संघात्मक सरकार का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं, गुण/दोष

संघात्मक शासन प्रणाली ऐसी प्रणाली होती है जिसमें शक्तियों का विभाजन केन्द्र व इकाइयों के मध्य संविधान या कानूनी सीमाओं के अन्तर्गत किया जाता है। अपने अपने क्षेत्रों में स्वतन्त्र होते हुए भी केन्द्र व इकाइयां देश के संविधान के प्रति उत्तरदायी होते हैं। एक दूसरे के अधीन न होकर भी केन्द्रीय व प्रादेशिक सरकारें एक दूसरे की समन्वयक बनी रहती हैं और संघात्मक सरकार के सारे उद्देश्य आसानी से प्राप्त कर लिए जाते हैं।

संघात्मक सरकार का अर्थ

संघात्मक सरकार की अवधारणा ‘संघ’ शब्द पर आधारित है। अंग्रेजी भाषा में संघ शब्द के लिए 'Federation' शब्द का प्रयोग होता है। यह शब्द लैटिन भाषा के शब्द 'Foedus' से निकला है, जिसका अर्थ है - सन्धि या समझौता।संघात्मक सरकार दोहरी सरकार होती है। इसमें केन्द्रीय सरकार के साथ साथ प्रान्तीय सरकारें भी होती हैं। प्रान्तीय सरकारों को अलग अलग विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका होती हैं। ऐसी सरकार में संविधान ही सर्वोच्च होता है। दोनों सरकारें को संविधान की मर्यादाओं के अन्तर्गत ही देश का शासन चलाना होता है। इस प्रकार संघात्मक शासन वह होता है जहां संविधान के द्वारा शक्तियां केन्द्र और प्रान्तों में बंटी होती हैं और दोनों अपने कार्यों में स्वतन्त्र होते हुए भी संघात्मक शासन की सफल्ता के लिए सह-अस्तित्व की भावना के आधार पर कार्य करते हैं। 

संघात्मक सरकार की परिभाषा

अनेक विद्वानों ने संघात्मक सरकार को इस प्रकार से परिभाषित किया है :-

फाईनर के अनुसार-”संघात्मक शासन वह है जिसमें सत्ता एवं शक्ति का एक भाग संघीय इकाइयों या प्रान्तों में निहित होता है और दूसरा भाग केन्द्रीय संस्था में निहित होता है जो क्षेत्रीय इकाइयों द्वारा जानबूझकर संगठित की जाती है।”
 
मॉण्टेस्क्यू के अनुसार-”सघात्मक सरकार एक ऐसा समझौता है जिसके द्वारा बहुत से एक जैसे राज्य एक बड़े राज्य के सदस्य बनने को सहमत हो जाते हैं।”
 
डॉयसी के अनुसार-”संघवाद एक राजनीतिक समझौता है जिसके अनुसार राज्य के अधिकारों को सुनिश्चित करने के साथ-साथ सारे राष्ट्र की एकता को भी स1निश्चित किया जाता है।”
 
गार्नर के अनुसार-”संघात्मक सरकार एक ऐसी प्रणाली है जिसमें केन्द्रीय तथा स्थानीय सरकारें एक सामान्य प्रभुसत्ता के अधीन होती है। यह सरकारें अपने अपने निश्चित क्षेत्र में सर्वोच्च होती हैं। उनका कार्यक्षेत्र संविधान द्वारा ही निश्चित किया जाता है।”
 
के0सी0 व्हीयर के अनुसार-”संघ शासन का अर्थ एक ऐसी पद्धति है जिसके सामान्य और प्रादेशिक शासकों में सामंजस्य होते हुए भी वे अपने क्षेत्र में स्वतन्त्र होते हैं।”
 
सी0एफ0 स्ट्रांग के अनुसार-”संघ राज्य एक ऐसी राजनीतिक योजना है जिसका उद्देश्य राज्यों के अधिकारों का राष्ट्रीय एकता तथा शक्ति के साथ सामंजस्य स्थापित करता है। अर्थात् संक्षेप में ऐसा शासन जिसमें विधायिनी सत्ता केन्द्रीय या संघीय शक्ति और ऐसी लघुत्तर इकाईयों में विभाजित रहती है जो अपनी शक्ति की पूर्णता के अनुसार राज्य या प्रान्त कहलाती है।”
 
