वाक्य के भेद : प्रकार और वाक्य की परिभाषा

वाक्य के भेद या प्रकार

मनुष्य जो भी सोचता या अभिव्यक्त करता है, वह सब वाक्य के ही माध्यम से होता है। भावाभिव्यक्ति सन्दर्भ में वाक्य भाषा की सहज तथा प्रथम इकाई है।

वाक्य की परिभाषा

समय-समय पर विभिन्न विद्वानों ने वाक्य की परिभाषा की है। कुछ प्रमुख भारतीय विद्वानों की परिभाषा हैं -

1. डॉ. भोलानाथ ने वाक्य की परिभाषा इस प्रकार की है ‘‘वाक्य भाषा की सहज इकाई है, जिसमें एक या अधिक शब्द हों, जो अर्थ की दृष्टि से पूर्ण हो या अपूर्ण व्याकरणिक दृष्टि से अपने विशिष्ट संदर्भ में अवश्य पूर्ण होती है, साथ ही परोक्ष रूप से कम से कम एक क्रिया का भाव अवश्य होता है।’’

2. हिन्दी के प्रसिद्ध वैयाकरण पं. कामताप्रसाद गुरू ने ‘हिन्दी व्याकरण’ में वाक्य की परिभाषा इस प्रकार दी है - ‘‘प्रत्येक पूर्ण विचार को वाक्य और प्रत्येक भावना को शब्द कहते हैं।’’

3. आचार्य देवेन्द्रनाथ के अनुसार, ‘‘भाषा की न्यूनतम पूर्ण सार्थक इकाई वाक्य है।’’ 

4. डॉ. जाल्मन दीमशित्स ने ‘हिन्दी व्याकरण’ में कहा है-’’वाक्य वाक्-क्रिया की एक समग्र इकाई के नाते वाक्य के लिए लाक्षणिक है, विधेयता, प्रकारता तथा अनुतान में पूणता।’’

5. अरस्तु के अनुसार ‘‘वाक्य सार्थक घ्वनियों का समूह है, जिससे किसी भाव की अभिव्यक्ति होती है। प्रत्येक वाक्य संज्ञा और क्रिया से बनता है, किन्तु क्रिया के बिना भी वाक्य रचना हो सकती है।

वाक्य के भेद या प्रकार 

विभिन्न आधारों पर वाक्य के भेद बताए गये हैं-

  1. आकृति के आधार पर,
  2. संरचना के आधार पर,
  3. शैली के आधार पर,
  4. क्रिया के आधार पर तथा
  5. अर्थ के आधार

1. आकृति के आधार पर वाक्य के भेद 

i. अयोगात्मक वाक्य-इन वाक्यों में सभी शब्दों की स्वतंत्र सत्ता होती है। यहाँ पदों की रचना प्रकृति-प्रत्यय के योग से नहीं की जाती। प्रत्येक शब्द का अपना निश्चित स्थान होता है और इसी आधार पर इनका व्याकरणिक सम्बन्ध जाना जाता है। चीनी भाषा अयोगात्मक वाक्यों के लिए प्रसिद्ध है। 

इस भाग में पदों का स्थान ही व्याकरणिक सम्बन्ध का बोध कराता है। यथा- 
न्गो-ता-नी = मैं तुमको मारता हूँ। 
नी-तान-न्गो = तुम मुझे मारते हो।
ii. श्लिष्ट योगात्मक वाक्य-जहाँ पदों की रचना विभत्तिफयों की सहायता अथवा योग से की जाय, उन्हें श्लिष्ट योगात्मक वाक्य कहते हैं। यहाँ विभत्तिफ धातु के साथ इस प्रकार संश्लिष्ट हो जाती है कि दोनों का अस्तित्व अलग-अलग नहीं जान पड़ता है। प्रत्ययों का अस्तित्व एकदम समाप्त हो जाता है। उत्तफ विभत्तिफयाँ अन्तर्मुखी होती हैं। 
यथा- ’’जैदुन अम्रन जरब अ’’ (जैद ने अमर को मारा) लेकिन संस्कृत की विभत्तिफयाँ बहिर्मुखी होती है। यथा ‘राघव: गृहं गच्छति’,  ‘मोहन: मृगं पश्यति’ आदि।

