आयनिक बंध किसे कहते हैं सोडियम क्लोराइड में आबंधन इस प्रकार समझा जा सकता है।

एक धातु से अधातु में इलेक्ट्रॉनों के हस्तांतरण से जो रासायनिक बंध बनता है उसे आयनिक बंध (ionic bond or electrovalent bond) कहते हैं। उदाहरण के लिए, जब सोडियम धातु और क्लोरीन गैस (अधातु) को एक-दूसरे के पास लाया जाता है तो वे तीव्र अभिक्रिया द्वारा सोडियम क्लोराइड बनाते हैं। इसे नीचे दिखाया गया है।

2Na(s) + Cl2(g) ⎯⎯→ 2NaCl(s)

सोडियम क्लोराइड में आबंधन इस प्रकार समझा जा सकता है।

सोडियम (Na) की परमाणु संख्या 11 है और इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 2,8,1 होता है यानि इसके वाह्यतम (M) कोश में एक इलेक्ट्रॉन होता है। यदि इससे यह इलेक्ट्रॉन निकल जाए तो शेष 10 इलेक्ट्रॉन बच जाएंगे। इस प्रकार प्राप्त स्पीशीज एक धन आवेशित आयन होगा। इस प्रकार के धन आवेश वाले आयन को धनायन (cation) कहते हैं। इस प्रकार सोडियम परमाणु से सोडियम धनायन (Na+) प्राप्त होता है। इसे नीचे चित्र में दर्शाया गया है।

सोडियम क्लोराइड का बनना
सोडियम क्लोराइड का बनना

ध्यान दीजिए कि सोडियम धनायन में 11 प्रोटॉन होते हैं परन्तु केवल 10 इलेक्ट्रॉन होते हैं। इसके वाह्यतम कोश (L कोश) में 8 इलेक्ट्रॉन होते हैं। अत: सोडियम परमाणु ने एक इलेक्ट्रॉन खोकर उत्कृष्ट गैस (निऑन) का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास प्राप्त कर लिया है। इसलिए अष्टक नियम के अनुसार, सोडियम परमाणु सोडियम धनायन में परवर्तित होकर स्थिरता प्राप्त कर सकता है। सोडियम परमाणु के आयनीकरण से सोडियम आयन प्राप्त करने के लिए 496 KJ mol–1 ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

क्लोरिन परमाणु की परमाणु संख्या 17 होती है और इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 2,8,7 होता है। ये सोडियम धातु से एक इलेक्ट्रॉन ग्रहण करके अपना अष्टक पूरा कर सकता है। अब दोनों सोडियम आयन और क्लोराइड आयन ने मिलकर आयनिक आबंध बना लिया है और ठोस हो गए हैं।

ध्यान दीजिए कि ऊपर वाले प्रक्रिया में क्लोरीन परमाणु ने एक अतिरिक्त इलेक्ट्रॉन प्राप्त कर लिया है। अत: ये ऋण आवेशित आयन बन गया है। ऐसे ऋण आवेशित आयन को ऋणायन (anion) कहते हैं। क्लोरीन ऋणायन को क्लोराइड आयन (Cl) कहते हैं। क्लोराइड आयन के वाह्यतम कोश में 8 इलेक्ट्रॉन होते हैं जो कि अष्टक नियम के अनुसार एक स्थायी इलेक्ट्रॉनिक विन्यास है। क्लोरीन परमाणु से क्लोराइड आयन बनने पर 349 KJ mol–1 ऊर्जा निकलनी है। ऊपर प्राप्त धनायन (Na) और ऋणायन (Cl) विद्युत आवेश वाली स्पीशीज हैं, अत: वे स्थिर वैद्युत बलों द्वारा जुड़े होते हैं। ये स्थिर वैद्युत बल जो धनायनों और ऋणायनों को आपस में आबंधित करते हैं, आयनिक आबंध (electrovalent bond or lonic bond) कहलाते हैं। इसे इस प्रकार व्यक्त किया जाता है:

Na+(g) + Cl–(g) ⎯⎯→ Na+Cl– or NaCl(s)

