विश्व के प्रमुख महासागर और उनकी विशेषताएं

विश्व के महासागर

महासागर एक विशाल और लगातार जल खण्ड है जो पृथ्वी के सभी भूखण्डों को चारों ओर से घेरे हुए है। दक्षिणी गोलार्द्ध के 4/5 तथा उत्तरी गोलार्द्ध के 3/5 भाग पर समुद्री जल है। इसमें विश्व के समूचे जल का 97.2 प्रतिशत जल है।

विश्व के प्रमुख महासागर

विश्व के प्रमुख महासागर और उनकी विशेषताएं -
  1. प्रशान्त महासागर
  2. हिन्द महासागर 
  3. अटलांटिक महासागर तथा 
  4. आर्कटिक महासागर 
1. प्रशान्त महासागर - यह देखा जा सकता है कि प्रशान्त महासागर में भी धाराओं का एक वृहद् चक्रीय तंत्र पाया जाता है, जो कि उत्तरी गोलार्द्ध में दक्षिणावर्त (घड़ी की सुई की दिशा में) व दक्षिणी गोलार्द्ध में वामावर्त (घड़ी की सुई की विपरीत दिशा में) है।

प्रशान्त महासागर के विषुवतीय भाग में दो विषुवतीय धाराएँ मध्य अमेरिका के तट से महासागर के आर-पार बहती हैं। इन दोनों-उत्तरी विषुवतीय धारा तथा दक्षिणी विषुवतीय धारा के बीच पश्चिम से पूर्व की ओर एक विरूद्ध विषुवतीय धारा बहती है। उत्तरी विषुवतीय धारा उत्तर की ओर मुड़ती है और क्यूरो-सिवो धारा के नाम से फिलीपीन द्वीप समूह, ताईवान तथा जापान के तटों के साथ-साथ बहती है। 

जापान के दक्षिणी-पूर्वी तट पर यह धारा पछुआ पवनों की चपेट में आकर महासागर के आर-पार पश्चिम से पूर्व दिशा में उत्तरी प्रशांत धारा के नाम से बहती है। उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी तट पर पहुँचकर यह धारा दो शाखाओं में बंट जाती है। 

इसकी उत्तरी शाखा ब्रिटिश कोलंबिया तथा अलास्का के तटों के साथ वामवर्ती दिशा में बहती है तथा अलास्का धारा के नाम से जानी जाती है। इस धारा का गर्म जल शीत ऋतु में अलास्का तट को बर्फ मुक्त रखता है। उत्तरी प्रशांत महासागरीय धारा की दूसरी शाखा कैलीफोर्निया तट के साथ दक्षिण की ओर बहती है। यह ठंडी जलधारा है और इसे कैलीफोर्निया धारा कहते हैं। अंत में यह धारा उत्तरी विषुवतीय धारा में मिलकर अपना चक्र पूरा करती है।

प्रशांत महासागर के उत्तरी भाग में दो ठंडी जल धाराएँ भी बहती है। ये हैं- ओया शिओ धारा और आखोटस्क धारा। ठंडी ओया-शिओ धारा कमचटका प्रायद्वीप के तट के साथ बहती है। दूसरी ठंडी धारा ओखोटस्क धारा है जो सखालीन के पास बहती हुई होकेडो द्वीप के निकट ओया-शिओ धारा में मिल जाती है। ओया-शिओ धारा अंत में क्यूरो-सिवो धारा में मिल जाती है और उत्तरी प्रशांत महासागरीय धारा के गर्म जल के नीचे डूब जाती है। दक्षिणी प्रशांत महासागर में दक्षिणी विषुवतीय धारा पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है और पूर्वी आस्ट्रेलियाई धारा के नाम से दक्षिण की ओर मुड़ जाती हैं। आगे चलकर यह तस्मानिया के निकट ठंडी दक्षिणी प्रशांत महासागरीय धारा में मिल जाती है जो पश्चिम से पूर्व की ओर बहती है।

 दक्षिण अमेरिका के दक्षिण-पश्चिम तट पर पहुँचकर यह उत्तर की ओर मुड़ जाती है। इसे पेरू धारा कहते हैं। यह एक ठंडी जलधारा है। अन्त में यह दक्षिणी विषुवतीय धारा में मिलकर एक चक्र पूरा करती है। पेरू धारा का ठंडा जल ही चिली एवं पेरू के तटों को वर्षा विहीन बनाने के लिए कुछ हद तक उत्तरदायी है।

