आभास लगान किसे कहते हैं?

आभास लगान किसे कहते हैं?

आभास लगान की धारणा का प्रयोग डॉ. मार्शल ने भूमि के अतिरिक्त मनुष्य द्वारा बनाए गए उन साधनों से प्राप्त अतिरिक्त आय के लिये किया है जिनकी पूर्ति अल्पकाल में स्थिर रहती है। मार्शल के अनुसार वर्तमान पुस्तक में आभास लगान शाब्द का प्रयोग उस आय के लिए किया जाएगा जो कि उत्पादन के लिए मनुष्य द्वारा मशीनों तथा अन्य औजारों से प्राप्त होती है।’’ (The term Quasi Rent will be used in the present volume as income derived from machines and other appliances of production mae by man. —Marshall)A Quasi शब्द लैटिन भाषा से लिया गया है जिसके अर्थ हैं “as if.” अतएव Quasi Rent से अभ्रिपाय है ‘‘जैसा कि लगान’’ है। 

मार्शल भी लगान सम्बन्धी रिकार्डो के आधार पर यह मानता था कि भूमि के लिए लगान इसलिए मिलता है क्योंकि भूमि की पूर्ति सीमित है। अल्पकाल में मनुष्य द्वारा निर्मित उत्पादन के साधनों की पूर्ति भी सीमित होती है। इसलिए इन साधनों की आय ‘‘लगान’’ जैसी होती है। परन्तु इन्हें लगान नहीं कहा जा सकता क्योंकि दीर्घकाल में इनकी पूर्ति को इनकी मांग के अनुसार बढ़ाया जा सकता है, इसलिए दीर्घकाल में इन्हें कोई आधिक्य (Surplus) या लगान नहीं मिलता। अतएव मनुष्यों द्वारा निर्मित पदार्थों को अल्पकाल में मिलने वाली आय लगान के समान है परन्तु दीर्घकाल में यह लगान के समान नहीं है। आभास लगान की धारणा को उत्पादन के उस किसी भी साधन की आय के लिए प्रयोग किया जा सकता है जिसकी पूर्ति अल्पकाल में स्थिर रहती है।

आभास लगान का विस्तृत अर्थों में सम्बन्ध किसी विशेष साधन से नहीं है बल्कि इसका सम्बन्ध एक फर्म की कुल लागत से है। अल्पकाल में एक फर्म की कुल लागत दो प्रकार की होती है, बंधी लागत (Fixed Costs) तथा घटती बढ़ती लागत (Variable Costs)। अल्पकाल में एक फर्म, मांग के कम होने पर उस समय तक उत्पादन करती रहेगी जब तक उसे घटती बढ़ती लागतें (Variable Costs) मिलती रहेंगी तथा केवल बंधी लागतों (Fixed Costs) की हानि उठानी पड़ेगी। इस प्रकार एक फर्म अल्पकाल में घटती बढ़ती लागतों से जितनी अधिक आय प्राप्त करेगी, वह आभास लगान (Quasi Rent) कहलाएगा। प्रो. बिलास के अनुसार, ‘‘कुल आय तथा कुल घटती बढ़ती लागतों के अन्तर को आभास लगान कहते हैं

मान लीजिए एक कम्बल बनाने वाली मशीन 10 कम्बल बनाती है, जिनकी कीमत 1,000 रुपये है। यदि इन कम्बलों पर लगाई गई ऊन, मजदूरी आदि घटती-बढ़ती लागतें भी 1,000 रुपये हैं, तो फर्म काो कोई आभास लगान नहीं मिलेगा। मान लीजिए अल्पकाल में कम्बलों की मांग बढ़ने के कारण कीमत बढ़कर 1,200 रुपये हो जाती है परन्तु घटती बढ़ती लागत 1,000 रुपये ही रहती है। इस स्थिति में फर्म को, 1,200 – 1,000=200 रुपये का आधिक्य प्राप्त होगा। यह आभास लगान कहलाएगा। यदि आभास लगान दीर्घकाल में भी मिलता रहे तो नई फर्में कम्बल बनाने लगेंगी अथवा पुरानी फर्में नई मशीनें लगाकर उत्पादन बढ़ा देंगी। इसके फलस्वरूप फर्मों को केवल घटती बढ़ती लागतें ही प्राप्त हो सकेंगी, इसलिए आभास लगान समाप्त हो जाएगा। अतएव आभास लगान दीर्घकाल में नहीं मिलता क्योंकि दीर्घकाल में कीमत तथा घटती बढ़ती लागतें बराबर हो जाती हैं।

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