विक्रय प्रशिक्षण, का अर्थ है विक्रय के सम्बन्ध में प्रशिक्षण देना। इस प्रशिक्षण द्वारा विक्रयकर्ताओं को यह सिखाया जाता
है कि वे किस प्रकार विक्रय के कार्य को अच्छी प्रकार से पूरा कर सकते हैं। प्रशिक्षण के द्वारा विक्रेताओं के गुणों और
योग्यताओं को और अधिक विकसित किया जाता है ताकि उनकी विक्रय प्रतिभा में और अधिक निखार आ सके। प्रशिक्षण
के द्वारा विक्रेता को विक्रय कला के सिद्धान्तों, विधियों एवं व्यवहार का व्यवस्थित ज्ञान करवाया जाता है तथा उन्हें उपक्रम
की विक्रय नीति, कार्य प्रणाली, विक्रय तकनीकों, बाजार अनुसन्धान आदि से अवगत कराया जाता है। अत: स्पष्ट होता
है कि प्रशिक्षण एक ऐसी क्रिया है जिससे विक्रेताओं के विक्रय करने के कौशल में वृद्धि होती है।
विक्रय प्रशिक्षण की परिभाषा
विक्रय प्रशिक्षण की
विभिन्न विद्वानों ने परिभाषाएँ दी हैं :
जार्ज आर. कोलिन्स, “विक्रय प्रशिक्षण एक संगठित क्रिया है जिसमें तथ्यों की खोज, नियोजन, शिक्षण, अभ्यास, आलोचना तथा समालोचना, विक्रय कौशल के विकास के प्रयास की सिफारिश की जाती है तथा इनको मूल योग्यताओं, सामान्य ज्ञान व अनुभव के साथ जोड़ा जाता है।”
विक्रय प्रशिक्षण के लक्षण अथवा विशेषताएँ
- यह एक सतत् प्रक्रिया है।
- इसके अन्र्तगत विक्रयकला का सैद्धान्तिक एवं क्रियात्मक ज्ञान कराया जाता है।
- विक्रय प्रशिक्षण विक्रयकर्ताओं को विक्रय समस्याओं को हल करने में सक्षम बनाता है।
- विक्रय प्रशिक्षण से विक्रेताओं को संस्था के उद्देश्यों के सम्बन्ध में व्यापक जानकारी प्राप्त होती है।
- विक्रय प्रशिक्षण विक्रयकर्ता की योग्यता व उसमें वांछित योग्यता के अन्तर को पूरा करने की प्रक्रिया है।
- विक्रय प्रशिक्षण विक्रेताओं को विक्रयकला में निपुणता प्रदान करने के लिए प्रदान किया जाता है। इससे उनके ज्ञान, चातुर्थ तथा कार्य कुशलता में वांछित वृद्धि होती है।
- प्रशिक्षण, कार्य पर या कार्य से पृथक किसी भी प्रकार से दिया जा सकता है।
- विक्रय प्रशिक्षण एक पूर्व नियोजित एवं व्यवस्थित प्रक्रिया है।
- विक्रय प्रशिक्षण नये व पुराने सभी विक्रेताओं को प्रदान किया जाता है।
- इससे संस्था की बिक्री में वृद्धि होती है।
विक्रय प्रशिक्षण के उद्देश्य
- विक्रेताओं को वैज्ञानिक सिद्धान्तों का ज्ञान कराना।
- विक्रेताओं से संस्था के प्रति सदभावना को विकसित करना।
- अकुशल व विक्रय कार्य में रुची न रखने वाले विक्रेताओं की छंटनी करना।
- विक्रेताओं को वितरक व उपभोक्ताओं के सम्बन्ध में जानकारी देना।
- विक्रेताओं को संस्था के इतिहास व कार्यकलाप बताना।
- वस्तु के निर्माण की विधि तथा वस्तुओं के गुणों से विक्रेताओं को अवगत कराना।
- संस्था की कुल विक्रय में वृद्धि करना।
- विक्रयकर्ताओं में स्थायित्व लाना तथा पदोन्नति के अवसर बढ़ाना।
- विक्रेतओं को विक्रय सम्बन्धी नयी तकनीकों की जानकारी
- विक्रय व्ययों में कमी करना।
विक्रयकर्ता प्रशिक्षण का महत्व या लाभ
विक्रयकर्ता का चुनाव हो जाने के बाद उसको बाजार में भेजने से पूर्व प्रशिक्षित किया जाता है तथा जब वह पूर्ण रूप से प्रशिक्षित हो जाता है, तभी उसको बाजार में उतारा जाता है। बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ तो अपने यहाँ प्रशिक्षणशालाएँ खोलकर विक्रयकर्ताओं को प्रशिक्षण देती हैं। प्रशिक्षण की आवश्यकता निम्न कारणों से है :- यदि नव-नियुक्त विक्रयकर्ता को विक्रय प्रशिक्षण दिये बिना अपने आप सीखने के लिए छोड़ दिया जाय तो वह बुरी आदतें पकड़ सकता है।
- नव-नियुक्त विक्रयकर्ता अपने आप सीखने में भूल-चूक एवं गलतियाँ कर सकता है जो संस्था को महँगी पड़ सकती हैं।
- अनेक क्रेता वर्ष-प्रति-वर्ष चतुर, जिज्ञासु एवं विशेषज्ञ होते जा रहे हैं, अत: विक्रेता को भी चतुर एवं विशेषज्ञ होना होगा।
- प्रशिक्षण के परिणामस्वरूप विक्रेता अतिशीघ्र उत्पादक एवं लाभप्रद बन जाते हैं। प्रशिक्षित व्यक्ति बिक्री की मात्र एवं कुल लाभ को बढ़ाता है।
- विक्रेता जितना अधिक प्रशिक्षित एवं योग्य होगा उतना ही वह विक्रय-व्ययों को नियन्त्रित करने में सफल हो सकेगा।
अत : इनके ऊपर प्रशिक्षण व्यय करने की कोर्इ आवश्यकता नहीं है। वास्तव में यह उनका भ्रम है। एक प्रशिक्षित विक्रयकर्ता अप्रशिक्षित विक्रयकर्ता से कहीं अधिक अच्छा होता परन्तु कहीं इसके अपवाद भी हो सकते हैं।