यहां सिर्फ वाह्यतम इलेक्ट्रॉन दिखाए गए हैं। ऐसी संरचनाओं को लुइस संरचना कहते हैं। यदि हम सोडियम आयन के बनने के लिए आवश्यक ऊर्जा की तुलना क्लोराइड आयन के बनने में निकली ऊर्जा से करें तो हम देखते हैं कि नेट 147 KJ mo–l ऊर्जा का अंतर है। यदि आबंध बनने में सिर्फ यही दो चरण शामिल हों तो सोडियम क्लोराइड का ऊर्जा की दृष्टि से बनना संभव नहीं होना चाहिए। परन्तु सोडियम क्लोराइड क्रिस्टलीय ठोस के रूप में पाया जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जब सोडियम आयन और क्लोराइड आयन पास आकर क्रिस्टलीय संरचना बनाते हैं तो ऊर्जा निकलती है। इस प्रकार निकली ऊर्जा ऊपर आवश्यक ऊर्जा की कमी को पूरा करती है।

आप देख सकते हैं कि प्रत्येक सोडियम आयन छह क्लोराइड आयनों से घिरा है और प्रत्येक क्लोराइड आयन छह सोडियम आयनों से घिरा होता है। सोडियम और क्लोराइड आयनों के बीच आकर्षण बल सभी दिशाओं में समान रूप से उपस्थित होता है। अत: कोई भी विशेष सोडियम आयन किसी विशेष क्लोराइड आयन से जुड़ा नहीं होता है। इसलिए ऊपर दिखाए गए क्रिस्टल में NaCl जैसी कोई विशेष स्पीशीज नहीं होती है।


इसी प्रकार, हम लीथियम और पोटैशियम परमाणुओं से धनायनों और फ्लोरीन, ऑक्सीजन और सल्फर परमाणुओं से ऋणायनों के बनने की व्याख्या कर सकते हैं।

आइए, अब एक अन्य आयनिक यौगिक मैग्नीशियम क्लोराइड के बनने का अध्ययन करें। हम ठीक उसी प्रकार आगे बढ़ेंगे जैसा कि हमने सोडियम क्लोराइड के लिए किया था। सबसे पहले हम मैग्नीशियम (Mg) परमाणु की बात करते हैं। इसकी परमाणु संख्या 12 है। अत: इसमें 12 प्रोटॉन हैं और इसमें उपस्थित इलेक्ट्रॉनों की संख्या भी 12 है। अत: मैग्नीशियम का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 2,8,2 है।

आइए, अब मैग्नीशियम परमाणु से मैग्नीशियम आयन के बनने के बारे में जानें। हम देखते हैं कि बाह्यतम कोश में 2 इलेक्ट्रॉन हैं। यदि यह दो इलेक्ट्रॉन दे देता है तो यह उत्कृष्ट गैस निऑन का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 2,8 प्राप्त कर लेता है।

Mg ⎯⎯→ Mg2+ + 2e–
2, 8, 2 2, 8
मैग्नीशियम आयन का बनना

आप देख सकते हैं कि इस प्रकार प्राप्त मैग्नीशियम आयन में केवल 10 इलेक्ट्रॉन हैं और इसलिए इस पर ़2 धन आवेश वाला आयन है और इसे डह2़ आयन लिखते हैं। मैग्नीशियम द्वारा दिए गए दो इलेक्ट्रॉन, दो क्लोरीन परमाणुओं द्वारा (एक क्लोरीन परमाणु द्वारा एक) ले लिए जाते हैं जिससे दो क्लोराइड आयन प्राप्त होते हैं। क्लोराइड आयन के बनने के बारे में आप पहले ही जान चुके हैं।

2[Cl(g) + e– ⎯⎯→ Cl–(g)]
or  2Cl(g) + 2e– ⎯⎯→ 2Cl–(g)

अत: एक मैग्नीशियम आयन और दो क्लोराइड आयन संयोजित होकर मैग्नीशियम क्लोराइड, MgCl2 बनाते हैं। अत: हम निम्नलिखित प्रकार से लिख सकते हैं -

मैग्नीशियम क्लोराइड का बनना
मैग्नीशियम क्लोराइड का बनना

आइए, अब देखें कि यदि मैग्नीशियम आयन क्लोराइड आयन की अपेक्षा किसी और आयन, जैसे ऑक्साइड आयन से संयोजित होता है तो क्या होता है। ऑक्सीजन परमाणु की परमाणु संख्या 8 होती है और उसमें 8 इलेक्ट्रॉन होते हैं। इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 2,6 होता है। यदि यह दो इलेक्ट्रॉन और प्राप्त कर ले तो निऑन गैस जैसा इलेक्ट्रॉनिक विन्यास (2,8) ग्रहण कर सकता है। वे दो इलेक्ट्रॉन जो मैग्नीशियम परमाणु से प्राप्त हो सकते हैं, को ग्रहण करके ऑक्सीजन परमाणु ऑक्साइड आयन बनाता है। इसे नीचे दिखाया गया है।