iii. अश्लिष्ट योगात्मक वाक्य –जिन वाक्यों की रचना प्रत्ययों के योग से होती है, उन्हें अश्लिष्ट योगात्मक वाक्य कहते हैं। प्रत्यय पदों के पूर्व मध्य और अन्त में प्रयुत्तफ किये जाते हैं। तुर्की भाषा विशेषत: प्रत्यय प्रधान है। संस्कृत में प्रत्यय शब्द के अन्त में प्रयुक्त किये जाते हैं। कृत्रिम भाषा ‘एस्पैरेन्तो’ में भी प्रत्यय प्रधान भाषा के दर्शन यदा-कदा हो जाते हैं।

iv. प्रश्लिष्ट योगात्मक वाक्य-जब अनेक शब्दों के योग से एक ऐसा सामासिक पद बन जाय कि उसी से वाक्य का बोध होने लगे, तब वाक्य प्रश्लिष्ट योगात्मक कहलाता है। इन वाक्यों में कर्त्ता, कर्म, क्रिया सभी एक पद में इस प्रकार गुंथे हुए होते हैं कि, पूरा वाक्य एक शब्द प्रतीत होता है। दक्षिणी अमेरिका की चेराकी भाषा में इस प्रकार के वाक्य मिल जाते हैं। यथा- अमोखल = नाव, नातेन = लाओ, निन = हम इन शब्दों के मेल से बने वाक्य ‘नाधोलिनिन’ का अर्थ है-’’हमारे लिए एक नाव लाओ।’’

2. संरचना के आधार वाक्य के भेद

वाक्य-रचना के आधार पर वाक्य के तीन भेद होते हैं। 

i. साधारण अथवा सरल वाक्य-जिस वाक्य में केवल एक कर्त्ता तथा एक क्रिया होती है, उसे साधारण अथवा सरल वाक्य कहते हैं। यथा राम वृक्ष पढ़ता है। मुरारी खेती करता है।

ii. संयुक्त वाक्य-कुछ सरल वाक्यों अथवा सरल एवं मिश्र वाक्यों अथवा मिश्र एवं मिश्र वाक्यों को परस्पर जोड़ने से संयुक्त वाक्य बनता है। इसे बिना किसी बाधा के तोड़कर खण्डों अथवा विभागों में विभक्त कर सकते हैं। यथा ‘तुम जाओ और अपने पिताजी से कहना’। 

इस वाक्य में दो सरल वाक्य हैं-’तुम जाओ’। ‘अपने पिताजी से कहना’। इन दोनों वाक्यों को ‘और’ से जोड़कर संयुक्त वाक्य बनाया गया है। 

iii. मिश्र वाक्य-जिस वाक्य में दो वाक्य खण्ड जुड़े हों तथा एक वाक्य दूसरे पर पूरी तरह निर्भर करता हो, वह मिश्र वाक्य कहलाता है। मिश्र वाक्य संयुक्त वाक्य से पूरी तरह भिन्न होता है, क्योंकि मिश्र वाक्य में प्रथम वाक्यांश के बाद दूसरे की आकांक्षा बनी रहती है, जबकि संयुक्त वाक्य के प्रत्येक अंश में पृथक-पृथक आकांक्षा की पूर्ति हो जाती है। 

मिश्र वाक्य के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं-उसने कहा कि मैं जाऊँगा। भैंस भीग रही है, क्योंकि वर्षा हो रही है। अध्यापक मेहनत से पढ़ा रहे हैं, क्योंकि बच्चों की परीक्षा सन्निकट है।

