महाभारत के 18 पर्व ‘महाभारत’ का प्रणयन 18 पर्वों या खण्डों में हुआ है, जिनके नाम इस प्रकार हैं- प्रत्येक पर्व में वर्णित विषयों की सूची इस प्रकार है-
महाभारत में कितने पर्व है और उनके नाम
महाभारत के 18 पर्व ‘महाभारत’ का प्रणयन 18 पर्वों या खण्डों में हुआ है, जिनके नाम इस प्रकार हैं-
- आदि पर्व
- सभापर्व
- वनपर्व
- विराटपर्व
- उद्योगेपर्व
- भीष्मपर्व
- द्रोणपर्व
- कर्णपर्व
- शल्यपर्व
- स्त्रीपर्व
- शान्तिपर्व
- अनुशासनपर्व
- आश्वमेधिकपर्व
- आश्रमवासिकपर्व
- मौसलपर्व
- महाप्रस्थानिकपर्व
- स्वर्गारोहणपर्व
धृतराष्ट्र एवं पाण्डु का विवाह, धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों तथा पाण्डवों की जन्म कथा, द्रोण का परशुराम से अó प्राप्त करना तथा राजा द्रुपद से अपमानित होकर हस्तिनापुर आना एवं राजकुमारों की शिक्षा के लिए उनकी नियुक्ति, दुर्योधन द्वारा लाक्षागृह में पाण्डवों को मारने की योजना तथा उसकी विफलता, हिडिम्ब का वध कर भीम का उसकी बहिन हिडिम्बा से ब्याह करना तथा घटोत्कच की उत्पत्ति।
द्रौपदी का स्वयम्वर तथा अर्जुन का लक्ष्यवेध कर द्रौपदी को प्राप्त करना, पाँचों भाइयों
का द्रौपदी के साथ विवाह, द्रोण और विदुर के परामर्श से पाण्डवों का आधा राज्य प्राप्त कर
इन्द्रप्रस्थ में अपनी राजधानी बनाना, मणिपुर में चित्रांगदा के साथ अर्जुन का विवाह, द्वारिका में
सुभद्रा-हरण एवं अर्जुन के साथ विवाह, खाण्डववन का दाह।
2. सभापर्व - र् मय दानव द्वारा अद्भुत सभा का निर्माण तथा नारद का आगमन, युधिष्ठर का
राजसूय करने की इच्छा प्रकट करना, राजसूय का वर्णन, भीष्म के कहने पर श्री कृष्ण की पादपूजा,
शिशुपाल का विरोध तथा कृष्ण द्वारा उसका वध, दुर्योधन को ईर्ष्या, द्यूतक्रीड़ा के लिए युधिष्ठिर
का आàान, शकुनि की चाल से युधिष्ठिर का भाईयों तथा द्रौपदी को हार जाना, दु:शासन द्वारा
द्रौपदी का चीर हरण, युधिष्ठिर आदि का वन गमन।
3. वनपर्व - पाण्डवों का काम्यक् वन में प्रवेश तथा विदुर और श्रीकृष्ण का आगमन, व्यास जी
के आदेश से पाण्डवों का इन्द्रकील पर्वत पर जाकर इन्द्र के दर्शन करना, अर्जुन की तपस्या एवं
शिव जी से पाशुपताó की प्राप्ति उर्वशी का अर्जुन पर आसक्त होना, अर्जुन द्वारा उसका तिरस्कार
करना तथा उर्वशी द्वारा उनका शापित होना, नल-दमयन्ती की कथा, परशुराम, अगस्त्य, सगर,
भगीरथ, ऋष्यÜाृड़्ग, च्यवन मांधाता आदि की कथा, हनुमान् भीम-मिलन, सर्प-रूपी नहुष से संवाद
एवं उसकी मुक्ति, द्रौपदी सत्यभामा संवाद, दुर्योधन का गन्धर्वों से युद्ध एवं उसकी पराजय, पाण्डवों
द्वारा उसकी रक्षा एवं दुर्योधन का गन्धर्वों से युद्ध एवं उसकी पराजय, पाण्डवों द्वारा उसकी रक्षा
एवं दुर्योधन की आत्मग्लानि, सावित्राी-उपाख्यान, इन्द्र का कर्ण से कवच कुण्डल का दान-रूप में
ग्रहण तथा दिव्यदृष्टि देना, यज्ञ युधिष्ठिर संवाद।
4. विराटपर्व - अज्ञातवास के लिए पाण्डवों का विराट्नगर में प्रस्थान, कीचक का द्रौपदी को
अपमानित करना तथा भीम द्वारा उसका वध, सुशर्मा से पाण्डवों का राजा विराट् की रक्षा करना,
कौरवों का विराट् पर आक्रमण तथा पाण्डवों की सहायता से राजा विराट् की विजय, विराट् की
पुत्राी उत्तरा के साथ अभिमन्यु का विवाह।
5. उद्योगेपर्व - अर्जुन तथा दुर्योधन दोनों की सहायता करने का श्रीकृष्ण का आश्वासन, पाण्डवों की सैनिक तैयारी, संजय
का दूत बनकर आना और पाण्डवों का दूत बन कर श्रीकृष्ण का दुर्योधन की सभा में जाना उनकी
वार्ता का विफल होना, कुरुक्षेत्र में दोनों की सैन्य-योजना एवं व्यूह की रचना।
6. भीष्मपर्व - व्यास जी द्वारा संजय को दिव्य दृष्टि की प्राप्ति, धृतराष्ट्र के पूछने पर संजय का
युद्ध विवरण देना। दस दिनों तक भीष्म द्वारा घनघोर युद्ध तथा शिखण्डी की सहायता से भीष्म
