बैंक की स्थापना का मूल उद्देश्य और इसके कार्य

विश्व बैंक

विश्व बैंक की स्थापना 1944 में अमेरिका के ब्रेटन बुडस शहर में IMF के अलावा जिस अन्य संस्था की स्थापना हुई वह अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निमाण एवं विकास बैंक (International Reconstruction and Development Bank - IRDB) था। इसे विश्व बैंक (World Bank) भी कहा जाता है। इस बैंक की स्थापना का मूल उद्देश्य अपने प्रतिनिधि सदस्य राष्ट्रों के आर्थिक विकास के लिये दीर्घकालीन ऋण प्रदान करना है।

विश्व बैंक के कार्य

1. ऋण प्रदान करना (To grant Lonas) : विश्व बैंक अपना सदस्यो राष्ट्रों को निम्नलिखित साधनों से ऋण उपलब्ध कराता है।

2. पूंजी में से ऋण देना (To grant Loans from Capital) : बैंक सदस्य राष्ट्रों को ऋण देने के लिये अन्य राष्ट्रों से ऋण ले सकता है, इस प्रकार ऋण देने से पूर्व बैंक को उस देश की स्वीकृति लेनी पड़ती है जिसको मुद्रा बाजार से ऋण दिया जाता है।

3. कोष से ऋण देना (To grant Lonas from Fund) : बैंक सदस्यों देशों की विकास संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये अपनी पूंजी में से ऋण दे सकता है। बैंक इस कार्य के लिये अधिक से अधिक बची हुई पूंजी का 20: प्रयोग कर सकता है।

4. गारंटी देना (To Guarantee) : बैंक सर्वप्रथम स्वयं ऋण न देकर अन्य राष्ट्रों या वित्तीय संस्थाओं से अपनी गारंटी देकर अपने सदस्य राष्ट्रों को ऋण उपलब्ध करवाता है।

5. प्रशिक्षण कार्यक्रम (Training Programme) : विश्व बैंक सदस्य देशों के अधिकारियों के लिये वित्त, मौद्रिक, व्यवस्था, कर-प्रणाली, तकनीकी, कुशलता तथा बैंकिंग संगठन इत्यादि विषयों पर प्रशिक्षण की व्यवस्था भी करता है, इस कार्य के लिये 1995 में वाशिंगटन आर्थिक विकास संस्था की स्थापना की गई।

6. प्राविधिक सहायता (Technological Assitance) : बैंक अविकसित सदस्यों का आर्थिक सर्वेक्षण करता है तथा अपने विशेषज्ञों को विभिन्न आयोजन कार्यों में सलाह देने के लिये अपने समस्त देशों में भेजता है जो आर्थिक, वैज्ञानिक प्राविधिक तथा अन्य कार्यों में सहायता देते है।

7. अन्तर्राष्ट्रीय समस्या सुझाना (To solve International Problems) : विश्व बैंक एक अन्तर्राष्ट्रीय निष्पक्ष संगठन होने के नाते विभिन्न देशों में आपसी झगड़ें एवं समस्याओं का समाधान करता है, इनसे भारत-पाक नहरी विवाद तथा स्वेज नहर विवाद को कुशलतापूर्वक सुलझाने में सराहनीय कार्य किया है।

विश्व बैंक के उद्देश्य

1. पुननिर्माण व आर्थिक विकास (Reconstruction and Economic Development) : इसका मुख्य उद्देश्य युद्ध में जर्जरिक सदस्य राष्ट्रों के पुन: निर्माण के लिये वित्तीय सहायता देना एवं अविकसित और अर्द्धविकसित राष्ट्रों को उचित मात्रा में वित्तीय सहायता प्रदान करके उन देशों के तीव्र विकास को सम्भव बनाना है।

2. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रोत्त्साहन देना (Encouragement to International Trade) : बैंक अन्तर्राष्ट्री व्यापार को प्रोत्साहन देता है और सदस्य राष्ट्र के लोगों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाता है।

3. विनियोग को प्रोत्साहन (Encouragement to Investment) : इसका उद्देश्य ऐसे सदस्य राष्ट्रों को जो पिछड़े एवं कम उन्नतशील हैं तथा जो पूंजी के अभाव में अपने प्राकृतिक साधनों को समुचित विदोहन नहीं कर पाये हैं, उनको उन्नतशील बनाने के लिये व्यक्तिगत एवं संस्थागत पूंजीपतियों को ऋण गारंटी देकर उन राष्ट्रों में पूंजी के विनियोजन को प्रोत्साहित करना है।

