विज्ञापन एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा हम किसी सामग्री या व्यक्ति विशेष के प्रति जनसामान्य को आकर्षित करने का प्रयास करते हैं। आज विज्ञापन हमारे जीवन की दिनचर्या का एक जरूरी अंग बन गया है। फिल्म, रेडियो, टेलीविजन, पोस्टर्स, हैंडबिल, साइनबोर्ड, लोकल केबल टी.वीनेटवर्क, सिनेमा स्लाइड, इंटरनेट और बैलून आदि अनेक माध्यमों से विज्ञापन होता है
विज्ञापन से आशय ऐसे दृश्य, लिखित या मौखिक अवैयक्तिक संदेशों से है जो जनता को क्रय करने के लिए प्रेरित करने हेतु पत्र-पत्रिकाओं, रेड़ियो, टेलीविजन, ट्रक, बस, रेलगाड़ी व अन्य साधनों द्वारा सामान्य जनता तक पहुंचाये जाते है, जिसके लिए विज्ञापनकर्त्ता को भुगतान करना पडता है।
विज्ञापन का अर्थ
विज्ञापन शब्द ‘वि’ और ‘ज्ञापन’ इन दो शब्दों से मिलकर बना है। ‘वि’ से तात्पर्य ‘विशेष’ से तथा ‘ज्ञापन’ से आशय ‘ज्ञान कराना’ अथवा सूचना देना है। इस प्रकार ‘विज्ञापन’ शब्द का मूल अर्थ है ‘किसी तथ्य या बात की विशेष जानकारी अथवा सूचना देना।’
विज्ञापन की परिभाषा
अनेक विद्वानों ने विज्ञापन के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए अनेक परिभाषाएँ दी हैं।
2. अमेरिकन मार्केटिंग एसोसिएशन के अनुसार-एक निश्चित विज्ञान द्वारा अवैयक्तिक रूप से विचारों, वस्तुओं या सेवाओं को प्रस्तुत करने तथा संवर्द्धन करने का एक प्रारूप है, जिसके लिए विज्ञापक द्वारा भुगतान किया जाता है।’’
3. व्हीलर के अनुसार-विज्ञापन लोगों को क्रय करने के उद्देश्य से विचारों, वस्तुओं, सेवाओं का अवैयक्तिक प्रस्तुतीकरण है, जिसके लिए भुगतान किया जाता है।
4. फ्रेंक प्रेसब्री के अनुसार-मुद्रित, लिखित, मौद्रिक अथवा रेखाचित्रित विक्रयकला विज्ञापन है।
5. वृहत्त हिन्दी कोष के अनुसार- विज्ञापन का अर्थ है- ’’समझना, सूचना देना, इश्तहार, निवेदन या प्रार्थना‘‘ ।
6. रोजर रीवज ने कहा है कि- ’’विज्ञापन एक व्यक्ति के मस्तिष्क से दूसरे मस्तिष्क में एक विचार को स्थानान्तरित करने की कला है।‘‘
7. कैनन एवं विचर्ट के अनुसार- ’’विज्ञापन में उन दृश्यों एवं संदेशों को सम्मिलित किया जाता है जो समाचार-पत्रो, पत्रिकाओ चलचित्र, रेडियो, टेलीविजन, परिवहन के साधनों दिए होते हैं और जिनके लिए विज्ञापनकर्ता भुगतान करते हैं और जिनका उद्देश्य उपभोक्ताओ के क्रय को प्रभावित करना होता है।
विज्ञापन की विशेषताएं
- विज्ञापन जनता के सामने सार्वजनिक रूप से सन्देश प्रस्तुत करने का साधन है।
- विज्ञापन एक व्यापक सन्देश पहुंचाने का व्यापक माध्यम है, जिसके द्वारा सन्देश को बार-बार दोहराया जाता है।
- विज्ञापन द्वारा एक ही सन्देश को विभिन्न प्रकार के रंगों, चित्रों, शब्दों, वाक्यों तथा लाइट से सुसज्जित कर सन्दीेश जनता तक पहुंचाये जाते है, जो ग्राहक को स्पष्ट एवं विस्तृत जानकारी देता है।
