गिरवी क्या है भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 172 के अनुसार

गिरवी क्या है

भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 172 के अनुसार ‘‘किसी श्रेणी के भुगतान अथवा किसी वचन के निष्पादन के लिये जमानत के रूप में निक्षेप को गिरवी कहते हैं। इस दशा में जो व्यक्ति गिरवी रखता है अर्थात् निक्षेपी को गिरवी रखने वाला (Plege or Pawnee) कहते हैं, एवं जिस व्यक्ति के पास वस्तु रखी जाती है अर्थात् निक्षेपगृहीता को गिरवी रख लेने वाला (Pledge of Pawnee) कहते है।’’

इससे स्पष्ट होता है कि गिरवी का अनुबंध भी एक विशेष प्रकार का निक्षेप है इनमें अन्तर केवल उद्देश्य का है। यदि निक्षेप का उद्देश्य किसी ऋण के भुगतान या किसी वचन को पूरा करने के लिये जमानत हो तो उसे गिरवी कहा जाता है। गिरवी रखने वाले द्वारा माल गिरवी रख लेने वाले को सुपुर्द किया जाता है। यह सुपुर्दगी (Actual) अथवा रचनात्मक (Constructive) दोनों की प्रकार से हो सकती है। अचल सम्पत्तियों के प्रपत्र जमानत के लिये दिये जाने पर यह रहन (Mortgage) कहलाती है गिरवी नहीं।

गिरवी में कब्जे (Possession) का वैधानिक हस्तान्तत्रण होता है अर्थात् केवल वैधानिक कब्जा देना है मौलिक कब्जा देना नहीं।

वैध गिरवी के आवश्यक लक्षण

1. केवल चल सम्पत्तियों को ही गिरवी रखा जा सकता है - जैसे चल वस्तुएं, बहुमूल्य चीजें, दस्तावेज, कम्पनियों के अंश, सरकारी प्रतिभूति आदि को ही गिरवी रखा जा सकता है।

2. माल पर वैधनिक अधिकार - गिरवी रखने वाले का मल पर वैधानिक अधिकार होना चाहिये वहां पर अधिकार नहीं अपितु वैधानिक अधिकार जरूरी है।

3. अधिकार का हस्तान्त्रण - गिरवी रखने वाले व्यक्ति से गिरवी एवं लेने वाले व्यक्ति को वस्तु का हस्तान्त्राण होना आवश्यक है। बिना हस्तान्त्राण के गिरवी की उत्पत्ति नहीं हो सकती।

4. वस्तु विक्रय योग्य होनी चाहिए - गिरवी रखी जाने वाली वस्तु बिक्री योग्य होनी चाहिये क्योंकि यदि गिरवी रखने वाला ऋण का भुगतान नहीं करता है तो गिरवी रख लेने वाला माल को बेचकर अपनी राशि प्राप्त कर सकता है। 

5. माल को वापस करना - गिरवी के उद्देश्य के पूरा हो जाने पर अथवा निश्चित समय बाद गिरवी रख लेने वाले द्वारा गिरवी की विषय वस्तु रखने वाले को वापस कर दी जाती है और गिरवी अनुबंध समाप्त हो जाता है।

गिरवी रखने वाले अथवा गिरवीकर्त्ता के अधिकार

गिरवी रखने वाले के अधिकार निक्षेपी के अधिकारो के समान ही हैं। इसके कुछ प्रमुख अधिकार हैं :-

1. माल को वापस पाने का अधिकार  - धारा 160.161 के अनुसार निश्चित समय पर वचन के पालन करने अथवा ऋण का भुगतान करने पर गिरवी रख लेने से उसे वस्तु वापस पाने का अधिकार है।

2. वृद्धि अथवा लाभ पर अधिकार - धारा 163 के अनुसार यदि गिरवी रखे हुए माल में कोई वृद्धि या लाभ होता है तो वह उसको भी पाने का अधिकारी है।

