विक्रय प्रबंध का अर्थ, परिभाषा, तत्व या विशेषताएँ या लक्षण

विक्रय प्रबंध का अर्थ प्रारम्भ में, ‘विक्रय-प्रबंध’ का अर्थ विक्रेतओं के निर्देशन अथवा पर्यावेक्षण’ से लगाया जाता था। किन्तु बाद में विक्रय-प्रबंध में प्रबंध के अन्य पहलु भी शामिल किये जाने लगे तथा 20वीं सर्दी में प्रबंध का अर्थ अत्यंत रूप से व्यापाक हो गया जिसमें विज्ञापन, विपणन, अनुसंधान, विक्रय-संवर्धन, कीमत निर्धारण, भौतिक वितरण उत्पादन नियोजन को भी विक्रय-प्रबंध में शामिल किया जाने लगा। विक्रय-प्रबंध में विक्रय शक्ति के प्रबंध (Sales Force Management) के साथ-साथ अन्य महत्त्वपूर्ण विपणन क्रियाओं के प्रबंध का भी समावेश होता है।

विक्रय प्रबंध की परिभाषा

रैचमैन एवं रोमेनो (Rachman & Romano) के अनुसार, ‘‘विक्रम-प्रबंध में विक्रेताओं की भर्ती, चयन एवं प्रशिक्षण, कार्य पर उनका पर्यवेक्षण व अभिप्रेरण तथा उनके कार्य निष्पादन का मूल्यांकन शामिल है।’’

अमेरिकन मार्केर्टिंग एसोसिएशन के अनुसार ‘‘विक्रम-प्रबंध से आशय किसी व्यावसायिक इकार्इ की उन व्यक्तिगत विक्रय-क्रियाओं के नियोजन, निर्देशन तथा नियंत्रण से है। जिनमें विक्रय शक्ति की भर्ती, चयन, प्रशिक्षण, साज-सज्जा, कार्य-वितरण, मार्ग-निर्धारण, पर्यवेक्षण, पारितोषण एवं अभिप्रेरण शामिल है।’’
उपरोक्त परिभाषाओं से यह निष्कर्ष निकलता है कि विक्रय प्रबंध प्रमुख रूप से विक्रय शक्ति तथा विक्रय करने का प्रबंध है। यह सामान्य प्रबंध काा वह हिस्सा है जिसका संबंध विक्रय के नियोजन, संघटन, अभिप्रेरण तथा नियंत्रण से है। इसके क्षेत्र में विक्रेताओं की भर्ती, चुनाव, प्रशिक्षण, कार्य का निर्धारण, पारिश्रमिक भुगतान, निरीक्षण, नियंत्रण आदि कार्य भी शमिल होते हैं।

विक्रय प्रबंध के तत्व या विशेषताएँ या लक्षण

1. व्यवसाय का महत्त्वपूर्ण कार्य (Important Function of Business) - किसी व्यवसाय की प्रगति तथाा विस्तार प्रमुख रूप से उसके उत्पादक की बिक्री पर निर्भर करता है। यदि व्यवसाय में उत्पाद की अधिकतम बिक्री होती है तो उसे लाभ की प्राप्ति होगी जिससे व्यवसाय उन्नत होता है तथा उसका विस्तार संभव होता है। अत: विक्रय सम्बन्धी नियाओं तथा उनसे सम्बन्धित विक्रय कर्मचारियों के प्रबन्ध के कार्य को विक्रय द्वारा ही किया जाता है।

2. नियोजन परामर्श तथा कार्यकारी दायित्व (Consultancy Service & Executive Responsibility) - विक्रय प्रबन्ध द्वारा कार्यकारी दायित्वों को निभाने के साथ-साथ विऋय नियोजन तथा विपणन नियोजन में उच्च प्रबन्धकों को परामर्श दिया जाता है। कार्यकारी दायित्वों को निभाकर ‘रेखीय दायित्त्व (Lines Responsibility) को पूरा किया जाता है जबकि नियोजन में परामर्श देकर ‘कर्मचारियों के नियोजन’ (Staff Responsibility) सम्बन्धी दायित्व को भी विक्रय प्रबन्ध द्वारा निभाया जाता है।

3. विक्रय शक्ति का प्रबंधन (Management of Sales Force) - विक्रय प्रबन्ध द्वारा कर्मचारियों की भर्ती, उनका चयन, प्रशिक्षण, काम सौंपना, मार्ग-निर्धारण, पर्यवेक्षण, पारितोषण, कार्य निष्पादन का मूल्यांकन एवं अभिप्रेरित करने सम्बन्धी कार्य किये जाते हैं। इसके द्वारा इन कार्यों का नियोजन, संगठन एवं नियन्त्रण संबंधी कार्यों को सम्पन्न किया जाता है।

4. उद्देश्य (Object) - विक्रय प्रबन्ध के उद्देश्य अधिकतम विक्रय करे, लाभों में पर्यापत योगदान देकर व्यावसायिक संस्था में विकास एवं विस्तार की सम्भावनाओं को बढ़ाना है। ये उद्देश्य विक्रय का उचित रूप से प्रबन्ध करके ही प्राप्त किये जा सकते हैं।

