संस्कृति का अर्थ, संस्कृति की विशेषताएँ?

संस्कृति का अर्थ

किसी देश, जाति अथवा समाज के विशिष्ट पुरुषों के विचार, वचन, आचार-व्यवहार, कार्य तथा उनके द्वारा स्थापित
परम्परायें ही उस देश, जाति अथवा समाज की संस्कृति है।

संस्कृति का अर्थ

संस्कृत भाषा के इस संस्कृति पद की रचना सम् उपसर्गपूरक कृ धातु से ‘क्तिन्’ प्रत्यय करके हुई है। सम्कृ+ क्तिन् (सुट् का आगम) = संस्कृति। इसका शाब्दिक अर्थ है- उत्तम प्रकार से किये गये कार्य। अर्थात् उत्तम आचरण करने वाले शिष्ट व्यक्तियों द्वारा किये गये कार्य।

लाॅवेल का कथन है कि ‘उन वस्तुओं का रस लेना जिन्हें दुनिया सुन्दर मानती है, उस ज्ञान में रूचि लेना जिसे मानव ने बहुमूल्य बनाया है, उन सिद्धांतों को मानना जिन्हें जाति सत्य मानती है, संस्कृति कही जायेगी।

संस्कृति की विशेषताएँ

अब हम संस्कृति की कुछ सामान्य विशेषताओं का विवेचन करेंगे जो संपूर्ण संसार की विभिन्न संस्कृतियों में समान हैं -

1. संस्कृति सीखी जाती है और प्राप्त की जाती है, अर्थात् मानव के द्वारा संस्कृति को प्राप्त किया जाता है इस अर्थ में कि कुछ निश्चित व्यवहार हैं जो जन्म से या आनुवंशिकता से प्राप्त होते हैं, व्यक्ति कुछ गुण अपने माता-पिता से प्राप्त करता है लेकिन सामाजिक-सांस्कृतिक व्यवहारों को पूर्वजों से प्राप्त नहीं करता हैं। वे पारिवारिक सदस्यों से सीखे जाते हैं, इन्हें वे समूह से और समाज से जिसमें वे रहते हैं उनसे सीखते हैं। यह स्पष्ट है कि मानव की संस्कृति शारीरिक और सामाजिक वातावरण से प्रभावित होती है। जिनके माध्यम से वे कार्य करते हैं।

2. संस्कृति लोगों के समूह द्वारा बाँटी जाती है- एक सोच या विचार या कार्य को संस्कृति कहा जाता है यदि यह लोगों के समूह के द्वारा बाटा और माना जाता या अभ्यास में लाया जाता है।

3. संस्कृति संचयी होती है- संस्कृति में शामिल विभिन्न ज्ञान एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तान्तरित किया जा सकता है। जैसे-जैसे समय बीतता जाता है, ज्यादा से ज्यादा ज्ञान उस विशिष्ट संस्कृति में जुड़ता चला जाता है, जो जीवन में परेशानियों के समान के रूप में कार्य करता है, पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ता रहता है। यह चव् बदलते समय के साथ एक विशिष्ट संस्कृति के रूप में बना रहता है।

4. संस्कृति परिवर्तनशील होती है- ज्ञान, विचार और परम्परायें नयी संस्कृति के साथ अद्यतन होकर जुड़ते जाते हैं। समय के बीतने के साथ ही किसी विशिष्ट संस्कृति में सांस्कृतिक परिवर्तन संभव होते जाते हैं।

5. संस्कृति गतिशील होती है- कोई भी संस्कृति स्थिर दशा में या स्थायी नहीं होती है। जैसे समय बीतता है संस्कृति निरंतर बदलती है और उसमें नये विचार और नये कौशल जुड़ते चले जाते हैं और पुराने तरीकों में परिवर्तन होता जाता है। यह संस्कृति की विशेषता है जो संस्कृति की संचयी प्रवृत्ति से उत्पन्न होती है।

6. संस्कृति हमें अनेक प्रकार के स्वीकृति व्यवहारों के तरीके प्रदान करती है- यह बताती है कि कैसे एक कार्य को संपादित किया जाना चाहिये, कैसे एक व्यक्ति को समुचित व्यवहार करना चाहिए।

7. संस्कृति भिन्न होती है- यह ऐसी व्यवस्था है जिसमें विभिन्न पारस्परिक भाग एक-दूसरे पर आश्रित हैं। यद्यपि ये भाग अलग होते हैं, वे संस्कृति को पूर्ण रूप प्रदान करने में एक दूसरे पर आश्रित होते हैं।

