विक्रय बजट क्या है विक्रय बजट बनाने के प्रमुख उद्देश्य?

कार्यानुसार बजट, वह बजट है जो किसी व्यवसाय के एक विशेष कार्य से सम्बन्धित होता है, जैसे उत्पादन बजट, विक्रय बजट आदि। कार्यानुसार बजट प्रत्येक कार्य के आधार पर तैयार किये जाते हैं। इसके पश्चात् सभी बजटों का समन्वय करके मास्टर बजट तैयार किया जाता है।

विक्रय बजट, बजट अवधि की कुल बिक्री की भविष्यवाणी या पूर्वानुमान है जो कि मात्र तथा/या मूल्यों में व्यक्त की जाती है। विक्रय बजट अधिकांश संस्थाओं में बजटरी नियन्त्रण का प्रारम्भिक बिन्दु (Commencement point) होता है। इसका कारण यह है कि बिक्री प्राय: मूल कारक होती है जो संस्था की अन्य सभी क्रियाओं को प्रभावित करती है। सम्भवत: बिक्री का पूर्वानुमान लगाना सबसे अधिक कठिन कार्य है, तो भी इस विक्रय बजट की शुद्धता पर संस्था की पूर्ण बजट पद्धति की सफलता निर्भर करती है। यह बजट, यह संकेत प्रदान करता है कि निश्चित अवधि में कौन-सी वस्तु या उत्पाद (product) कितनी मात्र में और किस मूल्य पर बेचा जायेगा।

विक्रय बजट का निर्माण 

इस बजट को तैयार करने का पूर्ण उत्तरदायित्व बिक्री विभाग के प्रबन्धक का होता है लेकिन उसके कार्य में बजट आफीसर, लेखा-पाल, विक्रेतागण, बाजार अनुसन्धान विशेषज्ञ आदि सहयोग प्रदान करते हैं। विक्रय प्रबन्धक इस बजट को तैयार करते समय महत्वपूर्ण बातों पर विचार करता है, जो अग्र प्रकार हैं :

1. विगत विक्रय ऑकड़े़ तथा प्रवित्तियाँ : विक्रय बजट बनाने वाले व्यक्ति को विगत विक्रय आँकड़ों के रेखाचित्र तथा सामान्य बिक्रय प्रवृत्ति के चित्र प्राप्त होने चाहिए। बिगत वर्ष की बिक्री के लेखे भावी विक्रय के विश्वसनीय आधार होते हैं क्योंकि विगत निष्पादन वास्तविक व्यवसायिक परिस्थितियों पर निर्भर करता है। लेकिन विगत विक्रय के साथ-साथ, अन्य घटक भी विक्रय पर प्रभाव डालते हैं जैसे मौसमी परिवर्तन, बाजार का विकास व्यवसाय चक्र आदि, अत: विक्रय बजट बनाने में उनको ध्यान में रखना चाहिए। 

2. विक्रय एजेन्टों का प्रतिवेदन : विक्रय एजेन्ट ग्राहकों के प्रत्यक्ष सम्पर्क में आते हैं जिनके कारण वे ग्राहकों की रुचि, आदत एवं प्रतियोगिता द्वारा विज्ञापन के तरीके, भावी विक्रय प्रवृत्ति आदि बातों के बारे में जानकारी रखते हैं। इस प्रकार वे विक्रय प्रबन्धक को पर्याप्त सामग्री प्रदान करते हैं। 

3. सम्भावित बाजार का विश्लेषण : वस्तु की माँग का सम्भावित बाजार ज्ञात करने के लिए बाजार अनुसन्धान किये जाने चाहिए। इससे उपभोक्ता की क्रयशक्ति, आदत, प्रतिस्पर्द्धा की सम्भावनाएँ, वस्तु का डिजाइन, कितना मूल्य वसूल किया जाये, आदि की जानकारी हो जाती है। 

4. व्यापारिक सम्भवनाएँ : व्यापारिक सम्भावनाओं की जानकारी राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं से ज्ञात होती है। राजनैतिक या आर्थिक परिस्थितियों में होने वाले परिवर्तनों का विक्रय पर प्रभाव पड़ता है, जैसे सरकार सार्वजनिक विकास पर अधिक धन व्यय करे या वस्तुओं पर नये कर लगाये, तो बिक्री प्रभावित होगी। 