का पतन, भीष्म की शरशय्या तथा प्राण-त्याग के लिए उनकी उत्तरायण की प्रतीक्षा।
7. द्रोणपर्व - अभिमन्यु का युद्ध, द्रोण द्वारा चक्रव्यूह का निर्माण एवं अभिमन्यु की मृत्यु, अर्जुन द्वारा जयद्रथ का मारा जाना, कर्ण की शक्ति से घटोत्कच की मृत्यु, द्रोणाचार्य का घोर युद्ध तथा धृष्टद्युम्न द्वारा उनका वध, अश्वत्थामा का क्रोध कर नारायणश का प्रयोग, श्रीकृष्ण द्वारा पाण्डव सेना एवं भीम की रक्षा।
8. कर्णपर्व - कर्ण का सेनापति बनना, कर्ण द्वारा युधिष्ठिर की पराजय तथा पलायन, अश्वत्थामा को पराजित कर अर्जुन का युधिष्ठिर का समाचार लेने के लिए आना, युधिष्ठिर द्वारा अर्जुन का तिरस्कार तथा अर्जुन का युधिष्ठिर को मारने के लिए उद्यत होना, श्रीकृष्ण की शिक्षा से दोनों का प्रसन्नतापूर्वक मिलन, कर्णवध तथा युधिष्ठिर द्वारा शल्य का मारा जाना, दुर्योधन का सरोवर में प्रवेश।
9. शल्यपर्व - गदापर्व-र् भीमसेन की ललकार सुनकर दुर्योधन का सरोवर से निकलना तथा
भीमसेन के साथ गदा-युद्ध, भीम का दुर्योधन की जांघ तोड़ देना, बलराम का आना और क्रोध प्रकट
करना, दुर्योधन की दशा देखकर अश्वत्थामा का शोक करना तथा उसका सेनापतित्व ग्रहण करना।
11. स्त्रीपर्व - जलपद्रानादि कमर्, धृतराष्ट का विलाप, सजंय एवं विदरु का उनहें समझाना, गान्धारी
का क्रोध करना तथा व्यास जी का उन्हें समझाना, स्त्री पुरुषों द्वारा अपने संबंधियों को जलांजलि देना।
12. शान्तिपर्व - युधिष्ठिर द्वारा महर्षि नारद से कर्ण का वृत्तान्त जानकार शोक प्रकट करना,
क्रमश: भीमसेन, अर्जुन, नकुल, सहदेव तथा द्रौपदी का गृहस्थ-धर्म राज्य तथा धन की प्रशंसा करते
हुए युधिष्ठिर को समझाना, श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर के शोक-निवारण का प्रयत्न करना तथा सोलह
राजाओं का उपाख्यान सुनना, श्रीकृष्ण के कहने पर युधिष्ठिर का भीष्म के पास जाना तथा भीष्म
का युधिष्ठिर को राजधर्म, आपत्तिग्रस्त राजा के कर्तव्य एवं धर्म की सूक्ष्मता का उपदेश देना।
नाना
प्रकार के आख्यान, अनेक गीताएँ तथा मोक्ष के साधनों का वर्णन, यज्ञ में हिंसा की निन्दा तथा
अहिंसा की प्रशंसा, सांख्ययोग का वर्णन, जनक तथा शुकदेव आदि ऋषियों की कथा।
13. अनुशासनपर्व - युधिष्ठिर को सान्त्वना देने के लिए भीष्म का अनेक कथाएँ कहना, लक्ष्मी के निवास करने तथा न करने योग्य पुरुष स्त्री और स्थानों का वर्णन, शरीर, मन और वाणी के पापों के परित्याग का उपदेश, दान-महिमाव्रत, उपवास आदि के फल, हिंसा तथा मांस-भक्षण की निन्दा, भीष्म का प्राणत्याग।
14. आश्वमेधिकपर्व - युधिष्ठिर का क्रोध करना तथा श्रीकृष्ण का उन्हें समझाना, अर्जुन से श्रीकृष्ण का मोक्ष-धर्म का वर्णन करना, उत्तरा की कथा, अभिमन्यु का श्राद्ध, मृत बालक परीक्षित का श्रीकृष्ण द्वारा पुनरुज्जीवन, यज्ञ का प्रारम्भ तथा अर्जुन द्वारा अर्थ की रक्षा, विभिन्न प्रकार के दान एवं व्रत का वर्णन।
15. आश्रमवासिकपर्व - धृतराष्ट्र का गांधारी तथा कुन्ती के साथ वन जाना, गांधारी तथा कुन्ती का मृत पुत्रों को देखने के लिए व्यास जी से अनुरोध करना तथा परलोक से मृत पुत्रों का आना एवं दर्शन देना, धृतराष्ट्र, गान्धारी और कुन्ती की मृत्यु।
16. मौसलपर्व - मौसल युद्ध में यदुवंशियों का नाश।
17. महाप्रस्थानिकपर्व - पाण्डवों द्वारा वृष्णिवंशियों का श्राद्ध करके हिमालय की ओर प्रस्थान, युधिष्ठिर के अतिरिक्त सभी भाइयों का पतन, युधिष्ठिर का सन्देह तथा उनका स्वर्ग में जाना।
18. स्वर्गारोहणपर्व - स्वर्ग में नारद तथा युधिष्ठिर में वार्तालाप, युधिष्ठिर का नरक देखना तथा भाइयों का क्रन्दन सुनकर नरक में रहने का निश्चय करना, इन्द्र तथा धर्म का युधिष्ठिर को समझाना, युधिष्ठिर का दिव्यलोक में जाना तथा अर्जुन कृष्णादि से भेंट, महाभारत का उपसंहार और माहात्म्य।
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