डेनियल जे0 एलाजारा के अनुसार-”संघीय व्यवस्था अलग-अलग राजनीतिक इकाइयों को एक ऐसी बृहत्तर राजनीतिक व्यवस्था में संगठित व एकताबद्ध करती है जिसमें हर राजनीतिक इकाई अपनी आधारभूत राजनीतिक अखण्डता से युक्त रहती है।”
 
कोरी के अनुसार-”संघवाद सरकार एक ऐसा दोहरापन है जो विविधता के साथ एकता का समन्वय करने की दृष्टि से शक्तियों के प्रादेशिक व प्रकार्यात्मक विभाजन पर आधारित होता है।”
 
नाथन के अनुसार-”संघात्मक राज्य छोटे छोटे राज्यों का एक योग होता है जिसमें प्रत्येक अपनी पृथक सत्ता का रखते हुए परिभाषित समान उद्देश्य के लिए संघ के रूप में एक दूसरे से मिलते हैं जो कम-से-कम सैद्धान्तिक रूप में विघटनशील नहीं हैं।”
 
जैलिनेक के अनुसार-”एक संघात्मक कई राज्यों के मेल से बना हुआ एक प्रभुसत्तासम्पन्न राज्य है जो अपनी शक्ति संघ को बनाने वाले राज्यों से प्राप्त करता है, क्योंकि संघ के प्रति वे राज्य इस तरह बंधे होते हैं कि एक सर्वोच्च सत्ता सम्पन्न संस्था का निर्माण हो जाता है।”
 
हैमिल्टन के अनुसार-”संघात्मक शासन राज्यों का एक समुदाय है जो एक नए राज्य का निर्माण करता है।”

संघात्मक शासन की विशेषताएं

संघात्मक शासन व्यवस्था की विशेषताएं दृष्टिगोचर होती हैं :-
  1. संघात्मक सरकार में शक्तियों का बंटवारा केन्द्रीय व प्रान्तीय सरकारों के बीच में होता है।
  2. संघात्मक सरकार में सम्प्रभुसत्तात्मक शक्तियां राज्य या संविधान के पास ही रहती हैं।
  3. संघात्मक सरकार में दोहरी शासन-व्यवस्था होती है। इसमें प्रान्तीय व केन्दीय सरकारें अपने अपने क्षेत्रों में स्वतन्त्र होते हुए भी संघात्मक शासन को सफल बनाने के लिए सहअस्तित्व के आधार पर ही कार्य करती है।
  4. संघात्मक शासन में संविधान लिखित, कठोर व सर्वोच्च होता है।
  5. संघात्मक सरकार दोहरी नागरिकता के सिद्धान्त पर आधारित होती है।
  6. संघात्मक सरकार राष्ट्रीय एकता और प्रान्तों की स्वतन्त्रता का सामंजस्य स्थापित करती है।
  7. संघात्मक सरकार में इकाइयों को संघ से पृथक होने की स्वतन्त्रता नहीं होती है।
  8. संघात्मक सरकार द्विसदनीय विधानमण्डल की व्यवस्था करती है।
  9. संघात्मक शासन व्यवस्था में न्यायपालिका स्वतन्त्र व सर्वोच्च होती है।
  10. संघात्मक शासन में शिक्त्यों का स्पष्ट विभाजन होता है। इसमें राष्ट्रीय महत्व के विषय तो केन्द्रीय सरकार के पास तथा कम महत्व के विषय प्रांतीय सरकारों के पास होते हैं।
  11. संघात्मक सरकार स्वयं उत्पन्न नहीं होती, बल्कि उसका निर्माण संविधानिक प्रावधानों के तहत किया जाता है।
  12. संघात्मक शासन में केन्द्र व इकाइयों के बीच समन्वय की भावना का पाया जाना ही संघात्मक शासन की सफलता का आधार है।
लेकिन यह आवश्यक नहीं है कि ये सारी विशेषताएं प्रत्येक संघात्मक राज्य में पाई जाएं। जिन राज्यों में ये सभी विशेषतउएं पाई जाती हैं, उन्हें पूर्ण संघात्मक राज्य कहते हैं। इसके विपरीत जिन राज्यों में संघवाद की कुछ या कम विशेषताएं देखने को मिलती हैं, उन राज्यों के0सी0 व्हीयर ने अर्द्ध-संघात्मक राज्य कहा है।

