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आसियान का झंडा |
आसियान के उद्देश्य
ASEAN (आसियान) एक विशुद्ध असैनिक संगठन है। फिर भी बैंकाक घोषणापत्र में सभी सदस्य देशों को क्षेत्रीय शान्ति हेतु सहयोग करने की अपील की गई है। इसके प्रमुख उद्देश्य हैं-- क्षेत्रीय शान्ति व स्थिरता को प्रोत्साहित करना।
- क्षेत्र में सामाजिक, सांस्कृतिक व आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करना।
- सांझे हितों में परस्पर सहायता व सहयोग की भावना को बढ़ाना।
- शिक्षा, तकनीकी ज्ञान, वैज्ञानिक क्षेत्र में पारस्परिक सहयोग को बढ़ावा देना।
- क्षेत्र में अनुसंधान, प्रशिक्षण तथा अध्ययन को प्रोत्साहित करना।
- समान उद्देश्यों वाले क्षेत्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ अधिक सहयोग करना।
- कृषि व्यापार तथा उद्योग के विकास में सहयोग देना।
आसियान के कार्य
इसका कार्यक्षेत्र बहुत व्यापक है। यह समस्त राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक, तकनीकी, व्यापारिक तथा प्रशासनिक क्षेत्रों में कार्यरत है। आज दक्षिण-पूर्वी एशिया में अनेक सामाजिक व आर्थिक समस्याएं हैं जिनको हल करने के लिए यह संगठन निरन्तर प्रयासरत है।ASEAN (आसियान) की स्थायी समिति ने जनसंख्या विस्फोट, निर्धनता, आर्थिक शोषण, असुरक्षा से सम्बन्धित अनेक नीतियां व कार्यक्रम बनाए हैं। इसके प्रमुख कार्य हैं-
- यह दक्षिण - पूर्वी एशिया में मुक्त व्यापार क्षेत्र विकसित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है। व्यापार की उदार नीतियों को प्रोत्साहित करके इस दिशा में निरन्तर प्रयास जारी हैं। इसका उद्देश्य सांझा बाजार स्थापित करना है।
- पर्यटन के क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा देने के लिए यह अपने एक सामूहिक संगठन ‘आसियण्टा’ के माध्यम से कार्य कर रहा है।
- यह सदस्य देशों में सुरक्षा व शान्ति के लिए आणविक हथियारों पर रोक लगाने पर जोर दे रहा है।
- यह संगठन दक्षिण-पूर्वी एशिया के आर्थिक विकास पर जोर दे रहा है।
- यह सांस्कृतिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए रेडियो तथा दूरदर्शन के माध्यम से सहयोग को बढ़ावा दे रहा है।
- यह जनसंख्या नियंत्रण, शिक्षा का विकास, समाज कल्याण, दवाईयों पर नियंत्रण, खेल आदि के कार्यक्रमों को प्रोत्साहित कर रहा है।
- कृषि को बढ़ावा देने के लिए यह तकनीकी शिक्षा का लाभ किसानों तक पहुंचाने के प्रयास कर रहा है। इस प्रकार ASEAN (आसियान) सदस्य राष्ट्रों में पारस्परिक आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक, तकनीकी व प्रशासनिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए प्रयास कर रहा है। यह इस क्षेत्र में एक सांझा बाजार स्थापित करने की दिशा में प्रयासरत् है।
आसियान के सदस्य देश
ASEAN (आसियान) के दस प्रमुख सदस्य राष्ट्र हैं -
- इंडोनेशिया
- मलेशिया
- फिलीपीन्स
- सिंगापुर
- थाईलैण्ड
- ब्रुनेई
