नौकरशाही का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, विशेषताएं

औद्योगिक क्रान्ति के तुरन्त बाद सामाजिक व राजनीतिक ढांचे में आए परिवर्तनों ने संगठन की जिस प्रणाली को वह जन्म दिया, वह नौकरशाही ही है। सामाजिक आर्थिक परिवर्तन के दौर में परम्परागत समाज को संतुलित, व्यवस्थित और विकसित होने हेतु नौकरशाही जैसे तन्त्र की अत्यधिक आवश्यकता महसूस की गई। यद्यपि विशिष्ट वर्ग के रूप में नौकरशाही जैसे तन्त्र का जन्म युगों पहले ही हो चुका था, लेकिन औद्योगिक क्रान्ति के बाद इसका संगठित रूप उभरकर सामने आया। इसने एक ऐसे वर्ग की भूमिका निभाई जो पूर्णतया: बुद्धिजीवियों और कार्यकुशलता से सम्बन्धित था और सामाजिक परिवर्तन को गतिशील बनाने को तत्पर था। 

लोकतन्त्रीय राज्यों के उद्भव ने इस वर्ग के महत्व में वृद्धि कर दी। लोक कल्याण पर आधारित प्रजातन्त्रीय सरकारों को उनके लक्ष्यों को प्राप्त करने में नौकरशाही तन्त्र ने जो भूमिका अदा की, वह सर्वविदित है। आज तानाशाही देशों में तो इसे शासक वर्ग द्वारा जनता का शोषण करने का यन्त्र माना जाता है, जबकि प्रजातन्त्र में यह जनकल्याण के लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रभावशाली साधन है। इसी कारण आज नौकरशाही तन्त्र विशिष्ट वर्ग के रूप में अपनी पहचान कायम कर चुका है।

नौकरशाही का अर्थ

आज नौकरशाही का रूप इतना विकसित हो चुका है कि इसे अनेक नामों से पुकारा जाने लगा है। आज नौकरशाही के लिए सिविल सेवा (Civil Service), मैजिस्ट्रेसी (Magistracy), अधिकारी तन्त्र (Officialdom), सरकारी निरंकुशवkn (Offcial despotism), विभागीय सरकार (Departmental Govt.), स्थायी कार्यपालिका (Permanent executive), विशिष्ट वर्ग (Elite) गैर-राजनीतिक कार्यपालिका (Non-political executive) आदि नामों का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रमुख कारण देश और काल में अन्तर है। यूरोपीय देशों में यह शब्द साधारणत: नियमित सरकारी कर्मचारियों व अधिकारियों के समूह के लिए प्रयोग किया जाता है। 

नौकरशाही शब्द अंग्रेजी भाषा के 'Bureaucracy' शब्द का हिन्दी अनुवाद है। 'Bureaucracy' शब्द फ्रांसिसी भाषा के 'Bureau' शब्द से लिया गया है। इसका अर्थ होता है - ‘मेज प्रशासन’ या कार्यालयों द्वारा प्रबन्ध। आज नौकरशाही एक बदनाम सा शब्द हो गया है। इसी कारण प्रयोग अपव्यय, स्वेच्छाचारिता, कार्यालय की कार्यवाही, तानाशाही आदि के रूप में किया जाता है। नौकरशाही के बारे में अनेक विद्वानों ने अपनी अलग-अलग परिभाषाएं दी हैं जो इसके अर्थ को स्पष्ट करती हैं।

नौकरशाही की परिभाषाएं

  1. मैक्स वेबर के अनुसार-”नौकरशाही प्रशासन प्रशासन की ऐसी व्यवस्था है जिसमें विशेषज्ञता, निष्पक्षता तथा मानवता का अभाव होता है।” 
  2. पाल एच. एपेलबी के अनुसार-”नौकरशाही तकनीकी दृष्टि से कुशल कर्मचारियों का एक व्यवसायिक वर्ग है जिसका संगठन पद-सोपान के अनुसार किया जाता है और जो निष्पक्ष होकर राज्य का कार्य करते हैं।” 
  3. मार्शल ई0 डिमॉक के अनुसार-”नौकरशाही का अर्थ है-विशेषीकृत पद सोपान तथा संचार की लम्बी रेखाएं।” 
  4. कार्ल जे0 फ्रेडरिक के अनुसार-”नौकरशाही से अभिप्राय ऐसे लोगों के समूह से है जो ऐसे निश्चित कार्य करता है जिन्हें समाज उपयुक्त समझता है।” 
  5. विलोबी के अनुसार - “नौकरशाही के दो अर्थ हैं - विस्तृत अर्थ में “यह एक सेवीवर्ग प्रणाली है जिसके द्वारा कर्मचारियों को विभिन्न वर्गीय पद-सोपानों जैसे सैक्शन, डिविजन, ब्यूरो तथा विभाग में बांटा जाता है।” संकुचित अर्थ में-”यह सरकारी कर्मचारियों के संगठन की पद-सोपान प्रणाली है, जिस पर बाह्य प्रभावशाली लोक-नियन्त्रण सम्भव नहीं है।” 
  6. लास्की के अनुसार-”नौकरशाही का आशय उस व्यवस्था से है जिसका पूर्णरूपेण नियन्त्रण उच्च अधिकारियों के हाथों में होता है और इतने स्वेच्छाचारी हो जाते हैं कि उन्हें नागरिकों की निन्दा करते समय भी संकोच नहीं होता।”
  7. एनसाइकलोपीडिया ब्रिटेनिका के अनुसार-”जिस प्रकार तानाशाही का अर्थ तानाशाह का तथा प्रजातन्त्र का अर्थ जनता का शासन होता है, उसी प्रकार ब्यूरोक्रेसी का अर्थ ब्यूरो का शासन है।” 
  8. रॉबर्ट सी0 स्टोन के अनुसार-”नौकरशाही का शाब्दिक अर्थ कार्यालय द्वारा शासन अधिकारियों द्वारा शासन है। सामान्यत: इसका प्रयोग दोषपूर्ण प्रशासनिक संस्थाओं के सन्दर्भ में किया गया है।” 
  9. फिफनर के अनुसार-”नौकरशाही व्यक्ति और कार्यों का व्यवस्थित संगठन है जिसके द्वारा सामूहिक प्रयत्न रूपी उद्देश्य को प्रभावशाली ढंग से प्राप्त किया जा सकता है।” 
  10. ग्लैडन के अनुसार-”नौकरशाही एक ऐसा विनियमित प्रशासकीय तन्त्र है जो अन्तर सम्बन्धित पदों की शृंखला के रूप में संगठित होता है।”
उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि नौकरशाही शब्द का प्रयोग अनेक अर्थों में किया जाता है। साधारण रूप में कहा जा सकता है कि नौकरशाही स्थायी कर्मचारियों का शासन है जो न तो जनता द्वारा चुने जाते हैं और न ही इस कारण जनता के प्रति उत्तरदायी होते हैं, लेकिन देश की निर्णय-प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। एफ0एम0 मार्क्स ने नौकरशाही को चार अर्थों में परिभाषित किया है- (i) एक विशेष प्रकार के संगठन में (ii) अच्छे प्रबन्धक में बाधक एक व्याधि के रूप में (iii) एक बड़ी सरकार के रूप में (iv) स्वतन्त्रता विरोधी के रूप में। 

