादक व उपभोक्ता के मध्य आनलाइन व्यापारिक लेन-देन की ही होती है जो कि कुछ हद तक सही भी है, ई-कामर्स को छह प्रमुख प्रकारों में विभाजित किया गया है जिनकी अपनी-अपनी कुछ विशेषताएं हैं-
  1. व्यवसाय से व्यवसाय  (B 2 B) बिजनेस-टू-बिजनेस
  2. व्यापार-टू-उपभोक्ता (B 2 C) या बिजनेस-टू-कस्टूमर
  3. उपभोक्ता-टू-उपभोक्ता (C 2 C) या कस्टूमर-टू-कस्टूमर
  4. उपभोक्ता-टू-व्यवसाय (C 2 B) या कस्टूमर-टू-बिजनेस
  5. व्यापार-टू-प्रशासन (B 2 A) या बिजनेस-टू-एडमिनिस्ट्रेशन
  6. उपभोक्ता-टू-प्रशासन (C 2 A) या कस्टूमर-टू-एडमिनिस्ट्रेशन

1. व्यवसाय से व्यवसाय  (B 2 B) बिजनेस-टू-बिजनेस

जब दो या दो से अधिक कम्पनियाँ आपस में सामान अथवा सेवाओं का लेन-देन इलेक्ट्रानिक तरीके से करते हैं तो इस तरह के ई-कामर्स को व्यवसाय से व्यवसाय  (B 2 B) बिजनेस-टू-बिजनेस कहते हैं।

2. व्यापार-टू-उपभोक्ता (B 2 C) या बिजनेस-टू-कस्टूमर

कम्पनियों एवं अंतिम उपभोक्ताओं के बीच ईलेक्ट्रानिक लेन-देन की प्रक्रिया से सम्बन्धित इस तरह के ई-कामर्स की  व्यापार-टू-उपभोक्ता (B 2 C) या बिजनेस-टू-कस्टूमर कहते हैं। यह ई-कामर्स के खुदरा व्यापार की तरह होता है जहाँ पर परम्परागत खुदरा कारोबार सामान्य रूप से चलाया जाता है। इस तरह के व्यापारिक सम्बन्ध आसान और बहुत सक्रिय होते हैं। लेकिन कभी-कभी ही होते हैं या फिर उनमें शीघ्र बंद होने की सम्भावना भी की रहती है। इंटरनेट की उपयोगिता के पश्चात इस प्रकार का वाणिज्य बहुत चलन में है। इंटरनेट में पहले से ही बहुत सारी शाॅपिंग साइट्स है जिनके जरिये उपभोक्ता घरेलू सामान, किताबें, जूते, कपड़े, मनोरंजन साधन, फर्नीचर, मोबाइल, वाहन आदि खरीद सकते हैं।

3. उपभोक्ता-टू-उपभोक्ता (C 2 C) या कस्टूमर-टू-कस्टूमर

 उपभोक्ता-टू-उपभोक्ता (C 2 C) या कस्टूमर-टू-कस्टूमर ई-कामर्स में उपभोक्ताओं के मध्य किए जाने वाली सभी सेवाओं एवं वस्तुओं के इलेक्ट्रानिक लेन-देन शामिल होते हैं। सामान्यतः किसी तीसरे पक्ष द्वारा ही ये लेन-देन आयोजित करवाएं जाते हैं। यह तीसरा पक्ष ही आनलाइन सुविधा प्रदान करता है जहाँ की वास्तविक मोलभाव तय किये जाते हैं। यह ई-कॉमर्स का वह प्रकार है जिसमें उपभोक्ता से उपभोक्ता के बीच होने वाले व्यावसायिक सौदे सम्मिलित होते है। नीलामी साइट्स इसका विकसित होता हुआ उदाहरण है। जब किसी उपभोक्ता को कुछ जमीन जायदाद अथवा वस्तु चाहे वह कार ही क्यों न हो, बेचनी हो तो वह ऐसी संबद्ध वेबसाइट पर अपने द्वारा बेची जाने वाली संपत्ति या वस्तु की जानकारी उपलब्ध करा देता है ताकि जरूरतमंद उपभोक्ता संपर्क पर क्रय सके। www.ebey.com वह बेवसाइट है जो उपभोक्ता से उपभोक्ता के बीच नीलामी क्रय को संभव कर रही है।

4. उपभोक्ता-टू-व्यवसाय (C 2 B) या कस्टूमर-टू-बिजनेस

उपभोक्ता-टू-व्यवसाय (C 2 B) या कस्टूमर-टू-बिजनेस माॅडल रिवर्स नीलामी या माँग संग्रह माॅडल कहलाता है। इस माॅडल में अलग-अलग ग्राहक अपनी सेवाओं एवं सामग्री को इन कम्पनियों को बेचने की पेशकश करते है जो उन्हें खरीदने के लिए तैयार है। यह परम्परागत बी टू सी माॅडल का पूर्ण अल्टा रूप है। इस प्रकार था ई-कामर्स बहुत आम है। इस तरह के ई-कामर्स में व्यक्ति अपनी सेवाओं या उत्पादों को इस प्रकार की सेवाओं या उत्पादों की मांग करने वाली कम्पनियों के लिए खरीद के लिए उपलब्ध कराते हैं।

5. व्यापार-टू-प्रशासन (B 2 A) या बिजनेस-टू-एडमिनिस्ट्रेशन

सभी प्रकार के आनलाइन लेन-देन जो कि कम्पनियों एवं सार्वजनिक प्रशासन के मध्य होते हैं, बी-टू-ए कामर्स के अन्तर्गत आते हैं इस माॅडल में विभिन्न प्रकार की सेवाएं आती है जैसे कि वित्तीय, सामाजिक सुरक्षा रोजगार, कानूनी
दस्तावेज आदि क्षेत्र।

