क्या आपने, स्टीवन स्पीलबर्ग द्वारा निर्देशित फिल्म ‘जुरासिक
पार्क’ देखी हैं? उसको देखकर आपको यह अनमान हो गया होगा कि डायनोसॉर जैसे विशालकाय
प्राणी कितने बड़े आकार के थे! ये जीव लाखों वर्ष पूर्व पृथ्वी पर भ्रमण करते थे और बाद में
लुप्त हो गए। यदि आप किसी निकट के तालाब से पानी की एक बूँद लेकर उसे सूक्ष्मदर्शी
यंत्र के नीचे देखें, तब आप यह देखकर आश्चर्य चकित हो जायेंगे कि उस पानी की बूँद में
कितने विभिन्न प्रकार के जीव वास करते हैं।
अब आप यह सोच रहे होंगे कि पृथ्वी पर कितने
प्रकार के प्राणी होंगे? यह अनुमानित है कि पृथ्वी पर 100-150 लाख प्रकार के प्राणियों का
विकास हुआ है जिनमें पूर्वकाल के प्राणी भी सम्मिलित हैं। परंतु, अभी तक वैज्ञानिकों ने पृथ्वी
पर पाए जाने वाले केवल दो लाख प्राणियों को ही चिन्हित किया है।
जीवों की यह अपार विभिन्नता, जैव विविधता कहलाती हैं। यूनानी भाषा में बायोस का अर्थ है ‘जीवन’ और डाईवर्सिटी का अर्थ है विभिन्नता। इन दो शब्दों के संयोग से बायोडाइवर्सिटी शब्द बना है। जीवों में न केवल आकार की विविधता है, बल्कि जटिलता की भी विविधता है। उदाहरण जहाँ एक ओर जीवाणु (बैक्टीरिया) मात्र एक कोशिका वाले प्राणी है, वहीं मानव, करोड़ों कोशिकाओं से निर्मित, बहुत जटिल प्राणी है।
सभी जीव विकास के कारणवश पृथ्वी पर अस्तित्व में आए हैं और एक-दूसरे के साथ, अपने पूर्वजों के माध्यम से संबंधित है। यह दु:ख की बात है कि विभिन्न प्रकार के प्राणी, मानवीय गतिविधियों के कारणवश विलुप्त हो गए हैं। अत: हमें इस बात के प्रति सचेत रहना चाहिए कि जिस पृथ्वी पर हम अन्य प्राणियों के संग रहते हैं, उन प्राणियों को किसी प्रकार की क्षति न पहुँचे।
जीवों की यह अपार विभिन्नता, जैव विविधता कहलाती हैं। यूनानी भाषा में बायोस का अर्थ है ‘जीवन’ और डाईवर्सिटी का अर्थ है विभिन्नता। इन दो शब्दों के संयोग से बायोडाइवर्सिटी शब्द बना है। जीवों में न केवल आकार की विविधता है, बल्कि जटिलता की भी विविधता है। उदाहरण जहाँ एक ओर जीवाणु (बैक्टीरिया) मात्र एक कोशिका वाले प्राणी है, वहीं मानव, करोड़ों कोशिकाओं से निर्मित, बहुत जटिल प्राणी है।
सभी जीव विकास के कारणवश पृथ्वी पर अस्तित्व में आए हैं और एक-दूसरे के साथ, अपने पूर्वजों के माध्यम से संबंधित है। यह दु:ख की बात है कि विभिन्न प्रकार के प्राणी, मानवीय गतिविधियों के कारणवश विलुप्त हो गए हैं। अत: हमें इस बात के प्रति सचेत रहना चाहिए कि जिस पृथ्वी पर हम अन्य प्राणियों के संग रहते हैं, उन प्राणियों को किसी प्रकार की क्षति न पहुँचे।
जैव विविधता के स्तर
