वायुमंडल पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के कारण उसके चारों ओर लिपटा रहता है। वायु
का एक स्तम्भ जो धरातल पर अपना भार डालता है उसे वायुदाब या वायुमंडलीय
दाब कहते हैं। वायुमंडलीय दाब को वायुदाब मापी यंत्रा (बेरोमीटर) से मापा जाता
है। आजकल वायुमंडलीय दाब को मापने के लिये सामान्यतया फोंटिंग एवं अनीरोइड
बेरोमीटर का प्रयोग किया जाता है।
वायुमंडलीय दाब को प्रति इकाई क्षेत्रफल पर पड़ने वाले बल के रूप में मापा जाता है। वायुदाब के मापने की इकाई को मिलीबार कहते हैं। इसका छोटा रूप 'mb' या ‘मिबा’ है। एक मिलीबार प्रति वर्ग सेंटीमीटर क्षेत्र पर पड़ने वाले लगभग एक ग्राम बल के बराबर होता है। 1000 मिलीबार वायुदाब का भार समुद्र तल पर 1.053 किलोग्राम प्रति वर्ग सेंटीमीटर होता है। यह भार 76 सेंटीमीटर ऊँचे पारे के स्तम्भ के बराबर होता है।
वायुमंडलीय दाब को प्रति इकाई क्षेत्रफल पर पड़ने वाले बल के रूप में मापा जाता है। वायुदाब के मापने की इकाई को मिलीबार कहते हैं। इसका छोटा रूप 'mb' या ‘मिबा’ है। एक मिलीबार प्रति वर्ग सेंटीमीटर क्षेत्र पर पड़ने वाले लगभग एक ग्राम बल के बराबर होता है। 1000 मिलीबार वायुदाब का भार समुद्र तल पर 1.053 किलोग्राम प्रति वर्ग सेंटीमीटर होता है। यह भार 76 सेंटीमीटर ऊँचे पारे के स्तम्भ के बराबर होता है।
वायुदाब का अंतर्राष्ट्रीय मानक इकाई ‘‘पास्कल’’ है जो प्रतिवर्गमीटर एक
न्यूटन बल के बराबर होती है। व्यावहारिक तौर पर वायुदाब किलोपास्कल में
अभिव्यक्त किया जाता है। (एक किलोपास्कल 1000 पास्कल के बराबर होता है)।
समुद्र तल पर औसत वायुमंडलीय दाब 1013-25 मिलीबार के बराबर होता है। परन्तु
किसी स्थान पर किसी समय विशेष में वायुदाब 950 मिलीबार से लेकर 1050
मिलीबार तक पाया जाता है।
- एक निश्चित स्थान एवं निश्चित समय पर वायु के एक स्तम्भ का भार वायुदाब कहलाता है।
- वायुमंडलीय दाब को वायुदाब मापी यंत्रा या बेरोमीटर में मापते हैं।
- वायुमंडलीय दाब की माप की इकाई मिलीबार (किलोपास्कल) है।
- एक मिलीबार प्रति वर्ग सेंटीमीटर क्षेत्र पर पड़ने वाले लगभग एक ग्राम बल के बराबर होता है।
वायुमंडलीय दाब का वितरण
वायुमंडलीय दाब का धरातल पर वितरण सब जगह समान नहीं है। इसमें क्षैतिज एवं ऊध्र्वाधर दोनों प्रकार के वितरण में भिन्नता मिलती है।वायुदाब का ऊध्र्वाधर वितरण
आप जानते हैं कि वायु विभिन्न गैसों का मिश्रण है। इसे अधिकाधिक दबाकर घनीभूत किया जा सकता है। दबी हुई या घनीभूत वायु का घनत्व अधिक होता है। वायु का घनत्व जितना अधिक होगा उसका दाब भी उतना अधिक होगा। इसके विपरीत कम घनत्व वाली वायु का दाब भी कम होगा। वायु के स्तम्भ में ऊपर की वायु नीचे वाली वायु पर दाब डालती है। इस कारण नीचे की वायु ऊपर की वायु की अपेक्षा अधिक घनी अर्थात अधिक घनत्व वाली हो जाती है। इसके परिणाम स्वरूप वायुमंडल की निचली परतें अधिक घनत्व वाली हो जाती है और इसलिये वे अधिक दाब डालती हैं। इसके विपरीत वायुमंडल की ऊपरी परतें कम दबी हुई हैं। अत: उनका घनत्व कम होता है और वे कम दाब डालती हैं। वायुमंडलीय दाब का स्तम्भीय वितरण वायुदाब का ऊध्र्वाधर वितरण कहलाता है।वायुदाब, ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ कम होता
