रामायण का रचनाकाल कब माना जाता है?

रामायण के रचना के सम्बंध में विद्वान एक मत नहीं है। आदि काव्य रामायण की रचना राम के राज्यकाल में हुई थी । निर्वासन के बाद गर्भवती सीता वाल्मीकि के ही आश्रम में रही और वही लव और कुश का जन्म तथा पालन हुआ था। इस दृष्टि से रामायण की रचना त्रेता युग में हुई थी । ये त्रेता युग ईसा से आठ लाख सड़सठ हजार एक सौ वर्ष पूर्व समाप्त हुआ था । अतः यही रामायण का रचना काल माना जाना चाहिए किन्तु आधुनिक दृष्टि इतने पहले रामाण जैसे उत्कृष्ट महाकाव्य की रचना को नहीं स्वीकार करती । वस्तुतः रामायण का जो भी रचनाकाल स्थिर किया जाए वह पूर्णतः अनुमान पर ही आधारित होगा, क्योंकि इस सम्बंध में पुष्ट वाह्य और अर्न्तप्रमाणों का सर्वथा अभाव है।

अनेक विद्वानों ने अपने-अपने विवेचनों के आधार पर रामायण के विभिन्न रचना काल निर्धारित किये हैं । विन्टरनिट्ज ने वाल्मीकि को तीसरी ई० पू० का माना है । कामिल बुल्के भी विन्टरनिट्ज से सहमत है। अपने मत की पुष्टि के लिए पहला तर्क उन्होंने यह दिया है कि रामायण के प्रधान पात्र राम, सीता, दशरथ आदि पाणिनी में नहीं मिलते। प्राचीन बौद्ध साहित्य तथा जातकों की सामग्री के विश्लेषण से स्पष्ट है कि त्रिपिटक के रचना काल में रामकथा सम्बंधी स्फुट आख्यान काव्य प्रचलित हो चुका था, पर रामायण की रचना नहीं हो पायी थी । कृष्ण चैतन्य ने मौलिक रामायण की रचना ई० पू० तीसरी शताब्दी में मानी है ।' कीथ ने मूल रामायण की रचना चौथी शताब्दी ई० पू० में मानी है ।  ए० ए० मैकडोनल, मोनियर विलियम्स और चिंतामणि विनायक वैद्या रामायण की उत्पत्ति बौद्ध धर्म से पूर्व मानते हैं । यकोबी के अनुसार पांचवी शताब्दी ई० पू० के मध्य में मूल रामायण की रचना हुई ।

इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि मोटे तौर पर आठवीं शती ई० पू० से तीसरी शती ई० पू० के बीच में वाल्मीकि के समय की सर्वसम्मत अवधि होती है । वाल्मीकि के समय की निचली सीमा बुद्ध के पूर्व का समय मानी जा सकती है। अतः पांचवी या छठी शताब्दी ई० पू० में ही वाल्मीकि ने मूल रामायण की रचना की होगी ।

आदिकाव्य रामायण के रचनाकाल के विषय में गम्भींरतापूर्वक विचार करने पर हमें यह ज्ञात होता है कि यद्यपि वैदिक-साहित्य में ‘रामायण के कुछ पात्रों के नामों का उल्लेख मिलता है, जैसे कि सीता, जनक, राम, मरूत् इत्यादि। परन्तु न तो उनके पारस्परिक सम्बन्ध की कोई सूचना दी गई है और न ही उनके सम्बन्ध में ‘रामायण’ की कथा का निर्देश कहीं प्राप्त होता है। 

अत: इन आधारों पर यह माना जाता है कि रामायण की रचना वेदों के पश्चात ही हुई। कामिल बुल्के ने भी ‘रामायण’ नामक अपने शोध ग्रन्थ में इस तथ्य पर विस्तार से विचार प्रस्तुत कियें हैं।

रामायण का रचनाकाल 

रामायण के रचनाकाल को निर्धारित करने में कठिनाई यह उपस्थित होती है कि इसके कुछ अंश विद्वानों द्वारा प्रक्षिप्त माने जाते हैं। इसके मूल-भाग में राम को मानव-रूप में तथा प्रक्षिप्त अंश में विष्णु के अवतारी रूप में दिये जाने के कारण दोनों अंशों में शताब्दियों का अंतर प्रतीत होता है। इस मत को कामिल बुल्के स्वीकार करते है। सर्वमान्य धारणा है कि महाभारत से पहले वाल्मीकि रामायण के मौलिक-भाग की रचना हो चुकी थी। क्योंकि महाभारत में राम के आख्यान, वाल्मीकिकृत रामायण, वाल्मीकि के प्राचीन ऋषिरूप, विष्णु के राम रूप में अवतार का वर्णन बारम्बार उपलब्ध होता है। जबकि रामायण में ‘महाभारत’ तथा उससे सम्बद्ध कथावस्तु तथा पात्रों का कहीं उल्लेख नहीं है। 

