जलवाष्प के धनीभवन होकर जल में बदलने की प्रक्रिया संघनन (Condensation)
कहलाती है। वाष्पीकरण में जल से वाष्प बनाती है जबकि संघनन में वाष्प से जल
रुप में परावर्तित होता है। संघनन वायुमण्डल में उपस्थित सापेक्षिक आर्द्रता की
मात्रा पर निर्भर करता है। जलवाष्प रुप में तब तक बना रहता है जब तक वायु
का तापमान उच्च रहता है। जलवाष्प दो स्थितियों के घनीभूत होती है जब वायु
का तापमान गिरता है जब संतृप्त वायु राशि में आर्द्रता की मात्रा बढ़ती है। वायु में
सापेक्षिक आर्द्रता की क्रातप्रतिठात मात्रा को संतृप्त वायु कहा जाता है।
संघनन किसे कहते हैं?
संघनन वह प्रक्रिया है जिसमें वायुमंडलीय जलवाष्प जल या बर्फ के कणों में बदलती
है। यह वाष्पीकरण के ठीक विपरीत प्रक्रिया है। जब किसी संतृप्त वायु का तापमान
ओसांक से नीचे गिरता है तो वह वायु अपने अन्दर उतनी आर्द्रता धारण नहीं कर सकती
जितनी वह पहले धारण किये हुये थी। अत: आर्द्रता की अतिरिक्त मात्रा, तापमान (जिस
पर संघनन होता है) के अनुसार जल की सूक्ष्म बूँदों या बर्फ के कणों में बदल जाती
है।
संघनन की प्रक्रिया
वायु का तापमान दो स्थितियों में कम होता है। एक तो तब जब स्वतंत्र रूप से बहती वायु किसी अधिक ठंडी वस्तु के संपर्क में आती है। दूसरी स्थिति में जब वायु ऊँचाई की ओर उठती है। संघनन धुआँ, नमक तथा धूलकणों के चारों ओर होता है; क्योंकि ये कण जलवाष्प को अपने चारों ओर संघनित होने के लिए आकर्षित करते हैं। इन कणों को आर्द्रता ग्राही केन्द्रक कहते हैं। जब किसी वायु की सापेक्ष आर्द्रता अधिक होती है, तो थोड़ी सी ठंड होने पर ही तापमान ओसांक से नीचे आ जाता है। लेकिन, जब किसी वायु की सापेक्ष आर्द्रताकम होती है तथा वायु का तापमान अधिक होता है तो उस वायु के तापमान को ओसांक से नीचे अधिक ठण्ड होने पर ही लाया जा सकता है। इस प्रकार संघनन की गति व मात्रा वायु की सापेक्ष आर्द्रतातथा उसके ठण्डा होने की दर पर निर्भर करती है।- संघनन जलवाष्प के छोटे-छोटे जलकणों या हिमकणों में बदलने की प्रक्रिया है।
- संघनन तब होता है जब किसी वायु का तापमान ओसांक से कम होता है या नीचे गिरता है तथा यह वायु की सापेक्ष आर्द्रता तथा ठण्डे होने की दर पर निर्भर करता है।
संघनन के रूप
संघनन दो परिस्थितियों में होता है: प्रथम, जब ओसांक हिमांक बिन्दु या 00 से. से कम होता है तथा दूसरी स्थिति में तब जब यह हिमांक बिन्दु से अधिक होता है।इस प्रकार,
संघनन के रूपों को दो वर्गों में रखा जा सकता है:-
- ओसांक के हिमांक बिन्दु से नीचे तापमान होने पर बनते हैं- पाला, हिम तथा कुछ प्रकार के बादल।
- ओस, धुन्ध, कोहरा, कुहासा तथा कुछ प्रकार के बादल ओसांक के हिमांक बिन्दु से ऊँचे तापमान पर बनने वाले रूप हैं।
1. ओस
जब वायुमण्डलीय नमी संघनित होकर जल बिन्दुओं के रूप में ठोस
पदार्थों के ठण्डे धरातल जैसे घास, पेड़-पौधों की पत्तियों तथा पत्थरों पर जमा
हो जाती है तो उसे ओस कहते हैं। ओस के रूप में संघनन तब होता है जब
आकाश साफ हो, हवा न चल रही हो तथा ठण्डी रातों में वायु की सापेक्ष आर्द्रता
अधिक हो। इन दशाओं में पार्थिव विकिरण अधिक तीव्रता से होता है तथा ठोस
पदार्थ इतने ठण्डे हो जाते हैं कि उनके संपर्क में आने वाली वायु का तापमान
ओसांक से नीचे गिर जाता है। फलस्वरूप, वायु की अतिरिक्त आर्द्रता इन पदार्थों
पर जल बिन्दुओं के रूप में जमा हो जाती है।
ओस तब बनती है जब ओसांक
हिमांक से अधिक होता है। ओस बनने की प्रक्रिया को देखा जा सकता है। जब