संघात्मक शासन के गुण

विद्वानों ने संघात्मक शासन के गुण बताये हैं :-

1. विविधता में एकता - संघात्मक शासन व्यवस्था में विभिन्न जातियों, धर्मों, भाषाओं को राष्ट्रीय एकता के सूत्र में बांधा जाता है। इसमें प्रादेशिक सरकारें अपनी स्वतन्त्रता भी बनाए रखती हैं और राष्ट्रीय विषयों पर एकीकरण का परिचय भी देती है। इस व्यवस्था में एकता और विभिन्नता के गुणों को िमालने का गुण है। इसकी स्थापना का लक्ष्य ही राष्ट्रीय एकता के साथ-साथ स्थानीय स्वतन्त्राता का भी सामन्जस्य करना है। 

2. संघात्मक शासन केन्द्रीय सरकार की निरंकुशता रोकता है -  संघात्मक शासन शक्तियों के विभाजन या विकेन्द्रीकरण के सिद्धान्त पर आधारित होता है। इसमें प्रादेशिक तथा केन्द्रीय सरकारों के अलग अलग क्षेत्राधिकार होते हैं। सामान्य परिस्थितियों में किसी भी सरकार को एक दूसरे के क्षेत्र में प्रवेश का अधिकार नहीं है। प्रत्येक सरकार वही निश्चित कार्य करती है जो उसे संविधान द्वारा सौंपा गया है। इसलिए इसमें न तो एक व्यक्ति की तानाशाही चल सकती है और न नौकरशाही की मनमानी। इसमें न्यायपालिका की स्वतन्त्रता व सर्वोच्चता का सिद्धान्त सरकार की निरंकुश प्रवृत्तियों पर सबसे बड़ी रोक है। इससे नागरिकों के अधिकार व स्वतन्त्रताएं भी सुरक्षित रहते हैं और प्रांतीय सरकारों को केन्द्रीय सरकार के कोप का भाजन भी नहीं बनना पड़ता। 

3. बड़े देशों के लिए उपयुक्त - संघात्मक शासन प्रणाली भारत जैसे विशाल देशों के लिए अधिक है उपयुक्त है। जिन देशों की जनसंख्या व क्षेत्राफल अधिक है और वहां पर एकात्मक सरकार द्वारा शासन चलाना कठिन होता है तो वहां पर समस्त देश को प्रान्तों व प्रादेशिक इकाइयों में बांटकर केन्द्रीय सरकार के भार को कम किया जा सकता है। यह उन देशों के लिए भी उपयुक्त है जहां विभिन्न धर्मों, जातियों, भाषाओं व संस्कृतियों के लोग रहते हों। इस व्यवस्था के अन्तर्गत बड़े देश का शासन आसानी से चलाया जा सकता है।

4. आर्थिक विकास के लिए लाभदायक - संघात्मक शासन प्रणाली मितव्ययी है। सभी राज्यों के एक स्थान पर संगठित हो जाने से आय में वृद्धि होती है ओर सेनाओं तथा आर्थिक योजनाओं पर खर्च किया जाने वाला पैसा केन्द्रीय सरकार की जिम्मेवारी बन जाती है। ऐसे छोटे-छोटे राज्य या इकाइयां जो आर्थिक दृष्टि से बहुत कमजोर हैं और आर्थिक विकास के लिए दूसरे शक्तिशाली राज्यों पर निर्भर हैं तो वे संगठित होकर संघ का निर्माण कर सकती हैं। इससे उनकी स्वतन्त्राता की गारन्टी मिल सकती है। भारत में आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलने का प्रमुख कारण यही है कि प्रादेशिक सरकारों को सुरक्षा व आर्थिक साधन केन्द्रीय सरकार द्वारा ही उपलब्ध कराए जाते हैं।