कुछ विद्वानों का मत है कि महाभारत में द्रौपदी-हरण से दु:खी युधिष्ठिर को सान्त्वना देने के लिए राम-कथा कही गई है। प्राय: द्रौपदी हरण का प्रसंग रामायण के सीता-हरण के अनुकरण के रूप में कल्पित है। किन्तु यह तर्कसंगत एवं उपयुक्त नहीं है, क्योंकि रामायण में पाण्डंवो की कथा का कहीं वर्णन नहीं है जबकि महाभारत में रामायण का बारबार उल्लेख मिलता है। 

इसके अतिरिक्त महाभारत के सप्तम पर्व में रामायण के युद्धकाण्ड के दो श्लोकों का वाल्मीकि द्वारा गायें गए श्लोक के रूप मे उद्धरण दिया गया है। इसके अतिरिक्त महाभारत काल तक रामकथा से सम्बद्ध स्थान तीर्थ रूप में प्रसिद्ध हो गये थे। इन्ही तथ्यों के आधार पर जेकोबी ने भी ‘महाभारत को अन्तिम रूप मिलने के पहले ही रामायण को प्राचीन ग्रन्थ के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त हो चुकी थी, ऐसा स्वीकार किया है।

गत दो शताब्दियों पूर्व रामायण पहले-पहल पश्चिमी देशों में विख्यात होने लगी थी। उस समय कुछ विद्वानों ने इसकी रचना अत्यन्त प्राचीन कालीन मानी थी। ए. श्लेगेल के अनुसार ईसा से ग्यारह शताब्दी पूर्व रामायण की रचना हुई तथा जीñ गोरेसियो ने इससे भी सौ वर्ष पूर्व रचनाकाल माना है। इस मत के प्रतिक्रिया-स्वरूप ह्वीलर तथा बेबर ने ‘रामायण’ पर यूनानी तथा बौद्ध प्रभाव मानकर उसकी रचना अपेक्षाकृत अर्वाचीन समझी है। 

उनके अनुसार बौद्ध जातक कथाओं में ‘दशरथ-जातक’ कथा के सारांश को लेकर रामायण की रचना की गई होगी।

अधिकतर विद्वान रामायण को ‘बुद्ध’ से पूर्ववर्ती स्वीकार करते हैं। भारतीय विद्वानों में चिन्तामणि विनायक वैद्य ने ‘वाल्मीकि रामायण’ को बुद्ध से पूर्व का स्वीकार किया है। उनके अनुसार रामायण उस काल की रचना है, जब यज्ञ करना आर्यों को विशेष अभीष्ट था। तब बौद्ध धर्म का पता नहीं था, जब वैदिक देवताओं की पूजा होती थी, िस्त्रायां वेद पढ़ती थीं, वैदिक यज्ञ करती थीं, जब क्षत्रिय ज्ञान में ब्राह्मण को हरा देते थे और ब्राह्मण शस्त्र-विद्या में क्षत्रियों को हरा देते थे। इनके अतिरिक्त कृष्णकुमार ओझा तथा रामाश्रय शर्मा ने अनेक प्रमाणों के आधार पर रामायण का रचनाकाल बुद्ध से पूर्व सिद्ध किया है।

यादि जातकों की राम कथा में ‘दशरथ-जातक’ को आधार मान लिया जाए, तो रामायण के निर्माण का काल ईसा से 300 वर्ष पूर्व का माना जाता है। बेबर के इस मत का कि ‘रामायण’ बौद्धकाल के बाद की रचना हैं, जितेन्द्रचन्द्र खण्डन करते हैं। 

उनके कथानुसार ‘डा. बेबर इस विषय में कुछ भूल कर गये हैं। बेबर यादि कहना चाहते हैं कि बौद्ध जातकों में रामकथा मिलती है तो उनका कथन सत्य हो सकता है।यादि वे रामायण की कथा-वस्तु बौद्ध जातकों से ली गई ऐसा मानते हैं, तो उनका कथन असंगत प्रतीत होता है। 

पाश्चात्य विद्वान जेकोबी ने भाषा-तत्वों के आधार पर विवेचना करके रामायण के समय को जातकों से पूर्व का माना है।

