अशाब्दिक संचार क्या है अशाब्दिक संचार के कार्य?

शाब्दिक संचार में शब्दों का प्रयोग किया जाता है, लेकिन अशाब्दिक संचार में हम ध्वनि में उतार-चढाव, भाव-भंगिमाएं, मुद्राएं एवं मुखाभिव्यक्ति, बैठने की शैली आदि के माध्यम से संचार करते हैं।

शारीरिक भाषाओं के विशेषज्ञ अल्बर्ट मेहराबियन ने किसी भी संदेश के प्रभाव के बारे में शोध किया। मौखिक संचार पर किए गए उनके शोध में प्रभाव का प्रतिशत इस प्रकार निकला था:
  1. शाब्दिक संचार का प्रभाव : सिर्फ 7 प्रतिशत
  2. स्वर लय, सुर इत्यादि का प्रभाव : 38 प्रतिशत
  3. अशाब्दिक संचार का प्रभाव : 55 प्रतिशत
तो अशाब्दिक संचार क्या है? साधारण तौर पर कंधे उचकाना, वी या ओके का चिह्न बनाना, अगूंठा दिखाना, आंखों की हलचल, मुखाभिव्यक्ति, बैठने की शैली आदि सभी अशाब्दिक संचार में समाहित होते हैं। मौन, छूना, सूंघना इत्यादि भी अशाब्दिक संचार में ही आते हैं।
 
1. शारीरिक भाषा - शरीर और इसके विभिन्न हिस्सों को काफी कुछ संचारित करने के लिए प्रयोग किया जाता है। शरीर के अलग-अलग हिस्सों के माध्यम से होने वाले इस संचार को शारीरिक भाषा का नाम दिया जाता है। शारीरिक भाषा के अतिरिक्त हम विभिन्न अवसरों के लिए किस प्रकार के कपडे पहन कर जाते हैं, लोगों का अभिवादन किस प्रकार करते हैं, बातें करने के दौरान हमारे हाथों को किस प्रकार प्रयोग करते हैं और बात करते वक्त हमने सामने वाले व्यक्ति से भौतिक दूरी कितनी बना रखी है यह सब चीजें अशाब्दिक संचार का ही हिस्सा हैं।

2. मुखाभिव्यक्ति - अशाब्दिक संचार के लिए चेहरा सबसे स्पष्ट साधन है। इसके माध्यम से आसपास के लोगों को निरंतर हमारे बारे में कुछ न कुछ जानकारी मिलती रहती है। चेहरा दिल की बात एकदम साफ दिखा देता है, भले ही हम दूसरी तरह के भाव झलकाने की कितनी भी कोशिश कर लें। उदाहरण के लिए झूठ बोलते वक्त एक बच्चा दोनों हाथों से मुंह को ढकने की कोशिश करता है, इसी परिस्थिति में एक किशोर मुंह पर एक हाथ लगाता है, जबकि एक वयस्क व्यक्ति अंगुली के सहारे आंशिक रूप इसे छुपाने की चेष्टा करता है। इस भंगिमा को शारीरिक भाषा विज्ञान में ‘माउथ गार्ड’ बोला जाता है।

शब्दों का प्रयोग किए बिना किसी का चेहरा भला उसके बारे में इतना कुछ कैसे बता सकता है? चेहरे की रंगत, झुर्रियां, बालों की मौजूदगी या गैर मौजूदगी आदि कई ऐसी चीजें हैं जो किसी के भी व्यक्तित्व के बारे में काफी कुछ बता सकती हैं। रूप सज्जा और केश विन्यास किसी के आर्थिक स्तर और फैशन इत्यादि में उसकी रुचि के बारे में बता सकता है।