5. विक्रय प्रबंध विपणन प्रबंधक का भाग है (Sales Management is the part of Marketing Management)- विक्रय प्रबन्ध विपणन प्रबंध का एक महत्त्वपूर्ण भाग है। इसका सम्बन्ध संस्था की वस्तुओं व सेवाओं का विक्रय करने वाली ‘कर्मचारी शक्ति’ का संगठन एवं प्रबन्ध से है।

विक्रय प्रबंध की आवश्यकता तथा महत्व

प्रत्येक व्यावसायिक संस्था की सफलता व विफलता भी वस्तुओं के विक्रय पर निर्भर करती है। अत: विक्रय प्रबन्ध न केवल व्यावसायिक संस्थाओं के लिए ही महत्त्वपूर्ण है बल्कि इससे उत्पन्न प्रभावों से समाज, राष्ट्र तथा ग्राहकों को भी लाभ प्राप्त होता है। संक्षेप में, निम्नलिखित लाभों से विक्रय प्रबन्ध का महत्व स्पष्ट होता है :

1. विक्रय-शक्ति को कुशल निर्देर्शन की आवश्यकता (Need of efficient directing for Sales Force) - विक्रय-शक्ति प्रत्येक व्यावसायिक संस्था की सबसे महत्त्वपूर्ण शक्ति होती है जो विक्रय के कुशलतम प्रबन्धन द्वारा विकसित एवं सृजित होती है। अत: विक्रय प्रबन्धन विक्रय शक्ति का प्रभावी उपयोग व कुशल निर्देशन करके उनकी उपयोगिता में वृद्धि करता है। विक्रय प्रबन्धक विक्रेताओं को वित्तीय तथा अवित्तीय प्रेरणाएँ उचित नेतृत्व, कुशल निर्देशन तथा कुशल पर्यवेक्षण प्रदान करके उद्देश्य प्राप्ति के लिए प्रेरित करता है।

2. संस्था के उद्देश्यों की प्रा्रा्राप्ति में सहायक (Helpful in Obtaining Objectives of the Institution) - प्रत्येक व्यवसाय लाभ, विकास व विस्तार के लक्ष्यों को सामने रखकर चलता है जिनको विक्रस क्रियाओं व कर्मचारियों के कुशल प्रबन्ध द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। अत: प्रत्येक व्यावसायिक संस्था की सफलता का सम्बन्ध उसके विक्रय एवं विक्रय कर्मचारियों के कुशल प्रबन्धन पर निर्भर करता है।

3. सामाजिक तथा व्यावसायिक लक्ष्यों में सन्तुलन (Balance among Social and Business Objectives) - व्यावसायिक संस्था तथा समाज का आपस में गहरा सम्बन्ध है क्योंकि वस्तु का उपभोक्ता समाज का ही हिस्सा है। अत: व्यवसाय को अपने लाभ प्राप्ति के उद्देश्य एवं लक्ष्यों के साथ-साथ समाज की भावनाओं, आवश्यकताओं आदि को भी ध्यान में रखना आवश्यक है। व्यवसाय के विक्रय विभाग को संस्था के लाभों में वृद्धि के साथ-साथ ग्राहक व समाज को उत्पादक द्वारा अधिकतम सन्तुष्टि प्रदान करके सामाजिक लक्ष्य की भी पूर्ति करनी आवश्यक है। अत: विक्रय प्रबन्धन के द्वारा व्यावसायिक तथा सामाजिक लक्ष्यों में सन्तुलन स्थापित करने में भी भूमिका निभानी होती है।

4. ग्राहकों की सन्तुष्टि (Customer.s Satisfaction) - विक्रय प्रबन्ध ग्राहकों की क्रय-समस्याओं, शिकायतें आदि का समाधान करके, उन्हें सही मूल्य पर वस्तु उपलब्ध कराने की व्यवस्था करता है। इन श्रेष्ठ सेवाओं तथा श्रेष्ठ उत्पादों का प्रयोग करने से ग्राहकों को अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त होती है जिससे उत्पाद में विश्वसनीयता जागृत होती है तथा क्रेता स्थायित्व को बल मिलता है।

5. विक्रय संगठन का निर्माण (Creation of Sales Organisation) - संस्था के विक्रय विभाग को एक मजबूत संगठन संरचना की आवश्यकता होती है जिसका निर्माण विक्रय प्रबन्ध द्वारा ही किया जाता है। इसके द्वारा कर्मचारियों में कार्यों तथा दायित्वों का इस ढंग से बँटवारा किया जाता है कि वे संस्था के विक्रय लक्ष्यों की प्राप्ति में अधिकतम योगदान दे सकें।

6. प्रतिस्पर्द्धात्मक स्थिति में सहायक (Helpful in facing the competition) - आधुनिक विक्रय में कड़ी प्रतिस्पर्द्धा पार्इ जाती है। ऐसी स्थिति में सफलता पाने के लिये कुशल व योग्य विक्रेताओं की आवश्यकता होती है। अत: विक्रय प्रबन्ध की सहायता से योग्य एवं कुशल विक्रेता उपलब्ध होते हैं जो प्रभावी विक्रय व्यूही-रचना करके प्रतिस्पर्द्धात्मक स्थिति में प्रतिस्पिर्द्धयों को पछाड़ने में सफल होते हैं।