8. संस्कृति अक्सर वैचारिक होती है- एक व्यक्ति से उन विचारों का पालन करने की आशा की जाती है जिससे प्राय: यह एक आदर्श तरीका प्रस्तुत करती है जिससे उसी संस्कृति के अन्य लोगों से सामाजिक स्वीकृति प्राप्त की जा सके।

भारतीय संस्कृति

भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से है। मोनियर विलियम्स, कीथ मैवडोनल, विन्टरनिट्, हाॅपकिन्स, जी. जे. हेरल्ड आदि पाश्चात्य विद्वानों, मनीषियों और आलोचकों ने भी प्राचीन भारतीय संस्कृति की प्रशंसा की हैं। 

भारतीय संस्कृति तत्वतः नितांत मानवीय एवं सार्वभैमिक है, अतः अपने विशिष्ट गुणों के कारण इसकी राष्ट्रीय पहचान स्थापित है। भारतीय संस्कृति का अतीत गौरवपूर्ण होने के साथ साथ दूरस्थ देशों तक रहा है। इसीलिए विश्व के अनेक देशों ने इस संस्कृति को अपनाकर इसे विश्व संस्कृति का गौरव प्रदान किया है। वर्तमान अत्याधुनिक युग में भी विश्व के कोने कोने में भारतीय सांस्कृतिक विरासत एवं गौरवशाली अतीत के प्रति असीम श्रद्धा विद्यमान है।

भारतीय संस्कृति के विशिष्ट आधारभूत तत्व हैं, जो इसके स्वरूप और विशेषताओं को प्रतिपादित करते हैं। प्राचीन ऋषियों और मनीषियों ने मानव के व्यक्तिगत और सामाजिक विकास तथा संचालन के लिए अनेक नियमों और परम्पराओं का निर्धारण किया था। उनका उद्देश्य था कि मानव-जीवन के प्रत्येक अंग का, मानव शरीर, मन तथा आत्मा का विकास हो। 

भारतीय संस्कृति की यह विशेषता अन्य प्राचीन संस्कृतियों में नहीं है। भारतीय संस्कृति में मानव-जीवन के सभी अंगों के विकास को प्रोत्साहित किया गया था।

भारतीय संस्कृति की यह भी विशेषता रही है कि इसमें केवल व्यक्तिगत उन्नति, विकास और सुख को ही महत्व नहीं दिया गया, अपितु उसके साथ सामूहिक उन्नति पर भी बल दिया गया। सामूहिक और सामाजिक हित के लिए व्यक्ति एवं कुल का भी बलिदान श्रेयस्कर समझा गया। वेदों में प्रार्थनायें की गई हैं कि समाज के प्रत्येक व्यक्ति को समष्टि की भावना से सामूहिक हित की कामना से कार्य करना चाहिये। परस्पर सद्भाव रखना चाहिये। वस्तुतः सामाजिक समानता, सद्भावना और परस्पर विश्वास भारतीय संस्कृति की विषेषतायें रहीं हैं।

भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृति है। यह वर्तमान में भी जीवित है तथा इसका महान् महत्व है। विश्व की अन्य प्राचीन संस्कृतियां, जैसे मिस्र, बेबीलोन, स्पार्टा, रोम, एथेन्स आदि की संस्कृतियाँ आज मात्र इतिहास का ही विषय रह गई हैं। परन्तु भारतीय संस्कृति अब भी जीवन्त है और नूतन विकास की ओर अग्रसर हो रही है। इसमें जीवन का स्पन्दन है। भारतवर्ष के करोड़ों नागरिक इससे प्रेरणा प्राप्त करते हैं। प्राचीन युग में भी भारतीय संस्कृति का जितना प्रचार हुआ, जितने विस्तृत प्रदेश में यह फैली, विश्व की कोई अन्य संस्कृति इसकी समानता नहीं कर सकती। प्राचीन भारतीय संस्कृति के अवशेष वर्तमान समय में भी अफगास्तिान, ईरान, चीन, मंगोलिया, जापान, तिब्बत, वर्मा, स्याम, कम्बोडिया, वियतनाम, मलाया, सुमात्रा एवं जावा आदि देशों में उपलब्ध होते हैं। वहां के रीति-रिवाजों और भाषाओं पर भारतीयता की स्पष्ट छाप है। प्राचीन भारत का बहुत सा साहित्य, जिसका कि भारतवर्ष में उल्लेख मात्र रह गया था, इन देशों से प्राप्त हो सका है।