2. हिन्द महासागर - हिन्द महासागर की धाराओं के परिसंचरण का प्रतिरूप अटलांटिक महासागर एवं प्रशांत महासागर की धाराओं से भिन्न है। क्योंकि हिन्द महासागर उत्तर में पूर्वत: स्थल से घिरा है। इसके दक्षिणी भाग में धाराओं के परिसंचरण का सामान्य प्रतिरूप वामवर्ती है जैसा कि अन्य महासागरों में है। लेकिन इसके उत्तरी भाग में धाराएँ शीतु ऋतु एवं ग्रीष्म ऋतु में स्पष्ट रूप से अपनी दिशाएँ पूर्णतया बदल लेती हैं। ये धाराएँ पूर्णत: बदलते हुए मानसूनी मौसम के प्रभाव में हैं। इसलिए शीत ऋतु एवं ग्रीष्म ऋतु में धाराएँ उलट जाती है अर्थात उत्तरी-पूर्वी मानसून के दौरान इनकी दिशा दक्षिण-पश्चिम की ओर होती है, दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान उत्तर-पूर्व की ओर तथा संक्रमण काल में अस्थिर होती है।

शीत ऋतु में श्रीलंका बंगाल की खाड़ी की धाराओं को अरब सागर से धाराओं को अलग कर देता है। श्रीलंका के ठीक दक्षिण में उत्तरी विषुवतीय धारा और दक्षिणी विषुवतीय धारा पश्चिम की ओर बहती है। उत्तरी विषुवतीय धारा और दक्षिणी विषुवतीय धारा के मध्य एक विरूद्ध विषुवतीय धारा पश्चिम से पूर्व की ओर बहती है। इस समय इसके उत्तरी भाग में बंगाल की खाड़ी और अरब सागर के जल को उत्तरी पूर्वीमानसून प्रभावित करता है तथा उन्हें वामवर्ती दिशा में प्रवाह के लिए प्रेरित करती है। इस जलधारा को उत्तरी-पूर्वी मानसूनी अपवाह कहते है। ग्रीष्म ऋतु में वही उत्तरी भाग दक्षिणी-पश्चिमी मानसून के प्रभाव में आ जाता है। 

बंगाल की खाड़ी एवं अरब सागर का जल पूर्व की ओर बहने लगता है। इस समय जल का परिसंचरण दक्षिणवर्ती या घड़ी की सुइयों की अनुकूल दिशा में होता है। इस धारा को दक्षिण-पश्चिम मानसून अपवाह कहते हैं। सामान्यत: ग्रीष्म ऋतु की धाराएँ शीत ऋतु की धाराओं से अधिक नियमित हैं।

हिन्द महासागर के दक्षिणी भाग में विषुवतीय धारा पूर्व से पश्चिम की ओर प्रवाहित होती है। अफ्रीका के मोजेंबिक तट के निकट यह धारा दक्षिण की ओर मुड़ जाती है। इस धारा का एक भाग अफ्रीका की मुख्य भूमि और मेडागास्कर द्वीप के मध्य बहता है। इसे गर्म मोजांबिक धारा कहते हैं। दक्षिण की ओर बढ़ने पर यह दक्षिणी विषुवतीय धारा की उस शाखा से मिल जाती है जो मेडागास्कर के तट के साथ बहती है। इस संगम के बाद इसे अगुल्हास धारा कहते हैं। इसके बाद यह पूर्व की ओर मुड़ जाती है और पश्चिमी पवन अपवाह में मिल जाती है।

पश्चिमी पवन अपवाह उच्च अक्षांशों में महासागर के आर-पार पश्चिम से पूर्व दिशा में बहता हुआ आस्ट्रेलिया के दक्षिणी तट तक पहुँचता है। इस धारा की एक शाखा उत्तर की ओर मुड़कर आस्ट्रेलिया के पश्चिम तट के साथ-साथ बहने लगती है। इसे पश्चिमी आस्ट्रेलियाई धारा कहते हैं। यह ठंडी जलधारा हैं। अंत में पश्चिमी आस्ट्रेलियाई धारा दक्षिणी विषुवतीय धारा से मिलकर चक्र पूरा करती है।

3. अटलांटिक महासागर - विषुवत रेखा के उत्तर व दक्षिण दिशा में, पश्चिम की ओर प्रवाहित होने वाली दो धाराएँ हैं उत्तर एवं दक्षिण विषुवतीय धारा। इन दोनों विषुवतीय धाराओं के बीच पश्चिम सेपूर्व की ओर विरूद्ध विषुवतीय धारा बहती है। (चित्रा संख्या 8.10 में देखिए) यह विरूद्ध धारा उत्तरी तथा दक्षिणी विषुवतीय धाराओं द्वारा महासागर के पूर्व में हटाए गये जल की आपूर्ति करती है।

ब्राजील के साओ रौक अन्तरीप के निकट दक्षिणी विषुवतीय धारा दो शाखाओं में बँट जाती है। इसकी उत्तरी शाखा उत्तरी विषुवतीय धारा में मिल जाती है। इस सम्मिलित धारा का कुछ भाग कैरेबियन सागर तथा मैक्सिको की खाड़ी में प्रवेश करता है तथा शेष भाग वेस्ट इंडीज द्वीप समूह के पूर्वी किनारे पर अन्टाईल्स धारा के रूप में बहती हुई गुजरती है। जो शाखा मेक्सिको की खाड़ी में प्रवेश करती है, वह फ्लोरिडा जलडमरूमध्य से निकलकर अन्टाईल्स की धारा में मिल जाती है। यह सम्मिलित धारा संयुक्त राज्य अमेरिका के दक्षिणी पूर्वी तट के सहारे बहने लगती है। इसे हटेरस अन्तरीप तथा फ्लोरिडा धारा कहते हैं। 