एफ0एम0 मार्क्स द्वारा बताए गए अर्थ उपरोक्त सभी परिभाषाओं को अपने में समेट लेते हैं। सत्य तो यह है कि यह शब्द आज बदनामी तथा बिगाड़ के कारण स्वेच्छाचारिता, अपव्यय, तानाशाही तथा कार्यालय की कार्यवाही तक सीमित होकर रह गया है। एफ0एम0 मार्क्स इसी मत की पुष्टि करता है।  लेकिन नौकरशाही एक ऐसी प्रशासकीय व्यवस्था भी है जो सरकार या प्रशासन के लक्ष्यों की बजाय प्रक्रिया पर अधिक बल देती है। अत: नौकरशाही का प्रयोग अच्छे व बुरे दोनों रूपों में होता है।

नौकरशाही का उदय

नौकरशाही का उदय बहुत पहले हुआ था। प्राचीन मिश्र, प्राचीन रोम, चीन के प्रशासन, तेहरवीं सदी में रोमन कैथोलिक चर्च में नौकरशाही के बीज मिलते हैं। किन्तु यह नौकरशाही सीमित प्रकृति की थी। 18वीं सदी में यह पश्चिमी यूरोप के देशों में विकसित रूप में उभरी। औद्योगिक क्रान्ति तथा आधुनिकरण के दौर में इसका बहुत तेज गति से विकास हुआ। धीरे-धीरे नौकरशाही चर्च, विश्वविद्यालय, आर्थिक संस्थानों, राजनीतिक दलों तक भी फैल गई। आज नौकरशाही पूरे विश्व में अपना अस्तित्व कायम कर चुकी है। इसके उदय व विकास के प्रमुख कारण हैं-
  1. सर्वप्रथम इसका जन्म कुलीनतन्त्र में सक्रिय सरकार की रुचि के अभाव के कारण हुआ और धीरे-धीरे सत्ता स्थायी अधिकारियों के हाथों में चली गई। सम्राट की यह इच्छा थी कि कुलीन वर्ग में शक्ति की बढ़ती लालसा को रोकने के लिए एक अधीनस्थ कर्मचारी तन्त्र का होना बहुत जरूरी है। 
  2. लोकतन्त्र के उदय के कारण कुलीनतन्त्र को गहरा आघात पहुंचा। बदलती परिस्थितियों ने विशिष्ट सेवा का कार्य करने के लिए विशेषज्ञोंं की आवश्यकता महसूस की और राज्यों के कल्याणकारी स्वरूप ने इसे अपरिहार्य बना दिया।
  3. पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के उदय ने भी नौकरशाही को बढ़ावा दिया है। पूंजीवाद में अपने हितों की पूर्ति के लिए एक शक्तिशाली और सुव्यवस्थित सरकार की आवश्यकता महसूस हुई। इन सरकारों को नौकरशाही सिद्धान्तों का अनुकरण करना आवश्यक हो गया। इसी कारण पूंजीवादी अर्थव्यवस्था ने नौकरशाही सरकार को जन्म दिया।
  4. पश्चिमी समाज में बुद्धिवाद के विकास ने भी सभी क्षेत्रों में लाभ प्राप्त के लिए संगठित कर्मचारी वर्ग की आवश्यकता अनुभव हुई। इसी से नौकरशाही का विकास हुआ। धीरे धीरे नौकरशाही विश्व के अन्य देशों में भी पहुंच गई।
  5. जनसंख्या वृद्धि ने भी प्रशासनिक कार्यों में वृद्धि कर दी। विश्व में सभी सरकारें अपनी जनता की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बड़े-बड़े संगठनों को स्थापित करने लगी। इस प्रशासनिक वर्ग के लिए सरकारों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कार्य करना जरूरी हो गया। इसी कारण धीरे धीरे नौकरशाही का आधार मजबूत होता गया। 
  6. जटिल प्रशासनिक समस्याओं की उत्पत्ति ने अलग स्थाई कर्मचारी वर्ग की आवश्यकता महसूस कराई। औद्योगिक क्रांति के बाद आई जटिल प्रशासनिक समस्याओं ने नौकरशाही के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। सभी सरकारों के लिए जटिल प्रशासनिक कार्यों को निष्पादित करने के लिए नियमित संगठनों की स्थापना करना जरूरी हो गया।
इस प्रकार नौकरशाही का उदय एक शासन के सामने आई बहुत प्रशासनिक समस्याओं से निपटने के लिए हुआ। आज नौकरशाही एक ऐसे संगठन के रूप में अपना स्थान बना चुकी है कि इसके बिना किसी देश की सरकार अपने प्रशासनिक कार्यों का निष्पादन नहीं कर सकती। आधुनिक संचार के साधनों ने प्रशासनिक समस्याओं को और अधिक जटिल बना दिया है। नौकरशाही के वर्तमान उत्तरदायित्वों का अभी भविष्य में और अधिक विकसित होना अपरिहार्य है। इसी कारण नौकरशाही का विकास भी अवश्यम्भावी है।