रामायण की प्रचीनता को प्रमाणित करने वाले कुछ अन्त:साक्ष्य भी उपलब्ध होते हैं- प्रथम यह है कि पाटलिपुत्रा नगर की स्थापना ईसा से 500 वर्ष पूर्व मगध नरेश अजातशत्रु ने की थी। पहले यह एक साधारण ग्राम था, जिसका नाम बौद्ध ग्रन्थो में पाटलि-ग्राम दिया गया है। अजातशत्रु ने शत्राुओं के आक्रमण से अपनी रक्षा करने के लिए गंगा एवं सोन नदियों के संगम पर इस ग्राम में किला बनवाया था। 

रामायण में राम सोन-गंगा के संगम से होकर जाते हैं पर पाटलीपुत्र का उल्लेख कहीं नहीं मिलता अत: रामायण का रचनाकाल 500 ईसा से पूर्व ही सिद्ध होता है।

रामायण में यह उल्लेख आता है कि राम गंगा पार करके विशाल नगरी पहुंचे तथा मिथिला राज्य का भी वर्णन मिलता है। इससे ज्ञात होता है कि रामायण काल में विशाल तथा मिथिला दो पृथक्-पृथक् राज्य थे। परन्तु बुद्ध के समय में ये पृथक एवं स्वतन्त्रा राज्य न होकर वैशाली राज्य में सम्मिलित कर दिये गये थे। शासन पद्धति भी गणतन्त्रा राज्य के समान थी। अत: यह सिद्ध होता है कि रामायण बुद्ध से प्राचीन काल की रचना है।

इसके अतिरिक्त रामायण के बालकाण्ड के वर्णन से यह सिद्ध होता है कि उस समय भारत कौशल, अंग, कान्यकुब्ज, मगध, मिथिला आदि अनेक छोटे-छोटे राज्यों में बंटा हुआ था। यह राजनीतिक अवस्था भी बुद्ध पूर्व कालीन भारत में ही दृष्टिगोचर होती है।

रामायण में भारत का दक्षिण भाग एक विराट अरण्यानी के रूप में अंकित किया गया है, जिसमें राक्षस, वानर आदि असभ्य तथा अर्धसभ्य जातियां निवास करती थीं इससे यह पता चलता है कि इन भागों में आर्य सभ्यता के प्रसार होने से पहले रामायण का निर्माण हुआ होगा।

जैन आचार्य विमलसूरी ने ईसा की प्रथम शती में रामकथा को अपने प्राकृत-काव्य ‘पउमचरिय’ में जैनधर्म एवं दर्शन के अनुरूप समाविष्ट किया है। इसके अतिरिक्त रामायण में आयोनियन और ग्रीक लोगों के प्रभाव का उल्लेख बतलाया जाता है, जो सम्भवत: 300 ईसा पूर्व के पश्चात् जोड़ दिया था। अत: रामायण का काल इनसे पूर्व का ही होना चाहिए।

पश्चात्त्य विद्वानों में जेकोबी ने रामायण का रचनाकाल छठी शताब्दी ईसा पूर्व से आठवीं शताब्दी ईसा पूर्व माना है। मेकडानल ने भी जेंकोबी के तर्क दोहराकर रामायण की उत्पत्ति बुद्ध धर्म से पूर्व ही मानी है। ‘परन्तु विंटरनित्स वाल्मीकि को तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व मानते है। कामिल बुल्के भी उनके इस मत से सहमत हैं तथा रामायण का काल 300 ईसा पूर्व स्वीकार करते हैं। अपने निर्णय की पुष्टि के लिए उन्होंने प्रमाण दिया है कि ‘रामायण के प्रधान पात्रा (राम,सीता,दशरथ इत्यादि) पाणिनि की अष्टाध्यायी में नहीं मिलते। 

प्राचीन बौद्ध साहित्य तथा जातकों की सामग्री के विश्लेषण से स्पष्ट है कि त्रिपिटक के रचनाकाल में रामकथा सम्बन्धी स्फुंट आख्यान प्रचालित थे।’ इन सभी अन्त:साक्ष्यों तथा बाह्य-साक्ष्यों के आधार पर यह सिद्ध होता है कि रामायण, महाभारत तथा बुद्ध के जन्म से पूर्व की रचना है। बुद्ध का समय पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व माना जाता है। इसके आधार पर रामायण का समय इससे पूर्व का होना चाहिए। परन्तु अधिकांश भारतीय एवं पाश्चात्य विद्वानों द्वारा वाल्मीकि रामायण का समय तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व स्वीकार किया जाता है।

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