5. निर्बल राज्यों की रक्षा -  संघात्मक शासन प्रणाली के अपनाने से निर्बल राज्यों की शक्तिशाली राज्यों से सुरक्षा हो जाती है। संघात्मक सरकार के अन्तर्गत छोटे-छोटे राज्य मिलकर अपना शक्तिशाली संगठन बना सकते हैं। सबल केन्द्रीय सरकार ही निर्बल राज्यों की स्वतन्त्राता की रक्षा कर सकती है। इससे राष्ट्रीय एकता के साथ-साथ क्षेत्रीय स्वतन्त्राता की भी सुरक्षा होगी और छोटे राज्यों का गौरव व प्रतिष्ठा भी बढ़ेगी। यदि 13 राज्य मिलकर संयुक्त राज्य अमेरिका जैसा शक्तिशाली संघ न बनाते तो उन राज्यों को वह प्रतिष्ठा तथा गौरव कभी नहीं मिल सकता था जो आज प्राप्त है।

6. शासन में कार्यकुशलता - संघात्मक शासन व्यवस्था में शक्तियों का बंटवारा होने के कारण प्रशासनिक उत्तरदायित्वों का भी विकेन्द्रीकरण हो जाता है। इससे स्थानीय स्तर की समस्याएं स्थानीय प्रशासन द्वारा ही हल कर दी जाती हैं। अपने अपने कार्यों के लिए उत्तरदायी होने के कारण केन्द्रीय व प्रादेशिक सरकारें पूरी निष्ठा के साथ अपने कार्यों का सम्पादन करती हैं। कार्यभार कम होने के कारण प्रत्येक समस्या को भी शीघ्रता से हल कर लिया जाता है। केन्द्रीय सरकार को प्रादेशिक समस्याओं की चिन्ता नहीं रहती, क्योंकि इस स्तर पर कार्य करने वाली सरकारें पहले ही मौजूद रहती हैं। इसलिए त्वरित निर्णय लेने और समस्या समाधान के लिए विकेन्द्रीकरण के समस्त लाभ प्रशासन को मिल जाते हैं और सरकार सुचारू ढंग से कार्य करती है।

7. स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति - संघात्मक शासन में स्थानीय समस्याओं को हल करने का प्रमुख उत्तरदायित्व स्थानीय प्रशासन या प्रादेशिक सरकारों का होता है। अपनी अलग शक्तियों से परिपूर्ण प्रादेशिक सरकारें अपना शासन प्रबन्ध चलाने के लिए स्वतन्त्रा होती हैं। प्रत्ेक इकाई की समस्याएं दूसरी इकाई से भिन्न प्रकृति की ही होती हैं। उनका एक ही नीति से समाधान नहीं हो सकता। इसलिए संघात्मक व्यवस्था के अन्तर्गत ही प्रादेशिक समस्याओं का हल भली-भांति किया जा सकता है, क्योंकि स्थानीय प्रबन्ध के लिए प्रादेशिक सरकारों को केन्द्रीय सरकार से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं होती।

8. लोगों को राजनीतिक शिक्षा देना - संघात्मक शासन व्यवस्था में जनता को प्रशासन में भागीदारी निभाने के पूर्ण अवसर प्राप्त होते हैं। यह व्यवस्था जनता को स्वशासन सिखाती है। इसमें जनता की सार्वजनिक कार्यों के प्रति रुचि बढ़ती है। स्थानीय जनता और प्रशासन स्थनीय समस्याओं को स्वयं हल करते हैं। इससे लोगों का शासन के प्रति रूझान बड़ता है और धीरे धीरे उनकी राजनीतक चेतना का विकास भी होता जाता है। स्थानीय निकायों के चुनावों में जन-सहभागिता जनता को राजनीतिक शिक्षा देने का सशक्त माध्यम है। भारत में स्थानीय स्वशासन में जनता की बढ़ती भागीदारी ने आज आम व्यक्ति को भी राजनीतिक रूप से शिक्षित बना दिया है।

9. नागरिकों वे देश की प्रतिष्ठा में वृद्धि - संघात्मक शासन प्रणाली अपनाने से प्रादेशिक इकाइयों के नागरिकों का राष्ट्रीय नागरिकता के रूप में सम्मान बढ़ता है। जब नागरिक विदेशों में जाते हैं तो उनकी पहचान देश की नागरिकता से होती है, राज्यों की नागरिकता से उतनी नहीं। इसी तरह संगठित इकाई के रूप में देश का सम्मान भी अन्तर्राष्ट्रीय जगत में बढ़ता है और अपनी विदेश नीति को संगठित राष्ट्र ही प्रभावी बना सकता है। यदि भारत संघ न होता तो प्रादेशिक इकाइयों में बंटा होने के कारण इसका सम्मान उतना नहीं होता जितना आज है। 1947 से पहले 562 रियासतों के रूप में बंटे हुए भारत की अन्तर्राष्ट्रीय जगत में प्रतिष्ठा अधिक नहीं थी।