6. उपभोक्ता-टू-एडमिनिस्ट्रेशन (C 2 A)

व्यक्तियों एवं लोक प्रशासन के मध्य किये गये सभी इलेक्ट्रानिक लेन-देन सी टू ए कामर्स में शामिल
होते हैं। इसके उपयोग निम्नलिखित क्षेत्रों में है-
  1. शिक्षा:- दूरस्थ शिक्षा, सूचना प्रसार आदि।
  2. सामाजिक सुरक्षा:- भुगतान करना, जानकारी के वितरण में।
  3. कर:- रिटर्न जमा करने हेतु, भुगतान आदि।
  4. स्वास्थ्य:- बीमारियों के बारे में जानकारी, नियुक्तियाँ, स्वास्थ्य सेवाओं का भुगतान, लोक प्रशासन से जुड़े हुए दोनों माॅडल बी-टू-ए व सी-टू-ए सूचना व संचार प्रौद्योगिकियों की उपयोगिता के साथ सरकार द्वारा नागरिकों को प्रदान की जाने वाली सेवाओं को आसान व उपयोगी बनाता है।

ई-कॉमर्स के लाभ

ई-कॉमर्स परंपरागत व्यवसाय अथवा विपणन/वितरण के तौर-तरीकों की तुलना में व्यावसायिक संस्थाओं तथा उपभोक्ताओं को कई तरह के लाभ उपलब्ध कराता है। उदाहरणार्थ, 
  1. व्यावसायिक संस्थाओं को रोकड़ प्रवाह सुगमता पूर्वक उपलब्ध हो जाता है,
  2. इंवेंटरी तेजी से प्रवाहित होती है और 
  3. स्टॉक कम रखने पड़ते हैं, 
  4. मध्यस्थ हट जाते हैं, 
  5. कागजी कार्यवाही व छुटकारा मिल जाता है, 
  6. मानव-शक्ति लागतों में कमी होती है,
  7. कार्यालय उत्पादकता में वृद्धि होती है,
  8. सूचनाओं का पारस्परिक आदान-प्रदान तीव्रतर, परिशुद्ध और कम लागतपूर्ण होने लगता है, 
  9. शीघ्र आदेश पूर्ति संभव हो जाती है, और 
  10. ग्राहकीकरण एवं बाजार-विस्तार के कारण दीर्घकाल तक तीव्र प्रतिस्पर्धा का सामना करना संभव हो जाता है।
इसी प्रकार, उपभोक्ताओं को क्रयण से सुविधा प्राप्त होती है, वस्तु/सेवा चयन हेतु विकल्प बढ़ जाते हैं, उत्पाद मूल्यों में कमी होते रहने से उपभोक्ता की क्रय-शक्ति व जीवन स्तर में वृद्धि होती है, उपभोक्ता न केवल सर्वोत्तम वस्तुओं और सेवाओं के संपर्क में आते हैं, बल्कि पुरानी जरूरतों की पूर्ति के नये तौर-तरीकों व उत्पादों के संपर्क में भी आते हैं, बाजार विक्रेता-बाजारों में क्रेता-बाजारों से परिवर्तित होने लगते हैं, और ग्राहक-सेवाओं संतुश्टि के स्तर में आशातीत वृद्धि होती है। ई-कॉमर्स सामाजिक एवं राजनीतिक बाधाओं को तोड़ कर विकासशील एवं विकसित राश्ट्रों को परस्पकर जोड़ता है, जिससे साहस, व्यावसायिक योग्यता, नवाचारात्मक प्रतिभा, तकनीकी ज्ञान तथा वस्तुओं-सेवाओं का आयात-निर्यात बढ़ता है विश्व-षांति एवं मैत्री में वृद्धि होती है। यदि ई-कॉमर्स का सही तकनीक से उपयोग किया जाए तो इससे प्रत्येक पक्ष को लाभ प्राप्त होते हैं।

ई-कॉमर्स के दोष

उपर्युक्त अनगिनत लाभों को उपलब्ध कराने वाली ई-कॉमर्स प्रणाली दोषरहित नहीं है। इसके मुख्य दोष हैं- 
  1. इसमें वस्तुओं-सेवाओं का वैयक्तिक निरीक्षण संभव नहीं है, 
  2. सौदों में उपयुक्त सुरक्षा एवं गारंटी का अभाव रहता है, 
  3. कर-निर्धारण असंभव भले ही नहीं हो, किन्तु कठिनाई पैदा करता है, 
  4. क्रेडिट कार्ड व्यवस्था की सर्वव्यापकता एवं सर्वग्राहयकता सदैव संदिग्ध रहने वाली है, 
  5. भारी भरकम अवस्थापना विनियोजन कई देशों के लिए कई सामाजार्थिक व शैक्षणिक कारणों से संभव नहीं है, 
  6. कम्प्यूटर-जनित सूचनाओं की विश्वसनीयता की सुरक्षा कठिन कार्य है, तथा जन-विश्वास जीतने में यह प्रणाली विफल रहेगी। 
इतने पर भी यह कहा जा सकता है कि ई-कॉमर्स अंतर्राश्ट्रीय व्यापार एवं विपणन में अभूतपूर्व क्रांति लाने वाला सिद्ध होगा तथा छोटे विपणनकर्त्ता भी बड़े विपणनकर्त्ताओं से प्रतिस्पर्धा करने की स्थिति में आ जाएँगे। प्रतिभा और विश्वसनीयता क्रेता-विक्रेता संबंधों की आधारशिला बनेगी। ई-कॉमर्स की सफलता के लिए साक्षर होना महत्वपूर्ण है।

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