पृथ्वी पर सभी प्रकार के पाए जाने वाले जीवित प्राणी जैव-विविधिता से संबंध रखते हैं। जैव विविधता के तीन स्तर चिन्हित किए गए हैं -1. पारितंत्रीय/पारितंत्र संबंधी जैव विविधता
जीवों ने उन विशेषताओं को विकसित कर लिया जिनके कारण वे अपने वातावरण के अनुकूल
या उन पारितंत्र में जीवित रह पाए, जिसमें वे वास करते थे। पारितंत्र भिन्न प्रकार के है।
यहाँ तक कि विभिन्न पर्यावरण व्यवस्थाओं में जीवित रहने वाले जीव भी एक दूसरे से बहुत
भिन्न हो सकते हैं। उदाहरणतया: जहाँ एक ओर कछुआ स्थलीय जीव हैं वहीं समुद्री कछुए
जलीय जीव हैं। हालांकि ये दोनों एक दूसरे से संबंधित हैं, परंतु विशेषकर इनके पैरों में
बहुत अंतर है। पारितंत्र में विविधता है।
स्थलीय पारितंत्र में वन, समतल भूमि, मरुस्थल
और पर्वत सम्मिलित हैं। वहीं दूसरी ओर जलीय पारितंत्र में समुद्र, नदी, तालाब इत्यादि हैं-
इनमें वास-योग्य जीव वातावरण के अनुकूल विकसित हुए हैं। भारत ने बहुत तरह के स्थलीय
और जलीय पारितंत्र पाये जाते हैं।
2. जातियों की विविधता
किसी विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में पाई जाने वाली प्रणालियों की विविधता को
जाति विविधता कहते हैं। एक ही जाति में शामिल जीव एक समान होते हैं, और वे संतान
उत्पन्न करने के लिए प्रजनन करने में सक्षम होते हैं। वे अन्य प्रजाति के जीवों के साथ प्रजनन
नहीं कर पाने के कारण भी संतान को जन्म नहीं दे पाते। जैसा कि आप जान चुके हें कि
जीवों की प्रजातियों की संख्या बहुत अधिक है। इनका अभिप्राय पौधों, जन्तुओं और सूक्ष्मजीवों
में निहित विभिन्न प्रकार की जीन से है। क्या आप यह बता सकते हैं कि व्यक्ति विशेष में
नए परिवर्तन कैसे आती हैं?
3. जननिक विविधता
जीव कोशिकाओं से निर्मित है और इन
कोशिकाओं के केन्द्रक में गुणसूत्र होते हैं, जिनमें
जीन विद्यमान है। जीन किसी भी विशिष्ट
प्रजाति की विशेषताओं को नियंत्रित करते हैं।
एक ही प्रजाति के व्यिक्त्यों की जीनों में समानता
होती है। प्रत्येक प्रजाति का जीन मूल (जीनों
का संग्रह) होता है। इस जीन मूल में किसी
भी प्रजाति में पाई जाने वाली विभिन्न प्रकार के
जीन्स होते हैं। एक प्रजाति की जीनों का संग्रह
अन्य जातियों से भिन्न होता है।
जीवों का नामकरण और वर्गीकरण
जीवित प्राणियों की इस विशाल विविधता को कैसे पढ़ा और समझा जा सकता है? इस पहेली को विभिन्न प्रकार के जीवों को वर्गीकृत करके और उन्हें वैज्ञानिक नाम देकर, सुलझाया गया है।जीवों का वर्गीकरण