भारतीय संस्कृति की यह विशेषता

1. अनेकता में एकता - भारत में विभिन्न धर्म, जातियाँ, सम्प्रदाय, वेषभूषा, खान-पान एवं रीति-रिवाज हैं। भौगोलिक दृष्टि से देष की स्थिति, बनावट एवं जलवायु में भिन्नता है। इन सबके कारण ऐसा प्रतीत होता है कि भारतीय संस्कृति में एकता का अभाव है, परन्तु यदि ध्यान-पूर्वक भारत की संस्कृति का अध्ययन किया जाय तो स्पष्ट होता है कि संस्कृति की अनेकता में एकता है। 

2. राजनैतिक एकता - आदिकाल से ही भारत के निवासियों में एकता की अनुभूति विद्यमान थी। यह सत्य है कि देष की विशालता और यातायात के साधनों के अभाव के कारण ही प्राचीन भारत में पूर्ण राजनैतिक एकता स्थापित नहीं हो सकी। प्राचीनकाल के भारतीय राजाओं की इच्छा दिग्विजय कर चक्रवर्ती सम्राट बनने की होती थी। चक्रवर्ती सम्राट वही होता था जिसका साम्राज्य हिमालय से समुद्र तट तक होता था। यह सत्य है कि इतना बड़ा साम्राज्य भारत के इतिहास में केवल अंग्रेज लोग ही स्थापित कर सके और अंगे्रेजों की धरोहर ही आज के भारत को मिली अतः स्पष्ट है भारत के निवासी एकता के वातावरण में रहते आए हैं। 

3. भौगैगोेिलिक एकता - भारत का भूखण्ड उत्तर से हिमालय पर्वत, दक्षिण में कन्याकुमारी, पूर्व में बंगाल की खाड़ी और पश्चिम में अरब सागर की प्राकृतिक सीमाओं से घिरा हुआ है। पुराणों के अनुसार प्रसिद्ध सम्राट ‘भरत’ के नाम पर इस भू-खण्ड का नाम ‘भारत’ पड़ा। 

4. सामाजिक एकता - प्राचीन भारतीयों ने समाज की ऐसी व्यवस्था बनायी जिससे भारतीय समाज में एकता बनी रही। उन्होंने वर्ण-व्यवस्था बनायी जिसके अन्तर्गत प्रत्येक वर्ण का कार्य निश्चित था। इस व्यवस्था के द्वारा भारतीय समाज को स्थायित्व और एकता की भावना मिली। इसी प्रकार आश्रम व्यवस्था के द्वारा भारतीय समाज में अराजकता और अव्यवस्था नहीं फैल सकी। संयुक्त परिवार की व्यवस्था ने भारतीय समाज को संगठित बनाये रखा। इस प्रकार भारतीय समाज में एकता बनी रही। 

5. भाषा की एकता - भारत में बोली और लिखी जाने वाली जितनी भाषाएं हैं, संस्कृत उनकी जननी है। हिन्दी, मराठी, पंजाबी, बंगाली, गुजराती, उडि़या, बंगाली, असमी, तेलगु, कन्नड़, तमिल एवं मलयालम सभी भाषाओं का मूल स्त्रोत संस्कृत है। हिन्दी और फारसी के मिलने से उर्दू का जन्म हुआ। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि जननी होने के नाते संस्कृत ने भारत की सभी भाषाओं को एक सूत्र में बांध कर रखा है। 

6. धार्मिक एकता - भारत में अनेक धर्म हैं। इन धर्म और दर्शनों की विचारधाराओं में आपसी मतभेद था। परन्तु सभी धर्म और दर्शन कर्म के सिद्धांत, पुनर्जन्म, आत्मा, मोक्ष आदि सिद्धांतों पर विश्वास करते थे। इन धार्मिक मतभेदों के बावजूद उनमें एकता थी। प्रत्येक हिन्दू के लिये राम और कृष्ण, रामायण, महाभारत, पुराण सम्मानीय हैं। गंगा, यमुना, नर्मदा और कावेरी उनके लिये पवित्र हैं। तीर्थ स्थान उनके लिये आकर्षण का केन्द्र हैं। स्पष्ट है कि भारत के विभिन्न धर्मों में एकता है। 

7. सांस्कृतिक एकता - भारत के संपूर्ण इतिहास में सामाजिक और सांस्कृतिक एकता बनी रही है। इसी एकता के कारण भारत में समय-समय पर होने वाले राजनैतिक परिवर्तनों से भारतीय संस्कृति अप्रभावित रही। जो विदेशी जातियाँ भारत में आयीं वे भारतीय संस्कृति में ही समा गयीं इस प्रकार भारत का सांस्कृतिक इतिहास गौरवमय बन गया।

Post a Comment

Previous Post Next Post