जाता है, लेकिन यह एक ही दर से हमेशा कम नहीं होता है। वायुमंडल के घने
संघटक समुद्र तल के निकट पाये जाते हैं। एक निश्चित समय पर एक निश्चित स्थान
का वायुदाब वायु तापमान, उसमें उपस्थित जलवाष्प की मात्रा और पृथ्वी के
गुरूत्वाकर्षण बल पर निर्भर करता है। ये कारक वायुमंडल की विभिन्न ऊँचाइयों पर
बदलते रहते हैं, अत: ऊँचाई बढ़ने के साथ वायुदाब में कमी आने की दर भी बदलती
रहती है।
सामान्यत: वायुदाब प्रत्येक 300 मीटर की ऊँचाई पर 34 मिलीबार कम हो
जाता है। कम वायुदाब के प्रभाव का अनुभव मैदानों में रहने वाले लोगों
की अपेक्षा पर्वतीय एवं पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले लोग अधिक करते हैं। ऊँचे पर्वतीय
भागों में चावल के पकने में अधिक समय लगता है; क्योंकि वहाँ निम्न वायुदाब के
कारण पानी का क्वथनांक (उबलने का बिन्दु) घट जाता है। वहाँ पहाड़ों पर चढ़ने वाले
अन्य क्षेत्रों से आये बहुत से लोगों को सांस लेने में तकलीफ होने लगती है। कुछ लोग
बेहोश हो जाते हैं और नाक से खून भी आने लगता है। निम्न वायुदाब में वायु विरल
हो जाती है और उसमें ऑक्सीजन की मात्रा भी कम हो जाती है।
वायुदाब का क्षैतिज वितरण सारे संसार में समान नहीं है। एक ऋतु से दूसरी ऋतु में एक ही स्थान पर भी वायुदाब बदल जाता है। इसमें बदलाव एक स्थान से दूसरे स्थान पर एक छोटी दूरी के बाद भी देखा जाता है। वायुदाब के क्षैतिज वितरण में परिवर्तन के लिये उत्तरदायी प्रमुख कारक हैं-
वायुदाब का क्षैतिज वितरण
वायुमंडलीय दाब का सारे संसार में वितरण क्षैतिज वितरण कहलाता है। इसे मानचित्र में समदाब रेखाओं द्वारा दर्शाया जाता है। वे रेखा जो सभी समान वायुदाब वाले स्थानों को एक साथ जोड़ती है, समदाब रेखा कहलाती है। समदाब रेखाएं उच्चावच मानचित्र पर समोच्च रेखाओं जैसी होती हैं। समदाब रेखाओं के बीच की दूरी वायुदाब में आने वाले परिवर्तन की दर तथा उसकी दिशा को बताती है। वायुदाब की दर में इस परिवर्तन को वायुदाब की प्रवणता कहते हैं। वायुदाब की प्रवणता दो स्थानों के वायुदाब में भिन्नता तथा उनके बीच क्षैतिज दूरी का अनुपात होता है। समदाब रेखायें जब पास-पास होती हैं तो वे वायुदाब की तीव्र प्रवणता को बताती हैं और जब वे दूर-दूर होती है तो वायुदाब की मंद प्रवणता का बोध कराती हैं।वायुदाब का क्षैतिज वितरण सारे संसार में समान नहीं है। एक ऋतु से दूसरी ऋतु में एक ही स्थान पर भी वायुदाब बदल जाता है। इसमें बदलाव एक स्थान से दूसरे स्थान पर एक छोटी दूरी के बाद भी देखा जाता है। वायुदाब के क्षैतिज वितरण में परिवर्तन के लिये उत्तरदायी प्रमुख कारक हैं-
- वायु का तापमान,
- पृथ्वी का घूर्णन और
- वायु में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा।