- विज्ञापन सदैव अव्यक्तिगत होता है। कभी कोई व्यक्ति आमने-सामने विज्ञापन नहीं करता।
- विज्ञापन मौखिक, लिखित, दृश्य तथा अदृश्य हो सकता है।
- विज्ञान के लिए विज्ञानकर्त्ता द्वारा भुगतान किया जाता है।
- विज्ञान के विविध माध्यम से जिसमें विज्ञापनकर्त्ता अपनी सुविधानुसार उपयोग कर सकता है।
- विज्ञापन का उद्देश्य नये ग्राहकों को जोड़ना तथा विद्यमान ग्राहकों को बनाये रखना होता है।
- जबकि गैर-व्यावसायिक विज्ञापनों का उद्देश्य सामान्यत: सूचना देना होता है। आधुनिक युग में विज्ञापन एक व्यावसायिक क्रिया है, जिसे प्रत्येक व्यवसाय को किसी-न-किसी रूप में नित्य करना पड़ता है ताकि व्यवसाय को बढ़ाया जा सके।
विज्ञापन के माध्यम
विज्ञापन के माध्यम से आशय उन साधनों से है, जिनके माध्यम से विज्ञापनकर्त्ता अपनी
वस्तुओं एवं सेवाओं या विचारों के बारे में एक विशाल जन-समुदाय को संदेश पहुंचाते है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते है कि विज्ञापन माध्यम एक ऐसा साधन है, जिसमें निर्माता
अपनी वस्तुओं एवं सेवाओं के बारे में उपभोक्ता को जानकारी उपलब्ध करवाता है।
नाइस्ट्रॉम के अनुसार-’’विज्ञापन का माध्यम वह साधन या वाहन है, जिसके द्वारा
विज्ञापन का संदेश किसी व्यक्ति या समुदाय को प्रभावित करने की आशा से पहुंचाया जाता
है।’’
1. समाचार पत्र - आज समाचार-पत्र गांवों तथा शहरों, सभी स्थानों पर लोगों द्वारा समाचार-पत्रों को पढ़ा
जाता है। समाचार-पत्र विज्ञापन का एक अच्छा साधन है। समाचार-पत्र सभी प्रकार के
व्यवसायियों के लिए उपर्युक्त है। समाचार-पत्र में वस्तुओं एवं सेवाओं की विस्तृत जानकारी
विज्ञापन द्वारा दी जाती है। समाचार पत्र दैनिक, साप्ताहिक अथवा पाक्षिक होते है।
2. पत्रिकाएँ - पत्रिकाएँ एक निश्चित समयान्तर (जैसे साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक, अर्द्धवार्षिक
या वार्षिक) से प्रकाशित होती है। इन पत्रिकाओं में कहानियाँ, कविताएँ, लेख, ब्यूटी टिप्स,
खाना-खजाना आदि-आदि होते है। अर्थात् रुचि व सामग्री के अनुसार ये पत्रिकाएँ साहित्यिक,
धार्मिक, वैज्ञानिक, राजनैतिक, आर्थिक तथा वाणिज्यिक होती है।
इन्हें अपनी रुचि अनुसार
सभी वर्ग के बच्चे, युवा एवं वृद्ध अपने मनोरंजन के लिए पढ़ते है। इन पत्रिकाओं में जो
विज्ञापन दिये जाते है, उन्हें पत्रिका विज्ञापन कहते है।
3. रेडियो - विज्ञापन का यह साधन काफी पुराना, प्रतिष्ठित व लोकप्रिय है। अधिकांश घरों में रेडियो पाये जाते है। रेडियो देश-विदेश के समाचार, संगीत एवं अन्य कार्यक्रम जनता के सम्मुख दिन-रात प्रस्तुत करते रहते है। रेडियो द्वारा संगीत, नाटक, समाचार, चुटकुले आदि के कार्यक्रमों के पहले, बाद में तथा बीच में विज्ञापन प्रसारित किये जाते है। अब देश के विविध भारती के लगभग 60 केन्द्रों से विज्ञापन प्रसारित किये जाते है।