- वियतनाम
- लाओस
- म्यांमार तथा
- कंबोडिया
आसियान के शिखर सम्मेलन
ASEAN (आसियान) के कार्यों व भूमिका का व्यापक मूल्यांकन उसके शिखर सम्मेलनों में लिए गए निर्णयों के आधार पर ही किया जा सकता है। इसके प्रमुख शिखर सम्मेलन हैं -1. प्रथम बाली शिखर सम्मेलन - इस सम्मेलन में फरवरी, 1976 में पारस्परिक व्यापार को बढ़ावा देने की नीति पर जोर दिया गया। इसमें कम खाद्य एवं ऊर्जा वाले देशों की अधिक ऊर्जा शक्ति वाले देशों द्वारा सहायता करने का आश्वासन भी दिया गया। इस सम्मेलन में दो प्रमुख दस्तावेजों पर हस्ताक्षर हुए। प्रथम दस्तावेज द्वारा समस्त सदस्य देशों की स्वतन्त्रता और सम्प्रभुता के प्रति आदर करने एक दूसरे के घरेलू मामलों में हस्तक्षेप न करने के प्रति आदर करने व पारस्परिक झगड़ों का हल शान्तिपूर्ण ढंग से पारस्परिक सहयोग की प्रवृति पर आधारित सिद्धान्तों के आधार पर हल करने पर जोर दिया गया, दूसरे दस्तावेज में आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक व तकनीकी सहयोग की आवश्यकता पर जोर दिया गया।
2. दूसरा क्वालालम्पुर शिखर सम्मेलन - अगस्त 1977 में आयोजित इस सम्मेलन में सदस्य देशों ने दक्षिण-पूर्वी एशिया को शान्ति, स्वतन्त्रता व स्थिरता का क्षेत्र विकसित करने पर जोर दिया। इस सम्मेलन में विकासशील देशों की विकसित देशों पर बढ़ती निर्भरता को चिन्ताजनक माना गया।
3. तीसरा मनीला शिखर सम्मेलन - 14 दिसम्बर, 1987 को आयोजित इस सम्मेलन में फिलीपीन्स में एक्विनो सरकार की स्थिरता, कम्बोडिया समस्या तथा आसियान (ASEAN (आसियान)) राष्ट्रों के दूसरे राष्ट्रों के साथ गठबन्धनों पर व्यापक विचार विमर्श किया गया। इस सम्मेलन में ‘दक्षिण पूर्वी एशिया’ क्षेत्र को परमाणु मुक्त क्षेत्र विकसित करने, पर जोर दिया गया। इसमें वरीयता व्यापार समझौते की अनुपालना करने व आसियान क्षेत्र को एक आर्थिक शक्ति के रूप में विकसित करने दिया गया।
4. चौथा सिंगापुर शिखर सम्मेलन - इस सम्मेलन में (1992) नई अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था (NIEO) की मांग दोहराई गई। इसमें एशियान को मुक्त व्यापार क्षेत्र के रूप में विकसित करने व शान्ति क्षेत्र घोषित करने पर भी जोर दिया गया। इसमें सांझा कर योजना पर भी बातचीत हुई।
5. पांचवां बैंकाक शिखर सम्मेलन - दिसम्बर, 1995 में आयोजित इस सम्मेलन में दक्षिण-पूर्वी एशिया को 2003 तक मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाने पर निर्णय किया गया। इसमें बौद्धिक सम्पदा सम्बन्धी एक समझौता भी हुआ। इसके अतिरिक्त आसियान क्षेत्र को नाभिकीय शस्त्र विहीन क्षेत्र बनाने पर भी एक समझौता हुआ।
6. छठा हनोई शिखर सम्मेलन -दिसम्बर 1998 में हनोई (वियतनाम) में आयोजित इस शिखर सम्मेलन में 2003 से पहले ही इस क्षेत्र को मुक्त व्यापार क्षेत्र के रूप में विकसित करने पर निर्णय लिया गया। ‘हनोई कार्य योजना’ के तहत क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण, व्यापार उदारीकरण तथा वित्तीय सहयोग में वृद्धि करने के उपाय भी निर्धारित किए गए।