नौकरशाही की विशेषताएं

  1. कार्यों का तर्कपूर्ण विभाजन - नौकरशाही में प्रत्येक पद पर योग्य व्यक्ति को ही बिठाया जाता है ताकि वह अपने कार्यों व लक्ष्यों को आसानी से प्राप्त कर सके। अपने कार्यों को पूरा करने के लिए उसे कानूनी सत्ता प्रदान की जाती है। उसे अपने कार्यों को पूरा करने के लिए अपनी सत्ता का पूर्ण प्रयोग करने की छूट होती है।
  2. तकनीकी विशेषज्ञता - नौकरशाही का जन्म ही तकनीकी आवश्यकता के कारण होता है। नौकरशाही में प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने कार्यों में दक्ष होता है। तकनीकी दक्षता के अनुसार ही प्रत्येक व्यक्ति को अलग-अलग कार्य सौंपे जाते हैं। 
  3. कानूनी सत्ता - प्रत्येक व्यक्ति को अपने कार्यों के निष्पादन के लिए अधिकारियों व कर्मचारियों को कानूनी शक्ति का प्रयोग करने की स्वतन्त्रता होती है। 
  4. पद-सोपान का सिद्धान्त - नौकरशाही में कार्यों के निष्पादन व प्रकृति के अनुसार कर्मचारियों के कई स्तर बना दिए जाते हैं। सबसे ऊपर महत्वपूर्ण अधिकारी होते हैं। कर्मचारी वर्ग सबसे निम्न स्तर पर होता है। इस सिद्धान्त के द्वारा सभी को ‘आदेश की एकता’ के सूत्र में बांधा जाता है। 
  5. कानूनी रूप से कार्यों का संचालन - नौकरशााही में सरकारी अधिकारी कानून व नियमों की मर्यादा में ही अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन करते हैं। इससे प्रशासन में कठोरता आ जाती है। नौकरशाही का संचालन ‘कानून के शासन’ के द्वारा ही होता है। इसलिए उन्हें कानूनी सीमाओं में बंधकर ही अपना कार्य करना पड़ता है। इससे प्रशासन में लोचहीनता भी पैदा हो जाती है। 
  6. राजनीतिक तटस्थता - नौकरशाही में राजनीतिक तटस्थता का महत्वपूर्ण गुण पाया जाता है। इसमें अधिकारियों को राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं होते। प्रशासनिक अधिकारियों को मत देने का तो अधिकार प्राप्त होता है, लेकिन सक्रिय राजनीतिक सहभागिता से बचना पड़ता है। 
  7. योग्यता-प्रणाली - नौकरशाही में प्रशासनिक अधिकारियों व कर्मचारियों का चयन योग्यता के आधार पर होता है, सिफारिश के आधार पर नहीं। उनकी नियुक्ति के लिए निश्चित योग्यताएं रखी जाती हैं और प्रतियोगिता परीक्षाओं का संचालन एक उच्च सेवा आयोग के माध्यम से होता है। 
  8. निश्चित वेतन तथा भत्ते - नौकरशाही के अन्तर्गत सभी कर्मचारियों व अधिकारियों को निश्चित वेतन व भत्ते मिलते हैं। नौकरी से रिटायर होने के बाद पैंशन का भी प्रावधान है।
  9. पदोन्नति के अवसर - नौकरशाही में सभी कर्मचारियों व अधिकारियों को अपनी योग्यता व प्रतिभा विकसित करने के पूरे अवसर प्राप्त होते हैं। इसमें लोकसेवकों को परिश्रम व मेहनत के बल पर अपना पद विकसित करने के पूरे अवसर मिलते हैं। 
  10. निष्पक्षता - नौकरशाही में लोकसेवकों को अपना कार्य बिना भेदभाव के करना पड़ता है। उनकी दृष्टि में सभी लोग चाहे वे अधिक प्रभावशाली हों या कम, बराबर होते हैं।
  11. व्यवसायिक वर्ग - नौकरशाही में लोकसेवकों का वर्ग एक व्यवसायिक वर्ग होता है। वह अपने कार्यों का निष्पादन जन सेवा के लिए न करके व्यवसाय समझकर ही करता है। 
  12. लालफीताशाही - नौकरशाही में आवश्यकता से अधिक औपचारिकता को अपनाया जाता है। इससे प्रशासनिक निर्णयों में देरी होती है और इसी कारण नौकरशाही को बदनामी सहनी पड़ती है। इसमें अनौपचारिक सम्बन्धों का कोई स्थान नहीं होता। समस्त कार्य नियमानुसार परम्परा के अनुसार ही किया जाता है। इसमें कार्य-अनुशासन पर अधिक जोर देने के कारण लाल-फीताशाही को बढ़ावा मिलता है।

नौकरशाही के प्रकार

नौकरशाही के संगठन के स्वरूप; प्रक्रिया दृष्टिकोण आदि पर सम्बन्धित देश और काल का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। उस देश की तत्कालीन सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, नैतिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक परिस्थितियां उसके स्वरूप को निर्धारित करती हैं। एफ0एम0 मार्क्स ने नौकरशाही के चार प्रकारों का उल्लेख किया है। नौकरशाही के ये चार प्रकार हैं :-
  1. अभिभावक नौकरशाही
  2. जातीय नौकरशाही
  3. प्रश्रय या संरक्षक नौकरशाही
  4. योग्यता पर आधारित नौकरशाही

1. अभिभावक नौकरशाही -

अभिभावक नौकरशाही में नौकरशाहों द्वारा जनता के साथ एक अिभाभावक जैसा आचरण अमल में लाया जाता है।यह नौकरशाही सदैव जन-साधारण के हितों के लिए चिन्तित रहती है। इसके समस्त क्रिया-कलाप जनहित पर ही आधारित होते हैं। इस नौकरशाही में नौकरशाहों को समुदाय के न्याय तथा जनहित का संरक्षक माना जाता है। इस प्रकार की नौकरशाही प्लेटों के आदर्श राज्य में प्रकट होती है। 960 ई0 में चीन में, प्रशा में 1640 तक अभिभावक नौकरशाही का ही प्रचलन था। प्रशा की नौकरशाही की विशेषताएं थी :-
  1. राज्य के हित का समर्पित।
  2. एकीकृत एवं संतुलित प्रशासनिक व्यवस्था।
  3. शिक्षित व योगय प्रशासक।
  4. राजतन्त्र के साथ साथ मध्यवर्गीय गुणों का समन्वय।
  5. सजग राजतन्त्र के मूल्यों का पोषण।
  6. अन-भावादेशों के प्रति उत्तरदायित्व का अभाव।
इस प्रकार प्रशा की नौकरशाहेी एक श्रेष्ठ नौकरशाही थी। मार्क्स के अनुसार-”राजा की पक्षपाती एवं उसी के माध्यम से जनता की सेवा करने वाली प्रशा की प्रारम्भिक नौकरशाही इस बात पर गर्व कर सकती है कि यह अपने उद्देश्य में अलोचशील, ईमानदार, जनता के साथ सम्बन्धों में सत्तावादी एवं सद्भावपूर्ण तथा बाहरी आलोचनाओं से अप्रभावित बनी रही।” इस नौकरशाही में अधिकारियों का प्रमुख कर्तव्य लोगों के सामने एक आदर्श जीवन का उदाहरण प्रस्तुत करना था। इसी कारण उनका चुनाव योग्यता के आधार पर ही होता था और उन्हें शास्त्रीय पद्धति के अनुसार प्रशिक्षण दिया जाता था। लेकिन इस नौकरशाही में प्रमुख दोष यह आ गया कि निरंकुशता को ही अपना आदर्श मानने लगी और परम्परावादी व रुढ़िवादी बन गई। आज इस नौकरशाही का प्रमुख दोष इसका निरंकुश आचरण ही है।