10. यह विश्व राज्य के लिए एक आदर्श है - संघात्मक शासन प्रणाली सम्पूर्ण मानव जाति के हित में है। आज संकीर्ण स्वार्थों में बंटे हुए विश्व के छोटे-छोटे व निर्बल राष्ट्र भी तीसरे युद्ध के भय से संघ के रूप में संगठित होकर अपने आपको मुक्त कर सकते हैं। यदि विश्व के रूप में देशों का संघ स्थापित हो जाए तो तीसरे युद्ध की सम्भावना नष्ट हो सकती है और मानव जाति युद्ध की लपटों से बच सकती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि संघात्मक व्यवस्था विश्व राज्य का भी आदर्श बन सकती है। एम0एम0 बाल ने कहा है-”एक संघीय प्रणाली विश्व सरकार के लिए एक नमूना प्रस्तुत करती है।”

संघात्मक शासन या सरकार के दोष

 विद्वानों ने संघात्मक शासन प्रणाली की खूब आलोचना की है। उनकी दृष्टि में इसमें दोष हैं :-
  1. संघीय सरकार एक दुर्बल सरकार होती है, क्योंकि न्यायपालिका की सर्वोच्चता केन्द्र या प्रांतीय सरकारों द्वारा बनाए गए कानूनों के लिए बहुत बड़ा खतरा होती है। सरकार की शक्तियों का विभाजन होने के कारण केन्द्रीय सरकार महत्वपूर्ण मामलों में भी प्रादेशिक सरकारों पर दबाव नहीं डाल सकती। संघीय सरकार में कोई भी इकाई केन्द्र के प्राधिकार को भी चुनौती दे सकती है और अलगाववाद का रास्ता अपना सकती है। डॉयसी ने स्पष्ट किया है कि संघीय संविधान एकात्मक संविधान की अपेक्षा अधिक कमजोर होता है। इसमें शक्तियों के विकेन्द्रीयकरण से शीघ्र निर्णय, एकरूपता, दृढ़ता, सुचारुता तथा उद्देश्य की एकता का अभाव पाया जाता है।
  2. संघात्मक शासन से विघटनकारी ताकतों को बढ़ावा मिलता है और राष्ट्रीय एकता का विकास रुक जाता है। इस शासन प्रणाली में प्रादेशिक सरकारों को काफी स्वतन्त्राता मिलने से संकीर्ण क्षेत्राीय भावनाएं उभरने लगती हैं और नागरिक देश हित को भूल जाते हैं। यदि भारत में एकात्मक शासन व्यवस्था होती तो पृथक्कतावादी, आतंकवादी ओर अलगाववादी ताकतें जन्म नहीं लेती और पंजाब तथा जम्मू कश्मीर जैसी समस्याएं जन्म नहीं ले पाती।
  3. संघात्मक शासन प्रणाली विदेश नीति के सफल संचालन में बाधक होता है। इसमें यह आवश्यक नहीं है कि जो सन्धि या समझौता केन्द्र सरकार करे, उसे प्रान्तीय सरकारें भी मान लें। इसलिए विदेश नीति के संचालन से पहले प्रांतीय सरकारों की राय जानना भी जरूरी होता है। इस प्रकार संघात्मक शासन में स्वतन्त्रा विदेश नीति का न तो निर्णय हो सकता है और न ही सचालन।
  4. संघात्मक शासन प्रणाली एक खर्चीली व्यवस्था है। इसमें दोहरी सरकार का बोझ केन्द्र को उठाना पड़ता है। केन्द्र के साथ साथ प्रान्तीय सरकारों का खर्चा भी देश को ही वहन करना पड़ता है। बार बार होने वाले चुनाव, पुलिस व्यवस्था, स्थानीय प्रशासन आदि पर किया जाने वाला खर्च इस प्रणाली को अधिक खर्चीली प्रणाली साबित करता है। शासन तन्त्रा की दोहरी प्रणाली एकात्मक शासन की अपेक्षा इस व्यवस्था में समय और शक्ति के अपार व्यय को बढ़ा देती है।
  5. संकटकाल या राष्ट्रीय आपदा के समय यह प्रणाली काफी कमजोर साबित होती है। संकटकाल का मुकाबला तो एकात्मक सरकार ही कर सकती है, क्योंकि यह सर्वशक्ति सम्पन्न होती है। उसे प्रान्तीय सरकारों की राय लेने की जरूरत नहीं होती। 