7. सृदृढ़ नियोजन (Strong Planning) - व्यावसायिक विक्रय प्रबन्ध द्वारा उपलब्ध सूचनाओं तथा आंकड़ों के आधार पर व्यवसाय के लिए समग्र योजना का निर्माण किया जाता है। ये सृदृढ़ योजनाएँ ठोस निर्णयों व लाभदायक नीतियों के निर्माण में सहयोगी बनती हैं। इन ठोस योजनाओं के निर्माण के लिए आवश्यक सूचनाएँ तथा तथ्य जिनका सम्बन्ध बाजार, उत्पाद, लाभ संभावना, प्रतिस्पर्द्धा आदि से होता है, विक्रय प्रबन्ध द्वारा ही उपलब्ध करार्इ जाती हैं।

8. समन्वयक (Co-ordinator) - विक्रय प्रबन्ध द्वारा संस्था द्वारा निर्मित उत्पाद, नियोजन, वितरण श्रृंखलाओ, कीमत प्रवर्तन तथा विक्रय कार्यक्रम आदि तत्त्वों के बीच एक अच्छे समन्वय की स्थापना करनी होती है क्योंकि विपणन कार्यक्रम की सफलता इन तत्त्वों के समन्वय पर ही निर्भर करती है। अत: इन तत्त्वों को समन्वित करने में विक्रय प्रबन्ध को एक समन्वयक की भूमिका अदा करनी होती है।

9. व्यवसाय का विस्तार (Expansion of Business) - अच्छी प्रबन्ध व्यवस्था से विक्रय मात्र तथा लाभों में वृद्धि होने से अच्छी बचतें होती हैं जिनके विनियोजन से व्यवसाय का विस्तार सम्भव होता है। ;10द्ध अधिक लाभ (More Profit) - अच्छी विक्रय प्रबन्ध व्यवस्था से अधिक विक्रय होता है जिस पर अधिक लाभ की प्राप्ति होती हैं।

