पर्यावरण विश्लेषण क्या है? प्रक्रिया और इसके लाभ

वातावरण के विश्लेषण से हमें मौजूदा वातावरण तथा इसमें होने वाले हर सम्भव परिवर्तनों को समझने में सहायता मिलती है। वर्तमान वातावरण को जानने के साथ-साथ भावी स्थिति का अनुमान भी लगाना पड़ता है। इससे भावी रणनीति को तैयार करने में मदद मिलती है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि वातावरण के अध्ययन से लाभ हैं -
  1. फर्म की रणनीति तय करने तथा दीर्घकालीन नीति निर्धारण में सहायता मिलना,
  2. तकनीकी प्रगति के कार्यक्रम को विकसित करने में मदद मिलना,
  3. फर्म के स्थायित्व पर राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय व सामाजिक, आर्थिक प्रभावों का पूर्वानुमान लगाना, 
  4. प्रतिस्पर्धियों की रणनीति का विश्लेषण तथा प्रभावी जवाब की तैयारी करना, तथा 
  5. गतिशीलता बनाए रखना।
व्यावसायिक वातावरण के प्रति जागरूक नहीं रहने के भयानक एवं कष्टदायी परिणाम निकल सकते हैं। सम्भव है कि कम्पनी अपने को अजेय मान ले तथा बाजार में क्या घटनायें घट रही है उनकी ओर न तो ध्यान दे और न उनकी जांच करें। इस स्थिति में कम्पनी न तो वातारण में परिवर्तन के अनुसार अपनी रणनीति में समायोजन करेगी और नहीं बदलते वातावरण के अनुसार प्रतिक्रिया करेगी। ऐसी कम्पनी को परेशानी में पड़ना स्वाभाविक है।

वातावरण का विश्लेषण कम्पनी को इतना समय प्रदान करता है कि वह अवसरों की जानकारी पहले ही प्राप्त कर ले और उनके अनुसार रणनीति में परिवर्तन करें। यह रणनीति निर्धारकों को एक पूर्व चेतावनी व्यवस्था (early warning system) विकसित करने में मदद देता है ताकि खतरे से बचा जा सके एवं खतरे को अवसर में बदला जा सके।

प्रबन्ध पर समय का काफी दबाव रहता है। वातारण के व्यवस्थित अध्ययन एवं विश्लेषण की अनुपस्थिति में प्रबन्धक वातावरणीय परिवर्तनों पर पर्याप्त समय नहीं दे पाएंगे। फलत: ऐसे परिवर्तनों का सामना सही ढंग से नहीं हो पाएगा, लेकिन जहां व्यावसायिक पर्यावरण का विश्लेषण होता है वहां प्रबन्धकीय निर्णय अधिक सही होते हैं। इस स्थिति में प्रबन्धक अन्य महत्वपूर्ण कार्यों पर अधिक समय दे सकगें । इसी वजह से विलियम एफ, ग्लुयके तथा लॉरेंसे आर. जॉच (William F. Glueck and Lawrence R. Jauch) ने कहा, “फर्म जो व्यवस्थित रूप से पर्यावरण का विश्लेषण तथा निदान करती है, ऐसा नहीं करने वालों की तुलना में अधिक प्रभावी होती है।” पर्यावरण से पूरा लाभ प्राप्त करने के लिए उत्पादन के स्तर पर तथा प्रक्रिया- सम्बन्धी विश्लेषण की आवश्यकता है।

(1) उत्पादन के स्तर पर पर्यावरण विश्लेषण को पर ध्यान देना है :
  1. चालू समय में जो परिवर्तन हो रहे हैं उनका वर्णन,
  2. भविष्य में होने वाले सम्भावित परिवर्तनों का अग्रदूत,
  3. भावी परिवर्तनों की वैकल्पिक व्याख्या।
ऐसी जानकारी के विश्लेषण से बाह्म मुद्दों को समझने तथा तदनुसार समायोजन का समय मिल जाता है तथा खतरों को अवसरों में बदलने का मौका।

पर्यावरण विश्लेषण की प्रक्रिया

पर्यावरण विश्लेषण की प्रक्रिया के स्तर पर यह मान लिया जाता है कि वाह्म शक्तियों से फर्म का संगठन प्रभावित होता हैं। वास्तव में वह विश्लेषण चुनौती भरा, लम्बा (काफी समय लेता है), तथा खर्चीला है। यह विश्लेषण चार चरणों में किया जा सकता है :