3. क्षतिपूर्ति का अधिकार - यदि गिरवी रख लेने वाले व्यक्ति ने माल की उचित देखभाल नहीं की है अथवा माल का दुरुपयोग किया है अथवा माल के सम्बन्ध में कोई त्रुटि की है तो गिरवीकर्त्ता को क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकार है।

4. बिक्री की दशा में लाभ प्राप्त करना  - धारा 176 के अनुसार, गिरवी रखने वाले की त्रुटि की दशा में यदि गिरवी की सम्पत्ति को बेच दिया गया है और इस प्रकार विक्रय की राशि ऋण तथा उसके ब्याज से अधिक हो तो गिरवी रखने वाले को इस आधिक्य (Surplus) राशि को प्राप्त करने का अधिकार है। 

5. त्रुटि करने के बाद गिरवी रखने वाले का अधिकार - धारा 177 के अनुसार, यदि ऋण के भुगतान अथवा वचन के निष्पादन के लिए कोई समय निश्चित है और गिरवी रखने वाला निश्चित समय पर भुगतान करने अथवा वचन का निष्पादन करने में त्रुटि करता है, तो वह बाद में माल की वास्तविक बिक्री से पहले किसी भी समय उस माल को छुड़ा सकता है, किन्तु ऐसी दशा में उसको मूल ऋण के अतिरिक्त वह खर्चे भी देने होंगे जो उसकी त्रुटि के कारण हुए हों।

गिरवी रखने वाले अथवा गिरवीकर्त्ता के कर्तव्य

1. ऋण के भुगतान का दायित्व - गिरवी रखने वाले का कर्तव्य है कि लिये गये ऋण तथा उस पर देय ब्याज का भुगतान देय तिथि पर अथवा उचित समय में कर दे।

2. माल के दोषों को प्रकट करना - धारा 150 के अनुसार गिरवी रखने वाले का यह कर्तव्य है कि वस्तु गिरवी रखते समय उसे उन दोषों के बारे में गिरवी रख लेने वाले को बता देना चाहिए जिनका कि उसे ज्ञान है अथवा जो गिरवी रख लेने वाले को संकट में डाल दे।

3. आवश्यक व्ययों का भुगतान - धारा 175 के अनुसार, यदि गिरवी रख लेने वाले द्वारा अनुबन्ध की प्रगति में गिरवी रखी हुई वस्तु की सुरक्षा आदि के सम्बन्ध में उचित व्यय किये गए हैं तो गिरवी रखने वाले का कर्तव्य है कि ऐसे समस्त साधारण एवं असाधारण व्ययों का भुगतान गिरवी रख लेने वाले को कर दे।

4. विक्रय के बाद दायित्व - ऋण का उचित समय पर भुगतान न करने पर यदि गिरवी रख लेने वाला वस्तु को बेच देता है तथा बिक्री से प्राप्त राशि यदि देय ऋण व ब्याज की मात्रा से कम है तो गिरवी रखने वाले को शेष राशि भुगतान करनी पड़ेगी।

गिरवी रखने लेने वाले अथवा गिरवीग्राही के अधिकार

गिरवी रख लेने वाले को अधिकार प्राप्त हैं :-

1. माल रोक लेने का अधिकार - धारा 173 के अनुसार गिरवीग्राही को मूल ऋण तथा उसका ब्याज या उससे संबंधत अन्य भुगतानों के न हो जाने से पूर्व माल रोकने का अधिकार रहता है, अर्थात् यदि गिरवीकर्त्ता के लिए ऋण या ऋण के ब्याज का भुगतान नहीं करता है तो गिरवीग्राही को अधिकार है कि वह गिरवी के समान को रोक ले। परन्तु धारा 174 इस बात का स्पष्ट उल्लेख करती है कि केवल उसी माल को रोका जा सकता है जिसको गिरवी रखकर ऋण लिया गया है, अन्य ऋणी के लिए उस माल को नहीं रोका जा सकता है।