तो हम चेहरे के भावों का प्रयोग किस प्रकार करें? ऊपर हमने बात की है कि झूठ बोलते वक्त चेहरे को छुपाने के लिए लोग माउथ गार्ड भंगिमा का प्रयोग करते हैं। बार-बार नाक को छूना भी माउथ गार्ड भंगिमा का ही एक स्वरूप है। बैठते वक्त हथेली पर ठुड्डी टिकाना, मुंह में हाथ डालना इत्यादि भंगिमाएं सामने वाले को कुछ न कुछ संदेश प्रेषित करती रहती हैं। हाथ व मुंह की कुछ मुद्राएं इस प्रकार हैं:
  1. गला खुजलाना (संदेह व अनिश्चितता के चिह्न)
  2. कान खुजलाना (बुरी सोच को रोकना)
  3. कालर खींचना (झूठ को छिपाना)
  4. मुंह में अंगुली डालना (दबाव में होना)
3. आंखों का व्यवहार : आंखें भी अशाब्दिक संचार का एक महत्वपूर्ण साधन हैं। देखने और पलकें झपकाने से लेकर घूरने तक आंखें कई काम कर सकती हैं। आंखें हमारे अंदर तक झांक सकती हैं। वास्तव में अशाब्दिक संचार के दौरान आंखें ही सबसे ज्यादा भावाभिव्यक्ति का काम करती हैं। आंखें ये कार्य कर सकती हैं:
  1. सूचना प्रदान करना
  2. अन्योन्यक्रिया का नियमन
  3. नियंत्रण करना
  4. सामीप्य का अहसास करवाना
नेत्र संपर्क भी एक महत्वपूर्ण अवधारणा है। जब वक्ता श्रोताओं के साथ नेत्र संपर्क बनाता है तो संदेश जाता है कि वह मैत्रीपूर्ण, निष्कपट और तनाव रहित है। प्रभावशाली वक्ता बार-बार नेत्र संपर्क बनाकर यह जांचते रहते हैं कि श्रोता उसको ध्यान से सुन रहे हैं या नहीं। कोई व्यक्ति किस प्रकार नेत्र संपर्क बनाता है, उससे पता चलता है कि उसकी प्रवृति प्रभुत्व जमाने की है या वह दब्बू है।

समीपता का अहसास करवाना भी नेत्र संपर्क का एक महत्वपूर्ण कार्य है। आंखें हमें दूसरों के साथ संबंध बनाने में मदद करती हैं। यह एक तरह से हमारी आत्मा के लिए खिडकी का काम करती हैं। दूसरों को प्रोत्साहित या हतोत्साहित करने में आंखें सहायता करती हैं। उदाहरण के लिए एक बार घूरकर देखने मात्र से छात्र बातें करना बंद कर सकते हैं, वहीं दूसरी तरफ एक धीमी सी मुस्कान दूसरों को दोस्त बना सकती है।

4. शारीरिक मुद्राएं : प्रारम्भिक समय में शोधकर्ताओं ने शारीरिक भावों को इसमें प्रयुक्त शरीर के अंग के आधार पर वर्गीकृत किया था, जैसे कि नेत्र व्यवहार, हस्त मुद्रा आदि। लेकिन अशाब्दिक संचार के क्षेत्र के विशेषज्ञ और अग्रणी शोधकर्ता रे बर्डविस्ल ने शारीरिक भाषा विज्ञान (KINESICS) के नाम से एक नए शब्द का प्रयोग शुरू किया। इसमें शरीर की बाहरी गतिविधियों का अध्ययन किया जाता था। शारीरिक अभिव्यक्ति के पांच वर्ग है:
  1. प्रतीक (ओके के लिए अंगुलियों से छल्ला बनाना, किसी को चुप कराने के लिए अपने होठों पर अंगुली रखना, विजय के लिए अंग्रेजी के अक्षर वी का निशान बनाना, लिफ्ट इत्यादि के लिए अंगूठा निकालकर एक तरफ लहराना आदि।)
  2. चित्रक (किसी चीज का आकार इत्यादि बताने के लिए हथेलियों को फैलाना)
  3. नियंत्रक (सिर हिलाना, आंखें दिखाना इत्यादि)
  4. प्रदर्शन प्रभावक (गुस्से से घूरकर देखना)
  5. शारीरिक नियंत्रक (थकने के बाद अंगडाई लेना, सोचते वक्त अपनी ठुड्डी को रगडना इत्यादि)
बैठने की शैली व चाल: हम किस तरीके से खडे होते हैं, बैठने की मुद्रा क्या है और चाल कैसी है, ये सभी चीजें हमारी शारीरिक व मानसिक स्थिति को दर्शाती हैं। उत्तेजित मनोदशा में व्यक्ति सीधा और अकड कर बैठता या खडा होता है। बचाव की मुद्रा में होने पर आदमी के कंधे व सिर झुकाकर खडा होता है या कुर्सी में ही दुबक जाता है। चिंता की अवस्था में हम हाथ पीछे बांधकर धीरे-धीरे चल रहे होते हैं।