विषुवतीय प्रदेशों में निम्न वायुदाब का कारण गर्म वायु का ऊपर उठना, धरातल
के निकट वायु का विरल हो जाना और थोड़े समय के लिये खाली जगह का बन
जाना है। ध्रुवीय प्रदेशों में ठंडी वायु घनी होती है। अत: यह नीचे उतरती हैं
जिससे वायुदाब बढ़ जाता है। इस तथ्य के आधार पर हम कह सकते हैं कि
विषुवत वृत्त से ध्रुवों की ओर तापमान घटने के साथ-साथ वायुदाब में शनै:शनै:
वृद्धि होनी चाहिए। परंतु विभिन्न स्थानों पर लिए गये वायुदाब के पठन यह सिद्ध
करते हैं कि विषुवत वृत्त से ध्रुवों की ओर जाने पर अक्षांशों के अनुसार वायुदाब
में नियमित रूप से वृद्धि नहीं होती। इसके विपरीत संसार के उपोष्ण प्रदेशों में
उच्च वायुदाब के क्षेत्र और अधो ध्रुवीय प्रदेशों में निम्न वायुदाब के क्षेत्र पाये जाते
हैं।
(ii) पृथ्वी का घूर्णन- पृथ्वी का घूर्णन से केन्द्र विमुख बल पैदा होता है इसके परिणाम स्वरूप वायु अपने मूल स्थान से हट जाती है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि अधोध्रुवी प्रदेशों का निम्न वायुदाब और उपोष्ण प्रदेशों का उच्च वायुदाब का निर्माण मुख्यतया पृथ्वी के घूर्णन के कारण हुआ है। वायु के अभिसरण क्षेत्र (जहां विभिन्न दिशाओं से आकर वायु मिलती है) में निम्न वायुदाब पाया जाता है और वायु के अपसरण क्षेत्र (जहां से वायु विभिन्न दशाओं को जाती है) में उच्च वायुदाब पाया जाता है।
(iii) वायु में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा : वायु जिसमें जलवाष्प की मात्रा अधिक होती है उसका दाब कम होता है और जिस वायु में जलवाष्प की मात्रा कम होती है उसका दाब अधिक होता है। सर्दी में महाद्वीप अपेक्षाकृत ठंड़े होते हैं तथा उच्च वायुदाब केन्द्र के रूप में विकसित होते हैं। गर्मी में ये समुद्र की तुलना में गर्म हो जाते हैं तथा यहाँ पर निम्न वायुदाब क्षेत्र कायम हो जाता है। इसके विपरीत समुद्र पर सर्दी में निम्नदाब तथा गर्मी में उच्च दाब होता है।
(ii) पृथ्वी का घूर्णन- पृथ्वी का घूर्णन से केन्द्र विमुख बल पैदा होता है इसके परिणाम स्वरूप वायु अपने मूल स्थान से हट जाती है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि अधोध्रुवी प्रदेशों का निम्न वायुदाब और उपोष्ण प्रदेशों का उच्च वायुदाब का निर्माण मुख्यतया पृथ्वी के घूर्णन के कारण हुआ है। वायु के अभिसरण क्षेत्र (जहां विभिन्न दिशाओं से आकर वायु मिलती है) में निम्न वायुदाब पाया जाता है और वायु के अपसरण क्षेत्र (जहां से वायु विभिन्न दशाओं को जाती है) में उच्च वायुदाब पाया जाता है।
(iii) वायु में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा : वायु जिसमें जलवाष्प की मात्रा अधिक होती है उसका दाब कम होता है और जिस वायु में जलवाष्प की मात्रा कम होती है उसका दाब अधिक होता है। सर्दी में महाद्वीप अपेक्षाकृत ठंड़े होते हैं तथा उच्च वायुदाब केन्द्र के रूप में विकसित होते हैं। गर्मी में ये समुद्र की तुलना में गर्म हो जाते हैं तथा यहाँ पर निम्न वायुदाब क्षेत्र कायम हो जाता है। इसके विपरीत समुद्र पर सर्दी में निम्नदाब तथा गर्मी में उच्च दाब होता है।