विक्रय प्रबंध के कार्य

विक्रय प्रबन्ध द्वारा दो प्रकार के कार्य सम्पन्न किये जाते हैं। इनका प्रथम कार्य विक्रय नियोजन से सम्बन्ध रखता है तथा दूसरे का सम्बन्ध कार्यवाही से होता है। विक्रय प्रबन्ध के कार्यों को प्रमुख रूप से तीन भागों में विभाजित किया जाता सकता है :
  1. सामान्य प्रबन्ध तथा प्रशासन सम्बन्धी कार्य
  2. विक्रय शक्ति के प्रबन्धन सम्बन्धी कार्य
  3. अन्य कार्य
1. सामान्य प्रबंध कीय तथा प्रशासनीय कार्य प्रबन्धक के इन कार्यों का सम्बन्ध संस्था की सामान्य प्रबन्ध व्यवस्था तथा प्रशासन से होता है जो निम्न हो सकते हैं
  1. विक्रय की शर्तों तथा विक्रय नीति का निर्धारत : विक्रय प्रबन्ध द्वारा, बाजार की दशाओं, प्रतिस्पर्द्धा की स्थिति तथा भावी विकास की सम्भावनाओं को ध्यान में रखकर विक्रय की शर्तों तथा विक्रय-नीति का निर्माण किया जाता है। विक्रय की शर्तों का सम्बन्ध मूल्य भुगतान, मालबापसी, साख अवधि, बट्टा कटौती आदि से होता है।
  2. विक्रय लक्ष्यों का निर्धारण (Determination of Sales Targets) : विक्रय प्रबन्ध या प्रबन्धक विक्रय लक्ष्यों को निर्धारित करके ही विक्रय योजना को निर्मित करता है। इसका मूल लक्ष्य विक्रय में वृद्धि करना होता है किन्तु बाजार भाग, विक्रय संवर्द्धन तथ विक्रय मात्र आदि सहायक विक्रय लक्ष्य भी साथ-साथ तय किये जाते हैं।
  3. विक्रय बजट का निर्माण (Determination of Sales Budget) : विक्रय प्रबन्ध का यह भी दायित्व है कि वह विक्रय सम्बन्धी बजट की भी निर्माण करें। इसमें विक्रय कार्यों तथा विक्रय शक्ति के प्रबन्ध पर होने वाले व्यय की राशि का पूर्व-निर्धारण किया जाता है ताकि विक्रय सम्बन्धी कार्यों के सुचारु रूप से संचालन में कोर्इ कठिनार्इ न आये।
  4. विक्रय नियन्त्रण (Sales Control) : विक्रय प्रबन्ध द्वारा विक्रय सम्बन्धी क्रियाओं तथा विक्रेताओं पर प्रभावी नियन्त्रण स्थापित करने का भी कार्य किया जाता है। इसके अन्तर्गत विक्रय व्यय, विक्रय लागत, विक्रय मात्र, विक्रेताओं की क्रियाओं आदि की भी देखरेख की जाती है।
  5. विक्रय सम्बन्धी योजनाओं का निर्माण (Preparation of Sales Plan) : विक्रय प्रबन्ध संस्था द्वारा निर्मित उत्पादों व सेवाओं की बिक्री के सम्बन्ध में एक समग्र योजना का निर्माण करता है। इसके अन्तर्गत उत्पादों की कीमत, उनके विक्रय क्षेत्र, विक्रयकर्त्ताओं की आवश्यकता व आवश्यक विक्रय प्रसार के साधनों का निर्धारण करके समुचित योजना तैयार की जाती है।
  6. अभिप्रेरणा (Motivation) : विक्रय प्रबन्ध द्वारा अपने यहाँ कार्य करने वाले कर्मचारियों को अभिप्रेरित करने के लिए महत्त्वपूर्ण निर्णय लिए जाते हैं। इससे इन कर्मचारियों का मनोबल ऊँचा रहता है तथा वे कार्य में अधिक रुचि लेते हैं। कर्मचारियों को विक्रय प्रबन्ध द्वारा वित्तीय तथा अवित्तीय दोनों प्रकार की प्रेरणाएँ देकर अभिप्रेरित किया जाता है।
2. विक्रय शक्ति प्रबंध न सम्बन्धी कार्य - विक्रय शक्ति प्रबन्धन का कार्य अत्यनत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि विक्रय विभाग में कार्यरत कर्मचारी ही वास्तव में विक्रय के कार्य को गति प्रदान करते हैं। अत: विक्रय प्रबन्ध को अपने कर्मचारियों व विक्रेताओं के सम्बन्ध में निम्न कार्यों को करना पड़ता है :
  1. विक्रेताओं की भर्ती (Recruitment of Salesman) : विक्रय विभाग के कार्यों को समुचित ढंग से चलाने के लिए योग्य, कुशल तथा अनुभवी विक्रेताओं की आवश्यकता होती है। अत: इनकी भर्ती के सम्बन्ध में विक्रय विभाग कार्य विश्लेषण एवं कार्य विशिष्ट विवरण तैयार करता है, वर्तमान विक्रेताओं का पुनरावलोकन करके भर्ती के स्रोतों का निर्धारण करता है।
  2. प्रशिक्षण (Training) : विक्रेताओं का चुनाव कर लेने के बाद उन्हें संस्था की नीतियों, विक्रय विधियों, ग्राहक व्यवहार, विक्रय प्रक्रिया आदि से अवगत कराने के लिए उनकी प्रशिक्षण की व्यवस्था भी विक्रय प्रबन्ध द्वारा की जाती है।