रेफ्रिजेरेटर में रखी पानी की बोतल से एक गिलास में पानी डालने से गिलास की
ठण्डी बाहरी सतह उसके पास की वायु के तापमान को ओसांक से नीचे गिरा देती
है, जिससे वायु की अतिरिक्त नमी गिलास की सतह पर छोटी-छोटी बूंदों के रूप
में जमा हो जाती है।
2. पाला
ऊपर बताई गई परिस्थिति में जब ओसांक हिमांक बिन्दु के नीचे होता
है तो अतिरिक्त नमी बर्फ के अति सूक्ष्म कणों में बदल जाती है। इसे पाला कहते
हैं। इस प्रक्रिया में वायु की नमी प्रत्यक्ष रूप में बर्फ के छोटे-छोटे कणों में बदल
जाती है। संघनन का यह रूप खेतों में खड़ी फसलों जैसे आलू, मटर, अरहर,
चना आदि के लिये हानिकारक होता है। यह सड़क यातायात के लिये भी
कठिनाई पैदा करता है।
3. धुंध और कोहरा
जब संघनन पृथ्वी-तल के निकट की वायु में छोटे-छोटे
जल बिन्दुओं के रूप में होता है और ये जल बिन्दु वायु में तैरते रहते हैं, तो इसे
धुंध कहते हैं। धुंध में दृश्यता एक किलोमीटर से अधिक और दो किलोमीटर से
कम होती है। लेकिन जब दृश्यता एक किलोमीटर से कम होती है तो संघनन
का यह रूप कोहरा कहलाता है।
धूम-कोहरा : धूम-कोहरा एक विशेष प्रकार का कोहरा है जो धुँआ, धूल, कार्बन
मोनोऑक्साइड, सल्फर डाईऑक्साइड और अन्य धुओं द्वारा प्रदूषित कर दिया
जाता है। धूम-कोहरा बड़े-बड़े नगरों और औद्योगिक केन्द्रों में अक्सर पाया
जाता है। इसका लोगों की आँखों तथा श्वसन क्रिया पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
4. बादल
वायुमण्डल में तैरते हुए हम जल बिन्दुओं, बर्फ के कणों अथवा विभिन्न
आकार के धूल कणों के साथ दोनों के मिश्रित झुंड को बादल कहते हैं। एक
बादल में 060.01 से लेकर 0.02 मि.मि. के लाखों कण होते हैं। 10 लाख कणों
के बादल में इसके मात्रा 10वें भाग के बराबर जल या बर्फ के कण होते हैं।
बादलों को सामान्यतया उनके रूप या आकृति तथा ऊँचाई के आधार पर
वर्गीकृत किया जाता है। इन दोनों विशेषताओं को मिलाने से बादलों को इन
वर्गों में बाँटा जा सकता है:
1. निम्न मेघ : ये बादल धरातल से 2000 मीटर की ऊँचाई तक बनते हैं। स्तरीय
मेघ इस परिवार का प्राथमिक मेघ हैं जो निम्न परन्तु धरातल से ऊपर कुहरे के
समान पर्तों की आकृति वाला होता है। स्तरीय कपासी मेघ निम्न भूरी पर्तों वाला
गोलाकार होता है। यह पक्तियों, झुंड या लहरदार रूप में व्यवस्थित होता है। वे बादल जो ऊध्र्व रूप में विकसित होते हैं इनको दो भागों में विभाजित कर
सकते हैं:- कपासी और कपासी वर्षा मेघ कपासी मेघ सघन, गुम्बदाकार एवं
सपाट आधार वाले होते हैं। ये ही बढ़कर कपासी वर्षा वाले मेघ बन जाते हैं।
इनका ऊध्र्व मुखी विकास बादल के नीचे स्थित ऊर्ध्व तरंग की शक्ति एवं बादल
बनते समय छोड़ी गई गुप्त उष्मा की मात्रा के ऊपर निर्भर करता है।
कपासी वर्षा मेघ से ठीक नीचे से देखने पर पूरा आकाश बादल से भरा दिखाई
देता है तथा वर्षा स्तरीय (Nimbo stratus) मेघ की तरह दिखता है। निम्बस
(Nimbus/Nimbo) शब्द का अर्थ उस मेघ से होता है जिससे तेज वर्षा होती है।
यह लेटिन की भाषा से लिया गया है।
2. मध्यम मेघ- ये बादल 2000 से 6000 मीटर की ऊँचाई के मध्य बनते हैं। इस वर्ग
में उच्च कपासी मेघ (Alto-cumulus) एवं उच्च स्तरी मेघ (Alto-stratus) शामिल हैं।
3. उच्च मेघ- इन बादलों का निर्माण 6000 मीटर से अधिक ऊँचाई पर होता है। इनमें
पक्षाभ (Cirrus), पक्षाभ स्तरी (Cirro-stratus) व पक्षाभ कपासी (Cirro-cumulus) मेघ
शामिल हैं।
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