आप पहले से ही जान चुके हैं कि पृथ्वी पर अब तक लगभग 10-15 लाख प्रकार की जीव-प्रजातियों का विकास हो चुका है। 1 करोड़ कितना होता है - दस के बाद शून्य डालकर यह आंकने का प्रयास कीजिए। अब तक लगभग 20 लाख जीवों को पहचान और नामांकित किया जा चुका है। वैज्ञानिक, जीवों का किस प्रकार अध्ययन करते हैं और उन्हें किस प्रकार पहचाना जाता है। ऐसा वे जीवों को समूहों और उप-समूहों में वर्गीकृत करके करते हैं।समानताओं और विभिन्नता के आधार
पर जीवों का समूहीकरण ‘वर्गीकरण’ कहलाता है। वर्गीकरण की प्रक्रिया में श्रेणीबद्धता बरती
जाती है। जैसे जगत, फाइलम, क्लास, वर्ग ऑर्डर, फैमिली, जीनस और स्पीशीज़ श्रेणीबद्धता
वाले समूह हैं। ये वे समूह है जिसमें ये प्राणी आते है और जो अन्य प्राणियों के साथ अपने
विकासक्रम संबंध की अभिव्यक्ति करते हैं।
अत: यह वर्गीकरण, जीवों के बीच विकासक्रम का संबंध दर्शाता है। इसे अंग्रेजी में सिस्टेमैटिक्स भी कहा जाता है। वर्गीकरण या सिस्टेमैटिक्स के विज्ञान को अंग्रेजी में टैक्सोनॉमी कहते हैं।
मनुष्य का वैज्ञानिक नाम होमो सेपियन्स है। मानव को इस रूप से वर्गीकृत किया जा सकता है।
होमो सेपियन्स का अर्थ है बुद्धिमान होमीनिड
यूबैक्टीरिया बिना सुविकसित न्यूक्लियस के मात्र एक कोशिका वाले जीव।
यूकैरिया सभी अन्य जीव, जिनकी कोशिकाओं में सुविकसित केन्द्र पाया जाता है। (यू:, सत्य, कैरयोन: केन्द्रक)
अत: यह वर्गीकरण, जीवों के बीच विकासक्रम का संबंध दर्शाता है। इसे अंग्रेजी में सिस्टेमैटिक्स भी कहा जाता है। वर्गीकरण या सिस्टेमैटिक्स के विज्ञान को अंग्रेजी में टैक्सोनॉमी कहते हैं।
मनुष्य का वैज्ञानिक नाम होमो सेपियन्स है। मानव को इस रूप से वर्गीकृत किया जा सकता है।
होमो सेपियन्स का अर्थ है बुद्धिमान होमीनिड
वर्गीकरण के तीन प्रभाव-क्षेत्र
आजकल सभी जीव तीन मुख्य प्रभाव क्षेत्रों में वर्गीकृत है। आर्कीबैक्टीरिया एक कोशिका वाले जीव होते है। जिनमें थर्मोफिलिक या रूप से उष्मा प्रिय बैक्टीरिया होते हैं। जो कि उच्च तापमानों के क्षेत्रों में बसते हैं।यूबैक्टीरिया बिना सुविकसित न्यूक्लियस के मात्र एक कोशिका वाले जीव।
यूकैरिया सभी अन्य जीव, जिनकी कोशिकाओं में सुविकसित केन्द्र पाया जाता है। (यू:, सत्य, कैरयोन: केन्द्रक)
जीवन के पांच जगत
पहले केवल 2 जगत को - पौधे अथवा पादप और जंतु थे। सन 1969 में व्हिटेकर ने सुझाव दिया कि बैक्टीरिया (जीवाणुओं) को पादप जगत में नहीं रखना चाहिए अैर प्रोटोजोआ को जंतु जगत का अंग नहीं मानना चाहिए। उन्होंने पांच जगत वाला वर्गीकरण प्रदान किया। निम्नलिखित रूप में जीवन के पांच जगत और उनमें अधिकतर पाई जाने वाली विशेषताएँ दी गई है।![]() |
जीवन के पांच जगत |
जीवों का नामांकरण कैसे होता है?