2. जातीय नौकरशाही -

यह नौकरशाही जातीय पद्-क्रम पर आधारित होती है। इस नौकरशाही का जन्म तब होता है, जब प्रशासकीय तथा सत्ता शक्ति एक ही वर्ग के हाथों में होती है। इस प्रकार की नौकरशाही में वे व्यक्ति ही उच्च प्रशासनिक पदों को प्राप्त कर लेते हैं जो उच्च जाति या शासक-वर्ग से सम्बन्ध रखते हैं। इस नौकरशाही में ऐसी योग्यताओं का निर्धारण किया जाता है जो उच्च वर्ग या जाति में ही पाई जाती हैं। विलोकी ने इसे कुलीनतन्त्रीय नौकरशाही कहा है। इसमें उच्च पदों के लिए योग्यताओं को जातिगत प्राथमिकताओं से जोड़ दिया जाता है। इस प्रकार की नौकरशाही प्राचीन समय में रोमन साम्राज्य तथा आधुनिक युग में जापान के मेजी संविधान के अन्तर्गत कार्यरत नौकरशाही का रूप है। 1950 में फ्रांस में भी इसी तरह की नौकरशाही का विकसित रूप था। इस नौकरशाही की प्रमुख विशेषताएं हैं :-
  1. शैक्षिक योग्यताओं की अनिवार्यता।
  2. पद और जाति में अन्तर्सम्बन्ध।
  3. सेवा या पद का परिवार से जुड़ जाना।
  4. दोषपूर्ण समाज व्यवस्था के प्रतीक।
इस प्रकार की नौकरशाही का विकसित रूप प्राचीन भारत में भी प्रचलित था। प्राचीन काल में ब्राह्मणों व क्षत्रियों को उच्च प्रशासनिक पद सौंपे जाते थे। इस नौकरशाही ने सामाजिक वर्ग विभेद को जन्म दिया है। यह वर्ग विशेष के हितों की पोषक होने के कारण सामाजिक विषमताओं की जननी मानी जाती है।

3. संरक्षक या प्रश्रय नौकरशाही -

इस नौकरशाही का दूसरा नाम लूट प्रणाली (Spoil System) भी है। इस प्रकार की नौकरशाही को राजनीतिक लाभ पर आधारित माना जाता है। चुनाव में विजयी राजनीतिज्ञ अपने समर्थकों को उच्च राजनीतिक व प्रशासनिक पदों पर नियुक्त करके प्रश्रय नौकरशाही को जन्म देते हैं। इस नौकरशाही में नियुक्ति का आधार योग्यता की बजाय राजनीतिक सम्बन्ध होते हैं। अमेरिका को इस नौकरशाही का जनक माना जाता है। वहां पर प्रत्येक नवनिर्चाचित राष्ट्रपति पुराने पदाधिकारियों को सेवामुक्त करके उच्च पदों पर राजनीतिज्ञ समर्थकों को नियुक्त करता था। 

यह नौकरशाही लम्बे समय तक अमेरिका में अपना प्रभाव बनाए रही। राष्ट्रपति जैक्सन ने भी इसी नौकरशाही का पोषण किया था। 19वीं सदी से पहले ब्रिटेन में भी यह नौकरशाही प्रचलित थी। आगे चलकर इसमें अनेक दोष उत्पन्न हो गए। इसके कारण अमेरिका व ब्रिटेन ने इसका त्याग कर दिया।

संरक्षक नौकरशाही की विशेषताएं

  1. इसमें कार्मिकों को भर्ती के समय शैक्षिक व व्यावसायिक योग्यताओं का कोई महत्व नहींं होता।
  2. यह नौकरशाही सत्ताधारी दल के प्रति प्रतिबद्धता का पालन करती है।
  3. यह नौकरशाही जनहित की अपेक्षा राजनीतिक नेतृत्व का समर्थन करती है।
  4. इसमें राजनीतिक तटस्थता का अभाव पाया जाता है।
  5. यह पक्षपातपूर्ण, भ्रष्ट, भाई-भतीजावाद पर आधारित होती है।
  6. इसमें लोकसेवकों का कार्यकाल अनिश्चित होता है। वे अपने पद पर सत्तारूढ़ दल के सरंक्षण तक ही रह सकते हैं। सत्तारूढ दल के शासन छोड़ते ही उन्हें भी अपना पद त्यागना पड़ता है।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि संरक्षक नौकरशाही राजनीतिक तटस्थता का त्याग करके शासक वर्ग के हितों की पोषक बनकर कार्य करती है। इसलिए इसमें अनेक दोष उत्पन्न हो जाते हैं जैसे - योग्यता का अभाव, अनुशासनहीनता, अधिकारियों का लालचीपन, पक्षपातपूर्ण, सेवाभाव का अभाव, राजनीतिक तटस्थता का अभाव आदि।

4. योग्यता पर आधारित -

उपरोक्त तीनों नौकरशाहियों की कमियों के परिणामस्वरूप जिस नई नौकरशाही का उदय हुआ, वह योग्यता पर आधारित नौकरशाही ही है। इसमें लोकसेवकों की नियुक्ति योग्यता व मेरिट के हिसाब से की जाती है। इसमें लोकसेवकों के चयन के लिए निष्पक्ष भर्ती परीक्षाओं का आयोजन किया जाता है। इसमें लोकसेवकों पर शासक-वर्ग का कोई दबाव नहीं रहता। इसमें सदैव जन-कल्याण को ही महत्व दिया जाता है। इसी कारण आज विश्व के अधिकांश देशों में इसी प्रकार की नौकरशाही का प्रचलन है। इस नौकरशाही की प्रमुख विशेषता हैं :-
  1. योग्यता के आधार पर नियुक्तियां तथा नियुक्तियों के लिए लिखित परीक्षाएं।
  2. कार्यकाल का निश्चित होना।
  3. निर्धारित वेतन व भत्ते।
  4. कानून के शासन पर आधारित।
  5. निष्पक्ष व निर्भयतापूर्ण कार्य-सम्पादन।
  6. राजनीतिक तटस्थता।
  7. संविधान व अपने कर्तव्यों के प्रति वचनबद्धता।
  8. जन-हितों की पोषक।
भारत में नौकरशाही का यही रूप प्रचलित है।

