अनुक्रम
वायुमण्डल विभिन्न प्रकार की गैसों, जलवाष्प और धूलकणों से बना है। वायुमण्डल का
संघटन स्थिर नहीं है। यह समय और स्थान के अनुसार बदलता रहता है।
1. ओजोन गैस - वायुमण्डल में ओजोन गैस अल्प मात्रा में पाई जाती है। यह ओजोन क्षेत्रा में ही सीमित है; लेकिन इसका विशेष महत्व है। यह सूर्य की पराबैंगनी किरणों को अवशोषित करके पृथ्वी पर जीव-जंतुओं की रक्षा करती है। यदि ओजोन गैस वायुमण्डल में न होती तो धरातल पर जीव-जन्तु एवं पेड़-पौधों का अस्तित्व नहीं होता।
2. जलवाष्प - वायुमण्डल में विद्यमान जल के गैसीय स्वरूप को जलवाष्प कहते हैं। वायुमण्डल में जलवाष्प के विद्यमान रहने के कारण ही पृथ्वी पर जीवन संभव हुआ है। जलवाष्प पृथ्वी पर होने वाले सभी प्रकार के वर्षण का स्रोत है। वायुमण्डल में इसकी अधिकतम मात्रा 4 प्रतिशत तक हो सकती है। जलवाष्प की सबसे अधिक मात्रा उष्ण-आर्द्र क्षेत्रों में पाई जाती है तथा शुष्क क्षेत्रों में यह सबसे कम मिलती है। सामान्यत: निम्न अक्षांशों से उच्च अक्षांशों की ओर इसकी मात्रा कम होती जाती है। इसी प्रकार ऊँचाई के बढ़ने के साथ इसकी मात्रा कम होती जाती है। वायुमण्डल में जलवाष्प वाष्पीकरण तथा वाष्पोत्सर्जन द्वारा पहुँचता है। वाष्पीकरण समुद्रों, नदियों, तालाबों, झीलों और वाष्पोत्सर्जन पेड़- पौधों और जीव जन्तुओं से होता है।
3. धूल कण - धूलकण अधिकतर वायुमण्डल के निचले स्तर में मिलते हैं। ये कण धूल, धुआँ, समुद्री लवण आदि के रूप में पाये जाते हैं। धूलकणों का वायुमण्डल में विशेष महत्व है। ये धूलकण जलवाष्प के संघनन में सहायता करते हैं। संघनन के समय जलवाष्प जलकणों के रूप में इन्हीं धूल कणों के चारों ओर संघनित हो जाती है, जिससे बादल बनते हैं और वर्षण सम्भव हो पाता है।
वायुमण्डल में पाई जाने वाली प्रमुख गैसें
जलवाष्प एवं धूलकण सहित वायुमण्डल विभिन्न प्रकार की गैसों का मिश्रण है।
नाइट्रोजन और ऑक्सीजन वायुमण्डल की दो प्रमुख गैसें हैं। 99% भाग इन्हीं दो गैसों
से मिलकर बना है। शेष 1% भाग में आर्गन, कार्बन-डाई-आक्साइड, हाइड्रोजन,
नियॉन, हीलियम आदि गैसें पाई जाती हैं।
1. ओजोन गैस - वायुमण्डल में ओजोन गैस अल्प मात्रा में पाई जाती है। यह ओजोन क्षेत्रा में ही सीमित है; लेकिन इसका विशेष महत्व है। यह सूर्य की पराबैंगनी किरणों को अवशोषित करके पृथ्वी पर जीव-जंतुओं की रक्षा करती है। यदि ओजोन गैस वायुमण्डल में न होती तो धरातल पर जीव-जन्तु एवं पेड़-पौधों का अस्तित्व नहीं होता।
2. जलवाष्प - वायुमण्डल में विद्यमान जल के गैसीय स्वरूप को जलवाष्प कहते हैं। वायुमण्डल में जलवाष्प के विद्यमान रहने के कारण ही पृथ्वी पर जीवन संभव हुआ है। जलवाष्प पृथ्वी पर होने वाले सभी प्रकार के वर्षण का स्रोत है। वायुमण्डल में इसकी अधिकतम मात्रा 4 प्रतिशत तक हो सकती है। जलवाष्प की सबसे अधिक मात्रा उष्ण-आर्द्र क्षेत्रों में पाई जाती है तथा शुष्क क्षेत्रों में यह सबसे कम मिलती है। सामान्यत: निम्न अक्षांशों से उच्च अक्षांशों की ओर इसकी मात्रा कम होती जाती है। इसी प्रकार ऊँचाई के बढ़ने के साथ इसकी मात्रा कम होती जाती है। वायुमण्डल में जलवाष्प वाष्पीकरण तथा वाष्पोत्सर्जन द्वारा पहुँचता है। वाष्पीकरण समुद्रों, नदियों, तालाबों, झीलों और वाष्पोत्सर्जन पेड़- पौधों और जीव जन्तुओं से होता है।