1. परीक्षण - पर्यावरण विश्लेषण का यह प्रथम चरण है। इसमें पर्यावरण सम्बन्धी सभी-कारकों की सामान्य निगरानी की जाती है तथा इनकी अन्तक्रियाओं पर ध्यान दिया जाता है; ताकि
  1. पर्यावरण सम्बन्धी सभी सम्भव परिवर्तनों की शुरू में ही पहचान की जा सके; तथा
  2. पर्यावरण सम्बन्धी वे परिवर्तन जो घटित हो चुके हैं, को खोज निकाला जा सके।
पर्यावरण विश्लेषण की प्रक्रिया का परीक्षण अच्छा ढांचा प्रस्तुत नहीं करता है तथा अस्पष्ट है। परीक्षण के लिए उपलब्ध आंकड़े न केवल अत्यधिक मात्रा में विद्यमान है बल्कि बिखरे हुए अस्पष्ट तथा सटीक नहीं है। ऐसे अस्पष्ट, असम्बद्ध तथा बिखरे हुए आंकड़ों का परीक्षण एक चुनौती भरा कार्य है।

2. अनुश्रवण - इसका कार्य वातावरणीय प्रवृत्ति, घटनाक्रम या क्रियाओं के प्रवाह पर नजर रखना। यह वातावरण के परीक्षण से प्राप्त संकेतों को समझने का प्रयास करता है। निर्देशन का उद्देश्य पर्याप्त आंकड़े इकट्ठे करना है ताकि यह समझा जा सके कि किसी प्रवृत्ति तथा पैटर्न का उदय हो रहा है या नहीं। निर्देशन की प्रगति के साथ-साथ अस्पष्ट आंकड़े स्पष्ट एवं सुनिश्चित दिखने लगते हैं।
अनुश्रवण के तीन परिणाम निकलते हैं-
  1.  वातावरण की प्रवृत्ति तथा पैटर्न, जिनकी भविष्यवाणी करनी है, का सुस्पष्ट विवरण;
  2. और आगे निर्देशन के लिए प्रवृत्ति की पहचान; तथा
  3. और आगे परीक्षण के लिए क्षेत्रों तथा स्थलों की पहचान।
3. पूर्वानुमान - परीक्षण तथा निर्देशन से वह तस्वीर निकलती है जो बन चुकी है तथा बनने जा रही है। रणनीति-सम्बन्धी निर्णय भविष्य की ओर देखता है। अत: वातावरण के विश्लेषण में स्वाभाविक रूप से भविष्यवाणी करना आवश्यक अंग बन जाता है। भविष्यवाणी का सम्बन्ध वातावरण सम्बन्धी परिवर्तन की दिशा, क्षेत्र तथा गहनता के विषय में युक्तियुक्त परियोजना को विकसित करना है। प्रत्याशित परिवर्तनों के विकास पथ के निर्माण की कोशिश की जाती है। भविष्यवाणी का सम्बन्ध प्रश्नों से है -
  1.  नई तकनीकों को बाजार तक पहुंचने में कितना समय लगेगा?
  2. क्या चालू स्टाइल जारी रहने वाला है?
  3. परीक्षण तथा निर्देशन से भिन्न, भविष्यवाणी अधिक निगमनात्मक तथा जटिल क्रिया है।
4. आकलन - उपरोक्त तीनो  प्रक्रिया- परीक्षण, निर्देशन तथा पूर्वानुमान अपने आप में उद्देश्य नहीं है। इन प्रक्रियाओं से प्राप्त परिणामों का आकलन करके व्यवसाय की चालू तथा भावी रणनीतियों को तय करना होता है। आकलन से जिन प्रश्नों के उत्तर देने हैं, वे हैं -
  1. वातावरण किन मुख्य मुद्दों को उपस्थित करता है?
  2. इन मुद्दों का संगठन के लिए क्या महत्व है?

पर्यावरण विश्लेषण के लाभ

  1. पर्यावरण विश्लेषण का विचार पर्यावरण एवं संगठन के बारे में व्यक्ति को जागरूक बनाता है।
  2. पर्यावरण विश्लेषण व्यवसायी को वर्तमान एवं भविष्य की चुनौतियों एवं अवसर को पहचानने में मदद करता है।
  3. पर्यावरण विश्लेषण व्यवसाय को प्रभावित करने वाले घटकों के बारे में बहुत ही लाभदायक एवं आवश्यक जानकारी उपलब्ध करता है।
  4. पर्यावरण विश्लेषण किसी उद्योग विशेष में होने वाले परिवर्तनों को समझने में मदद करता है।
  5. तकनीकी पूर्वानुमान भविष्य में होने वाली चुनौतियों एवं अवसर की जानकारी देता है।
  6. पर्यावरण विश्लेषण का एक महत्वपूर्ण लाभ यह है कि यह खतरों को पहचानने में मदद करता है।
  7. व्यवसाय को अपने रणनीतिक निर्णय लेने में पर्यावरण विश्लेषण एक आवश्यकता है।
  8. व्यवसाय को अपने रणनीतिक निर्णयों में फेरबदल करने में पर्यावरण विश्लेषण मदद करता है।
  9. पर्यावरण विश्लेषण प्रबन्धकों को प्रगतिशील, सावधान एवं सूचित रखता है।

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