मेसोपोटामिया का शाब्दिक अर्थ है, नदियों के बीच की जमीन। यह दजला और फरात नदियों
के बीच स्थित थी और आधुनिक नाम इराक है । इन नदियों मे अक्सर बाढ़ आ जाया करती
थी। इस प्रक्रिया में उनके किनारों पर ढेर सारी मिट्टी और गाद जमा हो जाती थी। यह किनारों
के पास की जमीन को खूब उर्वर बना देती। इसने मेसोपोटामिया वासियों के सामने दो चुनौतियां
पेश कीं, बाढ़ को काबू में करना और खेती के लिए जमीन की सिंचाई करना। इससे उपज बढ़ी।
कृषि उत्पादन में इजाफें से लोहार, कुम्हार, राजमिस्त्राी, बुनकर और बढ़ई जैसे अनेक दस्तकार
सामने आए। वे अपनी बनाई चीजें बेचते और बदले में अपनी रोजाना की जरूरतों की चीजें लेते।
वे भारत जैसे सुदूर क्षेत्रों के साथ जमीनी और समुद्री दोनों तरह के नियमित व्यापार करते। परिवहन
और संचार के लिए ठेलों, चौपहिया गाड़ियों, नौकाओं और पोतों का इस्तेमाल किया जाता था।
उन्होंने लिखने की कला भी विकसित कर ली थी। उस समय की लिपि संकेत चिह्नों या चित्रों
का समूह थी। बाद में वे फान जैसी लकीरें खींचते थे। यह लिपि कीलाक्षर कहलाती है।
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कीलाक्षार लिपि |
मेसोपोटामिया के प्रारंभिक शहर छोटे राज्यों के समान थे। उनका अपना प्रशासन वर्गों में पुरोहित,
राजा और कुलीन शामिल थे। उनके अलावा सौदागर, आम लोग और गुलाम थे। मेसोपोटामिया
के लोग ढेर सारे देवी-देवताओं - आकाश का देवता, हवा का देवता, सूर्य देवता, चंद्रमा-देवता,
प्रजनन की देवी, पे्रम की देवी और युद्ध का देवता और इसी तरह के अनेक अन्य देवी-देवताओं
की पूजा करते थे। हर शहर का एक संरक्षक देवता होता था। मेसोपोटामिया में अनेक खूबसूरत
मंदिरों का निर्माण किसानों और गुलामों, जो ज्यादातर युद्ध-बंदी होते थे, से करवाया गया।
बहुत ही ज्ञानवर्धक आर्टिकल मेसोपोटामिया की जानकारी के लिए है।
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