5. संस्था की नीति : व्यापारिक संस्था की नीति तथा तरीकों में यदि कोर्इ परिवर्तन किया जाये, जैसे कोर्इ नया उत्पाद निर्माण करे, या विज्ञापन करने के नये तरीकों का उपयोग, वितरण प्रणाली में सुधार आदि तो, विक्रय बजट प्रभावित होगा। 

6. विशेष परिस्थितियाँ : कभी-कभी किसी व्यवसाय की बिक्री विशेष परिस्थितियों से प्रभावित हो सकती है, जैसे किसी औद्योगिक नगर का विकास हाने से वाहनों (कार, स्कूटर, साइकिल आदि) की मांग अधिक होगी; अत: इनसे सम्बन्धित व्यवसायों की बिक्री प्रभावित होगी। 

7. संयन्त्र क्षमता : संयन्त्र क्षमता के उचित प्रयोग को सुनिश्चित करने का प्रयास चाहिए। विक्रय बजट कारखाने में सन्तुलित उत्पादन की सुविधा प्रदान करता है। 

8. वित्तीय क्षमता : संस्था की वित्तीय क्षमता की सीमा का ध्यान रखते हुए विक्रय बजट तैयार करना चाहिये। 

9. प्रतियोगिता - बिक्रय बजट बनाने में उद्योग में विद्यमान प्रतियोगिता का अभाव तथा मात्र को ध्यान में रखना चाहिए ताकि प्रतिस्पर्द्धा के होते हुए भी एक वास्तविक विक्रय बजट बनाया जा सके। विक्रय प्रबन्धक को इन सभी तत्वों को ध्यान में रखकर मात्र तथा मूल्य के रूप में विक्रय बजट बनाना चाहिए तथा उत्पादों, अवधियों तथा क्षेत्रों हेतु विक्रय अनुमानों का विश्लेषण करना चाहिए। विक्रय बजट में कुल विक्रय राशि के अनुमान के अतिरिक्त विक्रय तथा वितरण व्ययों के अनुमान को भी शामिल करना चाहिए।

10. कच्ची सामग्री तथा अन्य पूर्तियों की उपलब्धता - विक्रय अनुमानों से पूर्व सामग्री तथा अन्य पूर्तियों की समुचित उपलब्धता के प्रति आवश्वस्त होना आवश्यक है। अगर कच्ची सामग्री का अभाव हो तो विक्रय अनुमानों को सामग्री की उपलब्धता के अनुरूप व्यवस्थित करना होगा। 

11. सामान्य व्यापारिक सम्भावनाऐं : विक्रय के कम या ज्यादा होने की बात बहुत कुछ सामान्य व्यापारिक संभावनाओं पर अश्रित हो। इस संदर्भ में Economics Times, The Financial Express, Commerce आदि पत्रिकाओं तथा समाचार पत्रों के माध्यम से उपलब्ध उपयोगी सूचनाऐं एकत्र की जा सकती है। 

12. हस्तगत आर्डर्स (Orders of hand) : व्यापारिक तेजीकाल में तथा जब उत्पादन प्रक्रिया काफी लम्बी हो, तो हाथ में विद्यमान आदेशों की मात्र बजट अवधि में बिक्री का अनुमान लगाने में काफी सहायक सिद्ध होती है। 

13. मौसमी उतार चढ़ा़व : विक्रय की रचना में, मौसमी उतार चढ़ाव विचारणीय है क्योंकि इन परिवर्तनों से बिक्री प्रभावित होती है। उत्पादन के प्रवाह हेतु प्रयास यही रखना चाहिये कि बिक्री पर मौसमी उतार चढ़ावों का प्रभाव कम से कम रहे ऐसा गैर मौसमी विशेष छूट या अन्य आकर्षण प्रदान करके संभव हो पाता है।

विक्रय बजट बनाने का उद्देश्य

विक्रय बजट बनाने का प्रमुख उद्देश्य संस्था के अन्य विभागों से सम्बन्ध व समन्वय स्थापित करना होता है। संस्था के अन्य विभागो का विक्रय विभाग से सम्बन्ध होने के कारण इस विभाग की क्रियाओं को इस प्रकार संचालित एवं समन्वित किया जाता है कि संस्था के विस्तृत उद्देश्यों की पूर्ति हो सके तथा लागतों पर प्रभावकारी नियन्त्रण स्थापित हो सके। विक्रय बजट बनाने के प्रमुख उद्देश्य हैं :