  3. मार्ग निर्धारण (Routing) : विक्रय प्रबन्ध द्वारा विक्रेताओं के विक्रय कार्य निर्धारित किये जाते हैं तथा उनके क्षेत्रों काभी निर्धारण किया जाता है। इनके निश्चित हो ने से कार्यों में दोहराव नहीं आता, विक्रेता समय से अपने कार्य क्षेत्रों में पहुँच जाते हैं तथा उन पर नियन्त्रण में सुविधा रहती है।
  4. पर्यवेक्षण (Supervising) : विक्रेताओं के कार्य के निरीक्षण का कार्य विक्रय प्रबन्ध करता हैं इससे यह ज्ञात हो सकता है कि विक्रय कार्य निर्धारित लक्ष्यों, नीतियों व विक्रय कोटे के अनुसार चल रहा है या नहीं इसके लिए पत्र व्यवहार, प्रतिवेदन, व्यक्तिगत निरीक्षण आदि विधियों का प्रयोग किया जाता है।
  5. निर्देेर्शन (Directing) : उचित निर्देशन द्वारा विक्रय शक्ति का मनोबल बढ़ता है तथा विक्रय कर्मचारियों के प्रयास लक्ष्य की ओर प्रवृत होते हैं। अत: उचित निर्देशन एवं नियन्त्रण भी प्रबन्ध का एक महत्त्वपूर्ण कार्य है। 
  6. सम्प्रेषण व्यवस्था (Communicating) : विक्रय प्रबन्ध के द्वारा एक सुदृढ़ संचार व्यवस्था को भी निर्मित किया जाता है ताकि अनुभागों, विक्रयकर्त्ताओं, विक्रय निरीक्षकों तथा उच्चाधिकारियों के साथ संवाद किये जा सकें तथा आवश्यक सूचनाएँ इधर से उधर बिना किसी बाधा के संप्रेषित की जा सके।
  7. चयन एवं नियुुक्ति (Selection and Appointment) : विक्रय प्रबन्ध के अन्तर्गत विक्रय प्रबन्धक चयन योग्यता के मापदण्ड तय करता है, चयन करने की कार्यपद्धति, शैक्षिणक योग्यता, तकनीकी ज्ञान आदि के स्तर का निर्धारण करता है, कर्मचारियों के साक्षात्कार तथा विभिन्न परीक्षणों का आयोजन करके प्राथ्र्ाी की उपयुक्तता का निर्धारण करता है। रोज़गार की शर्तें आदि निर्धारित करके चयनित प्रार्थियों के नियुक्ति पत्र देता है।
  8. निष्पादन एवं मूल्यांकन (Evaluating Performance) : विक्रय प्रबन्धक विक्रेताओं के कार्यों का उचित रूप से निष्पादन का मूल्यांकन भी करताहै जिससे कार्य प्रगति, त्रुटियों, कठिनाइयों, सफलताओं तथा असफलताओं का ज्ञान होता है। इसके लिए प्रमाप निर्धारित किये जाते हैं, उनका मापन करके निष्पादन मूल्यांकन किया जता है, कमी पाये जाने पर सुधारात्मक उपाय किये जाते हैं।
  9. आन्तरिक तथा बाह्य सम्बन्ध (Establishing Internal and External Relations) : विक्रय लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए विक्रय प्रबंधकों को आन्तरिक तथा बाह्य संबंधों को बनाए रखना आवश्यक होता है। अत: इनके द्वारा इन संबंधों की स्थापना संबंधी कार्य भी किये जाते हैं।
  10. विक्रय कोटा निर्धारण (Fixing the Sales Quota) : विक्रय प्रबन्धक प्रत्येक विक्रेता के लिए विक्रय कोटा निर्धारित करता है ताकि विक्रेताओं का कार्य निष्पादन नियन्त्रित हो सके। इस कोटे का समय साप्ताहिक, मासिक, त्रैमासिक या वार्षिक हो सकता है।
3. अन्य कार्य
  1. आर्थिक स्थिति की जानकारी लेना (To know about theEconomic Conditions of Customers) : विक्रय प्रबन्ध द्वारा विक्रेताओं के माध्यम से ग्राहकों की आर्थिक स्थिति तथा उनकी उधार भुगतान क्षमता सम्बन्धी जानकारी प्राप्त की जाती है जिसके आधार पर साख नीति के सम्बन्ध में उपयुक्त निर्णय लिये जा सकते हैं। इनको गोपनीय रखा जाता है तथा ग्रहकों के हितों के विपरीत दुरुपयोग किया जाता है।
  2. विक्रय अनुुसन्धान एवं शोध (Sales Investigation and Resarch) : श्रेष्ठ विक्रय योजनाओं को निर्मित करने के लिए विक्रय अनुसन्धान एवं शोध की आवश्यकता होती है। अत: विक्रय प्रबन्धक विक्रय की नर्इ तकनीकों, प्रणालियों, क्रेता व्यवहार, क्रेता मनोविज्ञान, आदि के बारे में निरन्तर अनुसन्धान कार्य करवा के उनसे अपने विभाग में कार्यरत क्रेताओं को अवगत कराके विक्रय संवर्द्धन सम्भव बनाता है।
  3. उधार वसूली (Credit Collection) : विक्रय प्रबन्ध अपने कार्यालय तथा विक्रेताओं के माध्यम से उधार बिक्री की राशि को वसूल करवाने का कार्य भी करता है जिसके लिए विक्रेताओं को अलग से पारिश्रमिक देने की व्यवस्था की जाती है।
  4. आँकड़ा़ें का एकत्रण (Collection of Data) : विक्रय योजनाओं तथा नीतियों के निर्माण के लिए विभिन्न सूचनाओं तथा आँकड़ों की आवश्यकता होती है जिनको एकत्रित करवाने का काम भी विक्रय प्रबन्ध द्वारा सम्पन्न किया जाता है।

