हिमस्खलन किसे कहते हैं हिमस्खलन के प्रकार?

हिमखण्ड के पर्वतीय ढाल के सहारे नीचे सरकने की घटना को हिमस्खलन कहते हैं। यह घटना भूस्खलन के समान ही होती है परन्तु इसमें मिट्टी एवं शैल की अपेक्षा हिमखण्ड सरककर नीचे आ जाते हैं। ऊँचे पर्वतीय ढलानों के सहारे जैसे ही हिमखण्ड नीचे आते हैं तो इनकी गति अप्रत्याशित रूप से बढ़ जाती हैं, जिस कारण छोटे से छोटे हिमस्खलन होने पर भी भारी क्षति होती है। यह घटना ऊँचे पर्वतीय एवं उच्च अक्षांशीय क्षेत्रों में घटित होती है।

हिमस्खलन के प्रकार

हिमस्खलन दो प्रकार के होते हैं 
  1. शुष्क हिम हिमस्खलन और
  2. नम हिम हिमस्खलन। 
शुष्क हिम हिमस्खलन में ताजा (शुष्क) हिम जमकर स्थिर हो गए पुराने हिम की सतह पर खिसकता हुआ आता है। नम हिम हिमस्खलन तब बनते हैं जब भारी हिमपात के तुरन्त बाद वर्षा या गरम मौसम आ जाता है। ऐसी स्थिति में हिमस्खलन में मुख्य रूप से पिघली हिम और जल का मिश्रण होता है, लेकिन वह रास्ते में अन्य पदार्थों को भी साथ में समेट ले जाता है। नम हिम हिमस्खलन वसंत के मौसम में भी बनते हैं तब वसंत ऋतु के आगमन के साथ पिघलने की प्रक्रिया शुरू होती है और भारी मात्रा में जमी हुई बर्फ मुक्त हो जाती है।

हिमस्खलन की शुरूआत तब होती है, जब कोई हिमखण्ड ढालदार सतह के घर्षणी प्रतिरोध को पार कर जाता है ऐसा तब होता है। जब हिमखण्ड का आधार वर्षा के कारण ढीला हो जाता हैं या गरम या सूखी हवा उसे तेजी से पिघला दे। तोप के गोले दागने, बादलों की गरज या विस्फोट से होने वाली तेज आवाज भी हिमखण्ड के सरकने का कारण बन सकती है।

हिमस्खलन की प्रमुख विशेषताएँ

1. झीलों का निर्माण - भूस्खलन और हिमस्खलन दोनों प्रकार की आपदाओं के कारण पर्वतीय क्षेत्रों में कभी-कभी झीलों का निर्माण भी हो जाता हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में मलबे के गिरने के कारण ढाल की तरफ वाला भाग बन्द हो जाता है। वर्षा, नदि व हिम जल के भरने के कारण वह क्षेत्र झील के रूप में दिखायी देने लगता है। 

2. पारिस्थितिकी तन्त्र का बदला स्वरूप- स्थानीय पारिस्थितिकी तन्त्र में बड़े पैमाने पर परिर्वतन प्राकृतिक आपदाओं के कारण आते हैं। इन आपदाओं के कारण पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, जीव-जन्तु आदि दब जाते हैं और भौगोलिक तत्व व स्वरूप में भी परिवर्तन आ जाते हैं। 

3. मानवीय क्रियाओं का प्रभावित होना -  प्राकृतिक आपदाओं (भूस्खलन और हिमस्खलन) का मानवीय क्रियाओं पर भी प्रभाव पड़ता है। दैनिक दिनचर्या बिगड़ जाती है, सरकारी स्कूल, कार्यालय आदि कुछ समय के लिए बन्द हो जाते हैं तथा आर्थिक कार्य रूक जाते हैं। 

4. मानव संसाधन को क्षति मानव भी एक संसाधन है- भूस्खलन आपदा में मानव को सर्वाधिक क्षति होती है। यह क्षति शारीरिक व मानसिक दोनों प्रकार की होती हैं। इन आपदाओं में बड़े पैमाने पर मानवों की मृत्यु भी हो जाती है। 

5. सम्पर्क मार्गों का अवरूद्ध होना- हिमस्खलन और भूस्खलन आपदा के कारण सम्पर्क मार्ग (सड़क) टूट जाते हैं या उनमें रूकावट आ जाती है। जिस कारण क्षेत्र विशेष का सम्पर्क अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों से टूट जाता है। ऐसी अवस्था में आपदा प्रभावित क्षेत्र में राहत व बचाव कार्यों में बाधा आती है और साथ ही जरूरी वस्तुओं की आपूर्ति रूक जाती है।

6. आर्थिक क्रियाओं के संचालन में बाधा - आर्थिक क्रियाओं से सम्बन्धित कार्य रूक जाते हैं जैसें सड़क निर्माण, सुरंग निर्माण, बाँध निर्माण, खनन क्रिया आदि।

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