इस माध्यम द्वारा दिये जाने वाला सन्देश काफी रोचक, संगीत कथाओं के रूप में होना चाहिए। यह ग्रामीण व शहरी दोनों के लिए उपयुक्त है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते है कि जहाँ श्रोता पहुंच सकता है, वहाँ रेडियो द्वारा सन्देश पहुंचाया जा सकता है।
4. टेलीविजन - आधुनिक समय में टी.वी. विश्व में विज्ञापन का एक महत्त्वपूर्ण साधन बन गया है। हमारे देश में टी.वी. विज्ञापन का श्रीगणेश 1976 में हुआ। टी.वी. एक ऐसा यंत्र है, जो शब्दों व चित्रों को एक साथ दर्शकों के सामने प्रस्तुत करता है। इसके द्वारा विज्ञापन सन्देशों को नाटकीय ढंग से प्रस्तुत किया जाता है।
टी.वी. में विज्ञापन देना हालांकि खर्चीला है परन्तु प्रभावी माध्यम है। सुनी व देखी बातें काफी समय तक याद रहती है।
5. सिनेमा - सिनेमा मनोरंजन का सर्वाधिक सस्ता एवं लोकप्रिय साधन है। सिनेमा में 8 6 विज्ञापन के लिए स्लाइडों का प्रयोग किया जाता है। ये स्लाइडें फिल्म प्रारम्भ होने से पहले या मध्यान्तर या फिर अन्त में दिखाई जाती है। इन विज्ञापनों को अनेक व्यक्ति एक साथ देखते है और प्रभावित होते है। इस माध्यम का प्रयोग करके विज्ञापन को स्मरणकारी बनाया जा सकता है।
6. नाटक एवं संगीत कार्यक्रम - ग्रामीण जनता को प्रभावित करने के लिए नाटक व संगीत कार्यक्रम के द्वारा भी विज्ञापन दिया जाता है। धार्मिक नाटक, लोकगीतों को गाकर नाटक मण्डलियों द्वारा नाटक दिखाकर विज्ञापन किये जाने लगे है। विज्ञापन का यह रूप अभी अधिक प्रचलन में नहीं है।
7. मेले एवं प्रदर्शनियाँ - मेले एवं प्रदर्शनियाँ हमारी संस्कृति का अंग बन गई है। हमारे देश में प्रयाग, पुष्कर, रामदेव अनेक मेले लगते रहते है। प्रदर्शनियां भी आयोजित होती है। अनेक बार सरकार व व्यापारियों द्वारा भी मेले का आयोजन होता है। इन मेले एवं प्रदर्शनियों को देखने के लिए दूर-दूर से व्यक्ति आते है और इनमें वस्तुओं का विज्ञापन आसानी से हो जाता है।
8. पोस्टर्स - पोस्टर्स से आशय उन लिखित तथा चित्रित विज्ञापनों से होता है, जिन्हें
गलियों के कोने, सड़क के किनारे, कार्यालयों या दुकानों, बस स्टैण्ड, रेलवे स्टेशन पर
चिपकाये जाते है। जिन्हें आते-जाते लोग आसानी से देख व पढ़ सकते है। इन्हें कागज,
लकड़ी की तख्तियों, लोहे की चादरों व धातु की प्लेटों पर बनाये जाते है।
9. दीवार-लेखन - यह बाह्य विज्ञापन का प्राचीन साधन है। इसमें विज्ञापनकर्त्ता अपने
सन्देश को दीवार पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिख देता है। ये विभिन्न रंगों एवं चित्रों द्वारा