नौकरशाही की भूमिका

आज के लोकतन्त्रीय युग में शासन को चलाने के लिए नौकरशाही की अहम् भूमिका है। कल्याणकारी राज्य के रूप में आज सरकार के कार्य इतने अधिक हो गए हैं कि नौकरशाही की मदद के बिना उन्हें पूरा करना कठिन ही नहीं, बल्कि असम्भव सा भी है। जौसेफ चैम्बरलेन का कहना सत्य है कि लोकसेवकों के बिना सरकार का काम नहीं चल सकता। राजनीतिक कार्यपालिका को इतना ज्ञान नहीं हो सकता कि वह कानून बनाकर उन्हें लागू भी कर दे। राजनीतिक कार्यपालिका को प्रशासन चलाने के लिए नौकरशाही की सहायता अवश्य लेनी पड़ती है। यह सत्य है कि नौकरशाही के विकास के बाद प्रशासन अधिक कार्यकुशल, विवेकशील और संगत बना है। 

भारत जैसे संसदीय प्रजातन्त्रीय देश में तो नौकरशाही एक ऐसा मूल्य है जिसका अस्तित्व में रहना अपरिहार्य है। यदि कभी इस मूल्य का पतन हुआ तो नौकरशाही भी इस दोष से बच नहीं सकेगी। वास्तव में समाज में व्यवस्था बनाए रखने, उसे एकता के सूत्र में बाँधने और विकास को गति देने में नौकरशाही की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। इसी कारण आज नौकरशाही के प्रभाव से बच पाना मुश्किल है। इसकी भूमिका का विवेचन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है :-
  1. नीतियों के निर्माण में परामर्शदाता के रूप में भूमिका अदा करना- विश्व के सभी प्रजातन्त्रीय देशों में नीति-निर्माण में नौकरशाही राजनीतिज्ञों की बहुत मदद करता है। राजनीतिज्ञों को प्रशासन की बारीकियों का कोई ज्ञान नहीं होता। इसी कारण वे नौकरशाही द्वारा मदद की अपेक्षा रखते हैं। नीतियों के निर्माण हेतु आवश्यक सूचनाएं, आंकड़े, तकनीकी शब्दावली, प्रक्रिया प्रणाली आदि सम्बन्धी ज्ञान लोकसेवकों द्वारा ही राजनीतिज्ञों तक पहुंचाया जाता है। प्रदत्त-व्यवस्थापन की शक्ति का प्रयोग करते हुए प्रशासक वर्ग नीति-निर्माण में राजनीतिक कार्यपालिका की परामर्शदाता के रूप में मदद करता है।
  2. नीतियों व निर्णयों का क्रियान्वयन करना - सरकार या राजनीतिक कार्यपालिका द्वारा निर्धारित नीतियों, निर्णयों, योजनाओं आदि के क्रियान्वयन का प्रमुख उत्तरदायित्व नौकरशाही पर ही है। यह भूमिका नौकरशाहों को राजनीति के अभिकर्ता सिद्ध करती है। नीति चाहे प्रशासक-वर्ग की इच्छाओं के प्रतिकूल भी हो, लेकिन उसका क्रियान्वयन करना प्रशासकों का प्रमुख उत्तरदायित्व है। यदि नीति को क्रियान्वित करते समय जरा सी भी लापरवाही की जाती है तो नीति-निर्माण का उद्देश्य ही नष्ट हो सकता है। इसलिए उत्तरदायी ढंग से प्रशासक वर्ग नीतियों का क्रियान्वयन करता है। भारत में कल्याणकारी राज्य के रूप में सरकार द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न कार्यक्रम, योजनाएं, परियोजनाएं, नीतियां आदि भारतीय लोकसेवकों द्वारा क्रियान्वित की जा रही हैं। इस प्रकार नीतियों के प्रभावकारी क्रियान्वयन में नौकरशाही की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है।
  3. विकास अभिकर्ता के रूप में - विकासशील देशों में नौकरशाही एक ऐसे योग्य एवं प्रबुद्ध वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है, जो प्राय: राजनीतिज्ञ स्तर से उच्च बौद्धिक स्तर का होता है। बदलती सामाजिक परिस्थितियों, सामाजिक मूल्यों और आर्थिक एवं अन्य आवश्यकताओं को पहचान कर उसके अनुरूप आधुनिक समाज का निर्माण करना नौकरशाही का प्रमुख उत्तरदायित्व है। समाज के विभिन्न वर्गों के बीच रहन-सहन का जो अन्तर पाया जाता है उसे दूर करना तथा अन्य विकास कार्यों को ग्रामीण स्तर तक विकेन्द्रित करना आज नौकरशाही का ही उत्तरदायित्व है। इसलिए आज विकासशील देशों के सन्दर्भ में नौकरशाही विकास अभिकर्ता के रूप में कार्य कर रही है।
  4. जनसेवक की भूमिका - विकासशील देशों मेंं सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्रों में आए परिवर्तनों ने लोकसेवकों की जनसेवकों के रूप में भूमिका को अपरिहार्य बना दिया है। उसकी विकास अभिकर्ता के रूप में आम जनता तक पहुंच उसे जन सेवक के रूप में कार्य करर्य करने को बाध्य करती है। जनता को परामर्श देना, जनता को शिक्षित करना, जनता की मदद करना, जन-सहयोग प्राप्त करना आदि लोकसेवकों के प्रमुख कार्य बन गए हैं। विकासशील देशों में सरकारों की भूमिका के बिना प्राप्त नहीं किया जा सकता। इसी कारण आज लोकसेवमों की जनसेवक के रूप में भूमिका अधिक लोकप्रिय हो रही है।
  5. हित स्पष्टीकरण तथा समूहीकरण - जनता की विभिन्न मांगें प्रशासन के माध्यम से ही राजनीतिकों तक पहुंचती हैं। हितों का स्पष्टीकरण करके सरकार तक जनता की मांगों को सामूहिक रूप में पहुंचाना आज प्रशासकों का ही काम हो गया है। परस्पर विरोधी हितों में सामंजस्य स्थापित करके संयुक्त मांग के रूप में तैयार करना प्रशासन का ही कार्य है। इसी कारण नौकरशाही आज हित स्पष्टीकरण व समूहीकरण की प्रबल प्रवक्ता मानी जाती है। इस दृष्टि से प्रशासनक सरकार व जनता के बीच कड़ी का काम करते हैं।
  6. नियमों की व्याख्या करना - प्रदत्त व्यवस्थापन की शक्ति के अन्तर्गत आज नौकरशाही नियम निर्माण की व्यापक शक्ति का प्रयोग भी करती है। वह आवश्यकतानुसार नियमों की व्याख्या करके न्यायिक अभिनिर्णयों को मूर्तरूप देती है।
  7. प्रतिद्वन्द्वी हितों में समन्वय करना - विकासशील देशों में जटिल सामाजिक व्यवस्थाओं के अन्तर्गत समाज के विभिन्न सम्प्रदायों, जातियों, धर्मों, भाषाओं, रीतियों, परम्पराओं, राज्यों, प्रान्तों आदि के रूप में पाई जाने वाली विभिन्नताओं में हितों का टकराव होना आम बात है। इस टकराव को रोकना और विरोधी हितों में समन्वय कायम करना प्रशासन का प्रमुख उत्तरदायित्व है। इसी पर सामाजिक व्यवस्था व राजनीतिक व्यवस्था का कुशल संचालन निर्भर है। 
  8. नियोजन - नियोजन का किसी भी देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान होता है। राजनीतिक कार्यपालिका को योजना बनाने के लिए आंकड़ों की आवश्यकता पड़ती है। इन आंकड़ों को विभिन्न विभागों के प्रशासनिक अधिकारी ही उपलब्ध कराते हैं। इस प्रकार नियोजन में भी प्रशासन या नौकरशाही की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। 
  9. विधेयकों का प्रारूप तैयार करना - आज सभी देशों में कानून निर्माण के लिए प्रारूप तैयार करते समय नौकरशाही की मदद की आवश्यकता पड़ती है। प्राय: राजनीतिज्ञों के अनुभवहीन और अपरिपक्व होने के कारण कानून का प्रारूप तैयार करने में विधि विभाग की नौकरशाही का ही सहारा लिया जाता है। नौकरशाही के सहयोग के बिना कानून का प्रारूप तैयार नहीं हो सकता।
  10. संविधानिक आदर्शों का क्रियान्वयन - प्रत्येक देश के संविधान में नागरिकों को जो मौलिक अधिकार व स्वतंत्रताएं प्रदान की गई हैं, उनको कायम रखना नौकरशाहेी का ही प्रमुख उत्तरदायित्व है। सामाजिक न्याय का आदर्श प्राप्त करने में सरकार की मदद संविधानिक आदर्शों को कायम रखकर नौकरशाही ही करती है। 
  11. लोक सम्पर्क व संचार कार्य - आज के लोकतन्त्रीय युग में नौकरशाही जनता से निरन्तर सम्पर्क बनाए रखती है। वह समाज में होने वाली घटनाओं और विचारधाराओं से शासन-तन्त्र को अवगत कराती है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि नौकरशाही एक ऐसी सामाजिक साधन है जो राजनीतिक लक्ष्यों को पूरा करने में सरकार की मदद करता है, नीति-निर्धारण व उसके क्रियान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, विरोधी हितों में सामंजस्य पैदा करता है तथा विकास अभिकर्ता के रूप में आधुनिकीकरण को सम्भव बनाता है। शासनतन्त्र की सफलता कुशल प्रशासन-तन्त्र पर ही निर्भर काती है। इसलिए आज आवश्यकता इस बात की है कि नौकरशाही को जनसेवक की भूमिका अधिक से अधिक अदा करनी चाहिए। उसे राजनीतिक तटस्थता को बरकरार रखकर ही संविधानिक आदर्शों के प्रति समर्पित होकर कार्य करने रहना चाहिए। इसी में उसकी भूमिका का औचित्य है।