- वह रेखा जो सभी समान वायुदाब वाले स्थानों को एक साथ जोड़ती है, समदाब रेखा कहलाती है।
- वायुदाब की प्रवणता दो स्थानों के बीच वायुदाब की भिन्नता और उन स्थानों के बीच क्षैतिज दूरी का अनुपात होता हैं
- ऊँचाई बढ़ने के साथ वायुदाब में औसतन कमी की दर प्रति 300 मीटर ऊँचाई पर 34 मिलीबार है।
वायुदाब की पेटियाँ
धरातल पर वायुदाब का क्षैतिज वितरण मुख्य-मुख्य अक्षांश वृत्तों के साथ पट्टियों के रूप में पाया जाता है। इन्हीं को वायुदाब पेटियाँ कहा जाता है। वायुदाब का पेटियों के रूप में वितरण केवल सैद्धान्तिक नमूना है। वास्तव में वायुदाब की ऐसी पेटियाँ धरातल पर हमेशा इस प्रकार नहीं मिलती। इस बात की चर्चा हम आगे करेंगे कि वास्तविक वायुदाब की पेटियां आदर्श वायुदाब पेटियों से भिन्न क्यों हैं।संसार में पाई जाने वाली वायुदाब की आदर्श चार पेटियाँ हैं
- विषुवतीय निम्न वायुदाब पेटी,
- उपोष्ण उच्च दाब पेटी,
- अधोध्रुवीय निम्न वायुदाब पेटी और
- ध्रुवीय उच्च वायुदाब पेटी ।
विषुवतीय निम्न वायुदाब पेटी
विषुवत वृत्त पर सूर्य की किरणें लगभग वर्षभर लम्बवत् पड़ती हैं। इस कारण विषुवतीय क्षेत्रों में वायु गर्म होकर ऊपर उठ जाती है, जिससे यहां निम्न वायुदाब का क्षेत्र बन जाता है। इस वायुदाब की पेटी का विस्तार 100 उत्तरी और 100 दक्षिणी अक्षांश के बीच है। । बहुत अधिक गर्मी पड़ने के कारण यहां वायु की गति संवहन धाराओं के रूप में मुख्यतया ऊध्र्वाधर होती है और क्षैतिज गति प्राय: नहीं होती। इसीलिये इन पेटियों को पवनों के अभाव में शान्त पेटियाँ (डोलड्रम) भी कहा जाता है। ये पेटियाँ पवनों के अभिसरण क्षेत्र हैं; क्योंकि उपोष्ण उच्च दाब से पवनें यहां आकर मिलती हैं। इस पेटी को अंत: उष्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (आईटी. सी. जेड.) भी कहते हैं।उपोष्ण उच्चदाब पेटी
उपोष्ण उच्च दाब पेटी का दोनों गोलार्धों में विस्तार अयन रेखाओं (कर्क और मकर वृत्त) से 350 अक्षाशों तक है। उत्तरी गोलार्ध में इस पेटी का नाम उत्तरी उपोष्ण उच्च दाब पेटी है और दक्षिणी गोलार्ध में इसे दक्षिणी उपोष्ण उच्च दाब पेटी कहा जाता है। उपोष्ण उच्च दाब पेटी के बनने का कारण यह है कि विषुवतीय क्षेत्रों से उठी गर्म वायु पृथ्वी के घूर्णन से ध्रुवों की ओर बढ़ने लगती है। उपोष्ण क्षेत्र में आकर वह ठंडी और भारी हो जाती है, जिससे वह नीचे उतर कर इकट्ठी हो जाती है। परिणाम स्वरूप यहाँ उच्च वायुदाब क्षेत्र बन जाता है। इस क्षेत्र में भी परिवर्तनशील हल्की पवनों के साथ शांत की दशायें विद्यमान रहती हैं। प्राचीन काल में घोड़ों से लदे जहाज जब इस पेटी से गुजरते थे तो यहाँ शान्त दशाओं के कारण जहाज का आगे बढ़ना कठिन होता था। अत: घोड़ों को समुद्र में फेंककर जहाज को हलका कर लिया जाता था। इसी तथ्य के कारण इस पेटी को घोड़े का अक्षांश (अश्व अक्षांश) भी कहा जाता है। ये पेटियाँ पवनों के अपसरण क्षेत्र भी हैं; क्योंकि यहाँ से पवनें विषुवतीय और अधोध् ा्रुवीय निम्न वायुदाब पेटियों की ओर जाती है।अधोध्रुवीय निम्न वायुदाब पेटी