विक्रय प्रबंध क के गुण

विक्रय प्रबन्धक विक्रय क्षेत्र का विशेषज्ञ होने के साथ ही उसको विभिन्न समूहों के साथ अन्तव्र्यवहार करना पड़ता है। उसे विभिन्न कर्मचारियों व व्यक्तियों के सम्पर्क में आना पड़ता है तथा वार्तालाप में प्रबधक को अपने व्यावसायिक ज्ञान, विक्रय कौशल, मानसिक गुणों, विक्रय कला, संभाषण योग्यता आदि का प्रभाव डालना होता है। अत: उसमें विभिन्न योग्यताओं, गुणों तथा कौशल आदि का होना आवश्यक है। इन योग्यताओं तथा गुणों का वर्णन इस प्रकार से हैं :

1. शारीरिक तथा मानसिक गुण  - एक विक्रय प्रबन्धक में शारीरिक तथा मानसिक दृष्टि से निम्न गुणों की विद्यमानता आवश्यक है :
  1. आशवादी (Optimist) : विक्रय में विभिन्न तरह के उतार-चढ़ाव होते रहते हैं जिनके कारण माँग व लाभों में वृद्धि या कमी का आ जाना स्वाभाविक होता है। उसे इस सम्बन्ध में निराशावादी नहीं होना चाहिये। उसे संगठन के भविष्य के बारे में आशावादी होना चाहिए।
  2. दूरदिर्र्शता (Farsightedness) : विक्रय प्रबन्धक को दूरदश्र्ाी होना भी आवश्यक है क्योंकि उसे केवल वर्तमान के बारे में ही नहीं सोचना होता बल्कि भविष्य के बारे में भी विचार करना होता है। उसमें भावी घटनाओं का मूल्यांकन करने, भावी प्रवृत्तियों का पूर्वानुमान करने की योग्यता होनी चाहिये ताकि भावी अवसरों का लाभ लिया जा सके। 
  3. स्मरण शक्ति (Good Memory) : विक्रय प्रबन्धक को विक्रय निर्णयों तथा विक्रय व्यवहारों के सम्बन्ध में बहुत-सी बातें ध्यान में रखनी पड़ती हैं। यदि उसकी स्मरण शक्ति तीव्र है तो वह तुरन्त निर्णयों को लेकर व्यवसाय के लिए लाभ उत्पन्न कर सकता है।
  4. अच्छा स्वास्थ्य (Good Health) : एक विक्रय प्रबन्धक में अधिक कार्यक्षमता होने के साथ-साथ अपने कार्य में रुचि रखने की योग्यता होनी आवश्यक है क्योंकि एक अच्छे स्वास्थ्य वाला व्यक्ति ही अपने दायित्वों का निर्वाह कर सकता है तथा कार्यक्षमता के आधार पर कार्यकुशलता को प्रदर्शित कर सकता है।
  5. बुद्धिमान (Intelligent) : विक्रय प्रबन्धक में सामान्य चिन्तन प्रवाह, विचारों की समृद्धि, तार्किकता, कल्पना शक्ति तथा योग्यता होनी चाहिए तभी वह व्यक्ति बुद्धिमता कहलायेगा तथा अपने विक्रय प्रबन्ध सम्बन्धी निर्णयों को सही प्रकार से सही समय पर कर पायेगा।
  6. आकर्षक व्यक्तित्व (Attractive Personality) : एक विक्रय प्रबन्धक के लिए आकर्षक व्यक्तित्व का होना भी आवश्यक है। आकर्षक व्यक्तित्व कर्इ घटकों से बनता है जिसके लिए उसे प्रसन्न मुख मुद्रा वाला, अच्छे हाव-भाव, मधुर भाषी, सक्रिय, कर्मठ, स्फूर्ति, सुदृश्य पोशाक पहनने वाला होना आवश्यक है।
  7. परिश्रमी (Hardworker) : क्योंकि विक्रय प्रबन्धक को अपने विभाग को नेतृत्व करना होता है, यदि वह स्वयं परिश्रमी है तो उसकी देखरेख में कार्य करने वाले व्यक्ति भी उसका अनुकरण करेंगे तथा परिश्रमी होंगे अन्यता उन पर भी दुष्प्रभाव होगा तथा परिश्रमी नहीं होंगे।
  8. अधिक कार्य क्षमता (More Stamina) : एक विक्रय प्रबन्धक को लम्बे समय तक कार्य करना होता है। उसे कार्यालय, विक्रय स्थल तथा बाजारों में बार-बार जाना होता है तथा उन्हें लम्बा समय देना होता है जिसके लिए अधिक कार्य क्षमता का होना आवश्यक है।
  9. पहन शक्ति (Initiative) : एक विक्रय प्रबन्धक में पहल करने की क्षमता होनी चाहिए क्योंकि विक्रय योजनाएँ, विक्रय नीतियाँ बिक्री तकनीकें तथा विक्रय व्यूह रचना आदि में विक्रय प्रबन्धक की पहल शक्ति ही काम आती है।
  10. कल्पनाशील (Imaginative) : एक विक्रय प्रबन्धक में नए चिन्तन, विचारों, नर्इ कल्पनाओं को उत्पन्न करने का भी गुण होना चाहिए। इस परिवर्तनशील व्यावसायिक युग में कल्पनाशील प्रबन्धक ही अपने उपक्रम को उन्नति की शिखर पर ले जा सकता है। 
  11. तार्किकता (Logical) : विक्रय प्रबन्धक के सभी निर्णय तर्कों पर आधारित हों। 
  12. आत्म विश्वास : आत्म विश्वास से विक्रय प्रबन्धक अपने विक्रेताओं का अच्छा मार्गदर्शन व उत्साहवर्द्धन कर सकता है।
2. व्यवहारवादी गुण - विक्रय प्रबन्धक को विक्रेताओं तथा कर्मचारियों के अतिरिक्त कर्इ व्यापारियों, ग्राहकों, माध्यस्थों तथा विक्रय प्रतिनिधियों के सम्पर्क में आना पड़ता है। अत: उसमें व्यवहार कुशलता का होना आवश्यक बात है जिसके लिए उसे मिलनसार प्रÎकृति का होना चाहिए। अत: एक विक्रय प्रबन्धक में व्यवहार से सम्बन्धित इन गुणों की आवश्यकता होती है :