नौकरशाही की आलोचना

यद्यपि नौकरशाही सामाजिक विकास को गति देने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है, लेकिन फिर भी इसको आलोचना का शिकार होना पड़ा है। इसकी आलोचना के प्रमुख आधार हैं :-
  1. नौकरशाही में औपचारिकता पर अधिक ध्यान दिया जाता है। इससे अधिकारी गण मशीनी मानव बनकर रह जाते हैं और उनकी आत्म-निर्णय की शक्ति का ह्रास हो जाता है।
  2. अनावश्यक व लम्बी औपचारिकता के कारण लालफीताशाही का जन्म होता है। इसका अर्थ होता है -कार्य में विलम्ब। कई बार तो जब निर्णय प्रभावी होते हैं, उनके पीछे मूल निहितार्थ ही बदल चुका होता है।
  3. नौकरशाही साधारणत: जनसाधारण की मांगों की उपेक्षा ही करती है। जनसाधारण परिवर्तन का पक्षधर होता है, जबकि नौकरशाही परिवर्तन की विरोधी होने के कारण परम्परावादी होती है।
  4. नौकरशाही में अपने कार्य के प्रति अनुत्तरदायित्व की भावना पाई जाती है, क्योंकि नीतियों के क्रियान्वयन की सफलता व असफलता का सारा श्रेय राजनीतिक कार्यपालिका को ही जाता है।
  5. नौकरशाही से एक ऐसे शक्तिशाली विशिष्ट वर्ग का जन्म होता है हो शक्ति प्रेम का भूखा होता है और निरंकुशता की प्रवृत्ति को जन्म देता है।
  6. नौकरशाही प्रशासनिक कार्य-व्यवहार को अधिक जटिल बना देती है। इसमें जानबूझकर नियमों की तोड़- मरोड़ कर व्याख्या की जाती है।
  7. नौकरशाही लकीर के फकीर के रूप में ही रूढ़िवाद का समर्थन करती है।
  8. नौकरशाही का रूप अमानवीय होता है क्योंकि यह कानून के शासन के सिद्धान्त के आधार पर ही कार्य करती है। इसमें अधिकारियों के व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों के लिए कोई स्थान नहीं होता है।

मैक्स वेबर का नौकरशाही सिद्धांत

नौकरशाही के बारे में माक्र्स, लेनिन, ट्राटस्की, लौराट, रिजी, वर्नहम, मिलोवन पिलास, मैक्स स्बैकटमैन, जैसिक कुरुन मैक्स वेबर आदि ने अपने अपने सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है। इन सभी सिद्धान्तों में वेबर का सिद्धांत अधिक तर्कपूर्ण व व्यवस्थित है। इसी कारण नौकरशाही का व्यवस्थित अध्ययन जर्मनी के समाजशास्त्री मैक्स वेबर से ही प्रारम्भ माना जाता है। यद्यपि प्रारम्भ में वेबर के नौकरशाही के सिद्धांत की आलोचना भी हुई, लेकिन धीरे धीरे वह इतना लचीला बन गया कि उसे आदर्श सिद्धांत की संज्ञा दी गई। वेबर ने अपना यह सिद्धांत अन्य सिद्धान्तों के कठोरता के कारण विकसित किया और धीरे धीरे यह सिद्धांत विकासशील देशों में अधिक लोकप्रिय होता गया।