2. बाद में दिये गये कर्ज के लिए माल रोकने का अधिकार - जब गिरवीग्राही, गिरवीकर्त्ता को गिरवी की तारीख के बाद कुछ और कर्ज देता हैए तो यह समझा जाता है कि माल रोकने का अधिकार बाद में दिए गए कर्ज पर भी लागू होगा। इस सम्बन्ध में एक विपरीत अनुबन्ध द्वारा ही इस धारणा का खण्डन किया जा सकता है।

3. असाधारण व्यय पाने का अधिकार - धारा 175 के अनुसार, गिरवीग्राही गिरवी रखने वाले से उन सम्पूर्ण असाधारण व्ययों को प्राप्त करने का अधिकार रखता है जोकि गिरवी के माल के सम्बन्ध में उसने किये हैं।

4. गिरवी रखने वाले की त्रुटि की दशा में अधिकार - धारा 176 के अनुसार यदि गिरवीकर्त्ता ऋण का भुगतान या वचन का निष्पादन समय पर नहीं करता तो गिरवीग्राही गिरवीकर्ता के विरूद्ध ऋण तथा वचन के लिए वाद प्रस्तुत कर सकता है और माल को संपाख्रश्वक या सहायक जमानत (Collateral Security) के रूप में रोक सकता है या गिरवीकर्त्ता को बिक्री की उचित सूचना देकर गिरवी रखे हुए माल को बेच सकता है। यदि किसी बिक्री से प्राप्त धन, ऋण या वचन के सम्बन्ध में उचित धन से कम है तो गिरवीग्राही को यह अधिकार है कि वह शेष धन गिरवीकर्त्ता से प्राप्त कर ले। यदि बिक्री से प्राप्त धन उचित धन से अधिक है तो गिरवीग्राही को चाहिये कि वह आधिक्य (Surplus) धन को गिरवीकर्त्ता को वापस कर दे।

5. अच्छा अधिकार - धारा 177 v. के अनुसार यदि गिरवी कर्त्ता ने किसी व्यर्थनीय अनुबन्ध (उत्पीड़न, अनुचित प्रभाव, मिथ्यावर्णन तथा कपट से प्रभावित) के अन्तर्गत माल प्राप्त किया है तथा अनुबन्ध होने से पूर्व की वह उस माल को गिरवी रख देता है तो गिरवीग्राही को माल पर अच्छा अधिकार प्राप्त होता है। परन्तु इसके लिए आवश्यक है कि गिरवीग्राही ने माल सद्विश्वास से गिरवी रखा है अर्थात् गिरवीग्राही को गिरवीकर्त्ता के दोषयुक्त स्वामित्व का ज्ञान नहीं था।

गिरवी रख लेने वाले अथवा गिरवीग्राही के कर्तव्य

1. गिरवी रखे माल की उचित देखभाल करना - धारा 151 के अनुसार गिरवी रखे हुए माल की उचित देखभाल करना।
2. गिरवी रखे माल का अनुचित उपयोग न करना - धारा 154 के अनुसार गिरवी रखे हुए माल का अनुचित प्रयोग न करना।
3. गिरवी रखे माल को अपने माल के साथ न मिलाना - धारा 156 व 157 के अनुसार गिरवी रखे गए माल को अपने माल में न मिलाना।
4. त्रुटि के संबंध में बिक्री करते समय गिरवीकर्त्ता को सूचित करना।
5. बिक्री की अधिक्य राशि को गिरवीकर्त्ता को लौटाना।
6. गिरवी रखे गए माल को गिरवीकर्त्ता को लौटाना।

गिरवी कौन रख सकता है ?
अथवा
उन व्यक्तियों द्वारा गिरवी, जो वस्तु के स्वामी नहीं हैं

सिद्धान्त के अनुसार तो केवल माल का मालिक ही अपने माल (चीज) को गिरवी रख सकता है, अन्य व्यक्तियों को दूसरे का माल गिरवी रखने का अधिकार नहीं होता। अतएव यदि कोई अन्य व्यक्ति किसी दूसरे के माल को गिरवी रखता है तो वह अवैध होगा, लेकिन इन दशाओं में अन्य व्यक्ति द्वारा गिरवी रखना भी वैध होता है :-