4. पूंजी उपलब्ध करना (To made Capital Available) : बैंक अपने सदस्य राष्ट्रों में स्वयं पूंजी विनियोजित करता है तथा अन्य पूंजीपतियों को भी इस कार्य में सहयोग देने के लिये प्रोत्साहित करता है। इस प्रकार यह पिछड़े देशों के लिये पूंजी की व्यवस्था करता है।

5. शान्तिकालीन अर्थव्यवस्था स्थापित करना (To establish Peaceful Economy) : बैंक अपने सदस्य राष्ट्रों को युद्धकालीन अर्थव्यवस्था को शान्तिकालीन अर्थव्यवस्था में परिवर्तित करने में सहयोग प्रदान करता है। विश्व बैंकैंकैंक की सदस्यता : प्रत्येक राष्ट्र, जो अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का सदस्य है, विश्व बैंक का भी स्वत: सदस्य बन जाता है, जून 1994 में विश्व बैंक के सदस्यों की संख्या 173 थी।

विश्व बैंक की पूंजी 

स्थापना के समय विश्व बैंक की अधिकृत पूंजी 10 अरब डालर रखी गयी थी जो 1 लाख अंशों में विभाजित थी। अपै्रल 1998 में बैंक के प्रशासन मण्डल ने बैंक की अधिकृत पूंजी में 6.2 लाख शेयरों की वृद्धि की जिससे अधिकृत पूंजी बढ़कर 91,436 मिलियन डालर हो गयी। 30 जून 1989 को यह बढ़कर 1,15,668 मिलियन डालर तथा जून 1992 में यह बढ़कर 152. 24 बिलियन डालर हो गयी। बैंक की अधिकृत पूंजी में प्रदत्त 10,060 मिलियन डालर है।

विश्व बैंक का संगठन

1. प्रशासनिक मण्डल (Board of Governers) : इस मण्डल मे प्रत्येक सदस्य देश द्वारा एक गर्वनर तथा स्थानापन्न गर्वनर नियुक्त किया जाता है। इसकी वर्ष में कम से कम एक बैठक होना अनिवार्य है।

2. सलाहकार परिषद (Advisory Council) : 7 सदस्यों की एक सलाहकार परिषद् नियुक्त की गई है। इसमें बैंकिंग, व्यापार, उद्योग, श्रम तथा कृषि के विशेषज्ञ होते हैं।

3. प्रबन्धक निदेशक मण्डल (Board of Executive Directors) : प्रबन्धक निदेशक मण्डल में सदस्यों की संख्या 20 है। प्रत्येक संचालक का कार्यकाल 2 वर्ष होना है।

4. ऋणी समितियां (Loan Committees) : सदस्य देशों द्वारा मांगी गये ऋणों की उपयुक्त जांच करने के लिये बैंक ऋण समितियां नियुक्त की जाती है, जो यथासमय अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करती है।

5. विशिष्ट उद्देश्यों के लिये निर्मित समितियां : प्रशासकीय मण्डल द्वारा, विभिन्न कार्यों को सम्पादित करने के लिये अन्य समितियां भी घटित की गई है, जिनमें प्रमुख हैं विकास समिति, संयुक्त अंकेक्षण समिति, लागत और बजट समिति, कार्मिक नीति समिति, संचालकों की प्रशासकीय मामलों की समिति तथा मण्डल कार्यनीति की तदर्थ समिति।

विश्व बैंक की सफलताएं

विश्व बैंक द्वारा प्रतिपादित कार्यों की प्रगति है।

1. वित्तीय साधनों का विस्तार (Expansion of Financial Resources) : विश्व बैंक ने अपने कार्य-काल में समय-समय पर पूंजी में वृद्धि करने के अनेक प्रयत्न किये हैं, विगत 50 वर्षों में विश्व बैंक ने अपनी पूंजी को दुगने से भी अधिक कर लिया है। इसके अतिरिक्त विश्व बैंक समय-समय पर अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजारों से भी ऋण लेता रहा है।

2. ऋण प्रदान करना (Advancing of Loans) : 30 जून 1992 तक विश्व बैंक ने कुल 2,18,210 मिलियन अमेरिकन डालर के ऋण स्वीकृत किये हैं :