सुसज्जित होते है। गांवों, कस्बों में इस प्रकार के विज्ञापन प्राय: देखने को मिलते है। ऐसे
विज्ञापन राह चलते व्यक्ति द्वारा देखे जा सकते है। इनमें प्राय: चायपत्ती, औषधियों, साबुन,
गुटखा, पान-मसाला आदि के देखे जाते है।
11. सैण्डविचमैन विज्ञापन - इस प्रकार के विज्ञापन में व्यक्ति विशेष से विशेष प्रकार
से सजाया जाता है। उसके शरीर के चारों ओर विज्ञापन का सन्देश पोस्टर्स या अन्य
माध्यम से चिपका दिया जाता है। आकर्शक रूप सजाकर गाँव व शहर में घुमाया जाता
है ताकि लोगों का ध्यान उस पर जाये। लोग उसे देखें, इससे वस्तुओं का विज्ञापन स्वत:
ही हो जाता है।
12. यातायात विज्ञापन - ये वे विज्ञापन है, जो यातायात वाहनों के भीतरी तथा बाहरी
भागों में किये जाते है। ये प्राय: कार, रेल, बस आदि के भीतरी भागों, शीषों व दीवारों
पर किये जाते है तो इन्हें कारकार्डस (Car Cards) कहते है और विज्ञापन बाहरी सतह पर
किये जाते है, इन्हें यातायात प्रदर्शन (Travelling Display) कहा जाता है। यातायात वाहन
में सैकड़ों व्यक्ति यात्रा करते है तथा इन्हें सड़क पर आते-जाते देखते है, इससे इनमें लिखा
सन्देश आते-जाते व्यक्तियों द्वारा पढ़ा जाता है।
ऐसे विज्ञापन का सन्देश संक्षिप्त तथा आकर्षक
होना चाहिए। साथ ही मोटे अक्षरों, चित्रों व रंगों का प्रयोग किया जाना चाहिए ताकि व्यक्ति
आसानी से पढ़ सके।
13. लाउडस्पीकर - विज्ञापन-ऐसे विज्ञापन में व्यक्ति रिक्शा, तांगे
या कार में बैठकर लाउडस्पीकर यंत्र द्वारा मौखिक रूप से व्यक्ति वस्तुओं के बारे में विज्ञापन
करता है। यह माध्यम अधिकतर शहरों में प्रयोग किया जाता है। यह एक सस्ता, सरल
एवं लोकप्रिय माध्यम है।
14. विशिष्ट या अभिनव विज्ञापन - विशिष्ट विज्ञापन में संभावित ग्राहकों को भेंट
स्वरूप कोई उपयोगी वस्तु दी जाती है, जिस पर विज्ञापन संदेश लिखा रहता है। इसमें मुख्यतया
निम्नलिखित वस्तुएँ होती है, जैसे-चाबी छल्ला, पेपरवेट, डायरी, कलैण्डर्स, सिगरेट-केस, पैन,
ऐश-ट्रे तथा ताश आदि शामिल होती है।
15. प्रोग्राम विज्ञापन - वे विज्ञापन जो विभिन्न अवसरों पर दिये जाते है, प्रोग्राम विज्ञापन
कहलाते है, जैसे-पन्द्रह अगस्त, छब्बीस जनवरी, होली, दीपावली आदि पर दिये जाते है।
इन विज्ञापनों का प्रचलन आजकल बढ़ रहा है।
16. आकाश-लेखन विज्ञापन - विज्ञापन का यह साधन नया है। इसमें आकाश के तले
वस्तुओं के नाम धुएँ से हवाई जहाज की सहायता से लिखा जाता है। या फिर रंग-बिरंगे
गुब्बारों को शब्दों एवं चित्रों द्वारा भरकर आकाश में उड़ाया जाता है। व्यक्ति इन्हें देखता
है, स्वत: ही उस तक सन्देश पहुंच जाता है। यह खर्चीला होता है, इसलिए इसका प्रयोग
कम होता है।
क्या विज्ञापन वस्तुओं की लागत बढ़ाता है?
