निर्यात-आयात नीति 2002 की विशेषताएँ

राष्ट्रीय नीति को बढ़ावा देने के दृष्टिकोण से, भारत सरकार द्वारा 31 मार्च, 2002 को, वित्तीय वर्ष 2000.01 के लिए नवीन निर्यात-आयात नीति की घोषणा की गई। केन्द्रीय वाणिज्य मंत्री श्री मुरोसोली मारन की ओर से घोषित इस नीति में दूध, कागज, सादा नमक, सिगरेट और इलेक्ट्रोनिक सामानों के आयात पर से मात्रात्मक-प्रतिबन्ध हटा दिया गया है। निर्यातों में वृद्धि के बारे में यह आशा व्यक्त की गई है कि 2000.01 में, निर्यात के डॉलर के दृष्टिकोण से, कम से कम 20: की बढ़ोतरी अवश्य ही होगी।

निर्यात-आयात नीति 2002 की विशेषताएँ

1. विशेष आर्थिक क्षेत्रों की स्थापना -   भारत सरकार ने, चीन की भाँति उदार निवेश वाले दो विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाने तथा चार निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्रों को विशेष आर्थिक क्षेत्रों में परिवर्तित करने की घोषणा की है।

2. आयात के मात्रात्मक प्रतिबन्ध को हटाना -  सरकार ने ‘विश्व व्यापार संगठन’ (World Trade Organisation) के प्रावधानों की पालना की दृष्टि से, इस नीति में 714 वस्तुओं के आयात से मात्रा सम्बन्धी रोक हटा ली है। इस कारण, 1 अप्रैल, 2000 से कच्ची और कैफीन रहित कॉफी, इंस्टेन्ट चाय, कागज, बुने कपड़े, परिधान, मसाले, अचार, शीतल पेय, कंस्ट्रेट फ्रूट एवं शीतलीकृत मछली आयात प्रतिबन्ध से मुक्त हो गई है। इसी कड़ी में, फोटोग्राफी फितम, घड़ियाँ, माइक्रोवेव ओवन तथा हीरे और मोती भी, अब कितनी भी मात्रा में आयात किये जा सकेंगे।

3. ‘डायमडं डालर खाता’ खोलने की घोषणा- इस नीति म,ं रत्नाभूषण, ग्रेनाइट आरै सगं मरमर नियार्त को प्रात्ेसाहन देने निमित्त ‘डायमन्ड डॉलर खाता’ योजना प्रारम्भ की गई है। इस खाते में निर्यातक अपनी कमाई को डॉलर खाते में रख सकेंगें और उसमें रखी गई राशि का प्रयोग बिना तराशे या पॉलिश किए हुए हीरे खरीदने के लिए किया जा सकेगा। सरकार द्वारा यह भी घोषणा की गई है कि 1 अप्रैल से, गहनों का निर्यात ‘स्पीड-पोस्ट’ से किया जा सकेगा।

4. विदेशी भागीदारी की छूट -   इस नीति के अनुसार, विशेष आख्रथक क्षेत्रों में लगने वाली इकाइयों में सौ प्रतिशत तक विदेशी भागीदारी की छूट के साथ ही, आयात निर्यात पर भी कोई प्रतिबन्ध नहीं होगा।

5. घरेलू उद्योगो पर विपरीत प्रभाव नहीं -  अंतरराष्ट्रीय व्यापार संगठन के अंतर्गत आने वाली 1429 वस्तुओं में से आधी वस्तुओं (714) को कोटा (Quota) पाबन्दी के दायरे से बाहर लाने से घरेलू उद्योग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा-ऐसा वाणिज्य मंत्री का मानना है। उनका यह भी कथन है कि यदि ऐसा होता है तो सरकार अपने आयात शुल्क के हथियार का इस्तेमाल करने में नहीं हिचकिचायेगी (क्योंकि खाद्य तेल पर ही 300 प्रतिशत तथा अन्य कृषि उत्पादों पर 100 से 150 प्रतिशत आयात शुल्क है।)

6. मशीनों को खान में लगाने की छूट -  इस नीति के अन्तर्गत ग्रेनाइट, संगमरमर और अन्य खनिजों का निर्यात करने वाली निर्यातोन्मुख इकाइयों को अपनी मशीनें परिसर से हटाकर, खान तक ले जाने की छूट दी गई है, जिससे कम लागत पर माल का निर्माण हो सके तथा भारतीय व्यवसायियों को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में उचित कीमत प्राप्त हो सके। इसके अतिरिक्त, इन क्षेत्रों के निर्यातक, नई नीति के अंतर्गत घोषित डीईपी (Development of Export Promotion) तथा डी पी सी जी (Export Promotion of Capital Goods) जैसी योजनाओं एवं उनके लाभों को भी प्राप्त कर सकेंगे।