3. शैली के आधार पर वाक्य के भेद

शैली का आशय यहाँ रचना-शैली से है। शैली के आधार पर वाक्य के तीन प्रकार बताये गये हैं।

i. शिथिल वाक्य-जब कोई लेखक अथवा वत्तफा बिना अलंकार का सहारा लिए किसी बात को सीधे-सादे ढंग से कहे तो उसे शिथिल वाक्य कहते हैं। यथा-’राम, सीता और लक्ष्मण जंगल में जा रहे थे। राम आगे, सीता बीच में तथा लक्ष्मण सबसे पीछे थे। कुछ दूर आगे जाने पर सीता को प्यास और थकान महसूस हुई। उन्होंने राम से पूछा-आप पर्णकुटी कहाँ बनायेंगे।

ii. समीकृत वाक्य-साम्य मूलक अथवा वैषम्यमूलक संगति के द्वारा वत्तफा जब अपने भावों को व्यत्तफ करता है, तब उसे समीकृत वाक्य कहते हैं। समीकृत वाक्य के उदाहरण हैं, ‘जैसा देश वैसा भेष’। ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ आदि। विषमीकृत वाक्य के उदाहरण हैं, ‘एक तो चोरी, दूसरे सीना जोरी’। ‘कहाँ राजा भोज कहाँ गंगु तेली’ आदि।

iii. आवर्तक वाक्य-श्रोता अथवा पाठक के मन में जिज्ञासा या उत्सुकता पैदा करने के बाद जो वाक्य वत्तफा अथवा लेखक द्वारा प्रयुक्त किये जाते हैं, उन्हें आवर्तक वाक्य कहते हैं। आवर्तक वाक्य का उदाहरण दीजिए।

4. क्रिया के आधार पर वाक्य के भेद 

क्रिया पद के आधार पर भी वाक्य दो प्रकार के होते हैं।

i. क्रियापद युक्त वाक्य-जिन वाक्यों में क्रिया का प्रयोग हुआ रहता है, वे क्रियापदयुत्तफ वाक्य कहलाते हैं। अधिकतर वाक्य क्रियापद युत्तफ ही होते हैं। यथा-राम ने रावण को मारा। सुकुल विद्यालय जाता है आदि।

ii. क्रियापद हीन वाक्य-यदि कोई क्रिया वाक्य के अभाव में भी सम्यक् अर्थ की अभिव्यक्ति दे, तो वह क्रियापद हीन वाक्य कहलाता है, यथा- प्रमोद-अरे कहाँ से? महेन्द्र-तुम्हारे यहाँ से। प्रमोद-कहो, क्यों, कैसे? महेन्द्र-वैसे ही। ‘आम के आम गुठलियों के दाम ‘मुहावरा भी इसके अन्तर्गत समझा जायेगा।

5. अर्थ के आधार पर वाक्य के भेद 

इस आधार पर वाक्य के नौ भेद किये जाते हैं, यथा-

  1. विधि वाक्य- वह पढ़ता है।
  2. निषेध वाक्य- वह नहीं पढ़ता है।
  3. आज्ञार्थक वाक्य- अब तुम पढ़ो।
  4. इच्छार्थक वाक्य- भगवान तुम्हें सकुशल रखें।
  5. सम्भावनार्थक वाक्य- शायद आज धूप निकले।
  6. संदेहार्थक वाक्य- मोहन आ रहा होगा।
  7. प्रश्नार्थक वाक्य- क्या तुम कल जाने वाले हो?
  8. संकेतार्थक वाक्य- वह मेरा पैसा दे देता तो मैं पुस्तक खरीदता।
  9. विस्मयादि बोधक वाक्य- अरे! अभी तुम यहीं हो।

वाक्य के अंश

वाक्य छोटा हो या बड़ा उसके दो ही अंग होते है - उद्देश्य और विधेय।  जिसके बारे में बात कही जाए, उसे “उद्देश्य” कहते हैं। उद्देश्य के बारे में जो कुछ कहा जाए उसे “विधेय” कहते हैं। 