1. भविष्य के लिए नियोजन (Planning for Future) : वर्तमान युग नियोजन का युग है। प्रत्यक उत्पादक अपने उत्पादन का विक्रय होने की अपेक्षा रखता है ताकि उसे समुचित लाभ की प्राप्ति हो सके जिससे संस्था का विकास एवं विस्तार संभव होता है। अत: व्यवसाय के प्रबन्धक विक्रय बजट बनाकर उसमें ऐसा नियोजन करते हैं कि उन्हें विक्रय सम्बन्धी लक्ष्यों की प्राप्ति हो सके। इस नियोजन में विक्रय लक्ष्यों को निर्धारित करके उन्हें प्राप्त करने की विधियों तथा तकनीकों के प्रयोग सम्बन्धी योजना तैयार की जाती है। 

2. विक्रेताओं की दिशा निर्देश (Guidance for Salesman) : विक्रय बजटों का दूसरा उद्देश्य यह होता है कि विक्रेताओं को ऐसे दिशा निर्देश दिये जाएँ जिनसे उन्हें अपनी लक्ष्य प्राप्ति में कोर्इ बाधा न आए और उनका कार्य निर्बाध गति से चलता रहे। इसमें उन्हें यह बताया जाता कि उन्हें क्या करना है? तथा कैसे करना है? तथा किसे करना है? 

3. नीति निर्धारण करने में सहायता (To help in Policy Formation) : विक्रय बजट निर्मित होने से प्रबन्धकों को विक्रय नीति निर्धारण में भी सहायता प्राप्त होती है। 

4. व्यय पर नियन्त्रण (Control on expenses) : विक्रय बजट द्वारा विक्रय तथा विज्ञापन पर होने वाले व्ययों को नियन्त्रित किया जाता हे। इसमें प्रावधान किया जाता है कि विक्रय तथा विज्ञापन पर कितना व्यय किया जा सकता है। इसके साथ-साथ विक्रय व्ययों पर नियन्त्रण करने के लिए नियम भी तय किए जाते हैं। 

5. मितव्ययता लाना (To be economical) - वास्तविक व्यय सम्बन्धी सभंकों की तुलना बजट के अनुमानित सभंको से करने पर व्यवसायी की तुरन्त पता लग जाता है कि कहाँ पर आवश्यकता से अधिक व्यय हुए हैं तथा कहाँ पर आवश्यक व्यय नहीं हुआ। इसके निष्कर्षों के आधार पर दिशा निर्देश जारी करके मित्तव्ययता बरतने पर बल दिया जाता है।

6. धन की आवश्यकता का पता लगाना (To know the requirment ofFinancial resources) : विक्रय बजट बनाने से प्रबन्धकों को विक्रय के लिए कितने धन की आवश्यकता होगी ? उसका पता चल जाता है जिसके लिए आवश्यक प्रबन्ध व्यवस्था की जा सकती है। 

7. कुशलता व अकुशलता का ज्ञान (To know the position of efficiency or inefficeincy) : विक्रय बजट में लक्ष्य निर्धारित होने से यह पता किया जा सकता है कि कौन से विक्रेता अपना कार्य कुशलता पूर्वक कर रहे हैं तथा कौन से नहीं।

8. सुधारात्मक कार्यवाही (Remedial Actions) : विक्रयकर्ताओं के कार्यों में कमी रहने पर प्रबन्धकों द्वारा सुधारात्मक उपाय किए जा सकते हैं ताकि भविष्य में उनकी पुनरावृति न हो। विक्रय बजटों से क्षेत्रवार कमियाँ ज्ञात हो जाती हैं जिन्हें दूर करने के उपाय किए जाते हैं। 

9. प्रशासन में सहायता (Help in Administration) : बजट प्रशासन की आंखे हैं। इसके द्वारा वे विक्रय पर हमेशा दृष्टि रखते हैं तथा प्रशासन सुचारु से चलाने में बजट सदा सहायक होते हैं।

प्रभावकारी बजटिंग की आवश्यक तत्त्व

  1. विक्रय बजट कार्यक्रम का उच्चस्तरीय प्रबन्ध द्वारा समर्थन होना चाहिए। 
  2. विक्रय बजट निर्माण में कुशल व्यक्तियों के सहयोग की आवश्यकता होती हैं। 
  3. बजट सम्बन्धी व्यावसायिक नीति निश्चित तथा स्पष्ट होनी चाहिये। 
  4. बजट प्रस्ताव वास्तविकता के सन्निकट होना चाहिए। 
  5. बजट निर्माण में क्रमबद्धता होनी चाहिए। 
  6. बजट के लिए भूतकाल के आंकड़ों का समावेश आवश्यक है। 
  7. बजटिंग पद्धति मित्तव्ययी हो।