  1. सहयोगी (Co-operative) : एक विक्रय प्रबन्धक को अपने कार्य से सम्बन्धित सभी अधिकारियों तथा कर्मचारियों के साथ सहयोगी बनकर कार्य करने वाला होना चाहिये।
  2. मिलनसारिता (Socialiability) : विक्रय प्रबन्धक की रुचि से विभिन्न वर्ग के लोगों से मिलने-जुलने के अवसर बढ़ते हैं। इसका विक्रय की मात्र पर अच्छा प्रभाव पड़ता है जोकि विक्रय प्रबन्ध का प्रथम उद्देश्य होता है।
  3. सचरित्र (Good Character) : विक्रय प्रबन्धक का अपने कार्यों में र्इमानदार, कर्मठ, आदर्शवान तथा अपने वचन का पालन करने वाला होना चाहिए।
  4. वैैमनस्य मुुक्त (Not Jealous) : एक विक्रय प्रबन्धक को किसी के प्रति वैमनस्य नहीं रखना चाहिये। उसका व्यवहार अपने प्रतिद्विन्द्वयों तथा समान स्तर के अधिकारियों के साथ वैमनस्य रहित होना चाहिए।
  5. निष्ठावान (Loyal) : विक्रय प्रबन्धक को अपने विक्रेताओं पर पूरा विश्वास करना चाहिये। उसे संस्था की प्रगति के लिए सदैव लाभप्रद विक्रय योजनाएँ तैयार करनी चाहिएँ तथा उसे अपने कार्य, संस्था, नियोक्ता व ग्राहकों के प्रति पूर्ण निष्ठा से कार्य करना चाहिए।
  6. सामाजिक भद्र्रता (Social Grace) : विक्रय प्रबन्धक को अपने व्यवहार में सामाजिक मर्यादाओं, प्रथाओं व आचरण नियमों का पूरा ध्यान रखना चाहिये। उसका व्यवहार सभी के साथ भद्रतापूर्ण होना चाहिए।
3. प्रबंधकीय गुण - विक्रय प्रबन्धक में प्रबन्धक के सामान्य प्रबन्धकीय गुणों का होना आवश्यक है, इनमें से प्रमुख हैं :
  1. नेतृत्व (Leading) : विक्रय प्रबन्धक विक्रय विभाग का सर्वोच्च अधिकारी होने के कारण नेतृत्व का कार्य करता है। अत: उसमें योग्य मार्ग दर्शन, नेतृत्व, निर्देशन तथा परामर्श प्रदान करने की योग्यता होनी चाहिए।
  2. पूूर्वानुुमान (Forecasting) : एक विक्रय प्रबन्धक में भावी घटनाओं को देखने, समझने व परखने की योग्यता होनी चाहिए। एक विक्रय प्रबन्धक को विक्रय योजना, विक्रय बजट, विक्रय कोटा, विक्रय नीतियों आदि के निर्माण में भावी घटनाओं के बारे में पूर्वानुमानों के आधार पर निर्णय लेना होता है। अत: उसके पूर्वानुमान तर्कसंगत होने आवश्यक हैं।
  3. नियन्त्रण योग्यता (Controlling Skill) : एक विक्रय प्रबन्धक को विक्रय क्रियाओं पर नियन्त्रण तथा विक्रेताओं के कार्यों का पर्यवेक्षण तथा मूल्यांकन करना होता है। अत: उसमें नियन्त्रण करने की क्षमता का भी होना आवश्यक है।
  4. निर्णयन (Decision-making) : विक्रय प्रबन्धक को विक्रय सम्बन्धी मामलों में निर्णय लेने होते हैं तथा इन निर्णयों को लेने के लिए उनके विश्लेषण व श्रेष्ठ विकल्प के चयन की विधि का ज्ञान होना चाहिए। इन निर्णयों का समयानुकूल होना भी आवश्यक है।
  5. नियोजन (Planning Skill) : एक विक्रय प्रबन्धक को अपने विभाग में ठोस योजनाओं का निर्माण करना हाता है अत: उसमें नियोजन करने की क्षमता का होना आवश्यक है उसमें विक्रय सम्बन्धी प्रत्येक पहलू का कुशलतापूर्वक नियोजन करने की योग्यता होनी चाहिए।
  6. बजट निर्माण (Budgeting) : एक विक्रय प्रबन्धक को विभिन्न घटकों पर विचार करते हुए संतुलित विक्रय बजट बनाना होता है अत: उसे बजट निर्माण प्रक्रिया का ज्ञान होना भी आवश्यक है।
4. विक्रयकर्त्ता सम्बन्धी गुण - विक्रय प्रबन्धक का प्रमुख कार्य-क्षेत्र विक्रय क्रियाओं तथा विक्रय दल के प्रबन्ध से सम्बन्धित होता है अत: विक्रय कार्यों को कुशलतापूर्वक चलाने के लिए विक्रय प्रबन्धक में इन योग्यताओं व कौशल का होना आवश्यक है :
  1. विक्रय लक्ष्यों व विक्रय योजनाओं के निर्माण की योग्यता।
  2. विक्रय-नीतियों, विक्रय शर्तों तथा मूल्य नीतियों आदि के निर्धारण का ज्ञान।
  3. विक्रय नियन्त्रण सम्बन्धी तकनीकों का ज्ञान।
  4. विक्रय क्षेत्रों का निर्धारण।
  5. विक्रय पर्यवेक्षण तथा कार्य मूल्यांकन एवं उचित मार्ग दर्शन करने की योग्यता।
  6. सरकारी नियमों, विदेशी मुद्रा, आयात, निर्यात, विक्रय, संगठनों आदि के सम्बन्ध में जानकारी।
  7. ग्राहक परिवेदताओं का निपटारा करना, उनके आदेशों की पूर्ति करना, ग्राहक सम्बन्धों में सुधार लाने सम्बन्धी विधियों की जानकारीं
  8. विक्रय संगठन सम्बन्धी विभिन्न पहलुओं का ज्ञान।
  9. नवीनतम विक्रय तकनीकों, विक्रय प्रक्रियाओं व विक्रय प्रणालियों का ज्ञान।
  10. विक्रय बजट, विक्रय पूर्वानुमान व विक्रय कोटा निर्धारित करने की योग्यता।