“राम ने रावण को मारा” वाक्य में “राम” उद्देश्य और “रावण को मारा” विधेय है। उद्देश्य के रूप में संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया-विशेषण, क्रियार्थक-संज्ञा और वाक्यांश प्रयुक्त हो सकते हैं। 
  1. संज्ञा - घोड़ा एक बुद्धिमान पशु होता है। 
  2. सर्वनाम - मैं उनका ऋणी हूँ। विशेषण - विद्वान सदा पूजा जाता है। 
  3. क्रिया-विशेषण - वह तेज दौड़ता है। 
  4. क्रियार्थक-संज्ञा - पढ़ना ज्ञानवर्द्धन का सबसे बड़ा साधन है। 
वाक्यांश - भाग्य भरोसे बैठे रहना आलसियों का काम है।  भाव वाच्य में उद्देश्य प्राय: क्रिया में ही सम्मिलित रहता है। “मुझसे चला नहीं जाता”, “लड़के से बोलते नहीं बनता”, वाक्यों में “चलना” और “बोलना” उद्देश्य क्रिया ही के अर्थ में शामिल है।

वाक्य की संरचना

पदों के आधार पर हुई वाक्य की समस्त रचनाओं को गहन और बाह्य दो संरचना-भागों में विभक्त करते हैं। 
  1. वाक्य की गहन संरचना 
  2. वाक्य की बाह्य संरचना 
1. वाक्य की गहन संरचना - इसको अन्त: केन्द्रिक, अन्त: मुखी संरचना भी कहते हैं। अंग्रेजी में इसके लिए (Deep Structure) नाम भी चलता है। वाक्य के घटक शब्दों या अनुक्रमिक रूप से लघुत्तर घटकों में से किसी एक से समानाथ्री या निकट समानाथ्री होना गहन रचना है, अर्थात् जब किसी वाक्य का पद-समूह उतना ही काम करता है जितना कि वाक्य के एक या अधिक निकटस्थ अवयव करते हैं, तो उसे गहन (वाक्य) रचना कहेंगे। 

ऐसे वाक्यों का केन्द्र वाक्य के मध्य होता है; यथा - ‘‘यह फूल है’’ और ‘‘यह सुन्दर फूल है’’ दोनों वाक्य स्तर की दृष्टि से समान हैं। इस प्रकार ‘सुन्दर फूल’ के स्थान पर ‘फूल’ का प्रयोग हो सकता है, जिसे रचना केन्द्र मान सकते हैं। यहाँ ‘सुन्दर’ और ‘फूल’ दो पदों से बने पद-समूह का गठन मात्रा एक पद ‘फूल’ के समान है। 