3. तकनीकी सहायता : विश्व बैंक ने अपने सदस्य बैंकों को तकनीकी सहायता भी प्रदान की है, इसके लिये बैंक अपने सदस्य देशों में तकनीकी विशेषज्ञ भेजकर उनका आर्थिक सर्वेक्षण करवाता है तथ उन्हें विकास के लिये तकनीकी सहायता उपलब्ध कराता है।

4. विकासशील देशों का ऋण : अपने पिछड़े एवं अल्पविकसित सदस्य देशों को बैंक ने विद्युत शक्ति तथा परिवहन के साधन के लिये ऋण प्रदान किया क्योंकि यह साधन किसी भी देश के विकास के लिये अनिवार्य होते हैं इनके अभाव में आर्थिक विकास की कल्पना असंभव है।

5. अन्तर्राष्ट्रीय वित्त निगम : यह संस्था विश्व बैंक से संबंधित है। इसकी स्थापना जुलाई 1956 में की गयी थी। इस संस्था का मुख्य उद्देश्य सदस्य देशों में वित्तीय व्यवस्था को प्रोत्साहित करना है।

6. अणु-शक्ति के लिये ऋण : विश्व बैंक ने जहां बिजली, संचार, उद्योग तथा यातायात के साधनों के विकास के लिये ऋण दिये हैं वहां उसने इटली को 4 करोड़ डालर का ऋण अणु शक्ति के विकास के लिये होता है। 

7. विवादों का समाधान : विभिन्न सदस्य देशों के आपसी मतभेदों का समाधान भी विश्व बैंक करता है। विश्व बैंक की मध्यस्थता से भारत-पाक नगर जल-विवाद तथा मिस्त्रा एवं इंग्लैंड के मध्य स्वेज नहर से उत्पन्न विवाद का समाधान हुआ है।

विश्व बैंक की असफलताएं

यद्यपि विश्व बैंक की स्थापना से अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रत्येक देश को लाभ प्राप्त हुआ है। परन्तु इसके द्वारा किये गये कार्यों के आधार पर इसकी आलोचनायें की गई हैं।

1. ब्याज एवं कमीशन की दरें : विश्व बैंक द्वारा दिये गये ऋणों पर 8: तक वार्षिक ब्याज लिया जाता है। यह ब्याज व्यवसायिक दृष्टि से भले ही अधिक न हो लेकिन अर्द्धविकसित देशों की दृष्टि से यह ब्याज की दर बहुत अधिक है। 

2. अल्पविकसित देशों को कम ऋण : एशिया तथा अफ्रीका के गरीब देशों को विश्व बैंक द्वारा दी गई सहायता उसे आर्थिक विकास की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये अपर्याप्त है। इसी कारण इन देशों के प्रतिनिधियों ने विश्व बैंक की वार्षिक बैठकों में बैंक की ऋण नीति की आलोचना की है।

3. ऋण देने में पक्षपातपूर्ण व्यवहार : आंकड़े यह बताते है कि विश्व बैंक द्वारा जितना भी ऋण दिया जाता है। उसका अत्याधिक प्रतिशत पश्चिमी देशों को प्राप्त होता है, बहुत कम हिस्सा एशियाई देशों के विकास के लिये दिया जाता है। 

4. ऋण देने में विलम्ब: बैंक द्वारा ऋण देने में बहुत विलम्ब होता है क्योंकि इसके ऋण लेने वाले देश को बहुत सी प्रारम्भिक कार्यवाहियों को पूर्ण करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त ऋण देने से पूर्व ऋण चुकाने की शक्ति पर आवश्यकता से अधिक बल दिया जाता है।

5. कृषि आदि के लिये ऋण : विश्व बैंक अल्पविकसित देशों को ऋण अधिकांशत: कृषि एवं सम्बन्धित कार्यों के लिये ही देता है। भारत एवं मूलभूत उद्योगों के लिये नहीं। भारत को जितने ऋण दिये हैं वे अधिकांशत: कृषि, सिंचाई, बिजली एवं खनिज आदि के विकास के लिये ही दिये गये हैं।

6. अन्य : बैंक ने अन्तर्राष्ट्रीय ऋणों से सम्बन्धित उपयुकत अवस्थाओं की स्थापना में सहायता दी है।
  1. विश्व बैंक ने ऋणों को नियमित अदायगी और ब्याज के समायोजित भुगतान को प्रोत्साहित किया है।
  2. बैंक आसान शर्तों पर 25 से 30 वर्ष तक की अवधि के लिये ऋण देता है।
  3. बैंक ने बहुपक्षीय व्यापार एवं निवेश प्रणाली का भी विकास किया है।

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