7. सातवां सेरी बेगावन शिखर सम्मेलन - नवम्बर, 2001 में आयोजित बादर सेरी बेगावन (ब्रुनेई) सम्मेलन में भारत को
आसियान का पूर्ण संवाद सहभागी बनाने पर सहमति हुई। इसमें रूस व चीन को भी संवाद सहभागी बनाने पर सहमति
प्रकट की गई।
लेकिन आज 'ASEAN (आसियान)' के सामने अनेक चुनौतियां हैं चीन की सामरिक शक्ति में वृद्धि से इसकी सुरक्षा को खतरा उत्पन्न हो गया है। अमेरिका तथा जापान से भी ASEAN (आसियान) की सुरक्षा व्यवस्था को चुनौती मिल रही है। आज ASEAN (आसियान) राष्ट्रों के पास आर्थिक विकास के स्थान पर आर्थिक पिछड़ेपन का ही मूल मंत्र है। पर्याप्त पूंजी व क्रय शक्ति के अभाव के कारण आर्थिक सहयोग की गति बहुत मन्द है। इन देशों में आपसी मतभेद भी है। इन देशों की विकसित देशों पर निर्भरता निरन्तर बढ़ रही है। इन देशों में पश्चिमी ताकतों के सैनिक अड्डे भी मौजूद हैं।
आसियान की भूमिका का मूल्यांकन
राजनीतिक विद्वानों का मानना है कि वियतनाम युद्ध के बाद आसियान (ASEAN (आसियान)) निरंतर प्रगति के पथ पर है। 1976 के बाली शिखर सम्मेलन ने क्षेत्रीय सहयोग के जो नए आयाम स्थापित किए थे, उन्हें प्राप्त करने के लिए आज आसियान के सदस्य राष्ट्र निरन्तर प्रयास कर रहे हैं। दक्षिण पूर्वी एशिया को मुक्त व्यापार क्षेत्र के रूप में विकसित करने के प्रयास अन्तिम सीमा पर हैं। ASEAN (आसियान) एक ऐसी क्षेत्रीय व्यवस्था के रूप में विकसित हो रहा है जो दक्षिण-पूर्वी एशिया के देशों में आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक व तकनीकी सहयोग के नए आयाम स्थापित करेगा।लेकिन आज 'ASEAN (आसियान)' के सामने अनेक चुनौतियां हैं चीन की सामरिक शक्ति में वृद्धि से इसकी सुरक्षा को खतरा उत्पन्न हो गया है। अमेरिका तथा जापान से भी ASEAN (आसियान) की सुरक्षा व्यवस्था को चुनौती मिल रही है। आज ASEAN (आसियान) राष्ट्रों के पास आर्थिक विकास के स्थान पर आर्थिक पिछड़ेपन का ही मूल मंत्र है। पर्याप्त पूंजी व क्रय शक्ति के अभाव के कारण आर्थिक सहयोग की गति बहुत मन्द है। इन देशों में आपसी मतभेद भी है। इन देशों की विकसित देशों पर निर्भरता निरन्तर बढ़ रही है। इन देशों में पश्चिमी ताकतों के सैनिक अड्डे भी मौजूद हैं।
दक्षिण पूर्वी एशियाई राष्ट्रों की अर्थव्यवस्थाओं में बार-बार पैदा
होने वाले मुद्रा संकट इसकी कार्यप्रणाली पर बुरा प्रभाव डाल रहे हैं। यदि ASEAN (आसियान) के देश विकसित देशों पर अपनी आर्थिक
निर्भरता में कमी करें और आपसी सहयोग की प्रवृत्ति का विकास करें तो दक्षिण पूर्वी एशियाई क्षेत्र में नए आर्थिक सम्बन्धों
के अध्याय की शुरुआत होगी और ASEAN (आसियान) एक मजबूत क्षेत्रीय आर्थिक संगठन के रूप में अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सम्बन्धों को
प्रभावित करने के योग्य होगा।
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