प्रत्येक जीव का किसी विशिष्ट भाषा के नाम से जानने के अतिरिक्त किसी वैज्ञानिक के नाम पर भी आधारित हो सकता है। उदाहरणत: अंग्रेजी में एक फल का नाम मैंगो होता है, हिंदी में आम और उसका वैज्ञानिक नाम है मैंगीफेरा इंडिका। वैज्ञानिक नामकरण में जीव के वंश और प्रजाति का नाम होता है उदाहरणत: होमो सेपियंस।वैज्ञानिक नाम - वैज्ञानिक नाम के कई लाभ होते हैं और वह किसी विशिष्ट जीव की विशिष्ट पहचान को
चिन्हित करता है:
- वह संसार भर में समझा जाता है।
- दो शब्दों में संयोजन से वैज्ञानिक नामकरण किया जाता है। जीनस अंग्रेज़ी में बड़े अक्षर से प्रारंभ होता है और स्पीशीज छोटे अक्षर से आरंभ होती है। उदाहरणत: बिल्ली का वैज्ञानिक नाम फेलिस डॅामिस्टिका है, जहाँ फेलिस जीनस का नाम है और डॉमेस्टिका स्पीशीज का नाम है। इसीलिए वैज्ञानिक नाम हमेशा तिरछा लिखा जाता है या उसके नीचे रेखा खींची जाती है।
- दो नामों का होना नामकरण की द्विनाम पद्धति है, जिसे 18वीं शताब्दी में स्वीडन के जैव वैज्ञानिक कैरोलस लिनीएस ने प्रस्तुत किया था। कैरोलस लिनीयस
जीवित संसार में कौन क्या है पादप जगत व जंतु जगत के वर्गीकरण।
प्रत्येक प्राणी, जीवन के पांच जगत में से एक से संबंधित हैंक. जगत मोनेरा- इसमें सूक्ष्म, एक कोशिका वाले प्राणी शामिल हैं जिनकी कोशिका
की दीवार तो होती है परंतु कोई सुविकसित केन्द्रक नहीं होता है। उदाहरण सभी
बैक्टीरिया।
ख. जगत प्रोटोक्टिस्टा (प्रोटिस्टा) इसमें मात्र एक कोशिका वाले प्राणी जिनका
सुविकसित केन्द्रक होता है। उदाहरण अमीबा, मलेरिया फैलाने वाला परजीवी,
क्लेमाइडोमोनास
ग. जगत कवक - इसमें बहुकोशीय वाले जीव
सम्मिलित हैं। इनके शरीर हाइफा (माइसीलियम)
नामक महीन धागों के जाल से बने होते हैं। कवक,
मृत या सड़ते पदार्थों से अपना भोजन प्राप्त करते हैं
(मृतजीवी) ।
उदाहरण - खुम्भी, खमीर यीस्ट,
डबलरोटी, फफॅूद
घ. प्लांटी जगत में सम्मिलित है -
ऋ बहुकोशिका वाले यूकैरियोट
ऋ सैल्यूलोज़ की बनी कोशिका भित्ती, और जिनकी कोशिकाओं में क्लोरोफिल
विद्यमान हैं
ऋ स्वपोषी और इस प्रकार प्रकाश संश्लेषण से खाद्य निर्माण की क्षमता
जैव विविधता संरक्षण
आप इस बात पर दु:ख अनुभव कर रहे होगें कि मनुष्य की गतिविधियों के ही कारणवश, इतने सारे अन्य जीवों का जीवन संकट में पड़ गया है। आपका विवेक आपसे यह पूछ रहा होगा कि क्या पृथ्वी पर सभी प्रजातियों को जीवित रहने का अधिकार नहीं हैं, आप सही सोच रहे हैं हम सभी को जैव विविधता के संरक्षण के लिए प्रयत्न करना चाहिए क्योंकि सभी जीवन न केवल एक दूसरे पर निर्भर हैं, अपितु साथ मिलकर प्रकृति का संतुलन बनाए रखते है। हमारे देश के पेड़-पौधे और जन्तु हमारी धरोहर हैं। हमें अपनी धरोहर को संरक्षित रखना है।आइए, अब इस बात का परीक्षण करे कि जैव-विविधता किस प्रकार प्रकृति के समन्वय
और सौहार्द्र बनाए रखता है।