मैक्स वेबर ने अपनी पुस्तक 'Economy and society' तथा 'Parliament and Government in the Newly Organised Germany' में इस सिद्धांत का वर्णन किया है। यद्यपि मैक्स वेबर ने इन पुस्तकों में कहीं भी प्रत्यक्ष रूप में नौकरशाही का अलग सिद्धांत प्रतिपादित नहीं किया है। उसका नौकरशाही का सिद्धांत इन पुस्तकों में शक्ति, प्रभुत्व तथा सत्ता पर दिए गए विचारों में विद्यमान है। वेबर ने सत्ता का वर्गीकरण वैधता के आधार पर किया और इसी आधार पर संगठनों का भी वर्गीकरण किया। वास्तव में मैक्स वेबर का यह सिद्धांत सत्ता या प्रभुत्व के सिद्धांत पर ही आधारित है। उसने वैधानिक सत्ता को ही नौकरशाही माना है। विधिक सत्ता से पोषित एवं समर्थित नौकरशाही ही संगठन का सबसे अच्छा रूप है। इस प्रकार उसने नौकरशाही का प्रयोग एक निश्चित प्रकार के प्रशासनिक संगठन को बताने के लिए किया है।

नौकरशाही को विधिक सत्ता पर आधारित करते हुए वेबर ने कहा है कि इस सत्ता में एक विधि संहिता का निर्माण करके संगठन के सदस्यों को उसका पालन करना अनिवार्य कर दिया जाता है। प्रशासन कानून के शासन पर ही कार्य करता है और जो व्यक्ति सत्ता का प्रयोग करता है, वह अवैयक्तिक आदेशों का ही पालन करता है। विधिक सत्ता में वफादारी सत्ता प्राप्त व्यक्ति के प्रति न होकर अवैयक्तिक विधि या कानून के प्रति ही होती है। इसी प्रकार नौकरशाही भी निष्पक्ष, कार्य विशेषज्ञ तथा अवैयक्तिक होती है। 

मालटिन एलबरो का कहना है कि नौकरशाही नियुक्त किए गए योग्य प्रशासनिक अधिकारियों व कर्मचारियों का समूह है जिसका विस्तार राज्य, चर्च, राजनीतिक दल, मजदूर संघ, व्यावसायिक उपक्रम, विश्वविद्यालय तथा गैर-राजनीतिक समूहों तक भी है। आज नौकरशाही शब्द का प्रयोग सरकार, उद्योग, सेना आदि बड़े-बड़े संगठनों में कार्यरत अधिकारी वर्ग व कर्मचारियों के समूह के लिए प्रयुक्त होता है। मैक्स वेबर की आदर्श नौकरशाही की विशेषताएं हैं :-
  1. यह नौकरशाही स्पष्ट श्रम विभाजन पर आधारित होती है। इसमें प्रत्येक कर्मचारी को कुछ निश्चित उत्तरदायित्व सौंपे जाते हैं और विधिक सत्ता की शक्ति भी दी जाती है।
  2. इस नौकरशाही में कार्य करने की प्रक्रिया पूर्व-निर्धारित होती है।
  3. इसमें कर्मचारियों को पद-सोपानों में बांट दिया जाता है। ‘आदेश की एकता के’ सिद्धांत को प्रभावी बनाने के लिए इसमें आदेश ऊपर से नीचे आते हैं और संगठन एक पिरामिड की तरह होता है।
  4. इसमें कार्यों के निष्पादन के लिए विधिपूर्वक व्यवस्था होती है। इसमें व्यक्ति को वही कार्य सौंपा जाता है, जिसमें वह दक्ष होता है। 
  5. इसमें पद के लिए योग्यताएं निर्धारित रहती हैं। इसमें उन्हीं व्यक्तियों का चयन किया जाता है जो पद हेतु निर्धारित योग्यता व दक्षता रखते हैं।
  6. इसमें कर्मचारियों का वेतन पदसोपान में उनके स्तर, पद के दायित्व, सामाजिक स्थिति आदि के आधार पर तय किया जाता है।
  7. यह नौकरशाही अनौपचारिक सम्बन्धों की बजाय औरपचारिक सम्बन्धों पर आधारित होती है। इसमें निर्णय व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों की बजाय औचित्य के आधार पर नियमों की परिधि में रहकर ही लिए जाते हैं।
  8. इसमें संगठन के निर्णयों और गतिविधियों का आधिकारिक रिकार्ड रखा जाता है। इस कार्य में फाईलिंग प्रणाली का प्रयोग किया जाता है।
  9. इसमें कार्य-अनुशासन पर जोर दिया जाता है।
  10. इसमें कर्मचारी तथा उसके कार्यालय में भेद किया जाता है।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि वेबर की नौकरशाही प्रशासन की एक ऐसी व्यवस्था है जो विशेषज्ञता, निस्पक्षता तथा अमानवीय सम्बन्धों पर आधारित होता है। वेबर के अनुसार नौकरशाही एक यन्त्र के रूप में कार्य करती है। पश्चिमी औद्योगिक देशों की प्रशासनिक व्यवस्थाएं काफी हद तक नौकरशाही के इसी सिद्धांत पर आधारित है। वेबर नौकरशाही को ऐसे समाज का हिस्सा मानते हैं जो जटिल श्रम विभाजन, केन्द्रित प्रशासन तथा मुद्रा-अर्थव्यवस्था पर बना होता है। यदि बाकी सभी शर्तें समान रहें तो तकनीकी दृष्टि से नौकरशाही सदा ही विवेकशील प्रकार की होने के कारण जन-समूह-प्रशासन की आवश्यकताओं की दृष्टि से अनिवार्य होती है। आज नौकरशाही की प्रवृित्त्यां राज्यों और निजि उपक्रमों में ही नहीं पाई जाती, बल्कि सेना, चर्च तथा विश्वविद्यालयों में भी पाई जाती है। इसी कारण नौकरशाही आधुनिक युग की केन्द्रीय राजनीतिक सच्चाई है। इस सच्चाई से बचना कठिन ही नहीं बल्कि असम्भव भी है।

विकासशील देशों में वेबर के नौकरशाही के सिद्धांत की प्रासांगिकता -

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद स्वतन्त्र हुए अधिकतर विकासशील देशों के सामने आर्थिक-विकास तथा राजनीतिक स्थायित्व की प्रमुख समस्या थी। इसमें से अधिकतर देश आज भी इस समस्या से जूझ रहे हैं। इन देशों में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जो इन समस्याओं पर लगभग काबू पा चुका है। ब्रालीन भी इस मार्ग पर काफी आगे निकल चुका है। आर्थिक विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भारत को एक ऐसे नौकरशाही तन्त्र की जरूरत थी जो उसके संविधानिक आदर्शों का सम्मान करते हुए निष्पक्ष रहकर विकास में अपना पूर्ण योगदान दे सके। इसी कारण उसने ऐसी नौकरशाही को विकसित किया जो निष्पक्ष, विशेषज्ञ व अमानवीय रहकर कार्य करती रहे। यदि विकासशील देशों ब्राजील और भारत के सन्दर्भ में देखा जाए तो वेबर द्वारा बताया गया आदर्श नौकरशाही का प्रतिरूप लगभग पूर्ण रूप में लागू होता है। भारत में नौकरशाही कानूनी सत्ता पर आधारित है। 