7. विशेष आर्थिक क्षेत्रों का स्थान-निर्धारण -   इस नीति के प्रावधानों के अनुरूप, दो विशेष आख्रथक क्षेत्रों की स्थापना क्रमश: गुजरात राज्य के पीपवाव एवं तमिलनाडु के तूतीकोरण नगर में की गई है। इन क्षेत्रों की विशेषता यह होगी है कि इनमें इकाइयाँ निर्यात और आयात के नियमों से मुक्त होकर कारोबार कर सकेंगी। इन क्षेत्रों में मशीन और कच्चा माल आयात शुल्क मुक्त होगा। यहाँ की इकाइयाँ, देश के अन्य क्षेत्रों से जो माल मंगवाएंगी, उन पर उन्हें अन्तिम उत्पाद शुल्क नहीं देना होगा। इन क्षेत्रों के लिए कम से कम 400.500 हेक्टेयर का क्षेत्र रखा जाएगा। सांताक्रूज, कांडला, विजाग और कोच्चि के विशेष प्रसंस्करण क्षेत्रों को भी विशेष निर्यात क्षेत्र में बदला गया है।

8. ज्ञान आधारित उद्योगों के निर्यात को प्रोत्साहन -   ऐसे उद्योग, जो औषधि, जैव प्रौद्योगिकी, एग्रो रसायन से संबंधित है तथा मानवीय ज्ञान की खोज पर निर्भर रहते हैं, के उद्योगों को निर्यात के एक प्रतिशत मूल्य के बराबर प्रयोगशाला उपकरण और प्रयोग के सामान ‘शुल्क मुक्त’ रूप से आयात करने की छूट होगी। इसका प्रमुख उद्देश्य अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देना है। इन नीति में, रेशमी सामानों के निर्यात को, निर्यात से पूर्व सिल्क बोर्ड से निरीक्षण करवाने की व्यवस्था समाप्त कर दी गई है।

9. कच्चे माल की उपलब्धता में वृद्धि हेतु प्रयास -  केंद्र सरकार ने इस नीति के अंतर्गत निर्यात के लिए कच्चे माल की उपलब्धता बढ़ाने के उद्देश्य से ‘शुल्क-मुक्त’ प्रतिपूख्रत योजना को 5000 से भी अधिक वस्तुओं के लिए लागू किया है। इसमें, मानक आयात-निर्यात अनुपात के आधार पर कच्चा माल शुल्क मुक्त रूप से मंगवाया जा सकता है।

10. अन्य आवश्यक तत्त्व एक दृष्टि -  इस नवीन नीति के कतिपय महत्त्वपूर्ण पहलू इस प्रकार दृष्टिगोचर होने है:-
  1. नीति का कार्यकाल-वर्तमान आयात-निर्यात नीति का कार्यकाल अप्रैल, 1997 से मार्च 2002 तक का है, किन्तु सरकार परिस्थितिनुसार, प्रत्येक वर्ष, इसमें सुधार कर सकती है।
  2. कोष की स्थापना-राज्य सरकारों की ओर से किए जाने वाले निर्यात को प्रोत्साहित करने के लिए 250 करोड़ रूपये के एक विशेष कोष की स्थापना की गई है।
  3. बिना लाइसेंस अनुमति-एक ओर, सिल्क के आयात को विशेष आयात लाइसेंस के अधीन अनुमति प्रदान की गई है, तो दूसरी ओर 10 वर्ष से कम प्रयोग में लाई गई पूँजीगत वस्तुओं को बिना लाइसेंस के आयात की अनुमति दी गई है। विशेष आयात लाइसेंस को 1 अप्रैल, 2001 तक समाप्त किया जाना है।
  4. निर्यात संवर्द्धन पूँजीगत वस्तुएं आयात योजना को पाँच प्रतिशत आयात शुल्क पर सभी औद्योगिक क्षेत्रों को सुलभ कराने का दृष्टिकोण, इस नीति में समाविष्ट किया गया है।
  5. सभी बंदरगाहों पर 30 जून 2000 से समस्त काम-काज इलेक्ट्रोनिक आधार पर प्रारंभ किया जाएगा।
  6. कर आयोग को और सशक्त किया जाएगा, जिससे कि आयात होने वाले और निर्यात किए जाने वाले माल पर प्राप्त होने वाले कर को वास्तविक रूप में प्राप्त किया जा सके एवं भ्रष्टाचार को समाप्त किया जा सके।
  7. घरेलू उद्योग को शुल्क संरक्षण एंटी-डंपिग, सब्सिडी विरोधी प्रणाली के तहत सुरक्षा जारी रखने की नीति को बरकरार रखा जाएगा।

Post a Comment

Previous Post Next Post