जब व्यक्ति आत्मविश्वास से भरपूर होता है तो चलते वक्त उसकी ठुड्डी उठी हुई व सीना फूला हुआ होता है और हाथ मुक्त रूप से घूम रहे होते हैं। आत्मविश्वास की अवस्था में हमारे टांगे आमतौर पर थोडी स्तंभित होती हैं और चाल में थोडा उछाल होता है। कमर पर हाथ रखकर खडे होने की मुद्रा आपके मस्तिष्क की आक्रामकता को दिखाती है। खुले हाथ आपकी निष्कपटता दर्शाते हैं, जबकि बंद हाथों से इसके विपरीत संदेश जाता है। छाती पर हाथ बांध कर खडा होना बचाव की मुद्रा का एक अच्छा उदाहरण है।

5. व्यक्तित्व : अन्तव्यर्ैक्तिक व समूह संचार में हमारे प्रदर्शन पर हमारे बाह्यस्वरूप का काफी असर पडता है। वास्तव में किसी भी व्यक्ति का बाहरी स्वरूप काफी महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यही आपका ‘पहला प्रभाव’ बनाता है। आज जबकि सारा दिन विज्ञापनों ने कुछ सुंदर व्यक्तित्वों को सुई से लेकर जहाज तक की मशहूरी के लिए हमारे सामने रखना शुरू कर दिया है तो यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। अच्छा दिखने के लिए हमें अपने बाहरी व्यक्तित्व को भी सुधारना होता है।

6. कपडे: कपडे हमारे व्यक्तित्व के प्रति लोगों को काफी कुछ दिखा देते हैं। किसी की उम्र, रुचि, दृष्टिकोण इत्यादि चीजें कपडों से साफ पता चल जाती हैं। कपडा कितना पुराना है, किस हालत में है और किस फैशन का है, इन सब चीजों से किसी भी व्यक्ति के जीवन स्तर का भी अहसास हो जाता है। कपडे दिखाते हैं कि हम समाज में आ रहे परिवर्तनों के साथ चल रहे हैं या नहीं। साथ ही यह सज्जा व आत्माभिव्यक्ति का भी माध्यम हैं। एक व्यक्ति का परिधान सुरक्षा, यौनाकर्षण, आत्माभिव्यक्ति, समूह परिचय, सामाजिक स्तर और भूमिका बताने जैसे न जाने कितने काम करता है। उसकी सामाजिकता, विश्वास और चरित्र को भी कपडे जाहिर कर देते हैं। शायद इन्हीं वजहों के चलते कहा जाता है कि ‘कपडे आदमी का निर्माण करते हैं’।