इसमें स्पष्ट श्रम विभाजन, निश्चित कार्य प्रक्रिया, कार्यों की विधिपूरक व्यवस्था, पद सोपान पद्धति, पद के लिए योग्यताएं, निवैयक्तिक सम्बन्ध तथा आधिकारिक रिकार्ड सभी विशेषताएं विद्यमान हैं। भारत में योग्यता प्रणाली को आधार बनाकर लिखित परीक्षाओं और कठिन साक्षात्कार के आधार पर ही लोकसेवकों का चयन किया जाता है। लोक सेवकों को पद के अनुसार व कार्य की प्रकृति के हिसाब से वेतन व भत्ते प्रदान किये जाते हैं। प्रशासनिक व्यवहार में अनुशासन का विशेष महत्व है और सारा काम निष्पक्ष तरीके से करने को प्राथमिकता दी जाती है।

लेकिन आज प्रशासन में राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण अनौपचारिक व पक्षपातपूर्ण सम्बन्धों का प्रचलन बढ़ने लगा है। 1969 में तो भारत में प्रतिबद्ध नौकरशाही का विचार कार्यपालिका के प्रति प्रतिबद्ध हो या संविधानिक आदर्शों के प्रति। यदि विकासशील देशों में नौकरशाही को अपना निष्पक्ष रूप कायम रखना है तो उसे संविधानिक आदर्शों के प्रति प्रतिबद्धता दिखानी होगी और राजनीतिक हस्तक्षेप से दूर रहना होगा। इसी में वेबर का आदर्श नौकरशाही की सार्थकता है। अत: आज विकासशील देशों में वेबर की आदर्श नौकरशाही का रूप कुछ धुंधला सा पड़ने लगा है।

वेबर के नौकरशाही के सिद्धांत की आलोचना 

  1. मार्क्सवादियों की दृष्टि में वेबर का सिद्धांत समाज पर पूंजीवादी प्रभुत्व को उचित मानता है। उनका तर्क है कि वेबर के तथाकथित ‘इतिहास का दर्शन’ का इरादा सत्ता को विधिसंगत बनाना था और वर्ग-संघर्ष को केवल शक्ति की राजनीति का रूप देना था।
  2. यह सिद्धांत व्यावहारिक दृष्टि से अपूर्ण है। यह बाहर से व्यवस्थित और अनुशासित दिखाई देने पर भी अन्दर से शक्ति के लिए सर्वत्र फैले हुए संघर्ष की वास्तविकता पर ही आधारित है।
  3. अनौपचारिक सम्बन्धों पर आधारित होने के कारण यह संगठन के मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण की उपेक्षा करता है।
  4. आदर्श शब्द का प्रयोग नौकरशाही के लिए करना वेबर की मूर्खता ही है। यदि ध्यान से देखा जाए तो नौकरशाही सत्तावादी मनोवृत्ति, अहं एवं श्रेष्ठता की भावना, अमानवीय व रूढ़िवादिता, लालफीताशाही आदि प्रवृत्तियों के कारण घृणास्पद अवधारणा बन जाती है। इसलिए इसके लिए आदर्श शब्द का प्रयोग करना अनुचित है।
  5. संगठन की कार्यकुशलता में आदर्श रूप की बजाय कर्मचारियों के तकनीकी स्तर, संगठन के बच्चों, लोक सेवकों व कर्मचारियों के मधुर सम्बन्ध अधिक महत्वपूर्ण होते हैं।
  6. यद्यपि यह नौकरशाही विकासशील देशों में प्रचलित अवश्य है, लेकिन इससे वहां की तीव्र आर्थिक-सामाजिक विकास की आवश्यकताओं को पूरा नहीं किया जा सकता है।
अत: वेबर का नौकरशाही का सिद्धांत एक अपूर्ण व अव्यवहारिक औजार है जिसका सफल प्रयोग विकासशील देशों में नहीं किया जा सकता। लेकिन फिर भी विकसित पूंजीवादी देशों की नौकरशाही में तो इस सिद्धांत के सभी लक्षण अवश्य मिल जाते हैं। इसलिए अन्य सभी सिद्धान्तों से यह सिद्धांत अधिक प्रासंगिक है।

नौकरशाही का मूल्यांकन

आज नौकरशाही अपने बदनाम अर्थ को समाप्त करने की दिशा में कार्यरत् है। आज नौकरशाही में अत्यधिक विशेषीकरण के साथ-साथ सुनियोजित एवं सुव्यवस्थित मानवीय सम्बन्धों को महत्व दिया जाता है। इससे संगठन के सदस्यों में अन्तर सम्बन्धों व अन्त-निर्भरता का विकास हुआ है। आज नौकरशाही का रूप प्रजातन्त्रीय बन रहा है। आज निर्णय प्रक्रिया में अधीनस्थों की भूमिका को भी स्वीकार किया जाने लगा है। इसलिए आज नौकरशाही एक संक्रमणकालीन दौर से गुजर रही है। जहां यह अनेक लाभों को दर्शाती है, वहीं इसके कुछ दोष भी हैं। लाभों के रूप में कहा जा सकता है कि नौकरशाही प्रशासन को कुशल बनाने, राजनीतिक तटस्थता व निष्पक्षता से कार्य करने, विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने तथा सामाजिक न्याय की स्थापना करने की दिशा में अग्रसर है, वहीं लालफीताशाही (Red Tapism) रूढिवादी, लकीर की फकीर, निरंकुश, औपचारिक, आत्मप्रशंसा की भूखी, लोचहीन, सामाजिक परिवर्तन के प्रति उदासीन आदि दोषों की भी शिकार है। इसलिए आज आवश्यकता इस बात की है कि नौकरशाही के दोषों पर काबू पाया जाए। इसलिए अनेक विद्वान सत्ता के विकेन्द्रीकरण, संसदीय नियन्त्रण, प्रशासकीय न्यायधिकरणों की स्थापना, सरल प्रशासन प्रक्रिया, जागरूक जनता, अभिभावक वृति का विकास करने पर जोर देते हैं।  यदि नौकरशाही राजनीतिक नेतृत्व के अधीन रहकर, संविधानिक आदर्शों के प्रति प्रतिबद्ध रहकर कर्तव्य व निष्ठापूर्वक ईमानदारी से कार्य करे तो नौकरशाही की तानाशाही व रूढ़िवादी प्रवृत्ति पर आसानी से काबू पाया जा सकता है और राजनीतिक व्यवस्था व संविधान के अभीष्ट लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है।

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