  6. संघात्मक व्यवस्था में संविधान में परिवर्तन की कठोर प्रक्रिया राजनीतिक व्यवस्था के विकास का मार्ग अवरुद्ध करती है। कई बार महत्वपूर्ण प्रश्नों पर सहमति न बन पाने के कारण उपयोगी कानून भी निर्मित होने से चूक जाते हैं।
  7. संघात्मक शासन प्रणाली न्यायिक निरंकुशता को जन्म देती है। प्रत्येक संघात्मक शासन में केन्द्र व इकाइयों में झगड़े होना स्वाभाविक है। उन झगड़ों को निपटाने के लिए संघात्मक राज्यों में न्यायपालिका को स्वतन्त्रा व सर्वोच्च बनाया गया है। न्यायपालिका इपनी इस शक्ति का दुरुपयोग भी कर सकती है। न्यायपालिका को केन्द्रीय व प्रान्तीय सरकारों के कानूनों को अवैध घोषित करने का भी अधिकार है। कई बार न्यायपालिका कानून की गलत व्याख्या करके जन महत्वों के कानूनों को भी गलत करार दे देती है। अमेरिका तथा भारत में न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति का न्यायपालिका ने कई बार दुरुपयोग किया है।
  8. संघात्मक शासन व्यवस्था में केन्द्र-राज्यों के झगड़ों का जन्म होता है। अपने अधिकार-क्षेत्रा को लेकर या भारत जैसे संघात्मक देश में अवशिष्ट शक्तियों के प्रयोग को लेकर प्राय: केन्द्र-राज्यों में विवाद चलते रहते हैं। कई बार ये विवाद दो या दो से अधिक प्रादेशिक सरकारों में भी चलते रहते हैं। हरियाणा-पंजाब में सतलुज नहर के निर्माण को लेकर, तमिलनाडु और कर्नाटक में कावेरी नदी के जल को लेकर कई बार विवाद हुआ है। भारत में संविधान की धारा 356 को लेकर राज्यपालों की संदिग्ध भूमिका पर कई बार केन्द्र के साथ राज्यों का टकराव हुआ है। 
  9. संघात्मक शासन में दोहरी नागरिकता की व्यवस्था राष्ट्रीय एकता की भावना में कमी करती है। नागरिक प्रादेशिक हितों तक ही अपनी सोच रखने लगते हैं। उन्हें देश हित की अधिक चिन्ता नहीं होती।
  10. संघात्मक शासन व्यवस्था एक जटिल शासन प्रणाली है। इसमें विधायिका, प्रशासन, न्याय निर्णय आदि का दोहराव आम व्यक्ति के मन में संघात्मक सरकार के प्रति सन्देह की भावना पैदा करता है।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि संघात्मक सरकार में दोहरे शासन, दोहरी नागरिकता, अधिकार क्षेत्र सम्बन्धी विवाद, नीति, कानून और प्रशासन में विविधता आदि के कारण सुदृढ़ व सक्षम सरकार का अभाव पाया जाता है। संकटकालीन परिस्थितियों में संघात्मक सरकार अधिक कारगर नहीं होती। अधिक खर्चीली व कमजोर आधार वाली सरकार एकात्मक सरकार जैसे लाभों से अछूती रहने के कारण आलोचना का पात्र बन जाती है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि संघात्मक सरकार बिल्कुल अनुपयोगी है। आज विश्व के लगभग दो दर्जन देशों द्वारा संघात्मक व्यवस्था को अपना लेना इसका महत्व प्रतिपादित करता है। आज अमेरिका, आस्ट्रेलिया, स्विस, कनाडा तथा भारत में संघात्मक सरकारें सफलतापूर्वक कार्य कर रही हैं। प्रजातन्त्राीय भावनाओं के विकास तथा विश्व संघ के निर्माण में संघात्मक सरकार का प्रतिमान ही सर्वोत्तम है।

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