O + 2e– ⎯⎯→ O2–
2, 6         2, 8
ऑक्साइड आयन का बनना

ऑक्सीजन परमाणु की तुलना में ऑक्साइड आयन में दो इलेक्ट्रॉन ज्यादा होते हैं। अत: इसके ऊपर 2 ऋण आवेश होता है। इसलिए इसे व्2– आयन लिखते हैं। मैग्नीशियम आयन (Mg2+) और ऑक्साइड आयन (O2–) आपस में स्थिर-वैद्युत बलों द्वारा जुड़े रहते हैं। इससे मैग्नीशियम ऑक्साइड का निर्माण होता है,
मैग्नीशियम ऑक्साइड का बनना
मैग्नीशियम ऑक्साइड का बनना

अत:, मैग्नीशियम ऑक्साइड एक आयनिक यौगिक है जिसमें एक धनायन (Mg2+) और एक ऋणायन (O2–) है जो स्थिर वैद्युत बलों से जुड़े हैं।

ठीक इसी तरह सोडियम क्लोराइड के बनने के समान मैग्नीशियम ऑक्साइड के बनने में भी ऊर्जा निकलती है और मैग्नीशियम ऑक्साइड की ऊर्जा, मैग्नीशियम और ऑक्साइड आयनों की ऊर्जा की तुलना में अधिक स्थायी होती है।

इसी प्रकार अन्य आयनिक यौगिकों में भी आयनिक आबंधों की व्याख्या की जा सकती है।

आयनिक यौगिकों के गुणधर्म

आयनिक यौगिकों में आयन धनायन और ऋणायन, प्रबल स्थिर-वैद्युत बलों द्वारा आपस में जुड़े होते हैं। अत: उनके निम्नलिखित सामान्य अभिलाक्षणिक गुणधर्म होते हैं।

1. भौतिक अवस्था

आयनिक यौगिक क्रिस्टलीय ठोस होते हैं। क्रिस्टल में आयन नियमित रूप से व्यवस्थित होते हैं। आयनिक यौगिक कठोर और भंगुर होते हैं।

2. गलनांक और क्वथनांक

आयनिक यौगिकों के उच्च गलनांक और क्वथनांक होते हैं। उदाहरण के लिए सोडियम क्लोराइड का गलनांक 1074 K (801oC) और क्वथनांक 16,86 K (1413oC) होता है। गलनांकों और क्वथनांकों का उच्चतम आयनों के बीच प्रबल स्थिर-वैद्युत बलों की उपस्थिति का कारण होता है। अत: इन आकर्षण बलों को तोड़ने के लिए ऊष्मा की अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है। यह ऊष्मा क्रिस्टल में धनायनों और ऋणायनों की नियमित त्रिविमीय व्यवस्था होती है, जिसे क्रिस्टल जालक (Crystal lattice) कहते हैं। गर्म करने पर यह क्रिस्टल जालक टूट जाता है और आयनिक यौगिक गलित अवस्था में आ जाता है, जिसमें धनायन और ऋणायन आसानी से गति कर सकते हैं।

3. विद्युत चालकता

आयनिक यौगिक गलित अवस्था तथा जलीय विलयन में विद्युत चालकता प्रदर्शित करते हैं क्योंकि आयन एक स्थान से दूसरे स्थान पर गति कर सकते हैं। अत: वे अपने साथ आवेश को ले जाते हैं। यह गति गलित अवस्था में संभव होती है, परन्तु ठोस अवस्था में नहीं क्योंकि ठोस अवस्था में आयन क्रिस्टल जालक में निश्चित स्थितियों पर उपस्थित होते हैं। अत: ठोस अवस्था में आयनिक यौगिक विद्युत चालकता प्रदर्शित नहीं करते।

जलीय विलयनों में आयनिक यौगिकों को घोलने के लिए जल का उपयोग किया जाता है। जल भी आयनों के बीच उपस्थित अंतरआयनिक बलों को कम कर देता है। जब ये बल दुर्बल हो जाते हैं तो आयन गति करने के लिए मुक्त हो जाते हैं और वे विद्युत चालक हो जाते हैं।

4. विलयेता

आयनिक यौगिक साधारणतया जल में विलेय होते हैं परन्तु कार्बनिक विलायकों जैसे ईथर, ऐल्कोहॉल, कार्बन टेट्राक्लोराइड आदि जल में अविलेय होते हैं।

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