विक्रय प्रबंध क के कर्तव्य

एक विक्रय प्रबन्धक, के कर्त्तव्य विभिन्न संस्थाओं के अन्तर्गत विभिन्न हो सकते हैं। विभिन्न संस्थाओं के आकार, उनमें विक्रय की जाने वाली वस्तुओं, उनके वितरण माध्यम तथा विक्रय प्रबन्धकों की सीमाएँ, विभिन्न होने के कारण प्रबन्धकों के कर्त्तव्य भी विभिन्न संस्थाओं में भिन्न-भिन्न पाए जाते हैं। एक सामान्य आकार की संस्था में विक्रय प्रबन्धक के कर्त्तव्य हो सकते हैं :
  1. विक्रय सम्बन्धी, प्रशासनिक कार्य पद्धतियों का निर्माण।
  2. निर्धारित नीतियों एवं बजट के अनुसार विक्रय कार्यक्रमों को कार्यन्वित करना।
  3. विक्रय उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आवश्यक कार्यवाही करना।
  4. विक्रय योजनाओं एवं उपलब्धियों को निश्चित अवधि में प्राप्त करने का प्रयास करना।
  5. शाखाओं एवं उप-शाखाओं के विक्रय खर्चों, यात्रा बिलों आदि को स्वीकृति देना।
  6. विक्रय को प्रभावित करने वाले विक्रय घटकों से उच्च प्रबन्धकों को अवगत कराना।
  7. विज्ञापन एवं विक्रय संवर्द्धन कार्यक्रमों के निर्धारण में परामर्श तथा सहायता देना तथा इनका निरीक्षण करना।
  8. विक्रय सम्मेलनों का आयोजन करना।
  9. सामाजिक उत्तरदायित्वों का निर्वाह करना।
  10. संस्था के अन्य विभागों के साथ समन्वय बनाए रखना।
  11. विक्रय संगठन का निर्माण करना तथा उसे नेतृत्व एवं निर्देशन प्रदान करना।
  12. विक्रय बजट का निर्माण करना।
  13. कर्मचारियों की भर्ती, प्रशिक्षण आदि कार्यक्रमों का निर्धारण एवं निरीक्षण करना।

विक्रय प्रबंध क के दायित्व

एक विक्रय प्रबन्धक को जहाँ अपने कर्त्तव्यों का निर्वाह करना पड़ता है उनके साथ विभिन्न वर्गों के प्रति अपने इन दायित्वों को भी निभाना पड़ता है।

1. संगठन के प्रति दायित्व - एक विक्रय प्रबन्धक को जिस संस्था में वह कार्य करता है उसके प्रति निम्न दायित्वों को निभाना होता है :
  1. संस्था के प्रति निष्ठावान रहना
  2. वस्तुओं की माँग व पूर्ति का नियन्त्रण
  3. विक्रय लागत कम करने का प्रयास
  4. विक्रय क्षेत्रों में होने वाले परिवर्तनों तथा विकास की उच्च अधिकारियों को सूचना देना
  5. प्रतिस्पर्द्धा संस्थाओं की क्रियाओं की उच्च अधिकारियों को सूचना देना।
  6. अभिलेखों तथा रिपोर्टों को विश्लेषित करके कार्यवाही करना
  7. अन्य विभागों के साथ सहयोग करना
2. विक्रेताओं के प्रति दायित्व - विक्रय-शक्ति या विक्रय विभाग में कार्यरत विक्रेता ही विक्रय विभाग की क्रियाओं को संचालित करते हैं। अत: उनके प्रति विक्रय प्रबन्धक के प्रमुख उत्तर दायित्त्व हैं :
  1. विक्रेताओं को विक्रय नीतियों तथा कार्यक्रमों की जानकारी देना
  2. माल प्रस्तुतिकरण संबंधी आवश्यकता साधन एवं उपकरण उपलब्ध कराना
  3. ग्राहकों की शिकायतों का निपटारा
  4. पारिश्रमिक की दरों में संशोधन
  5. विक्रताओं की पदोन्नति बनाना
  6. विक्रेताओं की समस्याओं का निपटारा
  7. विक्रय आदेशों की तत्कालपूर्ति की व्यवस्था
  8. विक्रयकर्त्ताओं की प्रशिक्षण व्यवस्था
  9. विक्रेताओं की मानवीय व सामाजिक अवश्यकताओं की पूर्ति में योगदान
  10. विक्रेताओं के कार्यों का सही मूल्यांकन तथा उन्हें इसका लाभ देना
  11. विक्रय कमीशन, भत्तों व बोनस की भुगतान व्यवस्था
3. स्वयं के प्रति दायित्व - विक्रय प्रबधक का अन्य दायित्वों के साथ-साथ अपने प्रति भी दायित्व होता है जो है :
  1. प्रबन्धकीय कौशल का विकास
  2. आत्म विकास करना
  3. अपनी कमजोरियों तथा क्षमताओं का विश्लेषण करके उनमें सुधार करना
  4. विक्रय संबंधी योग्यता एवं कला कौशल में वृद्धि करना
  5. विक्रय सम्बन्धी नवीनतम जानकारियाँ लेना
  6. मानवीय चेतना बनाये रखना
4. ग्राहकों के प्रति दायित्व -
  1. ग्राहकों से सम्पर्क स्थापित कर घनिष्ट सम्बन्ध बनाना
  2. ग्राहकों को मूल्यवान जानकारियाँ देना
  3. विक्रय संवर्द्धन साधनों के द्वारा उत्पाद सम्बन्धी जानकारी देना
  4. ग्राहक नीतियों में परिवर्तन करना
  5. ग्राहकों की शिकायतों को दूर करना
  6. ग्राहकों केा विक्रय क्षेत्र में होने वाले परिवर्तनों की जानकारी देना
  7. उत्पाद के नये मॉडलों व नवीन परिवर्तनों की जानकारी देना
  8. उपभोक्ता को सन्तुष्टि प्रदान करना

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