हटेरस अन्तरीप से न्यू फाउण्डलैंड के समीप स्थित ग्रेंड बैंक तक इस धारा को गल्फ स्ट्रीम कहते हैं। ग्रेंड बैंक से गल्फ स्ट्रीम पछुआ पवनों और पृथ्वी की घूर्णन गति के सम्मिलित प्रभाव के कारण पूर्व की ओर मुड़ जाती है। यह अटलांटिक महासागर को पूर्व की ओर बहते हुए पार करती है। इसे उत्तरी अटलांटिक अपवाह कहते हैं।

उत्तरी अटलांटिक अपवाह महासागर के पूर्वी भाग में पहुँचकर दो भागों में बंट जाता है। इसकी उत्तरी शाखा उत्तरी अटलांटिक अपवाह के रूप में बहती रहती है। यह ब्रिटिश द्वीप समूह पहुँचकर वहाँ से नार्वे के तट के साथ बहते हुए यह नार्वे धारा के रूप में जानी जाती है। वहाँ से यह आर्कटिक महासागर में प्रवेश कर जाती है। दक्षिणी शाखा स्पेन तथा एजोर्स द्वीप के मध्य से दक्षिण की ओर बहती है। यहाँ इसे केनारी धारा कहते हैं। यह एक ठंडी जलधारा है। केनारी धारा अंत में उत्तरी विषुवतीय धारा में मिल जाती है। 

उत्तरी अटलांटिक महासागर में धाराओं के चक्र के बीच में सारगेसो समुद्र का शांत क्षेत्र है जो अत्याधिक समुद्री शैवालों से भरा हुआ है। ये समुद्री शैवाल जो भूरे रंग के हैं, सरगैसम के नाम से जाने जाते हैं।

उत्तरी अटलांटिक महासागर में धाराओं के दक्षिणावर्ती परिसंचरण के अतिरिक्त दो ठंडी धारायें भी इस महासागर में बहती हैं। ये हैं - पूर्वी ग्रीनलैंड धारा तथा लेब्राडोर धारा। ये धाराएँ आर्कटिक महासागर से अटलांटिक महासागर में बहती है। लेब्राडोर धारा कनाडा के पूर्वी तट पर दक्षिण की ओर बहती हुई गर्म गल्फ स्ट्रीम धारा से मिलती है। भिन्न तापमान वाली इन दो धाराओं (एक ठंडी तथा दूसरी गर्म) के संगम से न्यू फाउंडलैण्ड के चारो ओर कोहरे का निर्माण होता है और इसे संसार का सबसे अधिक महत्वपूर्ण मत्स्य ग्रहण क्षेत्र बनाता है। पूर्वी ग्रीनलैंड धारा आइसलैंड और ग्रीनलैंड के बीच बहती है तथा संगम स्थल पर उत्तरी अटलांटिक अपवाह के तापमान को कम कर देती है।

हम पहले ही पढ़ चुके हैं कि दक्षिणी विषुवतीय धारा ब्राजील के साओ रोक अन्तरीप के निकट दो शाखाओं में बंट जाती है। इसकी उत्तरी शाखा उत्तरी विषुवतीय धारा से मिल जाती है और दक्षिणी शाखा दक्षिण की ओर मुड़कर दक्षिणी अमेरिका के पूर्वी तट के साथ-साथ बहती है। इसे ब्राजील धारा कहते हैं। लगभग 350 दक्षिणी अक्षांश पर ब्राजील धारा को पछुआ पवनें तथा पृथ्वी की घूर्णन गति पूर्व की ओर मोड़ देती है, जहाँ यह पश्चिमी पवन अपवाह में मिल जाती है। आशा अन्तरीप के निकट दक्षिण अटलांटिक धारा उत्तर की ओर मुड़ जाती है। यह एक ठंडी जलधारा है और इसे बैंगुएला धारा कहते हैं। 

अन्त में यह दक्षिणी विषुवतीय धारा से मिलकर धाराओं के चक्र को पूरा करती है। एक और ठंडी जल धारा दक्षिणी अमरीका के दक्षिण-पूर्वी तट के सहारे दक्षिण से उत्तर की ओर बहती है, जिसे फाकलैंड धारा कहते हैं।

4. आर्कटिक महासागर - आर्कटिक, पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव के आसपास के क्षेत्र को ठीक उसी प्रकार कहते हैं, जिस तरह दक्षिणी ध्रुव के आसपास का क्षेत्र अंटार्कटिक कहलाता है। 

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