7. स्पर्श: मनुष्यों अथवा जानवरों के बीच भौतिक संपर्क के लिए स्पर्श ही सबसे अहम प्रक्रिया है। किसी स्थान विशेष पर जोर देने, किसी को पकडने, शांत करने (पीठ थपथपाना), आश्वासन देना (कई बार यह काम हम अपने आप के साथ भी करते हैं) जैसे कामों के लिए मनुष्य एक दूसरे को स्पर्श करते हैं। बच्चों के स्वस्थ विकास के लिए स्पर्श अतिआवश्यक है। निकटता: यह तो हम समझ ही चुके हैं कि शब्दों, शारीरिक भाव भंगिमाओं इत्यादि के माध्यम से हम लोग संचार करते हैं। इनके अतिरिक्त स्थान का प्रयोग करके भी हम लोग संचार कर सकते हैं। हम विभिन्न लोगों व वस्तुओं के साथ बात करते वक्त अलग-अलग भौतिक दूरी रखते हैं। रिश्तों के आधार पर यह दूरी तय होती है। संचार के दौरान प्रतिभागियों की दूरी के अध्ययन को ‘प्रोक्सेमिक्स’ कहा जाता है। अन्तव्यर्ैक्ति संचार के लिए स्थान का चार प्रकार से प्रयोग संभव है:
  1. अंतरंगता (स्पर्श से लेकर 18 इंच तक की दूरी को इस श्रेणी में माना गया है। केवल कुछ अंतरंग लोगों को ही हम इस स्थान में प्रवेश की इजाजत देते हैं। हालांकि भीडभाड वाले इलाकों में जो निकटता होती है, वह जबरदस्ती या हम पर थोपी गई होती है।)
  2. व्यक्तिगत दूरी (दैनंदिन अन्योन्यक्रिया के लिए प्रयुक्त। 1.5 इंच से लेकर 4 फीट तक की दूरी इस दायरे में आती है।)
  3. सामाजिक दूरी (किसी व्यक्ति से हम पहली बार मिलें हो या उनसे सिर्फ हमारे व्यावसायिक संबंध ही हैं तब इस दूरी को रखा जाता है। 4 फीट से लेकर 12 फीट तक की दूरी इस श्रेणी में आती है।)
  4. सर्वजन दूरी (एक साथ कई लोगों के साथ अन्योन्यक्रिया करते वक्त सर्वाधिक दूरी रखी जाती है। यह 12 फीट से लेकर 25 फीट तक हो सकती है। कक्षा में अध्यापक द्वारा दिया जाने वाला व्याख्यान या एक औपचारिक जनसभा इसके उदाहरण हैं।)
8. संयुक्त भाषा: केवल शब्दों को बुदबुदाने मात्र से ही संचार नहीं हो जाता है। कई अन्य तत्वों द्वारा शब्दों के सहायक के रूप में काम किया जाता है। यह तत्व मुख्यतया: आवाज से ही संबंधित होते हैं। स्वरमान, शैली, रफ्तार, अनुनाद, गुणवत्ता इत्यादि चीजें शब्दों को जीवंत बनाती हैं। इन कन्ठीय गुणधर्मों के अलावा भी कई अन्य कन्ठीय आवाजें मौखिक संचार में योगदान देती हैं। घुरघुराहट, किरकिराहट और गला साफ करने की आवाज इत्यादि इसमें शामिल हैं। इन सभी कन्ठीय गुणधर्मों और कन्ठीय आवाजों को संयुक्त भाषा कहा जाता है। इसे भाषा के समानान्तर एक भाषा ही समझते हैं।

स्वरमान आवाज के उतार-चढाव से संबंधित है। बिना स्वरमान के बोली गई बातें जल्दी ही लोगों को बोर करने लगती हैं। वहीं दूसरी तरफ अनुनाद में एक धीमे स्तर से बढाते हुए आवाज को उच्चतम स्तर तक पहुंचा दिया जाता है। शांत आवाज के साथ बोलने वाले लोग आमतौर पर शर्मिले होते हैं, जबकि उच्च स्तर पर बोलना आत्मविश्वास की निशानी माना जाता है।

ज्यादा तेज या धीमे बोलना रफ्तार में परिवर्तन की निशानी है। जो तेज बोलते हैं, उनसे लगता है कि वे फटाफट अपना भाषण खत्म करना चाहते हैं। यह अनुभवहीनता व तनाव की निशानी है। अच्छे वक्ताओं को पता है कि उन्हें कहां विराम लेना है और कहां धीमी गति के साथ बोलना है।

9. सूंघना: घ्राण शक्ति से हम अपने आसपास के वातावरण के बारे में काफी जानकारी एकत्रित कर लेते हैं। एक महक विशेष हमें किसी व्यक्ति के आगमन की सूचना दे सकती है। शरीर से आने वाली दुर्गन्ध व्यक्ति की साफ सफाई की आदतें बताती है। इसी शक्ति के माध्यम से हम भी काफी सारी सूचनाएं दूसरों को देते हैं। दुर्गन्ध को छिपाने के लिए हम डिओडरेंट, बाडी स्प्रे, इत्र इत्यादि का प्रयोग करते है। प्याज की गंध को रोकने के लिए कई बार हमें टूथपेस्ट तक करना पड जाता है।

अशाब्दिक संचार के कार्य 

किसी भी संचार की प्रक्रिया में अशाब्दिक संचार महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। आमतौर पर यह मौखिक संचार के पूरक के तौर पर होता है। कई बार अशाब्दिक संकेत अपने-आप में ही बहुत कुछ कह देते हैं। विशेष तौर पर अशाब्दिक संचार इन कार्यों को पूरा करता है:
  1. मौखिक संदेश को दोहराना
  2. मौखिक संदेश का विकल्प बनना
  3. मौखिक संदेश के पूरक की तरह काम करना
  4. मौखिक संचार के नियामक की तरह काम करना

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