सर्वसाधारण में यह धारणा घर कर गयी है कि विज्ञापन वस्तुओं की लागत बढ़ाता है। जिस प्रकार गोदाम व्यय, मजदूरी व्यय,
बिक्री व्यय वस्तु की लागत बढ़ाते हैं उसी प्रकार विज्ञापन व्यय भी वस्तु की लागत बढ़ाते हैं जिसका प्रभाव अन्त में उपभोक्ता
पर पड़ता है। यह धारणा उचित प्रतीत नहीं होती है।
व्यवहार में तो विज्ञापन व्ययों से वस्तु की लागत में निम्न प्रकार कमी
आ जाती है-
- विज्ञापन के कारण माँग बढ़ती है जिसको पूरा करने के लिए फैक्टरी को पूरी क्षमता पर कार्य करना पड़ता है। इससे प्रति इकाई लागत कम हो जाती है।
- विज्ञापन करने से कुल बिक्री बढ़ती है जिससे प्रति इकाई बिक्री व्ययों में कमी आती है।
- माँग बढ़ने के कारण उत्पादन वृहत् पैमाने पर किया जाता है जिससे विशिष्टीकरण को बढ़ावा मिलता है। इससे वस्तु की क्वालिटी में सुधार होता है तथा लागत कम होती है।
- विज्ञापन माँग में मौसमी कमी के प्रभाव को कम करने में सहायक होता है। इससे उत्पादन बनाये रखने में आसानी रहती है जिससे प्रति इकाई लागत कम ही बनी रहती है।
- विज्ञापन के कारण कच्चे एवं पक्के माल में गतिशीलता बनी रहती है जिससे पूँजी का सदुपयोग होता है और प्रति इकाई लागत कम ही बनी रहती है।
- विज्ञापन करने से वस्तु के सम्बन्ध में बिक्री व्ययों में कमी आती है। ग्राहक को अधिक देर तक समझाने की आवश्यकता नहीं रहती है। इस प्रकार इन आधारों पर कहा जा सकता है कि विज्ञापन वस्तुओं की लागत में कमी करता है।
विज्ञापन की आलोचना
सभी विज्ञापनकर्ता ईमानदार नहीं होते और न हो सकते हैं। एक जाने-माने अमेरिकन विज्ञापनकर्ता ने कुछ समय पहले यह
कहा था कि भारत में अच्छा विज्ञापन विश्व के विज्ञापनों में सबसे उत्तम है, ¯कतु बुरा विज्ञापन विश्व के बुरे से बुरे विज्ञापन
से भी बुरा है। विज्ञापन का नियंत्रण करना बहुत कठिन है। यह असंभव है क्योंकि उसमें बुराई क्या है, यह साबित करना
आसान नहीं है। क्योंकि जो कुछ भी बुरा दिखाई देता है वह विज्ञापन का केंद्रीय सार प्रमाणित हो जाता है। विज्ञापन
से होने वाले नुकसान या हानि को प्रमाणित करना असंभव है। विज्ञापन की आलोचना इन आधारों पर की जाती है-
1. खराब एवं हानिकारक उत्पादों का भी प्रचार किया जाता है - बहुधा ग्राहक विज्ञापनकर्ता द्वारा दी गई दलीलों के आधार पर ही वस्तुएं खरीदते हैं। ग्राहक पहले ऐसी
वस्तु की खामियां या विज्ञापनकर्ताओं की ईमानदारी का पता नहीं लगा पाते। वे वस्तु के उपयोग के बाद ही उसकी
खामियों को जान सकते हैं। विज्ञापन की तीव्र आलोचना इसलिए की जाती है, क्योंकि घटिया या दोषपूर्ण वस्तुओं
के उत्पादक भी उनका विज्ञापन अच्छी और श्रेष्ठ वस्तुओं की भांति करते हैं।
2. विज्ञापनकर्ता केवल विक्रय में ही रूचि लेते हैं - उत्पादन के
बाद उत्पादक को कम से कम उत्पादन लागत तो वसूल करनी ही पड़ती है। उपभोक्ताओं को होने वाली हानि या
पीड़ा से उसका कोई संबंध नहीं होता। इसके लिए वह विज्ञापन का सहारा लेता है। ऐसे विज्ञापनों से उपभोक्ताओं
को हानि होती है।
3. अनावश्यक चीजें लाई व विक्रय की जाती हैं - कई चीजें
