ऊष्मा बजट व सूर्यातप क्या है? पृथ्वी का ऊष्मा बजट क्या है

सौर विकिरण का वह भाग जो पृथ्वीतल पर लघु तरंगों के रूप में आता है, सूर्यातप कहलाता है। पृथ्वी भी अन्य वस्तुओं की भांति ताप ऊर्जा विकिरित करती रहती है इसे पार्थिव विकिरण कहते हैं। पृथ्वी की सतह का औसत वार्षिक तापमान हमेशा स्थिर रहता है। इसका प्रमुख कारण सूर्यातप और पार्थिव विकिरण के बीच संतुलन का होना है। इसी संतुलन को ऊष्मा बजट कहते हैं।

कल्पना करें कि वायुमंडल की ऊपरी सीमा पर सूर्यास्त की 100 इकाईयाँ प्राप्त हो रही है। इनमें से लगभग 35 इकाईयाँ पृथ्वी तल पर आने से पहले ही अंतरिक्ष में परावर्तित हो जाती हैं। इन 35 इकाइयों में से 6 इकाइयाँ वायुमंडल की ऊपरी सीमा से अंतरिक्ष को परावर्तित हो जाती हैं। 27 इकाइयाँ बादलों द्वारा और 2 इकाइयाँ धरातल के हिम और बर्फ से ढके क्षेत्रों द्वारा परावर्तित हो जाती हैं। शेष 65 (100-35) इकाइयों में से 51 इकाइयाँ सीधे पृथ्वीतल को प्राप्त होती हैं और 14 इकाइयों को वायुमंडल की विभिन्न गैसें, जलवाष्प और धूलकण अवशोषित कर लेते हैं।

सूर्यातप द्वारा प्राप्त 51 इकाईयों को पृथ्वी भी पार्थिव विकिरण के रूप में लौटा देती है। इन 51 इकाइयों में से 34 इकाइयाँ वायुमंडल द्वारा अवशोषित की जाती हैं और शेष 17 इकाइयाँ अंतरिक्ष में विलीन हो जाती हैं।
वायुमंडल भी अवशोषित की गई 48 इकाइयों (14 सूर्यातप की और 34 पार्थिक विकिरण की) को धीरे-धीरे अंतरिक्ष में विलीन कर देता है। इस प्रकार ऊष्मा की 65 इकाइयाँ जिन्होंने वायुमंडल में प्रवेश किया था अंतरिक्ष में वापिस कर दी जाती हैं। इससे सूर्यताप और पार्थिव विकिरण के मध्य एक संतुलन बना रहता है।
पृथ्वी का तापमान स्थिर रहता है क्योकि पृथ्वी द्वारा

पृथ्वी का ऊष्मा बजट

प्राप्त की गई सौर ऊर्जा, पार्थिव विकिरण द्वारा ऊर्जा के हृास के बराबर होती है। पृथ्वी द्वारा प्राप्त की गई ऊष्मा तथा पार्थिव विकिरण द्वारा ऊर्जा के हृास को पृथ्वी का ऊष्मा बजट कहते है। पृथ्वी के ऊष्मा बजट को निम्न उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है। मान लो कि वायुमण्डल की ऊपरी सतह पर प्राप्त 100 इकाई सूर्यातप है। 100 इकाई में से 35 इकाइयाँ पृथ्वी के धरातल पर पहुँचने से पहले ही अंतरिक्ष में परिवतिर्त हो जाता है। 27 इकाइयाँ बादलों के ऊपरी छोर से तथा 2 इकाइयाँ पृथ्वी के हिमाच्छादित क्षेत्रों द्वारा परावतिर्त होकर अन्तरिक्ष में लौट जाती है।

प्रथम 35 इकाइयों को छोडक़र बाकी 65 इकाइयाँ अवशोषित होती हे - 14 वायमु ण्डल में तथा 51 इकाइयाँ पुन पार्थिव विकिरण के रूप में लौटा दी जाती है। इनमें 17 इकाइयाँ तो सीधे अन्तरिक्ष में चली जाती हे और 34 इकाइयां स्वयं वायमुण्डल द्वारा, 9 इकाइयाँ संवहन के जरिए आरै 19 इकाइयाँ सघ्ंनन की गुप्त ऊष्मा के रूप मे। वायुमण्डल द्वारा 48 इकाइयों का अवशोषण होता है। 

वायुमण्डल विकिरण के द्वारा इनको भी अन्तरिक्ष में वापस लौटा देता है। अत: पृथ्वी के धरातल तथा वायुमण्डल
से अन्तरिक्ष में वापस लौटने वाली विकिरण की इकाइयाँ क्रमश: 17 और 48 है जिनका योग 65 होता हे वापस लौटने वाली ये इकाइयां उन 65 इकाइयों का संतुलन कर देती हे जो सूर्य  से प्राप्त होती है यही पृथ्वी का ऊष्मा बजट है।

अक्षांशीय ऊष्मा संतुलन

यद्यपि सम्पूर्ण पृथ्वी पर सूर्यातप और पार्थिव विकिरण के बीच संतुलन बना रहता है। परंतु यह संतुलन विभिन्न अक्षांशों के मध्य कायम नहीं रहता। जैसा कि हम पहले बता चुके हैं कि सूर्यातप की मात्रा और पार्थिव विकरण का सीधा संबंध अक्षांशों से है। ऊष्ण कटिबंधीय प्रदेश में सूर्यातप की मात्रा पार्थिव विकरण से अधिक है। इसलिए यह अतिरिक्त ताप का क्षेत्रा है। धु्रवीय क्षेत्रा में ताप-प्राप्ति ताप-ास की अपेक्षा कम है। अत: यह ताप-अभाव का प्रदेश है। इस प्रकार सूर्यातप विभिन्न अक्षांशों के मध्य ऊष्मा असंतुलन पैदा करता है। धरातलीय पवनें और महासागरीय धारायें अतिरिक्त ताप-क्षेत्रा से ताप-अभाव क्षेत्रा की ओर ऊष्मा का स्थानांतरण करके इस असंतुलन को कुछ सीमा तक कम करती हैं। इसी को सामान्यत: अक्षांशीय ऊष्मा संतुलन कहते हैं।

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