विक्रय बजटों के लाभ

विक्रय बजट प्रबन्ध को नियोजन, समन्वय तथा नियन्त्रण सम्बन्धी क्रियाओं में सहयोग प्रदान करना प्रमुख उद्देश्य होता है। इसके द्वारा ऋणात्मक विचलनों को रोका जा सकता हैं तथा भावी क्रिया कलापों में पूर्ण सहयोग प्रदान करता है। अत: विक्रय बजट विक्रय प्रबन्धकों के लिए पथ प्रदर्शक एवं उपकरण के रूप में कार्य करता है। इसके लाभ है -

1. सुव्यवस्थित नियोजन (Well Arranged Planning) : विक्रय बजट विक्रय सम्बन्धी अनिश्चिताओं को निश्चितता में परिवर्तित करता है। इससे प्रबन्ध को व्यय तथा वित्त प्राप्त करने की सुव्यवस्थित दीर्घकालीन व अल्पकालीन योजनाएँ प्राप्त होती है। 

2. क्रियाओं में समन्वय एवं सहयोग (Coordinationa & Cooperation among Activities) : विक्रय बजट के निर्माण में सम्बन्धित विभागों को सहयोग करना पड़ता है। अत: उनमें परस्पर सहयोग और समन्वय की भावना विकसित होती है।

3. कुशलता एवं मित्तव्ययता (Efficiency & Economy) : बजट निर्मित होने से वास्तविक आंकड़ो की तुलना अनुमानित आंकड़ों से संभव होती है। इससे विपरीत विचलन प्राप्त होने पर मित्तव्ययता तथा कुशलता बरतने की सलाह दी जाती है। 

4. लागत नियन्त्रण (Cost Control) : विक्रय बजट के परिणामों के आधार पर प्रबन्धक लागतों को नियन्त्रित करने के दिशा निर्देश जारी कर सकते हैं। 

5. कर्मचारी मूल्यांकन में सहायक (Helpful inevaluating the performance of employees) : बजट नियन्त्रण द्वारा विभिन्न कर्मचारियों एवं अधिकारियों को अपने-अपने कार्यों मं सफलता एवं असफलताओं का मूल्यांकन करना सम्भव होता है जिसके आधार पर इनको पदों पर पदारूढ़ करना सम्भव होता है।

6. वित्तव्यवस्था : इसके द्वारा समय से पूर्व ही निश्चित हो जाता है कि संस्था को किस समय और कितनी धन-राशि की आवश्यकता होगी। 

7. साधनोंं का श्रेष्ठतम उपयोग (Best use of resources) : विक्रय बजट बन जाने से उपलब्ध साधनों का सही स्थान पर सही तरीके से उपयोग संभव होता है। 

8. विक्रय लक्ष्यों का निर्धारण (Fixation of Sales Targets) : विक्रय बजटों के अन्र्तगत विक्रेताओं के विक्रय लक्ष्य निर्धारित हो जाते हैं जिनका ज्ञान होने से विक्रेता अपने विक्रय क्षेत्रों में जाकर लग्न तथा परिश्रम के आधार पर पूरा करने का प्रयत्न करते हैं। 

9. सुधारात्मक उपाय संभव (Remedial Actions Possible) : जब तक किसी कार्य सम्बन्धी कमियों का ज्ञान नहीं हागा उनके सुधार संभव नहीं होते है। अत: विक्रय बजट कार्यों में रहने वाली कमियों को इंगित करके उनमें सुधारात्मक कार्यवाही को संभव बनाते हैं।

विक्रय बजटों की सीमाएँ

  1. विक्रय बजट अनुमानों पर आधारित हाते हैं। 
  2. ‘परिवर्तन न चाहने’ के कारण कर्मचारियों द्वारा विरोध। 
  3. विक्रय बजट मात्र के बन जाने से लक्ष्यों की पूर्ति नहीं। 
  4. विक्रय बजट विक्रय की लागत बढ़ाते हैं। 
  5. बजटों में आंशिक शुद्धता ही पायी जाती है।

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