जैसे शराब, सिगरेट आदि का विक्रय अतिशीघ्र हो जाता है, क्योंकि उनके लिए विभिन्न प्रकार के विज्ञापन किए जाते
हैं। कई लोग विज्ञापन में बताए गए गुणों और उपयोगों से आक£षत होते हैं तथा उन वस्तुओं को खरीद लेते हैं।
4. अच्छी वस्तुएं बाजार से बाहर निकाल दी जाती हैं - घटिया किस्म की वस्तु के लिए विज्ञापन पर अधिक व्यय करने से इसके विक्रय में वृद्धि होती है
तथा उससे अच्छी किस्म की वस्तुओं की मांग में कमी हो जाती है।
5. विज्ञापन के कारण ग्राहकों को अधिक कीमत चुकानी पड़ती है - विज्ञापन पर किया गया व्यय वस्तु या सेवा की लागत का एक भाग बन गया है।
इसलिए विज्ञापन पर व्यय करने के लिए प्रेरणा प्राप्त होने लगी है। इससे उत्पाद या सेवा की लागत में प्रत्यक्ष वृद्धि
होने लगी है जिससे विक्रय मूल्य में वृद्धि हो जाती है। विज्ञापन व्यय प्रति इकाई उतने ही अधिक हो सकते हैं। दवाइयां विशेषतः गोलियां तथा मिष्ठान व खाद्य
पदार्थ इसके अच्छे उदाहरण हैं।
6. चिन्ह साधन बन चुके हैं - प्रत्येक उत्पाद के उत्पादक का अपना चिन्ह होता
है। उत्पादकों के ब्रांडस के अतिरिक्त थोक विक्रेताओं और दूसरे मध्यस्थों के भी अपने-अपने चिन्ह होते हैं जो
सामान्यतया निजी चिन्ह कहलाते है। इस स्थिति में उपभोक्ता उत्पादकों के नाम नहीं जान पाते। एक बार यदि किसी
ब्रांड को सफलता प्राप्त हो जाती है तथा वह बाजार में ग्राहकों के बीच लोकप्रिय हो जाता है, तो उसके गुणों में कमी
होनी प्रारंभ हो जाती है। फलस्वरूप उपभोक्ताओं को या प्रयोग करने वालों को हानि होती है।
8. विज्ञापन में सत्यता?- इस बात पर विज्ञापन की तीव्र आलोचना की जाती है कि
विज्ञापनों में कितनी सत्यता होती है, कितनी असत्यता होती है। इसका निश्चय करना अत्यंत कठिन है। कई विज्ञापनों
में मिथ्या वर्णन, अधूरा वर्णन, गलत नाम तथा चिन्ह तथा विचित्र व गलत दलीलें (दावे) आदि होती हैं। उदाहरण के
लिए दवाईयों, पौष्टिक मिश्रणों, शरीर बनाने के उपकरणों आदि के विज्ञापनों में यह कथन दिया होता है कि “पंद्रह
दिनों पहले वह शारीरिक रूप से इतना कमजोर था” कई प्रकार के कंबलों, जड़ी-बूटियों, दवाइयों, तथा बालों
को गिरने से रोकने की दवाओं आदि का विज्ञापन इसी प्रकार की दलीलों के साथ किया जाता है। ऐसे विज्ञापन
में विज्ञापित वस्तुओं को गलत साबित करने पर इनाम देने का वादा भी रहता है।
विज्ञापन के प्रमुख उद्देश्य
अपनी वस्तु की मांग को बाजार में बनाए रखने, नई वस्तु का परिचय जनमानस तक प्रचलित करने, विक्रय में वृद्धि करने तथा अपने प्रतिष्ठान की प्रतिष्ठा कायम रखने आदि कुछ प्रमुख उद्देश्यों को लेकर विज्ञापन किए जाते हैं।
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विज्ञापन
बहुत आभार !
ReplyDeleteBohat sundar
ReplyDeleteAccha hai
ReplyDeleteVery helpfull 🙂
ReplyDeletevery hapl full
ReplyDeleteUse full thoughts very nice thank you so much 😊 ☺
ReplyDeleteVery halp full
ReplyDeleteThanks
ReplyDeleteVery nice
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