अधोध्रुवीय निम्न वायुदाब पेटी का उत्तरी गोलार्ध में विस्तार 450 उत्तर अक्षांश से आर्कटिक वृत्त तक है और दक्षिणी गोलार्ध में 450 दक्षिण अक्षांश से एन्टार्कटिक वृत्त तक है। उत्तरी और दक्षिणी गोलार्धों में इन्हें क्रमश: उत्तरी अधोध्रुवीय निम्नदाब पेटी और दक्षिणी अधोध्रुवीय निम्नदाब पेटी कहते हैं। इन पेटियों में ध्रुवों और उपोष्ण उच्च दाब क्षेत्रों में पवनें आकर मिलती हैं और ऊपर उठती हैं। इन आने वाली पवनों के तापमान और आदर््रता में बहुत अन्तर होता है। इस कारण यहाँ चक्रवात या निम्न वायुदाब की दशायें बनती हैं। निम्न वायुदाब के इस अभिसरण क्षेत्र को ध्रुवीय वाताग्र भी कहते हैं।ध्रुवीय उच्च वायुदाब पेटी
ध्रुवीय क्षेत्रों में सूर्य कभी सिर के ऊपर नहीं होता। यहाँ सूर्य की किरणों का आपतन कोण न्यूनतम होता है। इस कारण यहां सबसे कम तापमान पाये जाते हैं। निम्न तापमान होने के कारण वायु सिकुड़ती है और उसका घनत्व बढ़ जाता है, जिससे यहां उच्च वायुदाब का क्षेत्र बनता है। उत्तरी गोलार्ध में इसे उत्तर ध्रुवीय उच्च वायुदाब पेटी और दक्षिणी गोलार्ध में दक्षिण धु्रवीय उच्च वायुदाब पेटी कहा जाता है। इन पेटियों से पवनें अधोध्रुवीय निम्न वायुदाब पेटियों की ओर चलती हैं।वायुदाब पेटियों की प्रस्तुत व्यवस्था एक सामान्य तस्वीर प्रदर्शित करती है। वास्तव में वायुदाब पेटियों की यह स्थिति स्थायी नहीं है। सूर्य की आभासी गति कर्क वृत्त और मकर वृत्त की ओर होने के परिणाम स्वरूप ये पेटियाँ जुलाई में उत्तर की ओर, और जनवरी में दक्षिण की ओर खिसकती रहती हैं। तापीय विषुवत रेखा जो सर्वाधिक तापमान की पेटी है, वह भी विषुवत वृत्त से उत्तर और दक्षिण की ओर खिसकती रहती है। तापीय विषुवत रेखा के ग्रीष्म ऋतु में उत्तर की ओर और शीत ऋतु में दक्षिण की ओर खिसकने के परिणाम स्वरूप सभी वायुदाब पेटियाँ भी अपनी औसत स्थिति से थोड़ा उत्तर या थोड़ा दक्षिण की ओर खिसकती रहती हैं।
- उपोष्ण उच्च वायुदाब पेटी को ‘घोड़े का अक्षांश’ (अश्व अक्षांश) भी कहा जाता है।
- उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में वायु के नीचे उतरने और उसके इकट्ठा होने के कारण यहां उच्च वायुदाब बनता हैं।
- अधोधु्रवीय क्षेत्रों में धु्रवीय क्षेत्रों और उपोष्ण क्षेत्रों से आने वाली पवनों के मिलने से यहाँ चक्रवातीय दशायें विकसित होती हैं।
- उच्च वायुदाब पेटियाँ शुष्क हैं और निम्न वायुदाब पेटियाँ नम।
- सूर्य की आभासी गति उत्तर और दक्षिण की ओर होने के कारण तापीय विषुवत रेखा भी उत्तर और दक्षिण की ओर खिसकती रहती है।
- तापीय विषुवत रेखा के खिसकने के कारण वायुदाब पेटियाँ भी उत्तर और दक्षिण की ओर खिसकती रहती हैं।
Thanks. You so much
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