1. किसी व्यापारिक एजेण्ट द्वारा गिरवी रखना  - धारा 178 के अनुसार, यदि कोई व्यापारिक एजेण्ट अपने मालिक की सहमति से, एजेण्ट के रूप में तथा अपने अनुसार, माल या माल के अधिकार सम्बन्धी कागज-पत्र गिरवी रखता है तो वह ऐसा कर सकता है बशर्तें कि उसे अपने स्वामी द्वारा ऐसा करने का अधिकार प्राप्त हो एवं वह ऐसा स्वामी के हित में ही कर रहा हो। यहां यह उल्लेखनीय है कि केवल कमीशन एजेण्ट ही वैध रूप से अपने मालिक की वस्तुओं को गिरवी रख सकते हैंए एक अन्य व्यक्ति (जो एजेण्ट नहीं है), जिसके अधिकार में किसी दूसरे की वस्तुएं हैं वह (दलाल) उनको गिरवी नहीं रख सकता। 

भारतीय वस्तु विक्रय अधिनियम की धारा 2 (9) के अनुसार, एक ‘व्यापारिक एजेण्ट’ से तात्पर्य ऐसे एजेण्ट से होता है जिसे व्यापार की सामान्य गतिविधियों के अनुसार माल बेचने, क्रय करने अथवा गिरवी रखने के अधिकार प्राप्त हों। उल्लेखनीय है कि नौकर या माल की देखरेख के लिये नियुक्त व्यक्ति व्यापारिक एजेण्ट की भांति वैध गिरवी नहीं रख सकते।

2. जब गिरवी रखने वाले का माल में सीमित हित हो - धारा 179 के अनुसार, यदि गिरवी रखने वाला माल का पूर्ण स्वामी नहीं है, किंतु उसका माल में थोड़ा हित है तो उस हित की सीमा तक, उस वस्तु का गिरवी रखना वैध होगा। उदाहरण के लियेए ‘अ’ को ‘ब’ की घड़ी सड़क पर पड़ी मिलती है और जो खराब है। ‘अ’ उस पर 30 रू. मरम्मत के व्यय करता है और 100 रू. में गिरवी रख देता है ऐसी दशा में गिरवी 30 रूण् तक वैध होगी और ‘ब’ ‘अ’ को 30 रु. देकर घड़ी वापस ले सकता है।

3. व्यर्थनीय अनुबन्ध के अन्तर्गत अधिकार रखने वाले व्यक्ति द्वारा गिरवी - धारा 178 अ. के अनुसार यदि गिरवीकर्त्ता ने माल का अधिकार उत्पीड़न, अनुचित प्रभावए कपट या मिथ्या-वर्णन इत्यादि से प्राप्त किया है और अनुबन्ध व्यर्थ हो जाने से पहले वह उसे किसी अन्य के पास गिरवी रख देता है तो ऐसी गिरवी वैध मानी जायेगी बशर्ते गिरवीग्राही ने ऐसा कार्य सद्भावना से किया हो और उसे इस बात का पता न हो कि उसे गिरवी रखने का अधिकार नहीं है।

4. सह-स्वामी के अधिकार में रखे माल की गिरवी - जब किसी वस्तु के स्वामी एक से अधिक हों और वस्तु उनमें से किसी एक के पास रखी हो और यदि वह व्यक्ति (जिसके पास वह वस्तु रखी है) अन्य सह-स्वामियों की सहमति से उसको गिरवी रख देता है तो वह गिरवी वैध होगी। मोहन एक बेचे हुए रेडियों सेट को विकास के यहां 300 रू. में गिरवी रख देता है तथा विकास को इस बात का पता नहीं है कि यह रेडियों को बेचा जा चुका है। इस दशा में यह गिरवी का वैध अनुबन्ध है।

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