3. धूल कण - धूलकण अधिकतर वायुमण्डल के निचले स्तर में मिलते हैं। ये कण धूल, धुआँ, समुद्री लवण आदि के रूप में पाये जाते हैं। धूलकणों का वायुमण्डल में विशेष महत्व है। ये धूलकण जलवाष्प के संघनन में सहायता करते हैं। संघनन के समय जलवाष्प जलकणों के रूप में इन्हीं धूल कणों के चारों ओर संघनित हो जाती है, जिससे बादल बनते हैं और वर्षण सम्भव हो पाता है।
वायुमण्डल का महत्व
- ऑक्सीजन प्राणी जगत के लिए अति महत्वपूर्ण है।
- कार्बन डाई-आक्साइड गैस पेड़-पौधों के लिए अधिक उपयोगी है।
- वायुमण्डल में विद्यमान धूलकण वर्षण के लिए अनुकूल दशाएं पैदा करते हैं।
- वायुमण्डल में जलवाष्प की मात्रा घटती-बढ़ती रहती है और प्रत्यक्ष रूप से पादप और जीव जगत को प्रभावित करती है।
- ओजोन सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों से सभी प्रकार के जीवन की रक्षा करती है।
वायुमण्डलीय गैसों की चक्रीय प्रक्रिया
वायुमण्डल में पाई जाने वाली प्रमुख गैसों का चक्रण नीचे दिया गया है-- कार्बन चक्र
- ऑक्सीजन चक्र
- कार्बन-डाई-आक्साईड चक्र
1. कार्बन चक्र -
- वायुमण्डल में कार्बन तत्व कार्बन-डाई-आक्साईड गैस के रूप में विद्यमान है। समस्त जीवों के कार्बन का स्रोत वायुमण्डल है।
- हरे पेड़-पौधे वायुमण्डल से कार्बन-डाई-आक्साईड प्राप्त करते हैं। जिसका उपयोग सूर्य प्रकाश के माध्यम से भोजन निर्माण हेतु करते हैं। जिसे प्रकाश संश्लेषण कहते हैं। इस क्रिया द्वारा पेड़-पौधे ‘कार्बोहाइड्रेट’ भोजन के रूप में तैयार करते हैं। इनके द्वारा निर्मित कार्बोहाइड्रेट का उपयोग जीव जन्तु अपने भोजन के लिए करते हैं।
- पृथ्वी पर कार्बन-डाई-आक्साईड गैस जल-भण्डारों में घुल जाती है और चूने के जमाव के रूप में इकट्ठी हो जाती है। चूने के पत्थर के अपघटन के बाद कार्बन-डाई-आक्साईड वायुमण्डल में पुन: पहुँच जाती है। इस प्रक्रिया को कार्बनीकरण कहते हैं। इस प्रकार वायुमण्डल और पृथ्वी के जलभण्डारों के बीच कार्बन-डाई-आक्साईड का आदान-प्रदान होता रहता है।
- पेड़-पौधे तथा जीव-जन्तुओं के श्वसन के द्वारा, पौधों और जीव-जन्तुओं के अपघटकों द्वारा, कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस जैसे जीवाश्म र्इंधन के जलने से उत्पन्न कार्बन-डाई-आक्साईड गैस वायुमण्डल में वापस चली जाती है। इस प्रकार वायुमण्डल से कार्बन-डाई-आक्साईड का आना और धरातल से पुन: वायुमण्डल में वापस जाने की प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है और इससे कार्बन एवं जैव मण्डल के बीच सन्तुलन बना रहता है।
2. ऑक्सीजन चक्र -
- ऑक्सीजन गैस वायुमण्डल में लगभग 21% है और समस्त जीव-जन्तु वायुमण्डल में उपस्थित ऑक्सीजन का उपयोग श्वसन के लिए करते हैं।
- र्इंधन के रूप में लकड़ी, कोयला, पेट्रोलियम, गैस आदि के जलने के लिए ऑक्सीजन आवश्यक है और इसके जलने के बाद कार्बन-डाई-आक्साइड गैस उत्पन्न होती है।
- वायुमण्डल में ऑक्सीजन का मुख्य स्रोत पेड़-पौधे हैं। जितने अधिक पेड़- पौधे होंगे उतनी ही अधिक ऑक्सीजन मिलेगी।
- हरे पेड़-पौधे में प्रकाश संश्लेषण के द्वारा उत्पन्न ऑक्सीजन वायुमण्डल में वापस चली जाती है। इस प्रकार ऑक्सीजन चक्र की प्रक्रिया चलती रहती है।
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