मानव जनसंख्या भी खाद्य-पदार्थों और ऊर्जा उत्पादन के लिए पर्यावरणीय संसाधनों के प्रति आकर्षित ही रहे है। जिस कारण अत्यधिक अपशिष्ट जनित हो रहा है। अनेकों पादप तो विलुप्त हो गए हैं, कुछ विलुप्त होने के कगार पर हैं। खतरे में पड़ी जातियों को संरक्षित करना आवश्यक है। मछली और मौलस्क को संरक्षण देना एवं मानव द्वारा शोषण के लिए उनका अत्यधिक उपयोग होने से सुरक्षित रखना है, फर और हाथी दाँत के लिए जन्तुओं का शिकार किया जाता है। प्रति वर्ष जंगलों से लगभग 1 करोड़ पक्षियों का व्यापार होता है। जिनमें से कुछ अपने गंतव्य स्थान पर पहुंचने से पहले ही मर जाते हैं। पारंपरिक औषधियों का निर्माण करने के लिए बंदरों और चीतो को मारा जाता है। जन्तुओं के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर प्रतिबंध लगा दिए गए हैं। आपने वीरप्पन का नाम तो सुना ही होगा, जो कि अवैध रूप से चंदन के पेड़ों को काटकर, उनका व्यापार करता था।
‘ऑपरेशन टाईगर’ और ‘आपरेशन एलीफेन्ट’ कुछ ऐसी ही परियोजनाएं हैं, जिन्होंने इन जन्तुओं के निवास स्थलों के नष्ट होने से उनकी गिरती संख्या की रोकथाम की है।
प्रकृति में सामंजस्य बनाए रखने में जैव विविधता की भूमिका
जैव विविधता प्रकृति में साम्यवस्था बनाए रखती है क्योंकि इसमें सभी प्रकार के प्राणी जीवित रहने की योग्यता रखते हैं। बैक्टीरिया और कवक, विभिन्न प्रकार के जीवों को भोजन प्रदान करने के उद्देश्य से जैव पदार्थों को पुनर्चक्रित करते हैं। शैवाल व अन्य पादप प्रकाश-संश्लेषण के लिए सौर ऊर्जा का प्रयोग करते हैं और इस प्रकार सभी जीवित प्राणियों के लिए भोजन उत्पन्न करते हैं। कीट और चमगादड़, फूलों को परागित करते हैं, जंतु, बीजों का प्रकीर्णन करते हैं। विभिन्न पारितंत्र जैसे वन, मरुस्थल, जलाशय और वेटलैण्ड (आद्र भूमि) अपनी चारित्रिक जैवविविधता को बनाए रखते है, इनमें से कुछ अपनी अनूठी खाद्य श्रंखलाओं एवं खाद्य जाल के अभिन्न अंग है।जैवविविधता संरक्षण
मानव-जाति द्वारा घरों और इमारतों, सड़कों और रेल की लाइनों, पत्थर तोड़ने और कृषि के कार्यों के लिए भूमि के अधिक प्रयोग द्वारा न केवल पौधों और जंतुओं के निवास स्थल नष्ट हुए है, बल्कि जैव विविधता भी खतरे में पड़ गई है। जैव विविधता की सुरक्षा करना प्रत्येक व्यक्ति का कर्त्तव्य है। संरक्षण पारितंत्रों को स्थिर बनाए रखते हैं।मानव जनसंख्या भी खाद्य-पदार्थों और ऊर्जा उत्पादन के लिए पर्यावरणीय संसाधनों के प्रति आकर्षित ही रहे है। जिस कारण अत्यधिक अपशिष्ट जनित हो रहा है। अनेकों पादप तो विलुप्त हो गए हैं, कुछ विलुप्त होने के कगार पर हैं। खतरे में पड़ी जातियों को संरक्षित करना आवश्यक है। मछली और मौलस्क को संरक्षण देना एवं मानव द्वारा शोषण के लिए उनका अत्यधिक उपयोग होने से सुरक्षित रखना है, फर और हाथी दाँत के लिए जन्तुओं का शिकार किया जाता है। प्रति वर्ष जंगलों से लगभग 1 करोड़ पक्षियों का व्यापार होता है। जिनमें से कुछ अपने गंतव्य स्थान पर पहुंचने से पहले ही मर जाते हैं। पारंपरिक औषधियों का निर्माण करने के लिए बंदरों और चीतो को मारा जाता है। जन्तुओं के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर प्रतिबंध लगा दिए गए हैं। आपने वीरप्पन का नाम तो सुना ही होगा, जो कि अवैध रूप से चंदन के पेड़ों को काटकर, उनका व्यापार करता था।
‘ऑपरेशन टाईगर’ और ‘आपरेशन एलीफेन्ट’ कुछ ऐसी ही परियोजनाएं हैं, जिन्होंने इन जन्तुओं के निवास स्थलों के नष्ट होने से उनकी गिरती संख्या की रोकथाम की है।