अत: यह वाक्य गहन होगा।  गहन वाक्यों को दो भागों में विभक्त कर सकते हैं -
  1. आश्रित - जब किसी वाक्य में एक पद मुख्य (केन्द्र) हो और दूसरा पद किसी न किसी प्रकार उसकी विशेषता प्रकट करता हो; यथा-’’यह सुन्दर लता है’’, ‘‘वह बड़ा वृक्ष है।’’ इन वाक्यों में ‘लता’ और ‘वृक्ष’ केन्द्र हैं, उनके साथ प्रयुक्त पद ‘सुन्दर’ और ‘बड़ा’ विशेषण हैं, जिनसे वाक्य-केन्द्र की विशेषता प्रकट होती हैं। ऐसे वाक्यों का भाषा में विशेष महत्व है।
  2. समानाधिकरण - जब गहन वाक्यों में दो पद और, तथा, व आदि संयोजक शब्दों में से किसी एक से जुड़े हों तो योजक समानाधिकरण गहन रचना कहेंगे; यथा-’’फूल और फल लाए हो’’, ‘‘शेर और भालू भाग रहे हैं।’’
जब गहन वाक्य का एक पद दूसरे पद की व्याख्या करता है, तो उसे व्याख्यात्मक समानाधिकरण वाक्य कहेंगे; यथा - ‘‘वे देवराज प्रयाग गए हैं’’, ‘‘तुम देवाधिदेव इन्द्र की पूजा करो।’’ गहन वाक्यों को पदों की व्यवस्था के अनुसार निम्नलिखित वर्गों में विभक्त कर सकते हैं -
  1. विशेषण + संज्ञा श्वेत वस्त्रा, काली कलम।
  2. क्रिया विशेषण + क्रिया खूब दौड़े, खूब गाया।
  3. क्रिया विशेषण + विशेषण अति सुन्दर, बहुत अच्छा।
  4. संज्ञा + विशेषण उपवाक्य - पुष्प, जो खिल गया था। फल जो अधपका था।
  5. सर्वनाम + विशेषण उपवाक्य - वह, जो भागा जा रहा था।
  6. सर्वनाम + पूर्व सर्गात्मक वाक्यांश - वे नाव पर, वह छत पर।
  7. क्रिया + क्रिया विशेषण + उपवाक्य - जाओ, जहाँ कार खड़ी है। गया, जहाँ फूल खिले हैं।
  8. संज्ञा + संयोजक + संज्ञा - विजय और वेद जी हैं। प्रशांत और मयंक गए।
2. वाक्य की बाह्य संरचना - इसे बहिष्केन्द्रिक, बहिर्मुखी संरचना भी कहते हैं। वाक्य के घटक शब्दों या अनुक्रमिक रूप से लघुत्तर घटकों में से किसी एक से समानाथ्री या निकट समानाथ्री न हों, अर्थात् जब वाक्य का अंश अपने निकटतम अवयव के अनुरूप कार्य न कर सके तो बाह्य संरचना होती है; यथा- ‘‘कलम से लिखो’’ वाक्य में ‘कलम से’ कार्य न तो मात्रा ‘कलम से’ पूरा होता है और न ही ‘से’। यहाँ ‘कलम’ और ‘से’ दोनों का प्रयोग की अनिवार्यता अनुभव होती है। यदि इनमें से किसी एक को छोड़ दें, तो वाक्य अपूर्ण रहेगा। इस प्रकार यह कह सकते हैं कि ‘कलम’ और ‘स’ अत: यह बाह्य संरचना है। 

वाक्य परिवर्तन की दिशाएं

हिन्दी वाक्यों में परिवर्तन को मुख्यत: दो वर्गों में विभक्त करते हैं - 
  1. साधारण परिवर्तन, 
  2. साधारणीकृत परिवर्तन।
1. साधारण परिवर्तन- हिन्दी व्याकरण के नियमों के आधार पर निषेधात्मक, प्रश्नवाचक, विस्मयादिबोधक तथा वाच्यात्मक वाक्य रूपान्तरण इसके अन्तर्गत आते हैं। वाक्य परिवर्तन में अर्थ पूर्ववत् रहना चाहिए; यथा - 
  1. निषेधेधात्मक - वह अच्छा लड़का है - वह बुरा लड़का नहीं है। 
  2. प्रश्नवाचक - यहाँ सब की मौत होगी - यहाँ किसी की मौत नहीं होगी? 
  3. विस्मयादिबोधक - बहुत सुहाना मौसम है - क्या सुहाना मौसम है! 
  4. वाच्य - मैं पुस्तक पढ़ता हूँ। - मेरे द्वारा पुस्तक पढ़ी जाती है।
2. साधरणीकृत परिवर्तन- जब जटिल वाक्य को साधारण या सरल वाक्य में परिवर्तन करते हैं, तो साधारणीकृत परिवर्तन होता है। इस परिवर्तन में दोनों उपवाक्यों को एक कर एक ही क्रिया का प्रयोग करते हैं; यथा - 
  1. तुम्हारी जेब में कलम है। 
  2. कलम मेरी है।
  3. तुम्हारी जेब में मेरी कलम है। 
  4. बच्चा रो रहा है। बच्चा उठाओ। 
  5. रोते हुए बच्चे को उठाओ। 

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